17/10/2024
Happy Kati Bihu...
काति बिहूः सांस्कृतिक विरासत, भक्ति, प्रार्थनाओं और परंपराओं का त्योहार
आज काति बिहू है। सूरज डूबने को है...लोग हाथों में केले के पौधे, बांस और मिट्टी का दीए लिए धान की खेतों की ओर जा रहे हैं। घर के एक कोने में तुलसी आज भी हमें अपनी ओर खींचती है...बचपन की बरबस याद ताजा हो गईं...बचपन में जो देखा था, लगभग वही...बहुत कुछ बदला नहीं है। समाज में बहुत कुछ बदला होगा, लेकिन बहुत सी चीजें आज भी जस की तस हैं...जो मन के किसी कोने में दिल को तसल्ली देता है...। दिल के एक हिस्सा कहता है, गांव तुम नवसंचार से विकसित होओ...दुनिया के साथ कदमताल करो...लेकिन अपनी परंपराओं और संस्कृति को जिंदा रखते हुए हमारी प्रार्थनाओं में जिंदा रहो।
काति बिहू असमिया संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है। यह त्योहार न केवल एक कृषि प्रतीक है बल्कि असम की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक भावना को भी दर्शाता है। यह विनम्रता, आभार और समृद्ध फसल के लिए प्रार्थनाओं का त्यौहार है। यह सकारात्मकता का त्योहार है। काति बिहू का यह गंभीर पहलू बोहाग और माघ बिहू के अधिक आनंदमय और उत्सवमय वातावरण के विपरीत है, जो प्रचुरता और फसल की खुशी का उत्सव मनाते हैं। इस दिन धान की खेतों में जाकर दीया जालाया जाता है और अच्छे फसल के लिए प्रार्थना की जाती है।
काति बिहू गहरे अर्थ रखते हैं। इस मौसम में दीपक जलाने के गहरे रहस्य छिपे हुए हैं। दीपक जलाना यानि आशा की निराशा पर विजय। दीये की रोशनी का अर्थ है अंधकार पर विजय और जीवन की मृत्यु पर विजय का प्रतीक है। इस मौके पर पूरा परिवार एक साथ प्रार्थना में शामिल होते हैं और सुखद भविष्य के लिए प्रार्थना करते हैं।
बिहू असम का प्रमुख त्यौहार है। असम में तीन प्रमुख त्योहार (बिहू) हैं। रंगाली बिहू या बोहाग बिहू, भोगाली बिहू या माघ बिहू, काती बिहू या कोंगली बिहू। ये त्योहार खेती से जुड़े हैं और हर साल अलग-अलग महीनों में मनाए जाते हैं। जैसे कि नाम से ही पता चल रहा है कि काति यानि कार्तिक का महिना यानि आज से कार्तिक का महीना शुरू हो गया है। जैसे कि हमारा देश कृषि प्रधान देश है, वैसे ही पूर्वोत्तर का असम भी कृषि प्रधान राज्य है। इसलिए यहां के त्यौहारों का सीधा संबंध किसानी से जुड़े हुए हैं। लेकिन काति बिहू से पहले दो अन्य बिहू के बारे में जानना जरूरी है ताकि काति बिहू के महत्व को समझा जा सके।
रंगाली बिहू जिसे बोहाग बिहू भी कहते हैं। असम में यह बिहू अप्रैल के मध्य में मनाया जाता है। यह समय है फसल बुआई का है। फसल बोने की शुरुआत का प्रतीक है। इसी महीने से नव वर्ष की शुरुआत होती है। रंगाली बिहू सात दिनों का होता है और पूरे असम में असम सार्वजिनक पंडाल बनाए जाते हैं। लोग जमकर नृत्य करते हैं, फसल में जाने से पहले इसे धूमधाम से मनाया जाता है। यही समय होता है जब पंजाब में वैशाखी का त्यौहार मनाया जाता है। बाकी प्रदेशों में अन्य तरीके से उत्सव मनाए जाते हैं।
इसके बाद आता है माघ बिहू या भोगाली बिहू। जनवरी के मध्य में मनाया जाता है और फसल कटाई का त्योहार है। अब फसल पक कर तैयार हो चुका होता है, और उसके उपभोग का समय आता है। अब किसान खेती समाप्ति की खुशी मनाते हैं। इसी समय उत्तर भारत में मकर संक्रांति का त्यौहर मनाते हैं।
इसके बाद आता है काति बिहू या कोंगली बिहू। यह बिहू अक्टूबर के मध्य में मनाया जाता है। यह किसानों का वह समय होता है, जब खेतों में फसल लहलहा रही होती है लेकिन गोदाम करीब-करीब खाली हो चुके होते हैं। कांगली यानि करीब-करीब कंगाली के करीब। यानि यह कमी का प्रतीक है। पुरानी अनाज खत्म हो चुकी होती है और नई फसल आने को अभी वक्त लगेगा। यही कारण है कि काति बिहू को कोंगाली बिहू भी कहते हैं।
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कुछ परंपराएं, जो आज भी हैं जस की तस
कितना अच्छा लगता है जब हम आधुनिकतावाद की ओर बढ़ रहे हैं अपनी सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं को साथ लिए। काति बिहू में कुछ नहीं बदला। हां, घरों में कुछ विद्युत रोशनी जरूर लोग लगाने लगे हैं। लेकिन बाकी सब कुछ वही, माटी का दीया। आज भी लोग काति बिहू में मिटट्टी का दीया ही जलाते हैं जिन्हें असमिया में "साकी" कहा जाता है। ये दीपक आंगन में पवित्र तुलसी पौधे के पास और धान के खेतों की मेढ़ों पर रखे जाते हैं। यह अंधकार को दूर करने और परिवार की भलाई और फसलों की सुरक्षा के लिए दिव्य आशीर्वाद की प्रार्थना का प्रतीक है।
इसी तरह से तुलसी, जो हर भारतीय के घर की आंगन में सांस्कृतिक विरासत और परंपरा की प्रतीक के रूप में विराजमान रहती हैं। तुलसी का असम के घरों में विशेष स्थान रखता है, और काति बिहू के दौरान इसे विशेष सम्मान दिया जाता है। परिवार इस पौधे को रुई के कपड़े से लपेटते हैं और इसके चारों ओर मिट्टी के दीपक जलाते हैं।
इसी तरह से, इस दिन से आकाश दीप जलाने का भी प्रचलन है। इसके लिए कई दिनों से तैयारी की जाती है। काति महीने में आकाश दीप जलाने की खासा महत्व है। इसके लिए कच्चे बांस का उपयोग किया जाता है। इसमें रस्सी लगाकर दूर आकाश में दीया जलाया जाता है। माना जाता है कि पूर्वजों की आत्माओं को स्वर्ग की ओर वापस मार्गदर्शन करना है। कहा जाता है कि यह प्रकाश भौतिक जगत को आध्यात्मिक क्षेत्र से जोड़ता है। पूर्वजों की आत्माओं को शांति मिलती है और समृद्धि के लिए उनके आशीर्वाद की कामना की जाती है।
यह प्रार्थनाओं का समय है। काति बिहू समृद्धि के लिए प्रार्थनाएं की जाती हैं। कृषि को कीट-पतंगों से बचाने की प्रार्थना की जाती है ताकि किसानों के जीवम में समृद्धि बनी रहे। यह कृषि-आधारित समाज की अनिश्चितताओं और चुनौतियों को दर्शाती है। यह त्योहार मनुष्यों और प्रकृति के बीच आपसी निर्भरता की याद दिलाता है। यह कृषि प्रथाओं और पर्यावरण के प्रति सम्मान की आवश्यकता को उजागर करता है। यह ग्रामीण जीवन की लय को भी रेखांकित करता है, जहाँ त्योहार भूमि और उसके चक्रों के साथ गहराई से जुड़े होते हैं।