sweta darpan hindi news paper

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ब्यूरो चीफ/ग्वालियर बीना वर्माशवेता दर्पण   *★  प्रशासनिक प्रणाली  ★*  एक सरकारी अफ़सर देर रात सड़क पर निकले.एक सोते हुए...
10/07/2025

ब्यूरो चीफ/ग्वालियर
बीना वर्मा
शवेता दर्पण

*★ प्रशासनिक प्रणाली ★*

एक सरकारी अफ़सर देर रात सड़क पर निकले.एक सोते हुए भिखारी को उठाकर पूछा ~ कुछ खाया भिखारी बोला ~ नहीं साहब, कल से कुछ नहीं खाया अफ़सर पूरी रात उसके पास बैठा रहा,भिखारी को सोने नहीं दिया.*क्योंकि ... ऊपर से आदेश था.**◆ कोई भूखा न सोये ◆*

09/07/2025
*💐कृष्ण की माया💐*पौराणिक कथाओं के अनुसार सुदामा ने एक बार श्रीकृष्ण से पूछा कान्हा, मैं आपकी माया के दर्शन करना चाहता हू...
09/07/2025

*💐कृष्ण की माया💐*

पौराणिक कथाओं के अनुसार सुदामा ने एक बार श्रीकृष्ण से पूछा कान्हा, मैं आपकी माया के दर्शन करना चाहता हूं… कैसी होती है?” श्री कृष्ण ने टालना चाहा, लेकिन सुदामा की जिद पर श्री कृष्ण ने कहा, “अच्छा, कभी वक्त आएगा तो बताऊंगा। एक दिन कृष्ण कहने लगे… सुदामा, आओ, गोमती में स्नान करने चलें।
दोनों गोमती के तट पर गए, वस्त्र उतारे| दोनों नदी में उतरे। श्रीकृष्ण स्नान करके तट पर लौट आए, पीतांबर पहनने लगे।…सुदामा ने एक और डुबकी मारी तो भगवान कृष्ण ने उन्हें अपनी माया का दर्शन कर दिया।

सुदामा को लगा, नदी में बाढ़ आ गई है। वह बहे जा रहे हैं, सुदामा जैसे-तैसे तक घाट के किनारे रुके। घाट पर चढ़े, घूमने लगे। घूमते-घूमते गांव के पास आए, वहां एक हथिनी ने उनके गले में फूल माला पहनाई। बहुत से लोग एकत्रित हो गए, लोगों ने कहा, “हमारे देश के राजा की मृत्यु हो गई है। यहां का नियम है, राजा की मृत्यु के बाद हथिनी, जिस भी व्यक्ति के गले में माला पहना दे, वही हमारा राजा होता है। हथिनी ने आपके गले में माला पहनाई है, इसलिए अब आप हमारे राजा हैं।

सुदामा हैरान, राजा बन गया और एक राजकन्या विवाह भी हो गया। दो पुत्र भी पैदा हो गए, जीवन प्रसन्नता पूर्वक बीतने लगा। एक दिन सुदामा की पत्नी बीमार पड़ गई और काल के गाल में समा गई।… सुदामा पत्नी वियोग में रोने लगा, राज्य के लोग भी पहुंचे।…

उन्होंने सुदामा को कहा, आप रोएं नहीं, आप हमारे राजा हैं। वैसे भी दुख की कोई बात नहीं, आपको भी रानी के साथ ही जाना है। बताया कि यह मायापुरी का नियम है। आपकी पत्नी को चिता में अग्नि दी जाएगी, आपको भी अपनी पत्नी की चिता में प्रवेश करना होगा।…यह सुनकर सुदामा और जोर से रोने लगा लेकिन लोग नहीं माने।

सुदामा अपनी पत्नी की मृत्यु को भूल गया,…उसका रोना भी बंद हो गया। अब वह स्वयं की चिंता में डूब गया।…जब लोग नहीं माने तो सुदामा ने कहा, चिता में जलने से पहले मुझे स्नान तो कर लेने दो…’ इस पर कुछ लोग पहरे में सुदामा को स्नान कराने नदी में ले गए। … सुदामा रोये जा रहे थे और उनके हाथ-पैर कांप रहे थे।

आखिर उन्होंने डुबकी लगाई…और फिर जैसे ही बाहर निकले तो देखा कि मायानगरी कहीं भी नहीं। किनारे पर तो कृष्ण अभी अपना पीतांबर ही पहन रहे थे और वह एक दुनिया घूम आए हैं। सुदामा नदी से बाहर निकले, साथ ही जोर-जोर से रो जाए रहे थे। श्रीकृष्ण ने सबकुछ जानते हुए भी अनजान बनकर पूछा सुदामा से रोने का कारण पूछा। सुदामा ने सारा वृतांत कह सुनाया और पूछा कि यह जो मैं जो देख रहा हूं यह स्वप्न है या जिस माया नगरी से मैं अभी-अभी आया हूं वह स्वप्न था।

भगवान कृष्ण बोले, यही सच है,…मैं ही सच हूं। मेरे से भिन्न, जो भी है, वह मेरी माया ही है। जो मुझे ही सर्वत्र देखता है,महसूस करता है, उसे मेरी माया स्पर्श नहीं करती। जो श्रीकृष्ण से जुड़ा है, वह नाचता नहीं…भ्रमित नहीं होता।
*राम रक्षा स्तोत्र मंत्र*

*राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे । सहस्त्रनाम ततुल्यं रामनाम वरानने ।।*
*सदैव प्रसन्न रहिये!!*
*जो प्राप्त है-पर्याप्त है!!*

09/07/2025
गुरु पूर्णिमा आज *****************गुरु पूर्णिमा आषाढ़ मास की पूर्णिमा को कहते हैं और इस साल गुरु पूर्णिमा का पर्व 10 जुल...
09/07/2025

गुरु पूर्णिमा आज
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गुरु पूर्णिमा आषाढ़ मास की पूर्णिमा को कहते हैं और इस साल गुरु पूर्णिमा का पर्व 10 जुलाई को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान विष्‍णु की विधि विधान से पूजा की जाती है। गुरु पूर्णिमा के दिन अपने-अपने घरों में सत्‍य नारायण भगवान की कथा करवाने का विशेष महत्‍व माना जाता है। इस दिन महर्षि वेद व्‍यासजी का जन्‍म भी हुआ था। इसलिए इसे व्‍यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। मान्‍यता है कि इस दिन सत्‍य नारायण भगवान की कथा करने से आपके घर में सुख समृद्धि का वास होता है और घर से हर प्रकार की नेगेटिव एनर्जी दूर होती है।

गुरु पूर्णिमा की तिथि
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वैदिक पंचांग के अनुसार, गुरु पूर्णिमा 10 जुलाई को मनाई जाएगी। पूर्णिमा तिथि 10 जुलाई को रात 1 बजकर 36 मिनट पर शुरू होगी और यह 11 जुलाई को रात 2 बजकर 06 मिनट पर खत्म होगी। इसलिए गुरु पूर्णिमा 2025, 10 जुलाई को मनाई जाएगी।

गुरु पूर्णिमा का महत्‍व
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पौराणिक मान्‍यताओं में बताया गया है कि लगभग 3000 ई.पूर्व, आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। इसलिए हर साल इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। यह दिन वेद व्यास जी को समर्पित है। माना जाता है कि इसी दिन उन्होंने भागवत पुराण का ज्ञान दिया था। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। साथ ही पूर्णिमा का दिन होने की वजह से इस दिन विष्णु भगवान और मां लक्ष्‍मी की पूजा की जाती है। इस दिन गुरुओं का सम्मान किया जाता है और साथ ही उन्हें गुरु दक्षिणा भी दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन गुरु और बड़ों का सम्मान करना चाहिए। जीवन में मार्गदर्शन के लिए उनका आभार व्यक्त करना चाहिए, गुरु पूर्णिमा पर व्रत, दान और पूजा का भी महत्व है। व्रत रखने और दान करने से ज्ञान मिलता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

गुरु पूर्णिमा की पूजा विधि
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गुरु पूर्णिमा पर अगर आप पंडितजी को बुलाकर सत्‍यनारायण भगवान की कथा करवा पाने में असमर्थ हैं तो चिंता न करें। आप भगवान विष्‍णु की पूजा स्‍वयं करके भी शुभ फल पा सकते हैं। भगवान विष्‍णु की पूजा में तुलसी, धूप, दीप, गंध, पुष्प और पीले फल चढ़ाएं। श्री‍हर‍ि का स्‍मरण करें और अपनी मनोकामना बताएं। भक्ति भाव से पूजा करना जरूरी है। पूजा के बाद भगवान को अलग-अलग तरह के पकवानों का भोग लगाएं और प्रणाम करें और फिर भोग को प्रसाद के रूप में सभी लोगों में बांट दें।

_*‼️कृष्ण अर्थ और नैतिकता की परिभाषा और समय की मांग ‼️*कृष्ण - 'कृष्' का अर्थ है सब और 'ण' का अर्थ है आत्मा। वे परब्रह्म...
07/07/2025

_*‼️कृष्ण अर्थ और नैतिकता की परिभाषा और समय की मांग ‼️*

कृष्ण - 'कृष्' का अर्थ है सब और 'ण' का अर्थ है आत्मा। वे परब्रह्म परमात्मा सबके आत्मा हैं इसलिए उनका नाम कृष्ण है। 'कृष्' शब्द सर्व का वाचक है और 'णकार' आदिवाचक है। वे सर्वव्यापी परमेश्वर सबके आदिपुरुष हैं इसलिए कृष्ण कहे गए हैं। 'कृष्' सर्वार्थ वाचक है, 'न' से बीज अर्थ की उपलब्धि होती है। अतः सर्वबीजस्वरुप परब्रह्म परमात्मा कृष्ण कहे गए हैं। 'कृष्' का अर्थ है भगवान की भक्ति और 'न ' का अर्थ है उनका दास्य। अतः जो अपनी भक्ति और दास्य देने वाले हैं, वे कृष्ण कहलाते हैं।

🔴 नैतिकता की परिभाषा और समय की मांग

महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था। युद्धभूमि में यत्र-तत्र योद्धाओं के फ़टे वस्त्र, मुकुट, टूटे शस्त्र, टूटे रथों के चक्के, छज्जे आदि बिखरे हुए थे, और वायुमण्डल में पसरी हुई थी घोर उदासी। गिद्ध, कुत्ते, सियारों की उदास और डरावनी आवाजों के बीच उस निर्जन हो चुकी उस भूमि में द्वापर का सबसे महान योद्धा देवब्रत भीष्म शरशय्या पर पड़ा सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहा था। अकेला... तभी उनके कानों में एक परिचित ध्वनि शहद घोलती हुई पहुँची, "प्रणाम पितामह"

भीष्म के सूख चुके अधरों पर एक मरी हुई मुस्कुराहट तैर उठी। बोले, " आओ देवकीनंदन... स्वागत है तुम्हारा! मैं बहुत देर से तुम्हारा ही स्मरण कर रहा था।"

कृष्ण बोले, " क्या कहूँ पितामह! अब तो यह भी नहीं पूछ सकता कि कैसे हैं आप।"

भीष्म चुप रहे। कुछ क्षण बाद बोले, " पुत्र युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करा चुके केशव? उनका ध्यान रखना, परिवार के बुजुर्गों से रिक्त हो चुके राजप्रासाद में उन्हें अब सबसे अधिक तुम्हारी ही आवश्यकता है।"

कृष्ण चुप रहे।

भीष्म ने पुनः कहा, " कुछ पूछूँ केशव? बड़े अच्छे समय से आये हो, सम्भवतः धरा छोड़ने के पूर्व मेरे अनेक भ्रम समाप्त हो जाँय।"

कृष्ण बोले- कहिये न पितामह!

एक बात बताओ प्रभु! तुम तो ईश्वर हो न..
कृष्ण ने बीच में ही टोका, "नहीं पितामह! मैं ईश्वर नहीं। मैं तो आपका पौत्र हूँ पितामह, ईश्वर नहीं।"

भीष्म उस घोर पीड़ा में भी ठठा के हँस पड़े। बोले, " अपने जीवन का स्वयं कभी आकलन नहीं कर पाया कृष्ण, सो नहीं जानता कि अच्छा रहा या बुरा। पर अब तो इस धरा से जा रहा हूँ कन्हैया, अब तो ठगना छोड़ दे रे..."

कृष्ण जाने क्यों भीष्म के पास सरक आये और उनका हाथ पकड़ कर बोले, " कहिये पितामह!"

भीष्म बोले, "एक बात बताओ कन्हैया! इस युद्ध में जो हुआ वो ठीक था क्या?"

- "किसकी ओर से पितामह? पांडवों की ओर से?"

- "कौरवों के कृत्यों पर चर्चा का तो अब कोई अर्थ ही नहीं कन्हैया, पर क्या पांडवों की ओर से जो हुआ वो सही था? आचार्य द्रोण का वध, दुर्योधन की जंघा के नीचे प्रहार, दुःशासन की छाती का चीरा जाना, जयद्रथ के साथ हुआ छल, निहत्थे कर्ण का वध, सब ठीक था क्या? यह सब उचित था क्या?"

- इसका उत्तर मैं कैसे दे सकता हूँ पितामह! इसका उत्तर तो उन्हें देना चाहिए जिन्होंने यह किया। उत्तर दें दुर्योधन का वध करने वाले भीम, उत्तर दें कर्ण और जयद्रथ का वध करने वाले अर्जुन, मैं तो इस युद्ध में कहीं था ही नहीं पितामह!

"अभी भी छलना नहीं छोड़ोगे कृष्ण? अरे विश्व भले कहता रहे कि महाभारत को अर्जुन और भीम ने जीता है, पर मैं जानता हूँ कन्हैया कि यह तुम्हारी और केवल तुम्हारी विजय है। मैं तो उत्तर तुम्ही से पूछूंगा कृष्ण!"

"तो सुनिए पितामह! कुछ बुरा नहीं हुआ, कुछ अनैतिक नहीं हुआ। वही हुआ जो हो होना चाहिए।"

" यह तुम कह रहे हो केशव? मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार कृष्ण कह रहा है? यह छल तो किसी युग में हमारे सनातन संस्कारों का अंग नहीं रहा, फिर यह उचित कैसे गया? "

- "इतिहास से शिक्षा ली जाती है पितामह, पर निर्णय वर्तमान की परिस्थितियों के आधार पर लेना पड़ता है। हर युग अपने तर्कों और अपनी आवश्यकता के आधार पर अपना नायक चुनता है। राम त्रेता युग के नायक थे, मेरे भाग में द्वापर आया था। हम दोनों का निर्णय एक सा नहीं हो सकता पितामह।"

-" नहीं समझ पाया कृष्ण! तनिक समझाओ तो..."

-" राम और कृष्ण की परिस्थितियों में बहुत अंतर है पितामह! राम के युग में खलनायक भी 'रावण' जैसा शिवभक्त होता था। तब रावण जैसी नकारात्मक शक्ति के परिवार में भी विभीषण और कुम्भकर्ण जैसे सन्त हुआ करते थे। तब बाली जैसे खलनायक के परिवार में भी तारा जैसी विदुषी स्त्रियाँ और अंगद जैसे सज्जन पुत्र होते थे। उस युग में खलनायक भी धर्म का ज्ञान रखता था। इसलिए राम ने उनके साथ कहीं छल नहीं किया। किंतु मेरे युग के भाग में में कंस, जरासन्ध, दुर्योधन, दुःशासन, शकुनी, जयद्रथ जैसे घोर पापी आये हैं। उनकी समाप्ति के लिए हर छल उचित है पितामह। पाप का अंत आवश्यक है पितामह, वह चाहे जिस विधि से हो।"

- "तो क्या तुम्हारे इन निर्णयों से गलत परम्पराएं नहीं प्रारम्भ होंगी केशव? क्या भविष्य तुम्हारे इन छलों का अनुशरण नहीं करेगा? और यदि करेगा तो क्या यह उचित होगा?"

-" भविष्य तो इससे भी अधिक नकारात्मक आ रहा है पितामह। कलियुग में तो इतने से भी काम नहीं चलेगा। वहाँ मनुष्य को कृष्ण से भी अधिक कठोर होना होगा, नहीं तो धर्म समाप्त हो जाएगा। जब क्रूर और अनैतिक शक्तियाँ धर्म का समूल नाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता अर्थहीन हो जाती है पितामह! तब महत्वपूर्ण होती है विजय, केवल विजय। भविष्य को यह सीखना ही होगा पितामह।"

-"क्या धर्म का भी नाश हो सकता है केशव? और यदि धर्म का नाश होना ही है, तो क्या मनुष्य इसे रोक सकता है?"

-"सबकुछ ईश्वर के भरोसे छोड़ कर बैठना मूर्खता होती है पितामह! ईश्वर स्वयं कुछ नहीं करता, सब मनुष्य को ही करना पड़ता है। आप मुझे भी ईश्वर कहते हैं न! तो बताइए न पितामह, मैंने स्वयं इस युद्घ में कुछ किया क्या? सब पांडवों को ही करना पड़ा न? यही प्रकृति का संविधान है। युद्ध के प्रथम दिन यही तो कहा था मैंने अर्जुन से। यही परम सत्य है।"

भीष्म अब सन्तुष्ट लग रहे थे। उनकी आँखें धीरे-धीरे बन्द होने लगीं थी। उन्होंने कहा- चलो कृष्ण! यह इस धरा पर अंतिम रात्रि है, कल सम्भवतः चले जाना हो... अपने इस अभागे भक्त पर कृपा करना कृष्ण!"

कृष्ण ने मन मे ही कुछ कहा और भीष्म को प्रणाम कर लौट चले, पर युद्धभूमि के उस डरावने अंधकार में भविष्य को जीवन का सबसे बड़ा सूत्र मिल चुका था।

जब अनैतिक और क्रूर शक्तियाँ धर्म का विनाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता का पाठ आत्मघाती होता है।।

*संत का आशीर्वाद**जब रामकथा में मिले तुलसी और राणा प्रताप* *वटवृक्ष के नीचे एक चबूतरे पर महात्मा अपनी मधुर वाणी से रामकथ...
07/07/2025

*संत का आशीर्वाद*

*जब रामकथा में मिले तुलसी और राणा प्रताप*

*वटवृक्ष के नीचे एक चबूतरे पर महात्मा अपनी मधुर वाणी से रामकथा गा रहे थे और नीचे बैठे श्रोता उस भाव जगत में डूबकर आत्म विभोर थे। भीड़ में सबसे पीछे एक असाधारण व्यक्तित्व का पुरुष भी बैठा हुआ था जिसने अपना चेहरा अपनी पगड़ी से ढंका हुआ था लेकिन उसके व्यक्तित्व व विशाल नेत्रों में जाने क्या आकर्षण था कि महात्माजी की दृष्टि उसकी ओर बार बार जा रही थी।*

*सहसा उनकी दृष्टि अभी अभी आये वृद्ध स्त्री पुरुषों की ओर पड़ी जो उन्हें दूर से ही प्रणाम कर वहीं खड़े हो गई । महात्मा ने उन्हें इशारे से पास बुलाया। महाराज हम भील है हम भी रामकथा सुनना चाहते हैं। सकुचाते हुये उनके अगुआ वृद्ध ने कहा। तो वहाँ क्यों खड़े हो? समीप आओ वत्स !! यहाँ से कथा अच्छे से सुनाई देगी। महात्मा ने उन्हें आमंत्रित किया।*

*सहसा भीड़ में भिनभिनाहट शुरू हो गयी। क्या बात है महात्मा ने पूछा महाराज जी यह कोल भील क्या जानें कथा का मर्म? अभी कल शराब पीकर उत्पात मचाएंगे और हमारा रस भंग होगा। भीड़ के एक प्रौढ़ व्यक्ति ने कहा।*

*लगभग सभी व्यक्ति उससे सहमत प्रतीत हो रहे थी। महात्मा के शांत चेहरे पर खिन्नता उभरी परंतु उन्होंने अपनी मधुर शांत वाणी में कहा कैसी बातें करते हो वत्स? क्या भूल गए कि इन कोल भीलों के पूर्वजों ने मेरे राम का साथ उस समय दिया जब वे भैया लक्ष्मण के साथ अकेले रह गए थे।*

*वह ठीक है महाराज लेकिन ये यहाँ बैठेंगे तो यहाँ का वातावरण दूषित होगा और आपने भी तो रामचरित मानस में कोलों, तेलियों, चांडालों, शूद्र आदि को निकृष्ट बताया है।*
*संदर्भरहित व लोक प्रचलित मुहावरों के आधार पर अनर्गल व्याख्या न करो पुत्र !! मेरे राम जिनके साथ चौदह वर्ष रहे उन पुण्यात्माओं के वंशज हैं यह। इनको तो मैं अपने चमड़ी के जूते बनवा कर भी पहनाऊँ तो भी कम हैं क्योंकि मैं तो राम के दासों का दास हूं जबकि ये तो उनके सहयोगी रहे। संत के स्वर में आवेश था।*

*अरे छोड़ो मेरी बात को। कम से कम अपने राजा की ओर तो देखो कि किस तरह वह इन कोल भीलों को भाई की तरह मानता है। कम से कम उससे ही सीखो। लेकिन भीड़ पर कोई असर नहीं हुआ और एक-एक करके लोग सरक गये सिर्फ पीछे वाला असाधारण व्यक्ति अपने स्थान पर विराजमान रहा।*

*अप्रभावित संत ने भीलों को बिठाया और पुनः परिवेश में राम कथामृत बहने लगा। कथा समाप्त हुई। भीलों ने जंगली फल कथा में अर्पित किए और खड़े हो गए। कुछ कहना चाहते हो? अगुआ वृद्ध अचकचा गया। जी वो हम आपके चरण-स्पर्श करना चाहते हैं। हिचकते हुये वृद्ध ने कहा। संत की आँखों में आँसू आ गए।*

*"मेरे राम के मित्र थे आप लोग और मैं राम का दास। मैं आप लोगों से चरणस्पर्श नहीं करवा सकता..रुंधे कंठ से संत ने कहा और भील वृद्ध को गले लगा लिया। भील अभिभूत थे। उनके जाने के बाद संत ने उस व्यक्तित्व को पास बुलाया। बहुत दुःखी दिखते हो भैया।आगुंतक की आंखें छलछला आईं और उसका सिर झुक गया। मेरे देश पर मुगलों ने कब्जा कर लिया है और अब कोई आशा नहीं बची है। आगुंतक ने निराश स्वर में कहा।*

*जब तक महाराणा प्रताप जीवित हैं तबतक निराशा की कोई बात नहीं। संत के स्वर में गर्जना थी। आगुन्तक की आंखों से आँसू बह निकले और वह संत के चरणों को पकड़कर बैठ गया। मैं वह अभागा प्रताप ही हूँ गोस्वामी जी। आगुन्तक ने टूटे ढहते स्वर में मुँह पर से वस्त्र हटाते हुए कहा। उस युग के दो अप्रतिम व्यक्तित्व एक दूसरे के आमने सामने थे*

*'महाराणा प्रताप और गोस्वामी तुलसीदास एक राम का रक्त वंशज और एक राम का अनन्य भक्त। गोस्वामीजी की आंखों में आश्चर्य के भाव उभरे और कंधों से पकड़कर महाराणा को उठाया ये कैसा अनर्थ करते हैं राणाजी? मेरे राम का रक्त जिसकी धमनियों में दौड़ रहा है उसे यह कातरता शोभा नहीं देती।*

*"पर मैं नितांत अकेला रह गया हूँ गोस्वामी जी। क्या मेरे राम वन में अकेले नहीं थे? पर क्या उन्होंने सीता मैया को ढूंढने से हार मान ली थी तुम कहते हो कि अकेले हो तो राम की राह क्यों नहीं चलते महाराणा की आँखों में प्रश्न था।*

*"प्रभु राम ने रावण से युद्ध किसके साथ मिलकर किया था? मुस्कुराते हुए तुलसी ने पूछा। वानरों के साथ। तो पहचानिये !! अपने वानरों को, हनुमानों को। ये वनवासी भील आपके लिए वही वानर हैं। ओजस्वी स्वर में उन्होंने कहा। मैंने स्वयं देखा है कि इन कोल भीलों के मन में तुम्हारे लिए कितना सम्मान है। तुमने ही तो कहा था न कि राणी जाया भीली जाया भाई भाई!*

*महाराणा की बुझी हुई आंखों में चमक उभरने लगी। इन भीलों को,इन वनों को ही अपनी शक्ति बनाओ राणा जी !! मेरे राम सब मंगल करेंगे। संत ने आशीर्वाद दिया।आगे जाकर महाराणा प्रताप ने कोल भील के साथ मिल कर दुश्मनो को हरा कर अखंड राज किया।*.....
*🌷जय श्री राम 🌷 शुभ रात्रि 🌷 जय श्री राम 🌷*

आपका वक्री ग्रह कौन से भाव में है ...
07/07/2025

आपका वक्री ग्रह कौन से भाव में है ...

ब्यूरो चीफ/हरदोई गीतांजली वर्माशवेता दर्पण समाचार पञ हर घर की कहानी  ✧​_*︶︸︶︸︶︸︶︸︶︸︶*  बेटा घर में घुसते ही बोला ~ मम्मी...
07/07/2025

ब्यूरो चीफ/हरदोई
गीतांजली वर्मा
शवेता दर्पण समाचार पञ

हर घर की कहानी ✧​_*
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बेटा घर में घुसते ही बोला ~ मम्मी कुछ खाने को दे दो, बहुत भूख लगी है. यह सुनते ही मैंने कहा ~ बोला था ले जा कुछ कॉलेज सब्जी तो बना ही रखी थी.बेटा बोला ~ मम्मी, अपना ज्ञान ना अपने पास रखा करो अभी जो कहा है, वो कर दो बस, और हाँ, रात में ढंग का खाना बनाना.पहले ही मेरा दिन अच्छा नहीं गया है.
कमरे में गई, तो उसकी आँख लग गई थी.मैंने जाकर उसको जगा दिया, कि कुछ खा कर सो जाए. चीख कर वो मेरे ऊपर आया, कि जब आँख लग गई थी, तो उठाया क्यों तुमने मैंने कहा ~ तूने ही तो कुछ बनाने को कहा था.वो बोला ~ मम्मी एक तो कॉलेज में टेंशन,
ऊपर से तुम यह अजीब से काम करती हो.दिमाग लगा लिया करो कभी तो.तभी घंटी बजी,तो बेटी भी आ गई थी. मैंने प्यार से पूछा ~ आ गई मेरी बेटी.कैसा था दिन ? बैग पटक कर बोली - मम्मी, आज पेपर अच्छा नहीं हुआ.मैंने कहा ~ कोई बात नही अगली बार कर लेन मेरी बेटी चीख कर बोली ~अगली बार क्या ?रिजल्ट तो अभी खराब हुआ ना. मम्मी, तुम जाओ यहाँ से. तुमको कुछ नही पता मैं उसके कमरे से भी निकल आई. शाम को पति देव आए, तो
उनका भी मुँँह लाल था थोड़ी बात करने की कोशिश की,जानने की कोशिश की, तो वो भी झल्ला के बोले ~ मुझे अकेला छोड़ दो. पहले ही बॉस ने क्लास ले ली है,और अब .... तुम शुरू हो गई.
आज कितने सालों से यही सुनती आ रही थी. सबकी पंचिंंग बैग मैं ही थी. ◆*हम महिलाएं भी ना अपनी इज्ज़त करवानी आती ही नहींं. मैं सबको भोजन करा कर कमरे में चली गई. अगले दिन से मैंने किसी से भी पूछना-कहना बंद कर दिया.जो जैसा कहता, कर के दे देती. पति आते, तो चाय दे देती, और अपने कमरे में चली जाती.पूछना ही बंद कर दिया कि दिन कैसा था बेटा कॉलज और बेटी स्कूल से आती, तो मैं कुछ न बोलती, ना पूछती.यह सिलसिला बहुत दिन चला. संडे वाले दिन, तीनों मेरे पास आए,और बोले ~ तबियत ठीक है ना ? क्या हुआ है, इतने दिनों से चुप हो. बच्चे भी हैरान थे.थोड़ी देर चुप रहने के बाद, मैं बोली ~ मैं तुम लोगो की पंचिंग बैग हूँ क्या ? जो आता है अपना गुस्सा या अपना चिड़चिड़ापन मुझ पर निकाल देता है. मैं भी प्रतीक्षा करती हूँ , तुम लोगों का.पूरा दिन काम करके, कि अब मेरे बच्चे आयेंगे, पति आयेंगे,दो बोल बोलेंगे प्यार के,और तुम लोग आते ही मुझे पंच करना शुरु कर देते हो.अगर तुम लोगों का दिन अच्छा नहींं गया, तो क्या वो मेरी गल्ती है ? हर बार मुझे झिड़कना सही है ? कभी तुमने पूछा कि मुझे दिन भर में कोई तकलीफ तो नहीं हुई. तीनों चुप थे.
सही तो कहा मैंने दरवाजे पर लटका*पंचिंग बैग समझ लिया है मुझे.*जो आता है ..वमुक्का मार के चलता बनता है.*तीनों शर्मिंदा थे.
दोस्तोंं ..!! हर माँ, हर पत्नी अपने बच्चों और पति के घर लौटने की प्रतीक्षा करती है.उनसे पूछती है कि दिन भर में सब ठीक था या नहीं.लेकिन कभी-कभी हम उनको ग्राँटेड ले लेते हैं. हर चीज़ का गुस्सा उन पर निकालते हैं. कभी-कभी तो यह ठीक है, लेकिन अगर ये आपके घरवालों की आदत बन जाए,तो आप आज से ही
सबका पंचिंंग बैग बनना बंद कर दें.

🙏 सभी महिलाओं को समर्पित 🙏
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🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩*जीवन में कभी संत के संग का भाग्य मिल जाएं तो वो आपके दुर्गुणों को आपसे दूर करने में सहायक ही होते है।**एक बार...
05/07/2025

🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

*जीवन में कभी संत के संग का भाग्य मिल जाएं तो वो आपके दुर्गुणों को आपसे दूर करने में सहायक ही होते है।*

*एक बार एक मानव एक सन्त के पास गया और बोला आप मुझे दीक्षा देकर मेरा उद्धार कीजिये परन्तु मेरी कुछ मांगों को पूरा करके मुझ पर कृपा करें आशा है कि आप मुझे निराश नही लौटायँगे सन्त उसके भाव पर रीझकर बोले ठीक है मैं तुम्हें दीक्षा दूँगा तुम अपनी माँग रखो भक्त चरण स्पर्श करके बोला कि मै शराब नही छोड़ सकता और भजन भी करना चाहता है सन्त ने मुस्कुराकर कहा और कोई समस्या भक्त ने झिझकते हुये कहा मैं चोटी भी नही रखना चाहता ! सन्त ने फिर कहा कोई और इच्छा तो बाकी नही रह गई उसने प्रसन्न होकर कहा नही प्रभु और कोई इच्छा नही है*
* *🙏🏼सन्त ने भुकुटी पर तिलक छाप देकर गले में कण्ठी पहना दी और कानों में गुरु मंत्र दे दिया और बोले आज से तुम्हे वैष्णव जीवन जीना है अर्थात मिथ्याचार और व्यभिचार त्यागकर दिन में कम से कम 40 मिनट हरि भजन करना है तथा जब भी तुम शराब का सेवन करो तो उसका दुष्परिणाम और दुष्प्रभाव मुझे समर्पण कर देना अर्थात तुम्हारे द्वारा किये गये दुष्कर्म का दंड मै भोगूँगा तुम नही*
*शिष्य बड़े भारी मन से उठकर घर आ गया घर पहुंचा तो मस्तक पर तिलक छाप व गले मे कण्ठी देखकर घर के लोग सम्मान की दृष्टि से देखने लगे जो लोग सीधे मुंह बात भी नही करते थे वह अब रुक रुक कर बात करना चाहते थे वह अच्छा महसूस करने लगा तथा उसके मुंह से जो भी बात निकलती उसकी बात का घर परिवार व समाज मे वजन बढ़ने लगा*

*अब अंदर से तो शराब पीने की इच्छा होती नही परन्तु दिमाग मे रह रह *कर शराब की याद आती कि बहुत दिन हो गये आज पिऊँगा और एक दिन वह शराब की* *बोतल खोलकर बैठ गया जैसे ही गिलास मुंह से लगाया तुरन्त गुरुदेव की स्मृति हो आई कि मेरे द्वारा* *किये गये पापों का दंड उन्हें भोगना होगा*
*गिलास छूट गया और आँखों से अविरल अश्रु धारा बहने लगी।*
*अगले ही दिन सन्त दर्शन के लिए गया और दण्डवत प्रणाम करके रोने लगा सन्त ने पूछा क्या हुआ क्या मैने कोई ज्यादा कठिनाइयों भर जीवन दे दिया*
*शिष्य बोला नही भगवन जीवन तो मैने आपका संकट में डाल दिया है मेरे पाप कर्मों का दण्ड आप क्यों भोगेंगे मुझसे घोर अपराध हुआ है अपने मुझे शरणागति प्रदान कर मेरा उद्धार किया और मैने आपका ही जीवन संकट में डाल दिया ।*
*मित्रों, सन्त इत्र की तरह होते हैं जो पास से भी गुजर जाएं तो शख्सियत सँवर जाती है और भाग्य वश यदि कोई सिद्ध सन्त जीवन मे आ जाये तो जीवन एक सुंदर झील के समान हो जाता है अतः जितना हो सके सन्तो का संग करें..अपने संगी साथी चुनने में सतर्क रहे..!!*
*🙏🏼🙏🏻🙏जय श्री कृष्ण*🙏🏾🙏🏿🙏🏽

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