21/11/2025
उत्तराखंड के चमोली जिले के पोखरी ब्लॉक का पाव गांव की 42 वर्षीय रामेश्वरी देवी घास लेने जंगल गई थीं। जब शाम तक भी घर नहीं लौटीं, तो परिजन परेशान हुए, और गाँव वालों के साथ मिलकर ढूंढना शुरू किया लेकिन अंधेरा इतना हो गया था कि सर्च ऑपरेशन रोकना पड़ा।
सुबह फिर ढूंढना शुरू किया तो महिला जंगल में 70-80 मीटर खड़ी ढलान पर एक पेड़ के नीचे, खू-न से ल-थपथ मिली। भालू ने पूरा चे-हरा नों-च लिया था। शरीर के कई हिस्से बु-री तरह ज़-ख्मी थे। रामेश्वरी देवी ज़िं-दा थीं, लेकिन किस हाल में! पूरी रात भालू के ह-मले के बाद अकेली, द-र्द में त-ड़पती हुईं, डर से काँपती हुईं गुज़ारी। किसी तरह पेड़ के पास छिपकर अपनी जा-न बचाई।
महिला को पहले पोखरी CHC पहुँचाया गया। हालत इतनी गं-भीर थी कि उन्हें तुरंत AIIMS ऋषिकेश भेज दिया गया। लेकिन सवाल यही है कि इन घटनाओं को रोकने के लिए सरकार ने आजतक किया क्या है? रोकथाम कहाँ है? तकनीकी टीम, गश्त, सुरक्षा उपकरण – ये सब कागज़ों में तो बहुत अच्छा लगता है। ज़मीन पर क्या हो रहा है?
उत्तराखंड के पहाड़ों में भालू, गुलदार, जंगली सूअर का आ-तंक दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। लोग घर से निकलने से डरने लगे हैं। महिलाएं घास लाने जाएँ तो जान हथेली पर, बच्चे स्कूल जाएँ तो दिल धुकधुक। लेकिन वन विभाग है कि बस मीटिंग करता रहता है, पटाखे फोड़ता रहता है, सलाह देता रहता है?
सरकार की घास्यारी योजना का क्या हुआ?
लोग कब तक अपनों को इस तरह खोते रहेंगे? कब तक भालू और गुलदार पहाड़ियों को अपना शिकार बनाते रहेंगे? कब तक प्रशासन सिर्फ सतर्क रहने की सलाह देता रहेगा? और सतर्क कैसे रहे भाई? घरों से बाहर ही न निकले अब? ये कोई पहली घटना नहीं है, और दुख की बात ये है कि आखिरी भी नहीं होगी। एक के बाद एक नाम जुड़ रहे हैं और आगे भी जुड़ते चले जाएँगे। पता नहीं अगली रामेश्वरी देवी कौन होगी?
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