05/08/2025
अपने ही नदी थाले में जा घुसी खीर गंगा ..................
उत्तरकाशी के धराली गांव में खीर गंगा का आज प्रचंड रूप सब ने देख लिया। क्या संयोग है कि 6 अगस्त 1978 के दिन इसी के कुछ किलोमीटर नीचे छोटी सी कनोडिया गाड़ ने भी भयंकर रूप दिखाया था और तब डबराणी में गंगा का प्रवाह तक रोक दिया था।
आज भी यदि खीर गंगा में पानी दुगना या दुगनी देर तक बहता, तो ठीक 6 अगस्त 1978 जैसे हालात बन सकते थे। उस आपदा के कल पूरे 47 साल हो जाएंगे। तब लोग कवि घनश्याम "सैलानी" ने एक गढ़वाली गीत में लिखा था -
छै अगस्त उन्नीस अट्ठोत्तर
गंगा जी मां कम थौ पाणी
पता चले कि पाड़ टूटे
हरसिल उदैं ज्योति घबराणी ........
आज फिर यह सब हुआ, कैसे ? मौसम वैज्ञानिक या भूवैज्ञानिक ज्यादा बेहतर बता सकते हैं। लेकिन हमें यह जान लेना चाहिए कि खीर गंगा का जल ग्रहण क्षेत्र बहुत ही कटा - फटा और तीव्र ढलान वाला है। ऐसी संकरी घाटी जो बादल फटने के लिए अनुकूल भूगोल का निर्माण करती है। कम जल मात्रा में भी इतनी तेज रफ्तार से बहती है कि दोनों तटों से मलवा कंकड़ पत्थर साथ में बहा ले आती है। इससे नदी प्रवाह की मारक क्षमता बढ़ जाती है।
दरअसल नीचे जिसे हम धराली गांव बता रहे हैं, वह खीर गंगा का पुराना बगड़ और थाला है। गांव ऊपर रहा होगा, अब भी ऊंचाई पर है। लेकिन अब पर्यटन और आधुनिकता के चलते नीचे थाले में जा बसे। हालांकि पुश्तैनी जमीन होगी लेकिन पहले घाट और घराट रहे होंगे। गौचरान रहा होगा। नदी का प्राकृतिक बाढ़ क्षेत्र। वहां अधिकांश नईं बिल्डिंग दिखाई दी हैं। अब होमस्टे भी बन गए हैं।
मुझे नहीं लगता कि खीर गंगा के दोनों ओर की यह बस्ती 20 - 30 साल से ज्यादा पुरानी होगी। इस जगह पर इसी मानसून में या आगे फिर खतरा हो सकता है। और अब पहले से ज्यादा, क्योंकि मलवा आने से वहां उथला हो गया है।
चलिए, फिर से घनश्याम "सैलानी" के उसे गीत पर लौटते हैं। आखिरी पंक्ति में आखिरी शब्द यही धराली गांव था-
अलग-थलग पडी़गे सब जीवन
सालंग हुरी पुराऴी को
जिल्ला से संबंध कटीगे
हर्षिल, मुखवा धराली को
यही है, वह धराली गांव, जो आज चर्चा में है ..........
वैसे 12 साल पहले की केदारनाथ और 4 साल पहले की ऋषि गंगा - तपोवन आपदा अभी याद होगी, या भूल गए होंगे लोग .......
समस्त फोटोग्राफ - साभार गूगल अर्थ व सोशल मीडिया
1978 की कनोडिया गाड आपदा की भी फोटो लगाई है, ब्लैक एंड व्हाइट देखिए।