
10/06/2025
एक जैसी ही दिखती थी...माचिस की वो तीलियाँ,
कुछ ने दिये जलाये......और कुछ ने घर,
कुछ ने महकाई....अगरबत्तियां मंदिरों में,
तो कुछ ने सुलगाये.....सिगरेट के कश,
कहीं गरमाया चूल्हा...और बनी रोटियाँ,
तो कहीं फटे बम....और बिखरी बोटियाँ,
जली कहीं शादी में.....बन हवनकुंड की अगन,
तो कहीं फूँकी गयी....दहेज़ की कमी से कोई सुहागन,
एक सी दिखती थी.....माचिस की वो तीलियाँ पर,
सभी ने अपना....एक अलग ही रंग दिखाया..