24/04/2025
हम सोचते हैं दुश्मन सरहदों के उस पार है,
जहाँ टैंक हैं, मिसाइलें हैं, और जंग का शोर है।
मगर असली खतरा वो नहीं, जो खुलकर ललकारे,
वो है जो साए में छुपकर, भीतर से ही वार करे।
जिसे हम अपना समझ बैठे,
वो ही बीज थे साज़िश के, जो धीरे-धीरे अपनी जड़ें फैला बैठे।
न वर्दी है, न बंदूक — बस शब्दों का ज़हर है,
हर मोड़ पर भ्रम फैलाए, हर बात में कहर है।
जब घर में ही दरारें हों,
तो दीवारें बाहर से क्या गिराएंगी?
जिस दिन अंदर का ये ज़हर साफ़ होगा,
बाहर की हर चुनौती खुद-ब-खुद कमजोर होगी।
कभी सोचो, कि जो बार-बार हमें तोड़ने का हुनर दिखाते हैं,
क्या वाकई बाहर से आते हैं,
या हमने ही कुछ चेहरों को जगह दी है
और वो अंदर से दीवारें ढहाते हैं?
✍️ आनंद पांडेय