Dildar Amit 7549

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एक अमीर आदमी की शादी बुद्धिमान स्त्री से होती हैअमीर हमेशा अपनी पत्नी से तर्क और वाद-विवाद में हार जाते थे....पत्नी ने क...
25/09/2024

एक अमीर आदमी की शादी बुद्धिमान स्त्री से होती है
अमीर हमेशा अपनी पत्नी से तर्क और
वाद-विवाद में हार जाते थे....

पत्नी ने कहा की स्त्रियां पुरुषों से कम नहीं..
उनके पति ने कहा मैं दो वर्षो के लिये परदेश चला जाता हूँ ।

फिर तुम ,
एक महल ,बिजनेस में मुनाफा और एक बच्चा पैदा करके दिखा दो।
फिर हम मान जायेंगे कि महिला पुरुषों से कम नही होती, और यह भी मान लूंगा की तुम बहुत बुद्धि और ज्ञान कि तेज हो...फिर क्या थी उनके पति अगली ही दिन सुबह गाड़ी पकड़ के परदेश चला गया...

पत्नी ने सारे कर्मचारियों में ईमानदारी का बोध जगा के और मेहनत का गुण भर दि।
पगार भी दो गुणा बढ़ा दी।
सारे कर्मचारी खुश होकर दिल लगा के दिन रात काम करने लगे।
मुनाफा बहुत तेजी से बढ़ने लगी उम्मीद से भी काफी बढ़ी...फिर उसी मुनाफे हुई पैसे से पत्नी ने एक आलीशान महल बनवा ली.. जो देखने में काफी ज्यादा खूबसूरत दूर से ही लगती थी....
पत्नी ने महल तो बनवा ली फिर सोची २ काम तो अच्छी तरह से कर ली अब रही बच्चे पैदा करने कि..

पत्नी ने लगभग दस गाय पाली.. सारी गाय की काफी ज्यादा
सेवा की ...
गाय माता का दूध काफी अच्छा हुआ.. दूध की नदिया बहने लगी.... दूध कि सफलाई इतनी होने लगी की देश तो छोरीये विदेश से भी काफी ज्यादा ऑफर आने लगी...फिर पत्नी ने दूध से दही घी और मक्खन की शफलाई विदेश में भी काफी मात्रा में टांसपोर्ट करने लगी...
पत्नी को अब विदेश भी आना जाना होने लगा...
फिर एक दिन पत्नी अपने पति को देखी ।
पत्नी सोची क्यों न अपने पति को सरप्राइज दी जाए...
लेकिन कुछ ही पल में उसे अपने पति की शर्ते याद आ गई और अपने आप को संभाल ली..
पत्नी को एक ही बात खाई जा रही थी की शर्ते तो पूरी लगभग हो चुकी है ।
लेकिन बच्चे कैसे पैदा होंगे , पत्नी एक स्वाभाविक महिला थी वह गैर पुरुषों के साथ हम बिस्तर तो होना नहीं चाह रही थी फिर उसके दिमाग में एक उपाय सूझा....

पत्नी ने भेष बदल कर अपने पति से एक दिन पार्क में मिली,उनके पति पत्नी को पहचान नहीं पाया, पत्नी बहुत गरीब लड़की बन के उनके साथ पेश आई थी...पत्नी बोली की में यहां दूध दही और मलाई बेचती हूँ ...पत्नी के पति बोले मुझे भी आप रोज दूध और दही मेरे घर दिया करो ....फिर क्या थी रोज पूजा दूध दही देने उनके रूम जाने लगी...पत्नी की मुलाकात अब बराबर उसके पति से होने लगी...पत्नी उनके लिए चाय नाश्ता भी बना दिया करती थी...
और एक दिन.....
रूप के मोहपाश में फँसा कर एक दिन संबंध बना ली।
फिर एक दो बार और संबंध बना के अपने पति को खुश कर के एक अँगुठी उपहार में ले ली।
फिर कुछ ही दिन में वह अपने देश लौट आई।
पत्नी एक बच्चे की माँ भी बन गई।

दो वर्ष पूरे होने पर जब पत्नी के पति घर आए तो।
महल और शानो-शौकत देखकर पति दंग और प्रसन्न भी काफी हुए।
मगर जैसे ही पत्नी की गोद में बच्चा देखा क्रोध से चीख उठा और चिलाते हुए बोला ये बच्चा किसका है ?
पत्नी ने जब दही वाली गूजरी की याद दिलाई और उनकी दी अँगुठी दिखाई तो उसके पति का दिमाग हिल गया और हक्के बक्के रह गया।
पत्नी ने कहा-ः
अगर वो दही वाली गुजरी मेरी जगह कोई और होती तो???
इस ''का" तो उत्तर तो पूरी पुरूष जाति के पास नही है।

नारी नर की सहचरी, उसके धर्म की रक्षक,
उसकी गृहलक्ष्मी तथा उसे देवत्व तक
पहुँचाने वाली साधिका है।

कहानी अच्छी लगी हो तो लाईक और शेयर जरूर करे. Amitdiladar319YouTube chanel

ये कहानी लक्ष्मीकांत पांडेय जी की हैं…. और जब मैंने पढ़ी तो मेरी आंखों में से आंसू नहीं रुक रहे थे…आशा करता हूं आपको पसं...
20/08/2024

ये कहानी लक्ष्मीकांत पांडेय जी की हैं…. और जब मैंने पढ़ी तो मेरी आंखों में से आंसू नहीं रुक रहे थे…

आशा करता हूं आपको पसंद आएगी…

ये कोई कहानी नही बल्कि आँखों देखी सच्ची घटना है....!!

शीर्षक - "मेरी छोटी बुआ"….!!!!

रक्षाबंधन का त्यौहार पास आते ही मुझे सबसे ज्यादा जमशेदपुर (झारखण्ड )वाली बुआ जी की राखी के कूरियर का इन्तेज़ार रहता था.

कितना बड़ा पार्सल भेजती थी बुआ जी.

तरह-तरह के विदेशी ब्रांड वाले चॉकलेट,गेम्स, मेरे लिए कलर फूल ड्रेस , मम्मी के लिए साड़ी, पापाजी के लिए कोई ब्रांडेड शर्ट.

इस बार भी बहुत सारा सामान भेजा था उन्होंने.

पटना और रामगढ़ वाली दोनों बुआ जी ने भी रंग बिरंगी राखीयों के साथ बहुत सारे गिफ्टस भेजे थे.

बस रोहतास वाली जया बुआ की राखी हर साल की तरह एक साधारण से लिफाफे में आयी थी.

पांच राखियाँ, कागज के टुकड़े में लपेटे हुए रोली चावल और पचास का एक नोट.

मम्मी ने चारों बुआ जी के पैकेट डायनिंग टेबल पर रख दिए थे ताकि पापा ऑफिस से लौटकर एक नजर अपनी बहनों की भेजी राखियां और तोहफे देख लें...

पापा रोज की तरह आते ही टी टेबल पर लंच बॉक्स का थैला और लैपटॉप की बैग रखकर सोफ़े पर पसर गए थे.

"चारो दीदी की राखियाँ आ गयी है...

मम्मी ने पापा के लिए किचन में चाय चढ़ाते हुए आवाज लगायी थी...

"जया का लिफाफा दिखाना जरा...

पापा जया बुआ की राखी का सबसे ज्यादा इन्तेज़ार करते थे और सबसे पहले उन्हीं की भेजी राखी कलाई में बांधते थे....

जया बुआ सारे भाई बहनो में सबसे छोटी थी पर एक वही थी जिसने विवाह के बाद से शायद कभी सुख नहीं देखा था.

विवाह के तुरंत बाद देवर ने सारा व्यापार हड़प कर घर से बेदखल कर दिया था.

तबसे फ़ूफा जी की मानसिक हालत बहुत अच्छी नहीं थी. मामूली सी नौकरी कर थोड़ा बहुत कमाते थे .

बेहद मुश्किल से बुआ घर चलाती थी.

इकलौते बेटे श्याम को भी मोहल्ले के साधारण से स्कूल में डाल रखा था. बस एक उम्मीद सी लेकर बुआ जी किसी तरह जिये जा रहीं थीं...

जया बुआ के भेजे लिफ़ाफ़े को देखकर पापा कुछ सोचने लगे थे...

"गायत्री इस बार रक्षाबंधन के दिन हम सब सुबह वाली पैसेंजर ट्रेन से जया के घर रोहतास (बिहार )उसे बगैर बताए जाएंगे...

"जया दीदी के घर..!!

मम्मी तो पापा की बात पर एकदम से चौंक गयी थी...

"आप को पता है न कि उनके घर मे कितनी तंगी है...

हम तीन लोगों का नास्ता-खाना भी जया दीदी के लिए कितना भारी हो जाएगा....वो कैसे सबकुछ मैनेज कर पाएगी.

पर पापा की खामोशी बता रहीं थीं उन्होंने जया बुआ के घर जाने का मन बना लिया है और घर मे ये सब को पता था कि पापा के निश्चय को बदलना बेहद मुश्किल होता है...

रक्षाबंधन के दिन सुबह वाली धनबाद टू डेहरी ऑन सोन पैसेंजर से हम सब रोहतास पहुँच गए थे.

बुआ घर के बाहर बने बरामदे में लगी नल के नीचे कपड़े धो रहीं थीं....

बुआ उम्र में सबसे छोटी थी पर तंग हाली और रोज की चिंता फिक्र ने उसे सबसे उम्रदराज बना दिया था....

एकदम पतली दुबली कमजोर सी काया. इतनी कम उम्र में चेहरे की त्वचा पर सिलवटें साफ़ दिख रहीं थीं...

बुआ की शादी का फोटो एल्बम मैंने कई बार देखा था. शादी में बुआ की खूबसूरती का कोई ज़वाब नहीं था. शादी के बाद के ग्यारह वर्षो की परेशानियों ने बुआ जी को कितना बदल दिया था.

बेहद पुरानी घिसी सी साड़ी में बुआ को दूर से ही पापा मम्मी कुछ क्षण देखे जा रहे थे...

पापा की आंखे डब डबा सी गयी थी.

हम सब पर नजर पड़ते ही बुआ जी एकदम चौंक गयी थी.

उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वो कैसे और क्या प्रतिक्रिया दे.

अपने बिखरे बालों को सम्भाले या अस्त व्यस्त पड़े घर को दुरुस्त करे.उसके घर तो बर्षों से कोई मेहमान नहीं आया था...

वो तो जैसे जमाने पहले भूल चुकी थी कि मेहमानों को घर के अंदर आने को कैसे कहा जाता है...

बुआ जी के बारे मे सब बताते है कि बचपन से उन्हें साफ सफ़ाई और सजने सँवरने का बेहद शौक रहा था....

पर आज दिख रहा था कि अभाव और चिंता कैसे इंसान को अंदर से दीमक की तरह खा जाती है...

अक्सर बुआ जी को छोटी मोटी जरुरतों के लिए कभी किसी के सामने तो कभी किसी के सामने हाथ फैलाना होता था...

हालात ये हो गए थे कि ज्यादातर रिश्तेदार उनका फोन उठाना बंद कर चुके थे.....

एक बस पापा ही थे जो अपनी सीमित तनख्वाह के बावजूद कुछ न कुछ बुआ को दिया करते थे...

पापा ने आगे बढ़कर सहम सी गयी अपनी बहन को गले से लगा लिया था.....

"भैया भाभी मन्नू तुम सब अचानक आज ?

सब ठीक है न...?

बुआ ने कांपती सी आवाज में पूछा था...

"आज वर्षों बाद मन हुआ राखी में तुम्हारे घर आने का..

तो बस आ गए हम सब...

पापा ने बुआ को सहज करते हुए कहा था.....

"भाभी आओ न अंदर....

मैं चाय नास्ता लेकर आती हूं...

अपने भैया के पास बैठी थीं....

मैं चाय नास्ता लेकर आती हूं...

जया बुआ ने मम्मी के हाथों को अपनी ठण्डी हथेलियों में लेते हुए कहा था.

"जया तुम बस बैठो मेरे पास. चाय नास्ता गायत्री देख लेगी."

हमलोग बुआ जी के घर जाते समय रास्ते मे रूककर बहुत सारी मिठाइयाँ और नमकीन ले गए थे......

मम्मी किचन में जाकर सबके लिए प्लेट लगाने लगी थी...

उधर बुआ कमरे में पुरानी फटी चादर बिछे खटिया पर अपने भैया के पास बैठी थीं....

बुआ जी का बेटा श्याम दोड़ कर फ़ूफा जी को बुला लाया था.

राखी बांधने का मुहूर्त शाम सात बजे तक का था.मम्मी अपनी ननद को लेकर मॉल चली गयी थी सबके लिए नए ड्रेसेस खरीदने और बुआ जी के घर के लिए किराने का सामान लेने के लिए....

शाम होते होते पूरे घर का हुलिया बदल गया था

नए पर्दे, बिस्तर पर नई चादर, रंग बिरंगे डोर मेट, और सारा परिवार नए ड्रेसेस पहनकर जंच रहा था.

न जाने कितने सालों बाद आज जया बुआ की रसोई का भंडार घर लबालब भरा हुआ था....

धीरे धीरे एक आत्म विश्वास सा लौटता दिख रहा था बुआ के चेहरे पर....

पर सच तो ये था कि उसे अभी भी सब कुछ स्वप्न सा लग रहा था....

बुआ जी ने थाली में राखियाँ सज़ा ली थी

मिठाई का डब्बा रख लिया था

जैसे ही पापा को तिलक करने लगी पापा ने बुआ को रुकने को कहा.

सभी आश्चर्यचकित थे...

" दस मिनट रुक जाओ तुम्हारी दूसरी बहनें भी बस पहुँचने वाली है. "

पापा ने मुस्कुराते हुए कहा तो सभी पापा को देखते रह गए....

तभी बाहर दरवाजे पर गाड़ियां के हॉर्न की आवाज सुनकर बुआ ,मम्मी और फ़ूफ़ा जी दोड़ कर बाहर आए तो तीनों बुआ का पूरा परिवार सामने था....

जया बुआ का घर मेहमानों से खचाखच भर गया था.

महराजगंज वाली नीलम बुआ बताने लगी कि कुछ समय पहले उन्होंने पापा को कहा था कि क्यों न सब मिलकर चारो धाम की यात्रा पर निकलते है...

बस पापा ने उस दिन तीनों बहनो को फोन किया कि अब चार धाम की यात्रा का समय आ गया है..

पापा की बात पर तीनों बुआ सहमत थी और सबने तय किया था कि इस बार जया के घर सब जमा होंगे और थोड़े थोड़े पैसे मिलाकर उसकी सहायता करेंगे.

जया बुआ तो बस एकटक अपनी बहनों और भाई के परिवार को देखे जा रहीं थीं....

कितना बड़ा सरप्राइस दिया था आज सबने उसे...

सारी बहनो से वो गले मिलती जा रहीं थीं...

सबने पापा को राखी बांधी....

ऐसा रक्षाबन्धन शायद पहली बार था सबके लिए...

रात एक बड़े रेस्त्रां में हम सभी ने डिनर किया....

फिर गप्पे करते जाने कब काफी रात हो चुकी थी....

अभी भी जया बुआ ज्यादा बोल नहीं रहीं थीं.

वो तो बस बीच बीच में छलक आते अपने आंसू पोंछ लेती थी.

बीच आंगन में ही सब चादर बिछा कर लेट गए थे...

जया बुआ पापा से किसी छोटी बच्ची की तरह चिपकी हुई थी...

मानो इस प्यार और दुलार का उसे वर्षों से इन्तेज़ार था.

बातें करते करते अचानक पापा को बुआ का शरीर एकदम ठंडा सा लगा तो पापा घबरा गए थे...

सारे लोग जाग गए पर जया बुआ हमेशा के लिए सो गयी थी....

पापा की गोद में एक बच्ची की तरह लेटे लेटे वो विदा हो चुकी ..

पता नही कितने दिनों से बीमार थीं....

और आज तक किसी से कही भी नही थीं...

आज सबसे मिलने का ही आशा लिये जिन्दा थीं शायद...!!😥😥😥😥😩

मेरा नाम जया है. मेरी बहन का नाम विजया है हम दोनों जुड़वाँ है. वो मुझसे २ मिनट बड़ी है. हम दोनों बहनो में बड़ा प्यार है.हम ...
10/08/2024

मेरा नाम जया है. मेरी बहन का नाम विजया है हम दोनों जुड़वाँ है. वो मुझसे २ मिनट बड़ी है. हम दोनों बहनो में बड़ा प्यार है.

हम दोनों नें सोचा था कीं हमारी शादी एक ही घर में हो और एक साथ हो. और नसीब से ऐसा ही हुआ. हम दोनों कीं शादी एक ही परिवार में हुई.

रवि मेरे पति है और राहुल मेरी बहन विजया के. रवि और राहुल दोनों चचेरे भाई है. पर परिवार एक ही साथ रहता है. पास के घर में ही विजया रहती है.

हमारे मिलने में अब कोई प्रॉब्लम नहीं थी. राहुल और रवि हमारे पतियों में भी अच्छी बॉन्डिंग है. घर सिर्फ दीवारों से अलग है. ऐसे हम कहीं भी खाना खाते थे

और कहीं भी रहते थे. हम दोनों बहनो को भी यह अच्छा लगा कीं चलो कोई बंदिश नहीं है. शादी के साथ होने के साथ अब हम दोनों एक साथ ही प्रेग्नेंट भी हो गई.

लेकिन सच बताऊ तो यह हमने नहीं सोचा था. यह बस हो गया. हम दोनों को डेलिवरी डेट भी एक ही दी है. ससुराल और मेरे घर में सभी खुश थे.

हम दोनों बहनें एक साथ ही अपने घर गई. और एक और संयोग हुआ कीं हम एक साथ ही अस्पताल भी गये डिलेवरी के लिये.

मेरी डेलिवरी में कुछ प्रॉब्लम होने कीं वजह से ऑपरेशन जरुरी हो गया. कुछ समय के लिये तो होश में रही लेकिन बाद में मुझे याद नहीं.

आंख खुली तो पता चला कीं मुझे लड़का हुआ है. फिर मैंने पूछा विजया का. तो पता चला उसे लड़की हुई है. उन दोनों का समय भी एक ही था.

हम दोनों बहने खुश थी और कुछ समय बाद ही अपने ससुराल वापस आ गई. अब हम माँ बन गये थे तो ज्यादातर एक दूसरे के साथ अपने बच्चों को सँभालते थे.

बच्चे जल्दी ही बड़े हो जाते है. छोटे बच्चे किस पर गये है यह पहले समझ नहीं आता है. थोड़े बड़े होने पर ही पता चलता है.

लेकिन जैसे जैसे मेरा बेटा बड़ा हो रहा था वो ना मुझ पर ना अपने पिता रवि जैसा था. बल्कि वो तो मेरी बहन के पति राहुल जैसा लगने लगा था.

पहले मुझे लगा कीं यह मुझे ही लग रहा है. लेकिन ऐसा बाहर वाले भी कहने लगे थे वो मेरे साथ जाता तब जो मिलता यही कहता यह राहुल का है.

फिर में मना करती नहीं यह मेरा और रवि का है. विजया कीं लड़की बिलकुल विजया कीं तरह ही दिखती थी.

लेकिन मेरा बच्चा उसके पति जैसा क्यों लगने लगा यह बात मुझे समझ नहीं आयी. मेरे पति को एक बार मैंने ऐसे ही उनसे मज़ाक में कहां कीं

यह तो राहुल जैसा लगने लगा. वो गुस्सा हो गये कहने लगे पागल हो ऐसे कुछ भी मत बोला करो. मेरी मज़ाक में कहीं बात पर वो इस तरह गुस्सा हो जायेंगे मुझे पता नहीं था.

लेकिन ऐसा वो पहली बार ही हुऐ है. अब मेरे मन में कई सवाल मंडराने लगे कीं मेरे साथ हो क्या रहा है. मेरी बहन और बाकि सभी को मैंने कुछ नहीं कहां.

लेकिन क्या सब को दिखाई नहीं पड़ रहा था. लेकिन कोई भी इस बारे में ज़िक्र भी नहीं करता था. कुछ महीने ऐसे ही और चला गया.लेकिन मेरे दिमाक में यह सब चलता ही रहा.

फिर मैंने सोचा कीं में अपनी बहन से बात करू मैंने उससे डायरेक्ट नहीं पूछा. क्यों कीं हो सकता है वो गलत तरीके से लें लें और में नहीं चाहती थी

कीं मेरी वजह से उसके और राहुल में कुछ तनाव पैदा हो. मैंने ऐसे ही उससे ही मज़ाक में ही कहां कीं यह तो धीरे धीरे अपने चाचा जैसा लगने लगा और लगेगा भी एक ही परिवार के तो है.

वो थोड़ा सा मुस्कुराई. बस अब मैंने पकड़ लिया क्यों कीं में अपने बहन को बचपन से जानती थी कुछ छिपाने वाली मुस्कान थी.

वो जल्दी से कुछ बहाना करके वहाँ से चली गई. इस घर में ऐसी कोई बात है जो मुझसे छिपायी जा रही है. में अब शक भी करने लगी सब पर

अपने पति पर बहन पर उसके पति राहुल पर. में कुछ बहाना करके बिना बताये अपने घर मायके गई. विजया को नहीं बताया.

मेरी माँ से जाकर मैंने कहां कीं मुझे पता नहीं क्या हो रहा है में पागल हो गई हूं कुछ भी उल्टा सीधा सोच रही हूं. थोड़े दिन यहाँ रहती हूं.

शायद दिमाक शांत हो जाये. में थोड़े दिन वहाँ रुकना चाहती थी लेकिन 2 दिन में ही वापस आ गई. जवाब के साथ.

इस दौरान भी मेरी बहन का फोन आता रहा माँ के पास. शायद कहा रही होंगी कीं जया को कुछ बता मत देना. लेकिन मेरी माँ नें मुझे बता दिया.

उन्होंने कहां कीं शायद अब समय आ गया है कीं तू जान लें नहीं तो तू कुछ उल्टा सीधा सोचने लगेगी. में अपने ससुराल गई.

मेरे पति जाते ही बोले कीं यह क्या तरीका है ऐसे भी कोई बिना बताये जाता है. मैंने उनसे कहां चलो. उन्हें में विजया के यहाँ लें गई.

उसका पति राहुल भी वही थी. मुझे और रवि को देखकर थोड़े आश्चर्य हुआ उनको. विजया बोलती है आ जाया क्या लाई माँ के यहाँ से बिना बताये चली गई.

मैंने बोला तुने भी छिपाया कीं तेरे गर्भ में जुड़वाँ बच्चे थे. वो सुनकर मेरी ओर देखने लगी. मैंने जाकर उसे गले लगा लिया.

यह मेरी बहन है जिसने अपना एक बच्चा मेरी गोद में दे दिया. वो बोली कीं मैंने सभीको मना किया था क्यों कीं में तुझे सरप्राइज देना चाहती थी लेकिन.

तेरे समय में कुछ कॉम्प्लिकेशन कीं वजह से तेरा बच्चा बचा नहीं औऱ में नहीं चाहती थी कीं. मेरी बहन आँख खोले तो उसे यह सुनना पड़े उसकी गोद सुनी हो.

औऱ वैसे भी यह मेरे पास रहें या तेरे पास क्या फर्क पड़ता है. मेरी बहना को गले लग कर में बहुत रोयी. उसकी जगह में होती तो शायद नहीं कर पाती

लेकिन उसका दिल तो बहुत बड़ा निकला. साथ ही उसके पति राहुल का. मेरे पति भी मुझे खुश देखना चाहते थे इसलिये वो भी चूप रहें.

ऐसा परिवार औऱ बहन मिल जाये तो औऱ क्या चाहिये.उसके किये अहसान को मैंने अपने पास ही रखा उसे बहुत प्यार देने कीं कोशिश करती हूं.

゚viralシ

संगीता ने एक दिन अपने पति, अजय से आग्रह किया कि वह उसकी छह कमियाँ बताए, जिन्हें सुधारने से वह एक बेहतर पत्नी बन सके।अजय ...
09/08/2024

संगीता ने एक दिन अपने पति, अजय से आग्रह किया कि वह उसकी छह कमियाँ बताए, जिन्हें सुधारने से वह एक बेहतर पत्नी बन सके।

अजय यह सुनकर हैरान रह गया और असमंजस की स्थिति में पड़ गया। उसने सोचा कि वह बड़ी आसानी से संगीता को छह ऐसी बातों की सूची दे सकता है, जिनमें सुधार की जरूरत थी, और ईश्वर जानता है कि संगीता ऐसी ६० बातों की सूची थमा सकती थी, जिसमें उसे सुधार की जरूरत थी।

परंतु अजय ने ऐसा नहीं किया और कहा, "मुझे इस बारे में सोचने का समय दो, मैं तुम्हें सुबह इसका जवाब दूँगा।"

अगली सुबह अजय जल्दी ऑफिस गया और फूल वाले को फोन करके उसने संगीता के लिए छह गुलाबों का तोहफा भिजवाने के लिए कहा, जिसके साथ यह चिट्ठी लगी हो:

"मुझे तुम्हारी छह कमियाँ नहीं मालूम, जिनमें सुधार की जरूरत है। तुम जैसी भी हो, मुझे बहुत अच्छी लगती हो।"

उस शाम जब अजय ऑफिस से लौटा तो देखा कि संगीता दरवाज़े पर खड़ी उसका इंतज़ार कर रही थी। उसकी आंखों में आँसू भरे हुए थे। यह कहने की जरूरत नहीं कि उनके जीवन की मिठास कुछ और बढ़ गई थी।

अजय इस बात पर बहुत खुश था कि संगीता के आग्रह के बावजूद उसने उसकी छह कमियों की सूची नहीं दी थी।

इसलिए यथासंभव जीवन में सराहना करने में कंजूसी न करें और आलोचना से बचकर रहने में ही समझदारी है।

सारांश:
ज़िन्दगी का ये हुनर भी आज़माना चाहिए,
जंग अगर अपनों से हो तो हार जाना चाहिए।

पसीना उम्र भर का उसकी गोद में सूख जाएगा...
हमसफ़र क्या चीज है ये बुढ़ापे में समझ आएगा।

06/08/2024

Flying kiss🤭🤭🤭🤭🌹🌹bhabhi🙏 Dildar Amit 7549 Amit Dildar

06/08/2024

Are papa ❤️mammi ko nahi bataunga❤️👌😂🤣 # # Amit Dildar Dildar Amit 7549

सासू मां ने अपनी बहू से बोला,"बहू तुमने कमरे में एसी चलती छोड़ दी और बाहर घूम रही हो,क्या बिल नहीं आएगा?" तुम लोगों को ब...
29/06/2024

सासू मां ने अपनी बहू से बोला,

"बहू तुमने कमरे में एसी चलती छोड़ दी और बाहर घूम रही हो,क्या बिल नहीं आएगा?"

तुम लोगों को बिल भरना पड़ता तब पता चलता।
तब सब कुछ वक्त पर बंद होता।

अभी तो ससुर जी बिल भरते हैं ना, तो क्यों बिजली के बिल की चिंता क्यों करोगी?


बहु चुपचाप कमरे में एसी बंद करने के लिए चली गई।

पति को लगा की कहीं नई नवेली पत्नी को मां की बातों का बुरा न लग जाए, इसलिए वह उसके पीछे पीछे गया और उससे बोला,

" मां की बातों का बुरा मत मानना "

इस पर बहू ने बोला,

"अरे इसमें बुरा मानने वाली कौन सी बात है"। मेरे मायके में भी जब भी हम इस तरह से पंखा या एसी चलाकर घूमते थे तो मेरी मम्मी भी यही बोलती थी, कि तुम लोगों को बिल भरना पड़ता तब पता चलता , अभी तो पापा बिल भरते हैं, इसलिए तुम लोग मजे करते हो और किसी चीज का ध्यान नहीं रखते और यही बात यहां मम्मी ने बोली।

गलती तो हमारी है कि हम लापरवाही करते हैं। पति बहुत खुश हुआ, कि चलो मेरी पत्नी काफी समझदार है।

सासू मां भी कमरे के बाहर खड़ी होकर पति-पत्नी की बातें सुन रही थी, क्योंकि उन्हें भी लगा था कहीं उनकी बातों का बुरा मान कर कहीं उनकी बहू उनके बेटे को उनके खिलाफ भड़का है ना दे ।

लेकिन उन्हें भी तसल्ली हुई कि उनकी बहू काफी समझदार है।

इसी तरह एक दिन सासू मां काफी देर से फोन पर बातें कर रही थी और उनका खाना ठंडा हो रहा था।
खाना खाने के बाद उन्हें दवाइयां भी लेनी थी,तो बहू ने चुपचाप उनके हाथों से फोन ले लिया और बोला,

"मम्मी पहले आप खाना खाकर दवाइयां ले लीजिए ,फिर फोन पर बात करते रहिएगा"
सासू मां ने तीखी नजरों से बहू को घूरा और बोला,

" बहु तुम बहू हो तो बहू बनकर रहो, मेरी सास बनने की कोशिश मत करना"

हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी मेरे हाथों से मोबाइल लेने की। आइंदा ऐसी गलती मत करना।

कहकर सासू मां वहां से चली गई

बहु को की आंखों में आंसू आ गए थे।

थोड़ी देर के बाद सासू मां रसोई घर की तरफ पानी लेने के लिए जा रही थी की उन्हें बहू की बातें सुनाई पड़ी

बहू रसोई घर में अपनी मां से फोन पर बातें कर रही थी और बोल रही थी,

"मां मैं तो सासू मां को आपकी तरह ही अपनी मम्मी मानती हूं, और उनकी किसी भी बात का बुरा नहीं मानती। जैसे आप मुझे डांटती थी वैसे ही वह भी मुझे डांटती है और मुझे बिल्कुल भी बुरा नहीं लगता, क्योंकि आखिर वह भी मेरी मां है। लेकिन मम्मी वह मुझे अपनी बेटी की तरह नहीं मानती।"

मैं आपके हाथों से फोन लेकर पहले खाना खाने के लिए जब भी बोलती थी, आप कितने प्यार से मेरे सिर पर हाथ रखकर बोलती थी, "मेरा कितना ख्याल रखती है तू"

लेकिन जब सासू मां के साथ इसी हक से मैंने फोन लेकर खाना खाने की बात कही तो सासु मां ने मुझे बहुत जोर से डांटा और बोला,
"बहु हो तो बहू बनकर रहो, सास बनने की कोशिश मत करो"

मम्मी मैं तो बस इतना चाहती थी कि वह वक्त पर दवाई ले लें।

लेकिन मम्मी आज मुझे समझ में आ गया ,
बहु चाहे कितनी भी कोशिश कर ले सास ससुर को मां-बाप मानने की,

लेकिन सास ससुर कभी भी बहु को बेटी जैसा प्यार और हक नहीं दे सकते, बल्कि वह हमेशा उसे एक बाहरी सदस्य ही समझेंगे।

खैर मैं तो अपनी तरफ से आगे भी कोशिश करती रहूंगी। अब सासू मां की मर्जी कि वह मेरे साथ कैसा व्यवहार करती है।

कम से कम मुझे यह तसल्ली तो रहेगी कि मैंने अपनी तरफ से हर हर मुमकिन कोशिश की है,इस घर को अपनाने की ।

लेकिन अगर एक सीमा के बाद भी मुझे नहीं अपनाया जाएगा तो फिर मैं भी स्वतंत्र रहूंगी अपने फैसले लेने के लिए।

क्योंकि आखिर मेरा भी एक आत्मसम्मान है।

सासू मां ने रसोई के बाहर खड़ी होकर यह सारी बातें सुनी और उन्हें अपनी गलती का एहसास भी हुआ।

उन्हें समझ में आ गया कि यदि रिश्तो को बचाकर रखना है तो अपने व्यवहार में सुधार लाना पड़ेगा और बहू को उस घर की बहू होने का सम्मान देना पड़ेगा।

क्योंकि रिश्ते दोनो तरफ से चलते हैं ,एकतरफा रिश्ते बस ढोए जाते हैं

और सासू मां ने बहु को गले से लगा लिया और बोला,

" बेटा आज से तू ही मेरी दवाइयां टाइम पर दिया करेगी और अगर मैं देर करूं तो मुझे अपनी मम्मी की तरह डांट लगाकर दवाइयां खिला देना"

क्योंकि अब तुम ही इस घर की बहू हो और इस घर की जिम्मेदारी तुम्हारी ही है

इस घर को बनाना और बिगड़ना अब तुम्हारे हाथों में है । बस यह समझ लो मैं हर कदम पर तुम्हारे साथ हूं।

सासू मां ने अपनी समझदारी से रिश्तो को बिखरने से पहले बचा लिया और साथ ही अपनी गलती भी सुधार ली और एक परिवार टूटने से बच गया।

वह मेरी कक्षा की सबसे सुंदर लड़की थी। जब हंसती तो गाल में गड्ढा पड़ जाता। सदा ही अपने बालों में एक लाल रिबन का फूल बनाकर...
29/06/2024

वह मेरी कक्षा की सबसे सुंदर लड़की थी। जब हंसती तो गाल में गड्ढा पड़ जाता। सदा ही अपने बालों में एक लाल रिबन का फूल बनाकर लगाती थी। नाम था सरिता।
"यह मेरी सीट है..मैं इस पर रोज बैठती हूं..तुम जाकर अपनी सीट पर बैठो"उस लाल रिबन वाली लड़की ने रोहन से कहा।
इतने में ही अध्यापिका ने कक्षा में प्रवेश किया।
"यह कैसा शोर है?" मैडम ने कक्षा में घुसते ही पूछा।
"देखिए ना मैडम! मैं रोज इस सीट पर ही बैठती हूं और यह रोहन यहां से उठ ही नहीं रहा"सरिता ने कहा।
"अरे तो क्या हो गया! तुम दोनों ही इस सीट पर बैठ जाओ"।
"नहीं मैडम!मैं इसके साथ नहीं बैठूंगी।"
"तो ठीक है !आज तुम्हें पिछली सीट पर बैठना होगा.. क्योंकि जो पहले आएगा वही अगली सीट पर बैठेगा..कल तुम जल्दी आ जाना और फिर से अगली सीट पर बैठ जाना।"
इस प्रकार पैर पटकती हुई सरिता पिछली सीट पर चली गई।
स्कूल से लौटते हुए सरिता और रोहन अपनी अपनी साइकिल से घर लौट रहे थे कि रास्ते में सरिता की साइकिल की चेन उतर गई। बहुत प्रयास के बाद भी उससे चेन न चढ़ी। काले हाथ के निशान गोरे गोरे गालों पर भी लग गए।
पीछे से रोहन ने देखा तो कहने लगा "लाल रिबन वाली! आज तो काली माई लग रही हो"और पास आकर फौरन ही साइकिल की चैन चढ़ा दी। "अब साइकिल तेज़ मत चलाना नहीं तो फिर से चेन उतर जाएगी। वैसे तुम्हें तुम्हारी घर छोड़ने के बाद ही में अपने घर जाऊंगा। इस प्रकार दोनों में अक्सर नोकझोंक चलती रहती थी। स्कूल की पढ़ाई के बाद रोहन के पापा का तबादला दिल्ली से अंबाला हो गया। आगे की पढ़ाई के बाद रोहन ने आर्मी जॉइन कर ली और सरिता को एक बैंक में नौकरी मिल गई। कुछ समय पहले रोहन की पोस्टिंग भी दिल्ली हो गई थी।
एक दिन रोहन जब अपने बैंक में किसी काम से गया तो उसकी मुलाकात सरिता से हो गई। सरिता भी रोहन को देखकर बहुत प्रसन्न हुई। रोहन ने हंसते हुए पूछा "लाल रिबन वाली! शादी-वादी की या नहीं?"
"नहीं रोहन!..एक सड़क दुर्घटना में मेरे पांव की हड्डी टूट गई थी और उसके बाद मैं थोड़ा लंगड़ा कर चलती हूं। और तुम अपनी बताओ?"
"मेरी भी शादी अभी नहीं हुई। मुझे तो लाल रिबन वाली लड़की की तलाश थी जो किस्मत से आज मुझे मिल गई। देखना यह है कि वह मुझे अपने साथ सीट पर बिठाती है या नहीं? रोहन ने उसकी आंखों में झांककर पूछा?
पर रोहन मेरे पैर क बारे में जानते हुए भी...?
ओफ ओ लाल रिबन वाली! शादी के बाद तुमने कौन सा 400 मीटर की दौड़ में हिस्सा लेना है?
और फिर दोनों खिलखिला कर हंस दिए।

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