10/10/2025
करनाल जिले के तीन गांवों में नहीं मनाई जाती करवा चौथ — परंपरा के पीछे छिपी है एक दर्दनाक कहानी
गांव गोंदर, आगोद और कतलाहेड़ी में आज भी निभाई जाती है सदियों पुरानी मान्यता
करनाल, 10 अक्टूबर।
जहां एक ओर पूरे हरियाणा में सुहागिनें अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखकर चांद की पूजा करती हैं, वहीं करनाल जिले के तीन गांव — गोंदर, आगोद और कतलाहेड़ी — ऐसे हैं जहां यह त्योहार नहीं मनाया जाता। इन गांवों में आज भी करवा चौथ का नाम लेना तक एक तरह से अपशकुन माना जाता है। इस परंपरा के पीछे एक दर्दनाक ऐतिहासिक घटना जुड़ी हुई बताई जाती है।
दुखद कथा जो बनी परंपरा
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि करीब सैकड़ों साल पहले, इन गांवों में करवा चौथ के दिन एक दुल्हन ने अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हुए व्रत रखा था। उसी दिन किसी कारणवश उसका पति खेत में काम करते समय मृत्यु को प्राप्त हो गया।
गांववालों के अनुसार, यह घटना इतनी वेदनादायक और विचित्र संयोग थी कि पूरे गांव में शोक की लहर फैल गई। इसके बाद गांव की महिलाओं ने निर्णय लिया कि वे अब कभी करवा चौथ नहीं मनाएंगी, क्योंकि जिस दिन उन्होंने पति की लंबी उम्र की कामना की, उसी दिन उसकी मृत्यु हो गई।
पीढ़ी दर पीढ़ी चल रही मान्यता
तब से लेकर आज तक, गांव की स्त्रियाँ इस परंपरा को निभा रही हैं। बुजुर्ग महिलाओं का कहना है कि उनके पूर्वजों ने जो व्रत त्यागा था, वे उसी परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं। गांवों में अब भी न तो करवा चौथ का व्रत रखा जाता है और न ही चांद की पूजा की जाती है।
युवा पीढ़ी भले ही आधुनिकता की ओर बढ़ रही हो, लेकिन इस मामले में वे भी गांव की परंपरा का पालन करना अपना कर्तव्य मानती हैं।
“श्रद्धा नहीं, शोक का दिन”
गांव गोंदर की एक बुजुर्ग महिला ने बताया —
> “हमारे यहां करवा चौथ व्रत नहीं रखा जाता। हमारे बड़ों ने मना किया था। कहा गया कि यह दिन हमारे गांव के लिए शुभ नहीं, इसलिए हम पूजा या व्रत नहीं करते। उस दिन बस सामान्य दिन की तरह ही गुज़रता है।”
आसपास के गांवों में मनाई जाती है धूमधाम से
दिलचस्प बात यह है कि इन तीन गांवों के आसपास के अन्य गांवों — जैसे कि निसिंग, दनियालपुर, तरावड़ी क्षेत्र — में करवा चौथ पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। महिलाएं सज-धजकर, गीत गाकर और चांद देखकर व्रत खोलती हैं, लेकिन गोंदर, आगोद और कतलाहेड़ी गांवों में यह दिन सिर्फ एक साधारण दिन की तरह ही बीतता है।
स्थानीय मान्यता पर आधारित यह परंपरा आज भी कायम
हालांकि इस पर कोई धार्मिक या शास्त्रीय निषेध नहीं है, फिर भी इन गांवों में लोक मान्यता और पारिवारिक परंपरा इतनी गहरी जड़ें जमा चुकी है कि कोई इसे तोड़ने का साहस नहीं करता। ग्रामीण मानते हैं कि यह उनके पूर्वजों के अनुभवों और आस्था से जुड़ा हुआ मामला है, इसलिए वे इसे आगे भी निभाते रहेंगे।
संवाददाता – न्यूज प्लस 18, करनाल
(स्थानीय परंपराओं की श्रृंखला के अंतर्गत विशेष रिपोर्ट)