22/09/2025
काछिनगादी का अर्थ है काछिन देवी को गद्दी देना। काछिन देवी की गद्दी कांटेदार होती है। कांटेदार झुले की गद्दी पर काछिनदेवी विराजित होती है।
काछिनदेवी को रण देवी भी कहते हैं। जगदलपुर के पथरागुड़ा में काछिनदेवी की गुड़ी स्थापित है। काछिन देवी की अनुमति से ही बस्तर दशहरा प्रारंभ किया जाता है। काछिन गादी की रस्म आश्विन अमावस्या को ही मनाई जाती है। इस रस्म के प्रारंभहोने के संबंध में लेख मिलता है कि बस्तर के राजा वीर नारायण देव की कोई संतान नहीं थी जिससे वे अपने जीवन में बेहद दुखी रहते थे। संतान प्राप्ति के लिये उन्होंने वे विभिन्न तरह के प्रयास किये किन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली। जब वे सारी उम्मीदें छोड़ दिये तब एक दिव्य शक्ति युक्त पनका बालिका उनके महल में आई और राजा को संतान प्राप्ति का आशीष दिया और कहा कि वो यदि काछिन देवी के लिये मंदिर का निर्माण करता है और उनकी पूजा करेगा जब उसे संतान प्राप्ति होगा। राजा ने वैसा ही किया जिसके कुछ दिन बाद रानी गर्भवती हुई और उन्हें एक बेटी हुई। इस प्रकार दशहरा में काछिनगादी की रस्म जुड़ गई। इसके अतिरिक्त महाराज दलपत देव के समय बस्तर दशहरा में काछिनगादी की रस्म शामिल होने का उल्लेख मिलता है। बस्तर संस्कृति और इतिहास में लाला जगदलपुरी जी कहते हैं कि जगदलपुर में पहले जगतु माहरा का कबीला रहता था जिसके कारण यह जगतुगुड़ा कहलाता था। जगतू माहरा ने हिंसक जानवरों से रक्षा के लिये बस्तर महाराज दलपतदेव से मदद माँगी। दलपतदेव को जगतुगुड़ा भा गया उसके बाद दलपत देव ने जगतुगुड़ा में बस्तर की राजधानी स्थानांतरित की। जगतु माहरा और दलपतदेव के नाम पर यह राजधानी जगदलपुर कहलाई । दलपतदेव ने जगतु माहरा की ईष्ट देवी काछिनदेवी की पूजा अर्चना कर दशहरा प्रारंभ करने की अनुमति माँगने की परंपरा प्रारंभ की तब से अब तक प्रतिवर्ष बस्तर महाराजा के द्वारा दशहरा से पहले आश्विन अमावस्या को काछिन देवी की अनुमति से ही दशहरा प्रारंभ करने की प्रथा चली आ रही है।
जगदलपुर में पथरागुड़ा जाने वाले मार्ग में काछिनदेवी का मंदिर बना हुआ है। काछिन गादी रस्म में पनका जाति की कुंवारी कन्या में काछिन देवी आरूढ़ होती है। उस दिन वह बालिका दिन भर उपवास रखती है। उसे नये कपड़े और माला पहनाई