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07/12/2025
जगत में उत्पन्न होने वाले पदार्थ तीन प्रकार के होते हैं —शरीर, इन्द्रियाँ और विषय।शरीर प्राणियों के होते हैं।इन्द्रियाँ ...
07/12/2025

जगत में उत्पन्न होने वाले पदार्थ तीन प्रकार के होते हैं —
शरीर, इन्द्रियाँ और विषय।
शरीर प्राणियों के होते हैं।
इन्द्रियाँ भी प्राणियों में ही पाई जाती हैं।
और प्राणी जिनका अध्ययन या अनुभव करते हैं, उन्हें ‘विषय’ कहा जाता है।
इन तीनों के अतिरिक्त जगत में और कोई चौथा प्रकार का पदार्थ निर्मित नहीं है।
प्राणी का शरीर माता के तीन अंशों और पिता के तीन अंशों से निर्मित होता है।
माता के जो तीन अंश आते हैं — जलीय, पार्थिव और वायवीय।
पिता के जो तीन अंश आते हैं — आकाश, अग्नि और प्राण। प्राण का अर्थ है कार्य करने की शक्ति।
जब यह शरीर बन जाता है, तब अंतरिक्ष में स्थित जीवात्मा उसमें प्रवेश करती है और मृत्यु तक उससे पृथक नहीं होती।

अब आधुनिक विज्ञान का विकासवाद - कितना सही कितना गलत है ?

कुछ आधुनिक जीवविज्ञानियों द्वारा विभिन्न जीव-प्रजातियों में पाई जाने वाली आनुवंशिक समानताओं (genetic similarities) के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि सभी प्राणियों का उद्गम एक ही सामान्य पूर्वज (common ancestor) से हुआ होगा।
परंतु यह निष्कर्ष अपने-आप में अनिवार्य रूप से सिद्ध नहीं होता। इसे पदार्थ-विज्ञान (material science) के एक उदाहरण से समझा जा सकता है।
प्रकृति के मूलभूत तत्त्वों में विकार (differentiation) होकर ही समस्त भौतिक जगत का निर्माण हुआ।
इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन — यही तीन उप-परमाण्विक कण विभिन्न संयोजनों में संगठित होकर अणुओं (atoms) को बनाते हैं, और आगे इनसे विविध पदार्थ निर्मित होते हैं।
उदाहरणार्थ — चीनी (sucrose),

कार्बोहाइड्रेट और सेल्युलोज — ये सभी कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन परमाणुओं से निर्मित होते हैं।
किन्तु यह कभी नहीं देखा जाता कि चीनी स्वयं परिवर्तित होकर कार्बोहाइड्रेट बन जाती हो, या कार्बोहाइड्रेट स्वाभाविक रूप से सेल्युलोज में बदल जाता हो।
ये सभी पदार्थ परमाणुओं के विशिष्ट विन्यास (specific molecular arrangements) से स्वतंत्र रूप से बनते हैं, न कि एक पदार्थ दूसरे पदार्थ में क्रमिक रूप से रूपांतरित (transform) होता है।
इसी प्रकार, सजीव कोशिका-रचना (cellular constitution) भी सीमित रासायनिक तत्त्वों जैसे C, H, O, N, P, S — से निर्मित होती है। यह तथ्य कि विभिन्न जीवों की कोशिकाएँ समान रासायनिक तत्त्वों से बनी हैं, यह आवश्यक रूप से सिद्ध नहीं करता कि एक प्रकार का जीव दूसरे प्रकार के जीव का पूर्वज रहा होगा।
बंदर, मनुष्य और गोरिल्ला के डीएनए में पाई जाने वाली समानता का कारण यह है कि इनकी शरीर-रचना समान जैव-रासायनिक मूलतत्त्वों तथा संरचनात्मक सिद्धांतों पर आधारित है।
यह समानता समान निर्माण-सामग्री (common biochemical toolkit) के उपयोग का परिणाम है न कि अनिवार्य रूप से किसी क्रमिक वंशानुक्रम (phylogenetic descent) का प्रमाण।
अतः आनुवंशिक समानता आवश्यक रूप से समान उत्पत्ति का प्रमाण नहीं, बल्कि समान रासायनिक एवं भौतिक नियमों के अंतर्गत निर्मित होने का स्वाभाविक परिणाम भी हो सकती है।
इस प्रकार, यह मान लेना कि डीएनए-साम्यता से ही सभी जीवों का एक समान पूर्वज सिद्ध हो जाता है — एक अपूर्ण (incomplete) और पूर्वग्रहित (biased) वैज्ञानिक निष्कर्ष है।

धन के अधिपति: श्री कुबेर जी महाराज की अद्भुत कथाएँ और नौ निधियों का रहस्य ✨सनातन धर्म में जीवन के लिए आवश्यक हर तत्व पूज...
07/12/2025

धन के अधिपति: श्री कुबेर जी महाराज की अद्भुत कथाएँ और नौ निधियों का रहस्य ✨

सनातन धर्म में जीवन के लिए आवश्यक हर तत्व पूजनीय है। आज के युग में 'धन' जीवनयापन का एक प्रमुख आधार है, इसलिए धन के अधिपति भगवान कुबेर की आराधना का विशेष महत्व है।
आइए जानते हैं कुबेर जी से जुड़ी कुछ रोचक पौराणिक कथाएँ और उनकी नौ निधियों के बारे में:
📜 पौराणिक संदर्भ:
🔸 ऋषि विश्रवा और इडविडा के पुत्र कुबेर, रावण के सौतेले भाई थे।
🔸 मान्यता है कि सोने की लंका और पुष्पक विमान सबसे पहले ब्रह्मा जी ने कुबेर जी को ही भेंट किया था, जिसे बाद में रावण ने छीन लिया।
🙏 शिव भक्ति का फल (पूर्व जन्म की कथा):
एक कथा के अनुसार, कुबेर जी पूर्व जन्म में एक चोर थे। एक रात शिव मंदिर में चोरी के इरादे से उन्होंने अंधेरे में बार-बार दीपक जलाया। अनजाने में ही सही, इस निरंतर दीप प्रज्ज्वलन से भोलेनाथ प्रसन्न हो गए और उन्हें अगले जन्म में 'धनपति' होने का वरदान दिया।
🐘 अहंकार का नाश (गणेश जी की कथा):
जब कुबेर जी को अपनी अपार संपदा का अहंकार हो गया, तो भगवान शिव की प्रेरणा से गणेश जी ने उनका यह भ्रम तोड़ा। कुबेर जी का सारा भंडार खाली करने के बाद भी गणेश जी की भूख शांत नहीं हुई।
👉 शिक्षा: यह कथा सिखाती है कि धन होना अच्छी बात है, लेकिन धन का अहंकार पतन का कारण बनता है।
💎 कुबेर जी के नौ रूप और उनका महत्व (नौ निधियाँ):
कुबेर जी नौ निधियों के स्वामी हैं। उनकी अलग-अलग रूपों में साधना करने से विशेष मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। दीपावली और धनतेरस पर इनकी साधना का फल कई गुना बढ़ जाता है।
1. 💰 धन कुबेर:
लाभ: अपार धन प्राप्ति के लिए।
दिन/दिशा: मंगलवार, पूर्व दिशा।
2. 🌸 पुष्प कुबेर:
लाभ: रिश्तों को मधुर और सौम्य बनाने के लिए।
दिन/दिशा: मंगलवार, उत्तर दिशा।
3. 👶 चंद्र कुबेर:
लाभ: संतान प्राप्ति के लिए।
दिन/दिशा: रविवार, पूर्व दिशा।
4. 🏠 पीत कुबेर:
लाभ: संपत्ति और प्रॉपर्टी प्राप्ति के लिए।
दिन/दिशा: बुधवार, पश्चिम दिशा।
5. ⚖️ हंस कुबेर:
लाभ: कानूनी दांवपेच और मुकदमों में जीत के लिए।
दिन/दिशा: शनिवार, दक्षिण दिशा।
6. 🎨 राग कुबेर:
लाभ: शिक्षा, लेखन, कला और प्रसिद्धि के लिए।
दिन/दिशा: गुरुवार (वीरवार), पूर्व दिशा।
7. 💊 अमृत कुबेर:
लाभ: सभी रोगों के नाश और स्वास्थ्य के लिए।
दिन/दिशा: शुक्रवार, पश्चिम दिशा।
8. 💸 प्राण कुबेर (ऋण नाशक):
लाभ: सभी प्रकार के कर्ज से मुक्ति के लिए।
दिन/दिशा: सोमवार, उत्तर दिशा।
9. ⚔️ उग्र कुबेर:
लाभ: शत्रुओं के नाश के लिए।
दिन/दिशा: शनिवार, पूर्व दिशा।
भगवान कुबेर हम सभी के जीवन में सुख, समृद्धि और धन-धान्य की वर्षा करें, और हमें धन के अहंकार से बचाएं।

।। ॐ श्रीं ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः: ।।

जय कुबेर भंडारी!

मृत्यु का स्वरूप।।।समान वायु: 24 मिनट में शरीर छोड़ देता है।पाचन, शरीर की गर्मी और उपचार के लिए ज़िम्मेदार।प्राण वायु: 4...
07/12/2025

मृत्यु का स्वरूप।।।

समान वायु: 24 मिनट में शरीर छोड़ देता है।
पाचन, शरीर की गर्मी और उपचार के लिए ज़िम्मेदार।

प्राण वायु: 48-90 मिनट में शरीर छोड़ देता है।
श्वसन और विचार प्रक्रिया के लिए ज़िम्मेदार।

उदान वायु - लगभग 6-12 घंटे में शरीर छोड़ देता है।
शरीर को हल्का और ऊपर की ओर रखने के लिए ज़िम्मेदार। इसीलिए मृत्यु के समय लोग भारी हो जाते हैं। यह संचार के लिए भी ज़िम्मेदार है।

अपान वायु - लगभग 8-18 घंटे में शरीर छोड़ देता है।
उत्सर्जन तंत्र, द्रव और संवेदी बोध के लिए नीचे की ओर गति के लिए ज़िम्मेदार।

व्यान वायु: शरीर छोड़ने में 11-14 दिन लगते हैं।
कोशिकाओं के संरक्षण के लिए ज़िम्मेदार। कोशिकाओं को अंगों और जीवों में एकीकृत करना। शरीर की गतिविधियों के लिए ज़िम्मेदार और योगी इसके निकास को नियंत्रित कर सकते हैं, और शरीर को लंबे समय तक सुरक्षित रख सकते हैं।
इसीलिए मृत्यु के बाद भी नाखून बढ़ते हैं, कुछ अंग हिलते हैं आदि। मृत्यु के बाद भी देखा जा सकता है।

2. यदि आपका परिवार पारंपरिक जीवन जीता था, तो यह भारतीय समाज में एक सामान्य ज्ञान था और हम बुजुर्गों और जानकारों से जानते थे।

3. यह सही है कि विभिन्न मुद्राओं, श्वास तकनीकों और सक्रिय आज्ञा चक्र की यौगिक शक्तियों के संयोजन से विभिन्न वायु पर सचेतन नियंत्रण संभव हुआ और योगियों ने इसमें महारत हासिल कर ली। इसीलिए वे शरीर छोड़ सकते थे या शरीर में प्रवेश कर सकते थे, अपनी इच्छानुसार शरीर को सुरक्षित रख सकते थे।

4. समय पर दाह संस्कार अत्यंत महत्वपूर्ण है, अन्यथा कुछ वायु में भटकती हुई नकारात्मक ऊर्जाएँ शरीर में प्रवेश कर सकती है और उसे अपना निवास बना सकती है।
यहाँ तक कि मृतकों की आत्मा (विशेषकर दुर्घटना के मामलों में) भी भटकती रहती है और उसे जल्द से जल्द भौतिक शरीर से अलग कर देना चाहिए।
जो लोग आगे जानने में रुचि रखते हैं, उनके लिए कुछ संदर्भ।
सुश्रुत संहिता , सूत्र स्थान
15.18–19 (दोषधातुमलविज्ञानाध्याय)
प्राणो हृदि निलीयते…
अपानः पाय्वधो गच्छति…
समानो नाभिमध्ये…
उदानो हृद्ग्रन्थौ…
व्यानस्तु सर्वशरीरगः…
योग सूत्र (विभूति पाद 3.38-3.40)
•तैत्तिरीय उपनिषद 2.2-2.3
•प्रश्न उपनिषद 3.5-3.8
•छान्दोग्य उपनिषद 1.3.3-5, 5.1.5, 5.19.1, 6.8.6, 6.15.1
•बृहदारण्यक उपनिषद 1.5.3, 3.7.16, 3.9.26, 4.4.2, 4.4.4
•कठ उपनिषद 2.3.16-17
कौशीतकि उपनिषद 3.3, 3.6, 4.19
•मैत्री उपनिषद 2.6, 6.3
•जाबाला उपनिषद 1.4-1.6
श्रीमती भगवत गीता 8.6, 8.12, 8.13
•हठयोग प्रदीपिका 3.70-72
•योग वसिष्ठ (उत्तर सर्ग 23.15-22)
•गरुड़ पुराण, प्रेत कांड 10.14-17, 2.28-35, 3.1-6, 13.10-16
•शिव पुराण, विद्येश्वर संहिता 9.27-35
•अग्नि पुराण 155.1-12
•शिव संहिता 3.41-45

आत्म-ज्ञान का सर्वोत्तम मार्ग कौन सा है?सभी मार्ग अच्छे हैं। यह व्यक्ति के संस्कारों, उसकी आदतों और पिछले जन्मों से उसके...
07/12/2025

आत्म-ज्ञान का सर्वोत्तम मार्ग कौन सा है?

सभी मार्ग अच्छे हैं। यह व्यक्ति के संस्कारों, उसकी आदतों और पिछले जन्मों से उसके द्वारा लाई गई प्रवृत्तियों पर निर्भर करता है। जिस प्रकार कोई व्यक्ति एक ही स्थान पर हवाई जहाज, रेल, कार या साइकिल से यात्रा कर सकता है, उसी प्रकार विभिन्न प्रकार के लोगों के लिए अलग-अलग मार्ग उपयुक्त होते हैं। लेकिन सर्वोत्तम मार्ग वह है जो गुरु बताते हैं।
जब एक ही है, तो दुनिया में इतने सारे धर्म क्यों हैं?

चूँकि वह अनंत है, इसलिए उसकी अवधारणा के अनंत प्रकार हैं और उसके मार्ग के भी अनंत प्रकार हैं।
वह सब कुछ है, हर प्रकार का विश्वास, और नास्तिक का अविश्वास भी।
अविश्वास में आपका विश्वास भी एक विश्वास है। जब आप अविश्वास की बात करते हैं, तो इसका अर्थ है कि आप विश्वास को स्वीकार करते हैं। वह सभी रूपों में है और फिर भी वह निराकार है।

उससे लगता है कि निराकार को साकार ईश्वर से ज़्यादा सत्य के निकट मानते हैं?

क्या बर्फ़ पानी के अलावा कुछ और है?
साकार भी उतना ही परमेश्वर है जितना निराकार।
यह कहना कि केवल एक ही आत्मा है और सभी रूप भ्रम हैं, इसका अर्थ होगा कि निराकार, साकार ईश्वर से ज़्यादा सत्य के निकट था।
लेकिन यह शरीर घोषित करता है: प्रत्येक साकार और निराकार, केवल वही है।
जैसे फूल अपनी सुगंध बिखेरता है।

हस्तरेखा और कैंसर रोग***********************क्या कैंसर जैसी बीमारी के लक्षण हथेली में होते हैं, जानिए सच  ==============...
07/12/2025

हस्तरेखा और कैंसर रोग
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क्या कैंसर जैसी बीमारी के लक्षण हथेली में होते हैं, जानिए सच
==============================
समस्त रोगों का मूल पेट है। जब तक पेट नियंत्रण में रहता है, स्वास्थ्य ठीक रहता है। ज्योतिषीय दृष्टि से हस्तरेखाओं के माध्यम से भी पेटजनित रोग और पेट की शिकायतों के बारे में जाना जा सकता है। हथेली पर हृदय रेखा, मस्तिष्क रेखा और नाखूनों के अध्ययन के साथ ही मंगल और राहू किस स्थिति में हैं, यह देखना बहुत जरूरी है।

जिन व्यक्तियों का मंगल अच्छा नहीं होता है, उनमें क्रोध और आवेश की अधिकता रहती है। ऐसे व्यक्ति छोटी-छोटी बातों पर भी उबल पड़ते हैं। अन्य व्यक्तियों द्वारा समझाने का प्रयास भी ऐसे व्यक्तियों के क्रोध के आगे बेकार हो जाता है। क्रोध और आवेश के कारण ऐसे लोगों का खून एकदम गर्म हो जाता है। लहू की गति (रक्तचाप) के अनुसार क्रोध का प्रभाव भी घटता-बढ़ता रहता है। राहू के कारण जातक अपने आर्थिक वादे पूर्ण नहीं कर पाता है। इस कारण भी वह तनाव और मानसिक संत्रास का शिकार हो जाता है।

हथेली पर हृदय रेखा टूट रही हो या फिर चेननुमा हो, नाखूनों पर खड़ी रेखाएँ बन गई हों तो ऐसे व्यक्ति को हृदय संबंधी शिकायतें, रक्त शोधन में अथवा रक्त संचार में व्यवधान पैदा होता है। यदि जातक का चंद्र कमजोर हो तो उसे शीतकारी पदार्थ जैसे दही, मट्ठा, छाछ, मिठाई और शीतल पेयों से दूर रहना चाहिए।

इसी तरह मंगल अच्छा न हो तो मिर्च-मसाले वाली खुराक नहीं लेनी चाहिए। तली हुई चीजें जैसे सेंव, चिवड़ा, पापड़, भजिए, पराठे इत्यादि से भी परहेज रखना चाहिए। ऐसे जातक को चाहिए कि वह सुबह-शाम दूध पीएं ,देर रात्रि तक जागरण न करें और सुबह-शाम के भोजन का समय निर्धारित कर ले। सुबह-शाम केले का सेवन भी लाभप्रद होता है।

पेट की खराबी से शरीर में गर्मी बढ़ जाती है और फिर इसी वजह से रक्तविकार पैदा होते हैं, जो आगे चलकर कैंसर का रूप तक अख्तियार कर सकते हैं। यह मत विश्व प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री डा. आउंट लुईस का है। जिस व्यक्ति के हाथ का आकार व्यावहारिक हो और साथ ही व्यावहारिक चिन्हों वाला हो तो ऐसा जातक अपने जीवन में काफी नियमित रहता है।

ऐसा जातक वृद्धावस्था में भी स्वस्थ रहता है। इसी तरह विशिष्ट बनावट के हाथ या कोणीय आकार के हाथ, जिसमें चंद्र और मंगल पर शुक्र का अधिपत्य हो तो ऐसे लोग स्वादिष्ट भोजन के शौकीन होते हैं। शुक्र प्रधान होने के कारण भोजन का समय नियमित नहीं रहता है। ऐसे में उदर विकार स्वाभाविक ही है। इस पर यदि हृदय रेखा मस्तिष्क रेखा और मंगल-राहू अच्छे न हों तो रक्तजनित रोगों की आशंका बढ़ जाती है।

हस्तरेखा देखकर कैंसर की पूर्व चेतावनी दी जा सकती है और इस जानलेवा बीमारी के संकेत चिन्ह हथेली पर देखे जा सकते हैं। मस्तिष्क रेखा पर द्वीप समूह या पूरी मस्तिष्क रेखा पर बारीक-बारीक लाइनें हों तो ऐसे जातक को कैंसर की पूरी आशंका रहती है। ऐसी स्थिति में यदि मेडिकल टेस्ट करा लिया जाए और उसमें कोई लक्षण न मिलें, तब भी जातक की जीवनशैली में आवश्यक फेरबदल कर उसे भविष्य में कैंसर के आक्रमण से बचाया जा सकता है।

बड़ी खबर! 'खतना' पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती, केंद्र को भेजा नोटिस! नमस्ते दोस्तों! एक बहुत बड़ी और महत्वपूर्ण खबर आ रही ह...
07/12/2025

बड़ी खबर! 'खतना' पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती, केंद्र को भेजा नोटिस!
नमस्ते दोस्तों! एक बहुत बड़ी और महत्वपूर्ण खबर आ रही है सुप्रीम कोर्ट से, जिसने सदियों पुरानी विवादास्पद प्रथा 'खतना' (Female Ge***al Mutilation - FGM) को लेकर अपनी गंभीर चिंता व्यक्त की है।

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से माना है कि यह प्रथा POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) Act का सीधा उल्लंघन हो सकती है, क्योंकि इसमें अक्सर नाबालिग लड़कियों को इसका शिकार बनाया जाता है, और यह उनके शरीर और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा आघात करती है। कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस भेजकर उनसे जवाब मांगा है।

यह एक ऐसा कदम है जो भारत में महिलाओं और बच्चियों के अधिकारों की रक्षा के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है! 'खतना' जैसी अमानवीय और दर्दनाक प्रथाओं को धार्मिक या सांस्कृतिक आड़ में जारी रखना, आधुनिक और सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं है। यह महिलाओं की शारीरिक स्वायत्तता और गरिमा का सरासर उल्लंघन है।

इस फ़ैसले का मतलब है कि अब इस अमानवीय प्रथा पर जल्द ही रोक लग सकती है! यह हर उस महिला और बच्ची के लिए एक बड़ी जीत है, जिसने चुपचाप इस दर्द को सहा है।

आपकी क्या राय है? क्या धार्मिक परंपरा के नाम पर शरीर को नुकसान पहुंचाना सही है? कमेंट में अपनी बात ज़रूर रखें और इस जागरूकता को फैलाने के लिए इसे ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें!

“अपनी आवाज़ धीमी रखो… तुम UN के अधिकारी हो, राजा नहीं।” — वो लाइन जिसने दुनिया को चौंका दिया। 🌍🇮🇳यूनाइटेड नेशंस के बड़े,...
07/12/2025

“अपनी आवाज़ धीमी रखो… तुम UN के अधिकारी हो, राजा नहीं।” — वो लाइन जिसने दुनिया को चौंका दिया। 🌍🇮🇳

यूनाइटेड नेशंस के बड़े, गूंजते हॉल में — जहाँ दुनिया की ताकतें बहस करती हैं, असहमत होती हैं, और अपनी बात रखती हैं — भारत का एक आदमी शांत, स्थिर और अटल खड़ा था: डॉ. एस. जयशंकर, वो आदमी जो भारत का सबसे तेज़ डिप्लोमैटिक दिमाग और दुनिया की सबसे मज़बूत आवाज़ बन गया है।

वीटो के मुद्दे पर एक तनावपूर्ण चर्चा के दौरान, UN के एक अधिकारी ने घमंड से बात करने का फैसला किया। उसका लहजा खारिज करने वाला, तेज़, लगभग हुक्म देने वाला था — जैसे कि वो उम्मीद कर रहा हो कि भारत चुप हो जाएगा या माफ़ी मांग लेगा। कमरे में कई लोग हमेशा की तरह नरम डिप्लोमैटिक जवाब का इंतज़ार कर रहे थे।
लेकिन इस बार कुछ अलग था।

डॉ. जयशंकर ने अपनी आवाज़ ऊँची नहीं की।
उन्होंने गुस्सा नहीं दिखाया।
उन्होंने बस अपना सिर उठाया, सीधे अधिकारी की तरफ देखा, और मज़बूती से कहा:

👉 “अपनी आवाज़ धीमी रखो। तुम UN के अधिकारी हो, राजा नहीं।” 💥

पूरा हॉल शांत हो गया।
एक लाइन जो सिर्फ़ एक सेकंड तक चली, पूरी दुनिया में गूंज गई।
यह कोई अग्रेसन नहीं था।
यह कोई ईगो नहीं था।
यह भारत का नया कॉन्फिडेंस था — शांत, इज्ज़तदार, और इतना ताकतवर कि बिना चिल्लाए कमरा हिला दे। 🇮🇳✨

दशकों तक, भारत की डिप्लोमेसी सावधान और बहुत ज़्यादा विनम्र रही है।
आज, डॉ. जयशंकर के अंडर, यह बोल्ड, साफ़, बिना किसी माफ़ी के, और सेल्फ़-रिस्पेक्ट पर आधारित हो गई है।

यह याद दिलाता है कि मॉडर्न भारत इज़्ज़त की मांग नहीं करता — वह खुद करता है।

वन दुर्गा से मुलाक़ात: जब जंगल अपनी आँखें खोलता है।।सिंह वाली योद्धा देवी को भूल जाइए। यही कहानी है जो वे साफ़-सुथरी ज़म...
07/12/2025

वन दुर्गा से मुलाक़ात: जब जंगल अपनी आँखें खोलता है।।

सिंह वाली योद्धा देवी को भूल जाइए। यही कहानी है जो वे साफ़-सुथरी ज़मीनों में सुनाते हैं, जहाँ जंगलीपन को समझना और समझना ज़रूरी है।
घने जंगलों की असली वन दुर्गा उस तरह रक्षक नहीं हैं जैसे कोई दीवार किसी शहर की रक्षा करती है। वह कुछ ज़्यादा प्राचीन, ज़्यादा बेचैन करने वाली और ज़्यादा पवित्र हैं।
वह अलिखित नामों की रक्षक हैं।
उनकी उपस्थिति किसी रूप में नहीं, बल्कि ध्यान के एक गुण में महसूस होती है।
यह वह अचानक, पूर्ण मौन है जो आपके रास्ते से हटते ही छा जाता है, ध्वनि का अभाव नहीं, बल्कि एक ऐसा गहन श्रवण जो आपके अपने शोर को सोख लेता है।
पक्षी नहीं बोलते। कीड़े अपनी भिनभिनाहट बंद कर देते हैं। पत्तियाँ स्थिर लटकी रहती हैं। यह जंगल है जो अपनी पूरी, प्राचीन चेतना आप पर उंडेल रहा है। यही उसकी नज़र है। आपको मानव कानून से नहीं, बल्कि जंगल के पुराने, हरे-भरे तर्क से तौला जा रहा है।
उनके कोई मंदिर नहीं हैं क्योंकि पूरा जंगल उनका मिथुन है, उनका पवित्र मिलन है। विशाल अर्जुन वृक्ष को गले लगाता हुआ स्ट्रेंगलर अंजीर, जब तक कि दोनों एक अविभाज्य वास्तुकला नहीं बन जाते, यही उसका प्रतीक है। रात के अँधेरे में एक खास पतंगे के लिए ही खिलने वाला ऑर्किड, यही उसका अनुष्ठान है।
उसकी पूजा दीमक द्वारा की जाती है, जो गिरे हुए दानव को तोड़कर मिट्टी को पोषित कर सके, और अजगर द्वारा, जो जीवन का उपभोग करके, उसके भयानक, चक्रीय मूल्य की पुष्टि करता है।
उसके पुजारी लंबी भुजाओं वाले लंगूर हैं जो आधे खाए हुए फल गिराते हैं, भविष्य के लिए बीज बोते हैं।
उसका क्रोध आक्रमण नहीं, बल्कि पुनर्ग्रहण है। वह जानवरों को मारने के लिए नहीं भेजती। बल्कि, वह विनाश करती है।
शिकारी को बाघ नहीं मिलता, उसे एक गहरा और भटकाव पैदा करने वाला नुकसान मिलता है। उसकी दिशा-बोध हर दिशा में एक घने, एक जैसे हरे रंग में विलीन हो जाता है।
स्थलचिह्न बदल जाते हैं। जिस झरने से उसने एक घंटे पहले पानी पिया था, वह अब नहीं मिल पाता। उसकी छत्रछाया में समय भी अर्थहीन हो जाता है। उसका शिकार नहीं होता, उसे भुला दिया जाता है।
जंगल बस उसे होने की अनुमति वापस ले लेता है। उसके औजार अलौकिक गति से जंग खा जाते हैं। बाहरी दुनिया की उसकी यादें धुंध की तरह धुंधली और पारदर्शी हो जाती हैं। वह पहले शरीर को नहीं मारती, वह स्वयं की कहानी को तब तक विघटित कर देती है, जब तक कि केवल एक भयभीत, अनाम जानवर ही शेष न रह जाए, और वह भी अंततः ह्यूमस में वापस इकट्ठा हो जाता है।
पवित्र वट वृक्ष पर कुल्हाड़ी चलाने वाले लकड़हारे को वह एक अलग ही सबक देती है। वह दहाड़ नहीं, बल्कि एक ऐसी ध्वनि सुनता है जो होनी ही नहीं चाहिए, लकड़ी की गहरी, गूंजती, कराह जो सिर्फ़ लकड़ी नहीं है, एक ऐसी ध्वनि जिसमें सदियों पुरानी मानसूनी बारिश, पक्षियों के गीत और पत्तों से छनकर आती तारों की रोशनी की यादें समाहित हैं।
यह वृक्ष अपना असली, अलिखित नाम बोल रहा है, और वह नाम एक विलाप है जो मानव हृदय को झकझोर देता है। कई लोग अपने औज़ार छोड़कर भाग जाते हैं, हमेशा के लिए प्रेतवाधित।
जो नहीं भागते, उनका सामना हिंसा से नहीं, बल्कि एक ज़बरदस्त, दुःखद उपस्थिति से होता है, यह एहसास कि हर काई, हर भृंग, घूमता पराग का हर कण एक साझा, मौन दुःख में देख रहा है। वह एक जीवंत गिरजाघर में एक ईशनिंदा करने वाला बन जाता है, और उस मौन का भार असहनीय होता है।
वन दुर्गा का सबसे बड़ा हथियार है अपनापन। वह एक पवित्र पारस्परिकता को लागू करके रक्षा करती है।
वह आदिवासी बुज़ुर्ग जो धन्यवाद की प्रार्थना के बाद सिर्फ़ एक टहनी लेता है, जो चींटियों के टीले पर शहद का प्रसाद चढ़ाता है, जो जंगल में एक विनम्र रिश्तेदार की तरह घूमता है, वह उसे किसी ख़तरे के रूप में नहीं, बल्कि उस जगह की प्रत्यक्ष, गुनगुनाती हुई जीवंतता के रूप में महसूस करता है।
जंगल उसके लिए खुल जाता है। औषधीय पौधे खुद को प्रकट करते हैं। वह उस पैटर्न में छिपी बुद्धिमत्ता है, वह सामंजस्य जो लेने की अनुमति तभी देता है जब देना उस क्रिया में बुना हुआ हो।
तो, वन दुर्गा की तलाश किसी मूर्ति की तलाश नहीं है। यह एक विशाल वृक्ष की जड़ में अकेले बैठना है जब तक कि आपका अपना नाम, आपके माता-पिता, आपके समाज द्वारा दिया गया नाम, एक धुंधली, दूर की अफवाह जैसा न लगने लगे।
जब तक आप उस पुराने, सच्चे नाम को न सुन लें जो जंगल आपको पुकार सकता है, अगर वह आपको स्वीकार करना चाहे, एक ऐसा नाम जो बीज, छाया और क्षय की भाषा में लिखा गया हो। एक ऐसा नाम जिसे आपको अर्जित करना होगा, या मिट जाना होगा।

चित्त, मन, बुद्धि और अहंकार में भेद:     शरीर में जो तत्व चंचल है, वह 'चित्त' है और जो तत्व मननशील है, वह है--'मन'। चित्...
07/12/2025

चित्त, मन, बुद्धि और अहंकार में भेद:

शरीर में जो तत्व चंचल है, वह 'चित्त' है और जो तत्व मननशील है, वह है--'मन'।
चित्त और मन दोनों तत्व योग-साधना में साधन हैं, साध्य नहीं।
साध्य है--अपने मूल को प्राप्त करना। इस दिशा में चित्त-शक्ति गति देती है। मन अनुभव करता है और उन अनुभवों को स्वीकार भी करता है। जीवन लगातार आगे बढ़ता जाता है। चित्त-शक्ति लगातार गति दे रही है। इसी चित्त-शक्ति को काल-शक्ति (महाकाली) कहा जाता है।
जीवन-यात्रा के जिस पड़ाव में जो घटना घटती है, उसका अनुभव मनः-शक्ति स्वीकार करती जाती है। तंत्र के अनुसार मनः-शक्ति महालक्ष्मी है। उस अनुभव से मनुष्य को जो ज्ञान प्राप्त होता है वह तन्त्र की ज्ञान-शक्ति (महासरस्वती) है।
चित्त चंचल है। उसका गहरा सम्बन्ध मन से है। इसी सबन्ध के कारण मन भी चंचल है, अस्थिर है।
लेकिन मन का स्वाभाविक गुण है--मनन करना। मन तभी चिंतन-मनन करता है जब चित्त स्थिर हो जाता है। इसको ऐसे भी कह सकते हैं कि जब मन चिंतन-मनन की ओर अग्रसर होता है तो चित्त स्वयं ही स्थिर हो जाता है। उस स्थिरता को चित्त की एकाग्रता नहीं समझ लेना चाहिये। एकाग्रता कुछ और ही है।
पहले मन को स्थिर होना चाहिए और उसी के साथ चित्त को भी होना चाहिए स्थिर।
दोनों की स्थिरता एक-दूसरे पर आधरित है।
चित्त और मन जब दोनों एक ही अवस्था को उपलब्ध होते हैं तो तब 'प्राण' की गति धीरे-धीरे मन्द होने लग जाती है और मन भी स्वयं अपने आप में लीन होने लग जाता है।
मन का अर्थ है--मनन-चिंतन, विचार जो दिखलायी दे, उसके साथ चिंतन की धारा को जोड़ देना।
जैसे आप एक फूल को देखते हैं। जब तक देखते हैं, तब तक आपके मन से फूल का सम्बन्ध नहीं है। लेकिन जैसे ही आप कहते हैं--"फूल बहुत सुन्दर है, सुगंधमय है", उसी क्षण मन से फूल का सम्बन्ध जुड़ जाता है। इसी प्रकार जब आप कहते हैं--"फूल बेकार है, उसमें तो गन्ध है ही नहीं" तब भी मन आपके और फूल के बीच आ जाता है।
तात्पर्य यह है कि अच्छे और बुरे दोनों स्थितियों में मन की उपस्थिति अनिवार्य है, साथ ही उसकी क्रियाशीलता भी।
आप मन के अधीन हो जाते हैं। सारांश यह कि जब तक दर्शन (देखना) है, तब तक मन नहीं है, लेकिन जब दर्शन के साथ भाव जुड़ जाता है,विचार जुड़ जाता है, शब्द जुड़ जाता है तो मन की गति शुरू हो जाती है।
मन का मतलब है--भाव, विचार, भावना। मन शब्द को आविर्भूत करने का एक यन्त्र है। कहने का अर्थ है कि भावों, विचारों और शब्दों का जो जाल है, वह हमारा मन है।

ध्यान का अर्थ है--मन का खो जाना।
ध्यान का अर्थ है--भाव का, विचार का, शब्द का खो जाना।
इसका आशय यह नहीं कि जो व्यक्ति ध्यान में प्रवेश करेगा, वह बोलेगा नहीं, वह शब्द या भाषा का प्रयोग नहीं करेगा।
वह बोलेगा, वह शब्द या भाषा का प्रयोग करेगा। मगर तब उसका बोलना 'बोलना ' होगा। उसके बोलने में मन का प्रयोग नहीं होगा। वह अ-मन की स्थिति में बोलेगा।
इसी को योगीगण 'ऋतम्भरा' वाणी कहते हैं। 'ऋतम्भरा' वाणी वह है जो मन से नहीं, सीधे आत्मा से निकलती है।
अ-मन में 'जीवन के ऐक्य' का बोध होता है। मन की विशेषता यह है कि वह किसी वस्तु को तोड़कर, विभाजित कर देखता है।
इस प्रक्रिया में जीवन खण्ड-खण्ड हो जाता है। मन किसी वस्तु को पूर्णता में नहीं देख पाता। जीवन को देखेगा तो उसे बांट देगा--जन्म और मृत्यु में। मेरा मन जो कहेगा और आपका मन जो कहेगा, उसमें आपस में मेल हो, तारतम्य हो--जरूरी नहीं।
जब कोई व्यक्ति मन से कहे कि 'ईश्वर है' तो उसका कहना असत्य है। क्योंकि मन की ईश्वर को देखने की क्षमता नहीं है, लेकिन वही व्यक्ति अ-मन की अवस्था में देखकर कहता है कि "ईश्वर है' तो उसका कहना सत्य है, क्योंकि उसने अ-मन की स्थिति में ईश्वर का साक्षात्कार कर लिया है।
मनस्वी व्यक्ति विद्वान होता है, मनीषी होता है, उसके द्वारा दर्शन प्रकट हो सकता है लेकिन धर्म उस व्यक्ति के द्वारा प्रकट होता है, जिसका मन खो गया है।
धर्म का प्राकट्य हुआ है अ-मन की स्थिति में ऋषि या योगी के द्वारा लेकिन उसका प्रचार-प्रसार किया है मनुष्य ने, उसके मन ने, बुद्धि ने। तो उसने गलत दिशा और दशा को प्राप्त होकर दर्शन का रूप ले लिया।
द्वैत की स्थिति का जनक मन ही है। अद्वैत की स्थिति तभी बनती है जब मन 'मन' नही रह जाता, आत्मा में लीन हो जाता है। केवल आत्मा रह जाती है, वही स्थिति अद्वैत है, कैवल्य है।

मनस्तत्व की अवस्था के अनुसार कई रूप हैं--चित्त, मन, बुद्धि और अहंकार।
जो तत्व चंचल है, वह चित्त है, जो मननशील है, वह मन है, जो तत्व निश्चय, निर्णय, संकल्प करे, वह बुद्धि है और जो तत्व अपने-पराए में भेद करे और दूसरे को अपने से हेय समझे, वह 'अहंकार' है।

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