चित्रकूट

चित्रकूट " चित्रकूट के घाट पर, भई संतन की भीर, तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक करे रघुवीर'।"

*हनुमान धारा*हनुमान धारा चित्रकूट में स्थित एक पवित्र झरना है, जो भगवान हनुमान से जुड़ा हुआ है। यह झरना हनुमान जी की तपस...
25/07/2024

*हनुमान धारा*
हनुमान धारा चित्रकूट में स्थित एक पवित्र झरना है, जो भगवान हनुमान से जुड़ा हुआ है। यह झरना हनुमान जी की तपस्या के स्थल से जुड़ा हुआ है, जहां उन्होंने भगवान राम की खोज में तपस्या की थी।

इस झरने के बारे में मान्यता है कि हनुमान जी ने अपने गुरु सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए यहां तपस्या की थी, और सूर्य देव ने प्रसन्न होकर इस झरने को बनाया था।

भक्तों का मानना है कि हनुमान धारा में स्नान करने से शारीरिक और मानसिक रोग दूर होते हैं, और हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है। यहां भक्त हनुमान जी की पूजा-अर्चना करते हैं और उनकी कृपा की भीख मांगते हैं।

26/07/2023




#चित्रकूट

23/07/2023

कहानी चित्रकूट धाम की
जय श्री कामतानाथ सरकार की

#चित्रकूट

चित्रकूट स्वराज अभियान Chitrakoot Swaraj Abhiyaan

यूपी सीएम योगी जी के आदेश पालन करते हुए    चित्रकूट में हेलीकॉप्टर द्वारा की गई पुष्प वर्षाहरियाली अमावस्या का महत्वश्रा...
17/07/2023

यूपी सीएम योगी जी के आदेश पालन करते हुए
चित्रकूट में हेलीकॉप्टर द्वारा की गई पुष्प वर्षा

हरियाली अमावस्या का महत्व
श्रावण मास की अमावस्या को हरियाली अमावस्या कहा जाता है. वातावरण की हरियाली के कारण इसको हरियाली अमावस्या कहा जाता है. इस दिन दान, ध्यान और स्नान का विशेष महत्व है. इसके अलावा इस दिन विभिन्न मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पौधे भी लगाए जाते हैं. इस तिथि को पौधों के माध्यम से सम्पन्नता और समृद्धि प्राप्त की जा सकती है.
लाखो की भीड़ में श्रद्धालु बाबा मतगंजराज भगवान के दर्शन मात्र के उमड़ती है भीड़

"स्वामी मत्यगजेन्द्र नाथ"धार्मिक नगरी चित्रकूट की पहचान भगवान श्रीराम से जुड़ी है। लेकिन यहां मां मंदाकिनी के किनारे राम...
17/07/2023

"स्वामी मत्यगजेन्द्र नाथ"
धार्मिक नगरी चित्रकूट की पहचान भगवान श्रीराम से जुड़ी है। लेकिन यहां मां मंदाकिनी के किनारे रामघाट पर विश्वप्रसिद्ध प्राचीन मत्यगजेन्द्र नाथ शिव मंदिर है। मंदिर का इतिहास चार युग पुराना है। जिसमें स्थापित शिवलिंग की महिमा का वर्णन शिवपुराण में भी मिलता है। मान्यता है कि इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग की स्थापना स्वयं भगवान ब्रह्मा ने अपने हाथ से की थी। कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी स्थान पर यज्ञ किया था। यज्ञ के प्रभाव से निकले शिवलिंग को स्वामी मत्यगजेन्द्र नाथ के नाम से जाना जाता है।

यह लिखा है शिवपुराण में

मंदिर के पुजारी पं. विपिन तिवारी बताते हैं कि शिवपुराण के अष्टम खंड के दूसरे अध्याय मे मत्य गजेन्द्रनाथ भगवान के बारे में वर्णन है। ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु की आज्ञा पर चित्रकूट के पवित्र पर्वत पर यज्ञ किया था, जिसमें शिवलिंग निकला। वही शिवलिंग मंदिर में स्थापित है। यहां जलाभिषेक करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। जो मनुष्य प्रात: काल मंदाकिनी में स्नान कर मत्यगजेन्द्र नाथ का पूजन करता है, उसके सभी मनोरथ पूरे होते हैं।

चित्रकूट से big breaking - मानिकपुर तहसील अन्तर्गत मऊ गुरदरी गाँव के समीप बरदहा नदी के मुहाने पर एक चट्टान में मिले पाषा...
16/07/2023

चित्रकूट से big breaking -

मानिकपुर तहसील अन्तर्गत मऊ गुरदरी गाँव के समीप बरदहा नदी के मुहाने पर एक चट्टान में मिले पाषाणक़ालीन चित्र , विंध्य की पर्वत शृंखलाओं के समीप लगातार मिल रहे हैं मानव जीवन से जुड़े प्रमाण , CACH की टीम ने उक्त स्थान की रिपोर्ट Rock Art society Of India को भेजी , इन चित्रों के अध्ययन से खुल सकते हैं मानव जीवन के क्रमिक विकास से जुड़े रहस्य , विगत दिनों CACH की टीम को सरहट, करपटिया , मारकुण्डी, बरहा कोटरा , भौरी , धारकूड़ी और चित्रकूट के अन्य कई स्थानों में मिल चुके हैं पाषाणक़ालीन शैलचित्र , ग़ौरतलब हो कि CACH के संस्थापक अनुज हनुमत और उनकी टीम लगातार चित्रकूट में मौजूद शैलचित्रों के सरंक्षण और उनके शोध हेतु संघर्षरत है । उन्होंने पुनः ज़िलाधिकारी से गुज़ारिश करते हुए निवेदन किया है इन प्राचीन विरासतों के संरक्षण और शोध हेतु एक टीम गठित की जाए

14/07/2023

mahakaleshwar mandir
nagari

यह गैवीनाथ धाम भारत देश के मध्य प्रदेश-सतना जिले में स्थित है | भगवान शिव का यह दिव्य मंदिर सतना से लगभग 35 किलोमीटर की ...
12/07/2023

यह गैवीनाथ धाम भारत देश के मध्य प्रदेश-सतना जिले में स्थित है | भगवान शिव का यह दिव्य मंदिर सतना से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर है और यहां का जो शिवलिंग है वह अपने आप में रहस्यमय है, क्योंकि हम लोग प्राय: देखते हैं कि कोई मूर्ति या प्रतिमा जब खंडित हो जाती है तो हम उसकी पूजा आरती नहीं करते | उसे गंगा आदि पवित्र नदियों में विसर्जन कर देते हैं और नवीन प्रतिमा की स्थापना कर पूजा करते हैं | लेकिन यह जो बिरसिंहपुर नामक स्थान में भगवान शंकर का मंदिर है वहां गैवीनाथ नाम से विख्यात शिवलिंग खंडित है फिर भी उनकी दिव्य पूजा आरती होती है और यह पूरे भारतवर्ष के भक्तों का आस्था का केंद्र है,
यहां हजारों की संख्या में भक्तजन आते हैं,
और बाबा गैवीनाथ के दर्शन कर, उन्हें स्नान करा (जल चढ़ाकर) कृतकृत्य हो जाते हैं | आपको बता दें कि गैवीनाथ धाम में सोमवार को भक्तों का तांता लगा रहता है और श्रावण मास में तो यहां शिव भक्तों की आस्था देखती बनती है | क्योंकि श्रावण मास में शिव भक्तों का मानो जन सैलाब उमड़ जाता है अपने भोलेनाथ बाबा के दर्शन करने हेतु |
गैवीनाथ धाम बिरसिंहपुर/गैवीनाथ बाबा के बारे मे रोचक जानकारी
एक बात से हम आप लोग को और अवगत करा दें कि यह शिवलिंग कई हजार सालों पुराना है इसका इतिहास हमें पद्मपुराण के पाताल खंड से प्राप्त होता है | कि--
त्रेता युग में इस जगह का नाम बिरसिंहपुर के जगह देवपुर था
और यहां के राजा थे वीर सिंह और यह बड़े प्रतापी राजा थे तथा इनके रोम रोम में शिव बसते थे | इतने बड़े शिव भक्त थे यह कि अपने घोड़े में बैठकर प्रतिदिन देवपुर ( बिरसिंहपुर ) से उज्जैन महाकालेश्वर के दर्शन करने हेतु जाया करते थे | समय बीतता गया कई साल इसी प्रकार व्यतीत हुए और राजा वीर सिंह का शरीर बुढ़ापे का शिकार हो गया, अब प्रतिदिन उज्जैन जाने में असमर्थ हो गए थे तो उन्होंने आखिरी बार बाबा महाकालेश्वर के दर्शन करने गए और उनसे प्रार्थना की कि हे महादेव इस भक्त के ऊपर कृपा करो | अब रोज आपके दर आने में असमर्थ है तो कृपा करके आप ही पधारो इस भक्त के यहां, जिससे कि मैं आपका दर्शन कर सकूं |
ऐसी प्रार्थना करके राजा वीर सिंह अपने राज्य को लौट आए |
एकदिन राजा वीर सिंह के स्वप्न में भगवान शंकर ने दर्शन दिया और कहा कि मैं तुम्हारी प्रार्थना से प्रसन्न हूं और मैं तुम्हारे नगर देवपुर में प्रगट हूंगा और यहां भगवान शंकर शिवलिंग के रूप में गैवी नामक व्यक्ति के घर से निकलते लेकिन गैबी की मां पत्थर समझकर अपने मुसल से उसे अंदर कर देती कूटकर | यही क्रम कई दिनों तक चलता रहा तो फिर से भोलेनाथ ने राजा वीर सिंह को सपने में आए और बोले कि मैं देवपुर में आना चाहता हूं लेकिन गैवी मुझे बाहर निकलने ही नहीं देता ? प्रतिदिन उसकी मां अपने मुसल के द्वारा मुझे नीचे की तरफ ठोक देती है तो मुझे बाहर आने दो ! यह कहकर भगवान् शंकर अंतर्ध्यान हो गये |
प्रात: काल हुआ तो राजा ने गैवी को बुलाकर सारी बात बताई तो गैवी बहुत प्रसन्न हुआ कि मैं बहुत बड़ा बड़भागी हूं जो भगवान शंकर मेरे घर से निकले हैं और फिर गैवी के यहां शिवलिंग निकला जिसके कारण यह गैवीनाथ नाम से उस शिवलिंग की देश भर में ख्याति हुयी |
राजा प्रसन्न होकर गैवी को खूब धन व रहने के लिए उत्तम स्थान प्रदान किया |
राजा वीर सिंह गैवी के घर के जगह दिव्य शिव मंदिर की स्थापना की , और जैसे-जैसे समय बीतता गया और जो भी राजा आते उस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाते गए |
गैवीनाथ धाम बिरसिंहपुर/गैवीनाथ बाबा के बारे मे रोचक जानकारी
मित्रों यह गैवीनाथ बाबा कलयुग में हर मनोकामना को पूर्ण करने वाले हैं, अपने भक्तों की हर इच्छा को पूर्ण करते हैं |
यह शिवलिंग खंडित कैसे हुआ ?
मित्रों अब हम जानेंगे इस शिवलिंग के प्रभाव को कैसे खंडित होने पर भी पूजा जाने लगा ? तो आपको अवगत होगा कि हमारे धार्मिक ग्रंथों व धार्मिक आस्था के केंद्रों को मुगलों ने कैसे नष्ट किया था | तो उस समय महमूद गजनवी यह मुगल शासक बिरसिंहपुर धाम में स्थिति गैवीनाथ शिवलिंग को तोड़ने पहुंचा और उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि शिवलिगं को शीघ्र ही तोड़फोड़ कर रख दो | सैनिक अपने मालिक का आदेश पाते ही बड़े-बड़े हथौड़े से गैवीनाथ बाबा पर प्रहार किया तब शिवलिगं में दो तरफ से दरारें हो गयीं तो उस समय यह शिवलिंग द्वारा महान चमत्कार हुआ एक तरफ की दरार से तो रक्त की धारा बह रही थी और दूसरी तरफ की दरार से बहुत ज्यादा संख्या में मधुमक्खियां, बीछी, सर्प, बर्रइय्या आदि निकले और सभी सैनिकों की हालत खराब कर दी तब सभी मुगलों ने वहां से भागने में ही अपनी भलाई समझी
और वहां से सभी रफूचक्कर हो गए |
गैवीनाथ की प्रतिमा को टूटा हुआ देखकर पुजारी दुखी हो गए, तब भगवान भोलेनाथ ने पुनः स्वप्न में आकर पुजारी को दर्शन दिए और कहे आज से तुम मेरी खंडित मूर्ति की पूजा करो इसमें तुम्हें कोई दोष नहीं लगेगा | तभी से गैवीनाथ बाबा की खंडित शिवलिंग की पूजा होती है | अगर यहां सच्चे मन से जो भी भक्त मन्नत मांगता है तो उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है | यह पावन स्थान बड़ा मनोरम है, इसके सामने बहुत ही सुंदर एक सरोवर है जिसका पानी बड़ा निर्मल है | गैवीनाथ मंदिर के सामने जगत जननी मां पार्वती का दिव्य स्थान है , तालाब के इस पार गैवीनाथ और उस पर माता पार्वती और जो भी भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है ( मन्नत पूरी होती है ) वह भोलेनाथ और माता पार्वती की गांठ जुड़वाते हैं वस्त्र या चुनरी के द्वारा वहां ब्राह्मणों द्वारा पूजन अभिषेक आदि करवाते हैं ,,,

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