26/06/2025
विक्रम और बेताल – अध्याय 22: सच्चा दोषी कौन?
राजा विक्रमादित्य ने बेताल को फिर से पेड़ से उतारा और अपने कंधे पर रखकर चलने लगे। तभी बेताल ने अगली कहानी शुरू की:
बहुत समय पहले की बात है, मालव देश के एक नगर में एक प्रसिद्ध कलाकार रहता था — उसका नाम था चित्रसेन। वह चित्रकला और मूर्तिकला में निपुण था। राजा तक उसकी ख्याति पहुँची थी। चित्रसेन का एक प्रिय शिष्य था — नाम था शीलधर।
चित्रसेन अपने शिष्य को पुत्रवत मानता था और उसे अपनी सभी कलाएँ सिखा रहा था। एक दिन उसने घोषणा की कि वह अपना सबसे अनमोल राज–चित्र, जो उसने वर्षों की मेहनत से बनाया था, शीलधर को सौंप देगा।
परंतु उसी रात वह चित्र चोरी हो गया।
चित्रसेन अत्यंत दुखी हुआ और नगर के दरबार में जाकर राजा से न्याय की याचना की। शंका सीधे शीलधर पर ही गई क्योंकि केवल वही जानता था कि चित्र कहाँ रखा गया था।
राजा ने शीलधर को बुलाया। शीलधर ने कहा, “मैं निर्दोष हूँ, मैंने गुरुदेव का चित्र नहीं चुराया।” लेकिन कोई साक्ष्य नहीं था, और संदेह उसी पर बना रहा।
कुछ ही दिन बाद वही चित्र एक धनी व्यापारी के पास पाया गया। पूछताछ में व्यापारी ने बताया कि चित्र उसे एक अन्य कलाकार ने बेचा, जिसका नाम था धनराज — जो चित्रसेन का पुराना शत्रु था।
अब प्रश्न यह था — क्या शीलधर सचमुच दोषी था? या धनराज ने उसे फंसाया?
बेताल ने कहानी रोक दी और बोला:
“अब बताओ राजा विक्रम — न्याय किसका है? क्या शीलधर दोषी था, या वह केवल षड्यंत्र का शिकार बना? यदि तुम उत्तर जानते हुए भी मौन रहे, तो तुम्हारा मस्तक चूर-चूर हो जाएगा!”
विक्रम का उत्तर:
“शीलधर निर्दोष है। उसके पास गुरुदेव का चित्र था, यह बात सिर्फ एक जानकारी थी। पर जानकारी होना और चोरी करना, दोनों अलग हैं।
धनराज ने शीलधर पर शंका जाने की संभावना को जानते हुए षड्यंत्र रचा और चित्र चुरा लिया। चित्र का व्यापारी तक पहुँचना और उसके द्वारा नाम लेना इसका प्रमाण है।
इसलिए असली दोषी धनराज है, और शीलधर केवल उसकी चाल का शिकार बना।”
बेताल मुस्कराया और हमेशा की तरह बोला, “तू फिर बोल पड़ा, राजा विक्रम! अब मैं फिर उड़ता हूँ…”
और वह उड़कर वापस पेड़ पर जा लटका।
📜 शिक्षा:
संदेह और साक्ष्य में अंतर होता है। किसी पर केवल संदेह के आधार पर दोष सिद्ध नहीं किया जा सकता। न्याय वही है जो सत्य और प्रमाण पर आधारित हो।
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