18/10/2025
*विघ्न विनाशक भगवान् धन्वन्तरि की पूजा*
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी की रात्रि के पहले पहर में विघ्न विनाशक धन्वन्तरि की पूजा आरोग्य, आयुष्य और सुख प्राप्ति की कामना से करनी चाहिये । यथा-
*[१] आचमन*
पहले से रक्खे हुये आचमनी द्वारा दाहिने आचमन करे । यथा- शुद्ध जल-पात ( पंच - पात्र ) और हाथ में जल लेकर तीन बार
*१ ॐ आत्म-तत्त्वं शोधयामि स्वाहा ।*
*२ ॐ विद्या तत्वं शोधयामि स्वाहा ।*
*३ ॐ शिव तत्त्वं शोधयामि स्वाहा ।*
*[२] सङ्कल्प*
तीन बार आचमन करने के बाद पंच- पात्र से पुनः जल लेकर दाहिने हाथ की जूठी हथेली को स्वच्छ करे । ऐसे स्वच्छ दाहिने हाथ की हथेली में पुनः बाँयें हाथ द्वारा आचमनी से जल, अक्षत, पुष्पादि लेकर पूजा का सङ्कल्प पढ़े-
*ॐ तत्सत् अद्यैतस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय प्रहरार्द्ध श्वेतवराह-कल्पे जम्बू द्वीपे भरतखण्डे अमुक-प्रदेशे अमुक- पुण्यक्षेत्रे कलियुगे कलि प्रथम चरणे अमुक सम्वत्सरे कार्तिकमासे कृष्ण पक्षे त्रयोदशी-तिथौ अमुक - वासरे अमुकगोत्रोत्पन्नो अमुक नाम शर्मा श्रीधन्वन्तरि देवता-प्रीति पूर्वकं आयुष्य-आरोग्य-ऐश्वर्य अभिवृद्ध्यर्थं श्रीधन्वन्तरि-पूजनमहं करिष्यामि ।*
अर्थात्- ॐ तत्सत् (ब्रह्म ही एक मात्र सत्य है ) । आज ब्रह्मा के प्रथम दिवस के इस दूसरे पहर में श्वेत- वराह नामक कल्प में, 'जम्बू' नामक द्वीप में, 'भरत' के भू-खण्ड में, अमुक नामक 'प्रदेश' में, अमुक पवित्र 'क्षेत्र' में, 'कलियुग' में, 'कलि' के प्रथम चरण में, अमुक 'सम्वत्सर' में, कार्तिक 'मास' में, कृष्ण 'पक्ष' में, अमुक 'दिवस' में, अमुक 'गोत्र' में त्रयोदशी 'तिथि' में, उत्पन्न, अमुक 'नाम' वाला 'शर्मा', श्रीधन्वन्तरि देवता की प्रसन्नता पूर्वक आयु, आरोग्य और ऐश्वर्य की अभिवृद्धि के लिए मैं श्रीधन्वन्तरि की पूजा करूँगा ।
इस प्रकार संकल्प पढ़कर दाहिने हाथ में लिया हुआ जल अपने सम्मुख छोड़ दे ।
*३] आत्म-शोधन*
संकल्प पढ़ने के बाद निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुये पूजा द्रव्य पर और अपने ऊपर जल छिड़के-
*ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।*
*यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥*
अर्थात् — अपवित्र हो या पवित्र अथवा किसी भी दशा में हो, जो कमल नयन इष्ट देवता का स्मरण करता है, वह बाहर और भीतर दोनों प्रकार से पवित्र हो जाता है ।
*[४] ध्यान*
आत्म-शोधन के बाद श्रीधन्वन्तरि देवता का ध्यान पहले से प्रज्वलित अपने सम्मुख रखे हुये घी के दीपक की लौ में करे। यथा-
*चतुर्भुजं पीत वस्त्रं सर्वालङ्कार-शोभितम् ।*
*ध्याये धन्वन्तरि देवं सुरासुर - नमस्कृतम् ॥ १*
*युवानं पुण्डरीकाक्षं सर्वाभरणभूषितम् ।*
*दधानममृतस्यैव कमण्डलुं श्रिया युतम् ॥ २*
*यज्ञ भोग-भुजं देवं सुरासुर नमस्कृतम् ।*
*ध्याये धन्वन्तरि देवं श्वेताम्बरधरं शुभम् ॥३*
अर्थात् – मैं चार भुजाओंवाले, पीले वस्त्र पहने हुये, सभी प्रकार के आभूषणों से सुशोभित, सुरों और असुरों द्वारा वन्दित भगवान् धन्वन्तरि का ध्यान करता हूँ।।१।। तरुण, कमल-नयन, सभी अलंकारों से विभूषित, अमृत-पूर्ण कमण्डलु लिये हुये, यज्ञ-भाग को खानेवाले, देवों और दानवों से वन्दित, श्री से युक्त, भगवान् धन्वन्तरि का मैं ध्यान करता हूँ ।। २-३।।
*[५] आवाहन*
श्री धन्वन्तरि - देवता का ध्यान करने के बाद उनका आवाहन करे । यथा-
*आगच्छ देव-देवेश ! तेजोराशे जगत्-पते !*
*क्रियमाणां मया पूजां गृहाण सुर-सत्तम ! ॥*
*श्री धन्वन्तरि देवं आवाहयामि ॥*
अर्थात् - हे देवताओं के ईश्वर ! तेज- सम्पन्न हे संसार के स्वामिन् ! हे देवोत्तम ! आइए, मेरे द्वारा की जानेवाली पूजा को स्वीकार करें । मैं भगवान् श्रीधन्वन्तरि का आवाहन करता हूँ ।।
*[६] पुष्पाञ्जलि*
आवाहन करने के बाद निम्न मन्त्र पढ़ कर उन्हें आसन के लिये पाँच पुष्प अञ्जलि में लेकर अपने सामने छोड़े-
*नाना - रत्न-समायुक्तं कार्त - स्वर - विभूषितम् ।*
*आसनं देव-देवेश ! प्रीत्यर्थं प्रति गृह्यताम् ॥*
*श्रीधन्वन्तरि-देवाय आसनार्थे पञ्च पुष्पाणि समर्पयामि ॥*
अर्थात् — हे देवताओं के ईश्वर ! विविध प्रकार के रत्न से युक्त स्वर्ण-सज्जित आसन को प्रसन्नता हेतु ग्रहण करें । ॥ भगवान् श्रीधन्वन्तरि के आसन के लिये मैं पाँच पुष्प अर्पित करता हूँ ॥
*[७] स्वागत*
पुष्पांजलि - रूप आसन प्रदान करने के बाद यह वाक्य कहे- 'श्रीधन्वन्तरि-देव ! स्वागतम्' अर्थात् 'हे भगवान् धन्वन्तरि ! आपका स्वागत है'
*[८] पाद्य*
स्वागत कर निम्न लिखित मन्त्र से पाद्य (पैर धोने जल) समर्पित करे--
*पाद्यं गृहाण देवेश, सर्व क्षेम समर्थ, भोः !*
*भक्तया सर्मापतं देव, लोकनाथ ! नमोऽस्तु ते ॥*
*श्रीधन्वन्तरि देवाय पाद्यं नमः ॥*
अर्थात् - सब प्रकार के कल्याण करने में सक्षम है देवेश्वर ! पैर धोने का जल भक्ति-पूर्वक समर्पित है। उसे स्वीकार करें ।हे विश्वेश्वर भगवन् ! आपको नमस्कार है । भगवान् श्रीधन्वन्तरि को पैर धोने के लिये यह जल है - उन्हें नमस्कार ।। पाद्य समर्पण के बाद उन्हें अर्घ्य( शिर के अभिषेक हेतु जल) समर्पित करे । यथा-
*[९]अर्घ्य*
*नमस्ते देवदेवेश ! नमस्ते धरणी-धर !*
*नमस्ते जगदाधार ! अर्ध्याऽयं प्रतिगृह्यताम् ।*
*गन्ध-पुष्पाक्षतंर्युक्तं फल- द्रव्य-समन्वितम् ।*
*गृहाण तोयमर्घ्यर्थं परमेश्वर, वत्सल ! ॥*
*श्रीधन्वन्तरि-देवाय अर्घ्यं स्वाहा ॥*
अर्थात् — हे देवेश्वर ! आपको नमस्कार । हे धरती को धारण करनेवाले ! आपको नमस्कार । हे जगत् के आधार स्वरूप ! आपको नमस्कार । शिर के अभिषेक के लिये यह जल ( अर्घ्य ) स्वीकार करें । हे कृपालु परमेश्वर ! चन्दन - पुष्प- अक्षत से युक्त, फल और द्रव्य के सहित यह जल शिर के अभिषेक के लिये स्वीकार करें ।। भगवान् श्रीधन्वन्तरि के लिये अर्घ्य समर्पित है |
*[१०] गन्ध ( चन्दन) समर्पण*
*श्री खण्ड चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम् ।*
*विलेपनं सुरश्रेष्ठ ! चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥*
*श्रीधन्वन्तरि देवाय चन्दनं समर्पयामि ॥*
अर्थात् — हे देवोत्तम ! मनोहर और सुगन्धित चन्दन शरीर में लगाने हेतु ग्रहण करें । भगवान् श्रीधन्वन्तरि के लिये चन्दन समर्पित करता हूँ ॥
*[११] पुष्प-*
*समर्पण सेवन्तिका वकुल चम्पक पाटलाब्जैः* ,
*पुन्नाग-जाति- करवीर रसाल- पुष्पैः ।*
*विल्व-प्रवाल- तुलसी दल मल्लिकाभिस्त्वाम्* ,
*पूजयामि जगदीश्वर ! मे प्रसीद ॥*
*श्रीधन्वन्तरि देवाय पुष्पं समर्पयामि ॥*
अर्थात्——हे लोकेश्वर ! श्वेत गुलाब (सेमन्ती), बकुल, चम्पा, लाल-पीला कमल, पुन्नाग ( लोध्र ), मालती, कनेर पुष्पों और बेल, मूंगे, तुलसी तथा मालती की पत्तियों द्वारा मैं आपकी पूजा करता हूँ। मुझ पर आप प्रसन्न हों ॥ भ० श्रीधन्वन्तरि के लिये पुष्प समर्पित करता हूँ ।।
*[१२] धूप- समर्पण*
*वनस्पति- रसोद्भूतो गन्धाढ्यः सुमनोहरः ।*
*आतघ्रेयः सर्व देवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥*
*श्रीधन्वन्तरि देवाय धूपं समर्पयामि ॥*
अर्थात्-वृक्षों के रस से बनी हुई, सुन्दर, मनोहर, सुगन्धित और सभी देवताओं के सूंघने के योग्य यह धूप आप ग्रह्ण करें ।
॥ भ० श्रीधन्वन्तरि के लिये मैं धूप समर्पण समर्पित करता हूँ ।।
*[१३] दीप*
*साज्यं वर्ति-संयुक्तं च वह्निना योजितं मया।*
*दीपं गृहाण देवेश ! त्रैलोक्य तिमिरापहम् ।*
*भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने ।*
*त्राहि मां निरयाद् घोराद्दीपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥*
*श्रीधन्वन्तरि - देवाय दीपं समर्पयामि ॥*
अर्थात् - हे देवेश्वर ! घी के सहित और बत्ती से मेरे द्वारा जलाया हुआ, तीनो लोकों के अँधेरे को दूर करनेवाला दीपक स्वीकार करें । मैं भक्ति-पूर्वक परमात्मा भगवान् को दीपक प्रदान करता हूँ । इस दीपक को स्वीकार करें और घोर नरक से मेरी रक्षा करें । ॥ भगवान् श्रीधन्वन्तरि के लिये मैं दीपक समर्पित करता हूँ ।
*[१४] नैवेद्य समर्पण*
*शर्करा - खण्ड खाद्यानि दधि-क्षीर घृतानि च ।*
*आहारो भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥*
*यथांशतः श्रीधन्वन्तरि देवाय नैवेद्यं समर्पयामि*
ॐ प्राणाय - स्वाहा ।
ॐ अपानाय स्वाहा ।
ॐ व्यानाय स्वाहा ।
ॐ उदानाय स्वाहा ।
ॐ समानाय स्वाहा ॥
अर्थात् — शर्करा - खण्ड (बताशा आदि), खाद्य पदार्थ, दही, दूध और घी जैसी खाने की वस्तुओं से युक्त भोजन आप ग्रहण करें । यथा-योग्य रूप भगवान् श्रीधन्वन्तरि को मैं नैवेद्य समर्पित करता हूँ प्राण के लिये, अपान के लिये, व्यान के लिये, उदान के लिये और समान के लिये स्वीकार हो।
*[१५] आचमन (जल) समर्पण*
ततः पानीयं समर्पयामि इति उत्तरापोशनम् ।
हस्त- प्रक्षालनं समर्पयामि ।
मुख प्रक्षालनं ।
करोद्वर्तनार्थे चन्दनं समर्पयामि ।
अर्थात्-नैवेद्य के बाद मैं पीने और आचमन (उत्तरापोशन) लिये, मुख धोने के लिये जल के लिये, हाथ धोने के और हाथों में लगाने के लिये चन्दन समर्पित करता हूँ ।
*[१६] ताम्बूलसमर्पण*
*पूगीफलं महा-दिव्यं नाग- वल्ली - दलर्युतम् ।*
*कर्पूरैला - समायुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥*
*श्रीधन्वन्तरि देवाय मुख वासार्थं पूगीफल युक्तं ताम्बूलं समर्पयामि ॥*
अर्थात् पान के पत्तों से युक्त अत्यन्त सुन्दर सुपाड़ी, कपूर और इलायची से प्रस्तुत ताम्बूल आप स्वीकार करें । ।। भगवान् श्रीधन्वन्तरि के मुख को सुगन्धित करने के लिये सुपाड़ी से युक्त ताम्बूल मैं समर्पित करता हूँ ।।
*[१७] दक्षिणा*
*हिरण्यगर्भ - गर्भस्थं हेम-बीजं विभावसोः ।*
*अनन्त - पुण्य-फलदमतः शान्ति प्रयच्छ मे ॥*
*श्रीधन्वन्तरि देवाय सुवर्ण-पुष्प-दक्षिणां समर्पयामि ॥*
अर्थात्– असीम पुण्य प्रदान करनेवाले स्वर्ण-गभित चम्पक पुष्प से मुझे शान्ति प्रदान करिये ।भगवान् श्रीधन्वन्तरि के लिये मैं स्वर्ण - पुष्प- रूपी दक्षिणा प्रदान करता हूँ।।
*[१८] प्रदक्षिणा*
*यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च ।*
*तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिणं पदे पदे ॥*
*अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं प्रभो !*
*तस्मात् कारुण्य-भावेन क्षमस्व परमेश्वर ॥*
*श्रीधन्वन्तिर - देवाय प्रदक्षिणं समर्पयामि ॥*
अर्थात् - पिछले जन्मों में जो भी पाप किये होते हैं, वे सब प्रदक्षिणा करते समय एक-एक पग पर क्रमशः नष्ट होते जाते हैं । हे प्रभो ! मेरे लिये कोई अन्य शरण देनेवाला नहीं है, तुम्हीं शरण दाता हो । अतः हे परमेश्वर ! दया भाव से मुझे क्षमा करो । भगवान् श्रीधन्वन्तरि को मैं प्रदक्षिणा समर्पित करता हूँ ।
*[१६] वन्दना सहित पुष्पाञ्जलि*
*कर -चरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा,*
*श्रवण - नयनजं वा मानसं वाऽपराधम् ।*
*विदितमविदितं वा सर्वमेतत् क्षमस्व,*
*जय जय करुणाब्धे, श्रीमहादेव, शम्भो !*
श्री धन्वन्तरि देवतायं मन्त्र-पुष्पं समर्पयामि ॥
अर्थात् — हे दया-सागर, श्री महा-देव, कल्याण कर ! हाथों-पैरों द्वारा किये हुये या शरीर या कर्म से उत्पन्न, कानों-आँखों से उत्पन्न या मन के जो भी ज्ञात या अज्ञात मेरे अपराध हों, उन सबको आप क्षमा करें । आपकी जय हो, जय हो । भगवान् श्रीधन्वन्तरि के लिये मैं मन्त्र - पुष्पांजलि समर्पित करता हूँ ।।
*[२०] साष्टाङ्ग प्रणाम*
निम्न मन्त्र पढ़कर साष्टाङ्ग प्रणाम कर नमस्कार करें-
*नमः सर्व हितार्थाय जगदाधार - हेतवे ।*
*साष्टाङ्गोऽयं प्रयत्नेन मया कृतः ॥*
*नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये सहस्र - पादाक्षि शिरोरु- बाहवे*
अर्थात्-सभी का कल्याण करनेवाले, जगत् के आधारभूत आपके लिये मैंने प्रयत्न- पूर्वक यह साष्टाङ्ग प्रणाम किया है - अनन्त भगवान् के लिये, सहस्रों स्वरूपवाले भगवान् के लिये, सहस्रों पैर - आँख - शिर- ऊर और बाहुवाले भगवान् के लिये नमस्कार है ।
*[२१] क्षमा प्रार्थना*
*आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।*
*पूजा कर्म न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ॥*
*मन्त्र- हीनं क्रिया हीनं भक्ति हीनं सुरेश्वर !*
*मया यत्-पूजितं देव ! परिपूर्णं तदस्तु मे ॥*
*अपराध सहस्राणि क्रियन्तेऽहनिशं मया ।*
*दासोऽहमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर ।*
*विधेहि देव ! कल्याणं विधेहि विपुलां श्रियम् ।*
*रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥*
*यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञ क्रियादिषु ।*
*न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम् ॥*
*अनेन यथा-मिलितोपचार द्रव्यैः कृत-पूजनेन श्रीधन्वन्तरि-देवः प्रीयताम् ।*
*॥ श्रीधन्वन्तरि-देवार्पणमस्तु ॥*
अर्थात्-न मैं आवाहन करना जानता हूँ, न विसर्जन करना । पूजा कर्म भी मैं नहीं जानता । हे परमेश्वर ! मुझे क्षमा करो ||१|| मन्त्र, क्रिया और भक्ति से रहित जो कुछ पूजा मैंने की है, हे भगवन् ! वह मेरी पूजा सम्पूर्ण हो । मैं रात-दिन सहस्रों अपराध किया करता हूँ । 'मैं दास हूँ' - ऐसा मानकर हे परमेश्वर ! मुझे क्षमा करें । हे भगवन् ! मुझे रूप, विजय और यश दें । मेरे शत्रुओं का नाश करें । तपस्या और यज्ञादि क्रियाओं में जिनके नाम का स्मरण और उच्चारण करने से सारी कमी तुरन्त पूरी हो जाती है, मैं उन अच्युत भगवान् की वन्दना करता हूँ । यथा-सम्भव प्राप्त उपचार वस्तुओं से मैंने जो यह पूजन किया है, उससे भगवान् श्रीधन्वन्तरि प्रसन्न हों । ।। भगवान् श्रीधन्वन्तरि को यह सब पूजन समर्पित है।