26/09/2024
एक बार एक पुलिस विभाग के बड़े पद पर आसीन महिला अधिकारी कुछ कवियों के साथ जापान गईं। कवियों का यह कार्यक्रम हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिये भारत सरकार की तरफ से था जिसके आयोजन में जापान के सरकारी विभागों (साहित्य से जुड़े) के कर्मचारी भी सहयोग कर रहे थे। सुविधा के लिये महिला अधिकारी जी का नाम मै किरन रख देता हूँ।
तो बात यह थी कि किरन जी को जापान में वहाँ के कुछ साहित्यकारों द्वारा और कुछ अन्य दोस्तों से हाइकु नामक एक विधा के बारे में पता चला। कार्यक्रम समाप्त होने के बाद उनकी दिल्ली वापसी हुई, परन्तु उनके दिमाग में हलचल थी हाइकु को लेकर।
बहुत ही महत्वपूर्ण नियम वह जान चुकीं थी वह था 5-7-5 का नियम। किरन जी ने जापान से दिल्ली तक के सफर में 200 से ज्यादा हाइकु लिखे और दिल्ली पहुँचने तक वह इसे एक किताब के रूप में प्रकाशित करवाने की योजना बना चुकीं थीं। परंतु यह सब करने से पहले उन्होंने फेसबुक पर अपने नाम के आगे “कवि“ लगाया और पोस्ट करने लगीं। उनकी हर पोस्ट पर सैकड़ो लाईक व कमेंट होते, देखकर उनका मन गद्गद् होता, वाह दीदी वाह! खूब वाहवाही हो रही थी।
उनके हाइकु जो लिखे गये थे वह सारे के सारे फोन (टैबलेट) के व्हाटशाप पर टाईप थे और वह घर आने के बाद महिनों तक फेसबुक पोस्ट और लिखने में मन लगाने के कारण संख्या 6 से 7 सौ तक कर चुकीं थी। अब उनको एक ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो हिंदी जानता हो और हिंदी टाईपिंग भी जानता हो। किरन जी ने एक लड़का जिससे वह लखनऊ में पहले किसी काव्य सम्मेलन में मिल चुकीं थीं और उसे यह काम दिया कि सारा हाइकु कम्प्यूटर के वर्ड फाईल में टाईप करना है और टाईप करते समय पहले से लिखें शब्दों में अगर कहीं मात्रा वगैरह गलत हो गई हो तो ठीक करना है। लड़के को यह सारी बात समझा दी गई और एक तारीख नियत की गई। लड़के से उन्होनें कहा कि तुम मुझे दीदी कह सकते हो मै तुम्हारी बड़ी बहन जैसी हूँ (किरन जी लगभग रिटायरमेंट के आसपास थी और लड़का 27 वर्ष का)। वह लड़के के लिये प्रेरणादयी ही थीं मन-पटल पर दीदी का प्रभाव था।
दीदी की दी गई जिम्मेदारी में कोई खोंट न रह जाये और सबसे बेहतर काम करके दिया जा सके इसलिए लड़के ने जिसका नाम था “देव“ बडीं मेहनत की और हाइकु के बारे ऑनलाईन स्रोतों से रिसर्च की, कई सारे लेख, ढेर सारे हाइकु, अनेको हाइकु अनुवाद पढ़े और पढ़ने के बाद उसे बहुत दुख हुआ, क्योकिं दीदी ने जो हाइकु लिखे थे वह सब हाइकु की कसौटी पर न तो खरे उतर रहे थे न ही उसके आसपास थें।
अगले दिन देव किरन दीदी के पास गया और नियमों की बात की और कहा कि हाइकु के शुरूआती एक आचार्य ने कहा है कि 5 हाइकु लिखने वाले को “कवि“ ओर 10 लिखने वाले को “महाकवि “ की उपाधि दी जा सकती है, परंतु आपने तो सैकड़ों की संख्या में लिखा है। दीदी बहुत खुश थीं फिर देव ने कहा कि दीदी मैं बहुत पढ़ने के बाद समझ सका हूँ उन आचार्य के बताये गये नियमों के अनुसार आपके सारे हाइकु, हाइकु हैं ही नहीं। वह चौक उठी उन्होने फेसबुक पर फालोंइंग और कमेंट दिखायें तब देव ने कहा कि आप बड़ी हैं, सम्मानित हैं उपर से पुलिस अफसर हैं आपको कौन नाराज करना चाहेगा, आखिर चाटुकारिता भी कोई चीज होती है। आपने मुझे अपना छोटा भाई कहा है तो भाई तो ऐसे ही होते हैं वह बड़ी बहन से सच ही कहेंगें।
उस दिन किरन जी ने पहली बार हाइकु के बारे में नियम जानने की कोशिश की और ऑनलाईन सर्च किया कई सारे लेख पढ़ डाले और उन्हें पता चल गया कि उन्होंने हाइकु लिखकर “साहित्यिक कचरा” बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अगले दिन किरन दीदी ने देव से कहा कि भाई! मैने अपनी हाइकु संकलन प्रकाशित करवाने की योजना स्थगित कर दी है, आगे जब काम होगा तो बताऊँगी, भाई कल से न आना।
किरन दीदी पुलिस विभाग में अधिकारी हैं (आज भी हैं) उनके पति और भी बड़े अधिकारी हैं, उनके बेटे अमरिका में डॉक्टर हैं जाहिर है पारिवारिक पहुँच होगी । उन्होंने कई लोगों से अपने हाइकु ठीक करवाने की कोशिश की जो कभी नहीं हुए।
वह फेसबुक पर तो थी हीं एक दिन उनके मन में आया कि सभी तो ऐसे ही लिखते हैं मैं भी ऐसे ही लिख रही हूँ इसमें गलत क्या है। उन्होने देव को फोन किया और कहा कि भाई मै अपना हाइकु संकलन प्रकाशित करवाने जा रही हूँ तुम्हें भी आना है मै तिथि बताऊँगी सब तय करके। देव ने बधाईयाँ दी और अपनी खुशी जाहिर की।
लखनऊ के एक प्रेस से किरन दीदी ने अपनी किताब की 300 प्रतियाँ छपवायीं जिसका सारा खर्च दीदी ने उठाया, एक सभागार कुछ हजार रूपयों में बुक किया गया। पुलिस और अन्य विभागों के परिचितों को पुस्तक विमोचन समारोह में आमंत्रित किया गया। दीदी कई बार नारी शक्ति के प्रतीक स्वरूप कवि सम्मेलनों में प्रेरणार्थ अतिथि के रूप में बुलाई जाती थीं तो कई सारे कवि लोगों से जान पहचान थी उन्हें भी बुलाया गया। आखिरकार पुस्तक का लोकार्पण हुआ और आये हुएं विद्वानों को जहाँ तक हो सका पुस्तक की प्रतियाँ बाँटी गयीं। इस प्रकार दीदी अब एक प्रकाशित साहित्कार हैं, वह एक पुस्तक की लेखक हैं। कई बार आपके आभामंडल और बडे आयाम के कारण बहुत सारे लोग जिनको आपशे कुछ कहना होता है, कह नहीं पाते।
दीदी की तरह बहुत सारे लोग जिनके बच्चें बड़े हो गयें है पति व्यस्त हैं, और अपनी वरिष्टता तथा कार्यानुभव का सम्मान पा रहे हैं वे खाली समय में कविता और हाइकु लिखने लगे हैं उनके पास कवि सम्मेलनों में जाने के लिये जेब में किराया और न कटने वाला वक्त है, वे सबकुछ करते हैं पढ़ते नहीं हैं। उनके न पढ़ने का नुकसान यह होता है कि उनके जीवन के दूसरे क्षेत्रों में प्राप्त उपलब्धियों और वरिष्टता का ध्यान रखकर उनका अनुसरण करने वाले लोग भी उनकी तरह, या उनसे भी खराब कविता या हाइकु लिखते हैं। जिससे एक तरह का “साहित्य भण्डार” जन्म लेता है उसे कहते हैं न कटने वाले वक्त के समय लिखा गया “कचरा साहित्य” । आप क्या लिखते हैं आप खुद तय किजिए।