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जयश्री
25/08/2025

जयश्री

जिस को दर्शन हो गए हे वही बोलेगा  बोल जय बाबा की
20/08/2025

जिस को दर्शन हो गए हे वही बोलेगा बोल जय बाबा की

2011 में पद्मनाभ स्वामी मंदिर के तहखाने के दरवाजे खुलते हैं और सोने जवाहरात की गिनती शुरू होती है.. जब गिनती शुरू होती ह...
19/08/2025

2011 में पद्मनाभ स्वामी मंदिर के तहखाने के दरवाजे खुलते हैं और सोने जवाहरात की गिनती शुरू होती है.. जब गिनती शुरू होती है तो दुनिया की आँखे फटी की फटी रह जाती है.. मन्दिर के मुख्य तहखाने का दरवाजा तो अब तक भी नहीं खुला है और इसे बंद रखने का ही फैसला लिया गया है। .. जो दरवाजे खुल पाये उसमें से बरामद किए गए सोने और आभूषणों की कीमत 1 लाख 32 करोड़ रुपये बताई गई है।.. एक अनुमान के मुताबिक मुख्य तहखाने में रखी गई आभूषणों की कीमत इनसे 10 गुना तक ज्यादा हो सकती है।
वर्तमान समय में दुनिया के सबसे अमीर लोगों की बात करे तो बिलगेट्स और जेफ बेजोस के बीच मुकाबला चलते रहता है.. पिछले साल की बात करे तो बिलगेट्स के पास 6 लाख करोड़ के आस पास संपत्ति थी और यही कोई बेजोस के पास भी।.. मने सिर्फ भारत के एक मंदिर पद्मनाभ स्वामी मंदिर ही इन दोनों के संपति की बराबरी कर सकता है।
अब थोड़ा सा यहां एक चीज और जोड़ लेते हैं.. टीपू सुल्तान.. हाँ वही जो बड़का स्वतंत्रता सेनानी योद्धा बनता घूमता है ने केरल और कर्नाटक के सैकड़ों मंदिर को लूट के अथाह संपति जमा की थी। जिसे ईस्ट इंडिया कम्पनी ने मार कर हरा कर सारा सोना और संपत्ति लूट लिया। इसे लूटने वाला रोथरचिल्ड भाउ का परिवार था। जो आज पूरी दुनिया के बैंकिंग सिस्टम को कंट्रोल करता है। बिलगेट्स को तो जान बूझ के सबसे अमीर का तमगा लगा कर पेश किया जाता है जबकि रोथरचिल्ड भाउ के परिवार के संपत्ति के मुकाबले में सौ बिलगेट्स भी समा जाए।

खैर छोड़िये... तनी दूसर तरफ चलते है..

भारत सोने की चिड़िया.. कैसे? भारत के पास कितने सोने के खान हैं?? अगर नहीं तो इतना सोना कहाँ से आया ? सोने की खान अफ्रीका में सबसे ज्यादा और वो भी घाना और माली में। तो सोना भारत कैसे आता था ??

प्राचीन व्यापार मार्ग की बात करें तो 'सिल्क रुट'(रेशम मार्ग) सबके जुबान पे आता है। लेकिन ये तो जमीनी मार्ग था जबकि सबसे ज्यादा व्यापार समुद्री मार्ग से होता था। यूरोप और मिडिल ईस्ट के साथ सारे व्यापार समुद्री मार्ग से होता था। और बड़े-बड़े विदेशी यात्री और विद्वान भी समुद्री मार्ग से ही भारत आते थे। और समुद्री मार्ग से भारत आते थे तो कालीकट,केरल ही क्यों जाते थे?? ऐसा क्या खास रहता था वहाँ ?
भारत में ईसाई आया तो केरल से ही हो कर.. इस्लाम आया तो केरल से ही हो कर .. क्यों ?

क्योंकि ये भारत के लिए व्यापार का केंद्र था.. और ये सारे बाहरी आक्रमणकारी धर्म का लबादा ओढ़े भारत आये.. और ये कोई धर्म का पताका लहराने थोड़े बल्कि भारत की वैभवता को लूटने के वास्ते आये। जितने भी अब भी अंतराष्ट्रीय बंदरगाह हैं वे कालीकट से ही नियंत्रित होते थे।
चलिये एक रुट बता ही देते हैं...
कालीकट से जहाजी बेड़े लोड होते थे फिर बेड़े ग्वादर,पाकिस्तान..सलालह(Salalah),ओमान.. अदेन (Aden),यमन के बंदरगाह में जाता था। फिर यहाँ से ऊँटों के काफिलों में लद के सामान दूसरे देशों में भेजा जाता था।
सलालह से ऊँटों में लद कर सामान मक्का जाता था .. फिर मक्का से फिलिस्तीन,जेरूश्लेम, पेटरा, तुर्की होते हुए यूरोप, भूमध्य सागर के रास्ते से।.. मक्का व्यापारियों के ठहरने का एक उत्तम स्थान था.. और विशेष इसलिए कि यहाँ ऊँटों को पानी पिलाया जाता था.. यहीं से ऊंट और व्यापारी रिचार्ज होते थे और आगे का सफर तय करते थे।.. मक्का से मिस्र होते हुए मोरोक्को और माली तक व्यापार होता था। एक तरह से देखा जाय तो मक्का व्यापार का हब था.. यहीं से यूरोप और अफ्रीका को सामान जाता था।
भूमध्य सागर से यूरोप में समुद्री मार्ग से व्यापार करने में दो परिवार आते थे जिनके जहाजी बेड़े भूमध्य सागर में दौड़ते थे.. एक पुर्तगाली गरासिया मेंडिस(Gracia Mendes) और दूसरा जर्मन यहूदी रोथरचिल्ड परिवार।
केरल से ग्वादर,सलालह,अदेन,सोकोर्टो इन बंदरगाहों पे कालीकट राजा का नियंत्रण रहता था.. मक्का में भी इनका नियंत्रण रहता था.. और इन सभी जगहों पे हिन्दू मन्दिर हुआ करते थे जहाँ हिन्दू व्यापारी आराम करते थे और पूजा भी। कई हिन्दू व्यापारियों के खुद के भी ऊँटों के कारवाँ होते थे जो सामानों की ढुलाई करते थे।

अब भारत से मिडिल ईस्ट और यूरोप जुड़ गए।
अब जरा फिर तनिक दूसर दिशा में चलते है..

दुनिया की बड़ी जानी मानी पत्रिका है फोर्ब्स.. ये विश्व के सबसे अमीर लोगों की लिस्ट निकालती है हर साल।.. इसने एक बार आल टाइम 25 रिचेस्ट लोगों की लिस्ट निकाली.. अब सोच सकते है कि इस लिस्ट में टॉप पे कौन होगा ? कोई यूरोपीयन गौरा ?? नहीं। टॉप मोस्ट रिचेस्ट शख्स बना अफ्रीकी देश माली का किंग मनसा मूसा!! जी मनसा मूसा। और आज माली दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक की गिनती में आता है। और मूसा 14 वीं शताब्दी का राजा था।
मूसा के समय पूरी दुनिया का 70% सोना अकेले माली कवर करता था। टिम्बकटू और गाओ सबसे विकसित शहर में से आते थे।मनसा मूसा दुनिया की नजर में तब आया जब सन 1324 ई में हज की यात्रा किया। जब वो हज की यात्रा में गया तो जहां-जहां से उसका काफिला पास हुआ वहाँ वहाँ के लोग उनकी वैभवता देख के अवाक रह गए। माली से मक्का की ये यात्रा एक साल में पूरी हुई। जहां जहां से गुजरते लोग उनके काफिला देखने को ही सामने जाते।
लोगों ने देखा कि मनसा मूसा के कारवां में 60 हज़ार लोग शामिल थे और इनमें 12 हज़ार तो केवल सुल्तान के निजी अनुचर थे. मनसा मूसा जिस घोड़े पर सवार थे, उससे आगे 500 लोगों का दस्ता चला करता था जिनके हाथ में सोने की छड़ी होती थी. मनसा मूसा के ये 500 संदेशवाहक बेहतरीन रेशम का लिबास पहना करते थे.
इनके अलावा इस कारवां में 80 ऊंटों का जत्था भी रहता था, जिस पर 136 किलो सोना लदा होता था. कहा जाता है कि मनसा मूसा इतने उदार थे कि वे जब मिस्र की राजधानी काहिरा से गुजरे तो वहां उन्होंने ग़रीबों को इतना दान दे दिया कि उस इलाके में बड़े पैमाने पर महंगाई बढ़ गई.
मनसा मूसा की इस यात्रा की वजह से उनके दौलत के क़िस्से यूरोपीय लोगों की कान तक पहुंचे. यूरोप से लोग सिर्फ़ ये देखने के लिए उनके पास आने लगे कि उनकी दौलत के बारे में जो कहा जा रहा है वो किस हद तक सच है.
मनसा मूसा की दौलत की जब पुष्टि हो गई तो उस वक्त के महत्वपूर्ण नक़्शे कैटलन एटलस में माली सल्तनत और उसके बादशाह का नाम शामिल किया गया.14वीं सदी के कैटलन एटलस में उस वक्त की उन तमाम जगहों का वर्णन है जो यूरोपीय लोगों को मालूम थी.

मनसा मूसा जो था वो बड़ा विजनरी राजा था। वो केवल धन दौलत ही नहीं बल्कि ज्ञान का भी भूखा इंसान था। वो मक्का शहर में जमकर सोने को व्यय किया। और वो व्यर्थ में ही सोना व्यय नहीं किया बल्कि उसके बदले उन्होंने ढेर सारे किताब खरीदे जो ज्योतिष शास्त्र, आयुर्वेद, गणित और विज्ञान से संबंधित थे।
अपने साथ वो इन क्षेत्रों के विद्वानों के साथ- साथ अनुवादक भी अपने साथ माली ले आया। वो जानता था कि जितना धन हम सोने से कमा पा रहे हैं उससे ज्यादा हम नॉलेज से कमायेंगे। इन विद्वानों और किताबों की मदद से माली अफ्रीका ही नहीं बल्कि विश्व के लिए ज्ञान का केंद्र बन के उभरा। बड़े बड़े लाइब्रेरी स्थापित हुए.. यूनिवर्सिटी बनी। इनके समय में माली विश्व के सबसे धनी देशों में से आता था। और किताबों की मदद से ही माली ने सोने से भी ज्यादा का व्यापार किया बल्कि करता ही रहा जब तक कि घाघ यूरोपीयन्स न आ गए। इन लोगों ने एक जीती जागती और फलरिश करते देश को लूट के गरीब बना दिया... जैसे भारत की विश्व की 35% की जीडीपी जाते जाते केवल 2% तक रह गई। माली के लीगों किताबों की रेगिस्तान के बालू में गाड़-गाड़ के संरक्षित करने का प्रयास किया,जबकि कई बड़े पुस्तकलाय जला दिए गए।

अब जरा सब को मिलाते हैं...

अरब में मोहम्मद के जन्म के पूर्व ही संस्कृत और मलयालम में रचित विज्ञान,गणित, ज्योतिष शास्त्र और आयुर्वेद का अरबी में अनुवाद होता रहा था .. ये अरबी अनुवाद रोमन साम्राज्य तक भी पहुँचा फिर वहाँ भी इसका अनुवाद हुआ। अब्बासी वंश के दूसरे खलीफा अल-मंसूर (770 ई) के दरबार में भारतीय ज्योतिषाचार्य के माध्यम से मोहम्मद इब्न इब्राहिम अल-फजरी ने भारतीय ज्योतिष को अरबी में अनुवाद किया। 600 ई में ही भारतीय गणितज्ञ विराहांक ने अरबी में भारतीय वैदिक गणित का अनुवाद कर रहे थे जिसे Liber-Abbaci में संकलित किया जा रहा था। इसी तरह अन्य ज्ञान भी अरबी में अनुवादित हो रहे थे। और ये अनुवादक कालीकट राजा के अधीन होते थे.. इन अनुवादों के बदले राजा को अनगिनत रॉयलिटी मिलती थी जो सोने में आदान प्रदान होता था। और इन सभी किताबों को मनसा मूसा ने भारी कीमत दे कर खरीदा था फिर अपने साथ माली ले गया था।(यूट्यूब में आप ढेरों डॉक्युमेंट्री देख सकते हैं इसके ऊपर). और जब मनसा मूसा कुछ अनुवादित किताबों के बदले सोने से भी ज्यादा व्यापार कर सकता था तो केरल राजा कितना कर सकता था अनुमान लगा लीजिये।
माली राजा सोने के बदले नमक खरीदता था.. और यूरोपीयन और मिडिल ईस्ट के व्यापारी सोने के बदले भारत से मसाले, चन्दन,नील आदि खरीदते थे।
मूसा के 9 वर्ष बाद जब इब्न बतूता हज के लिए मक्का पहुँचा तो उसने भारत के बारे में बड़ा सुना.. फिर वो वहाँ से जमीनी मार्ग से होते हुए दिल्ली पहुँचा... कुछ समय पश्चात वो करीब 1342 के आस पास कालीकट भी पहुँचा। और उसने हर गतिविधि और वैभवता को अपनी किताब में उकेरते भी गया।
1498 में कालीकट के तट पे पुर्तगाली नाविक वास्कोडिगामा आता है और बोलता है कि हमने भारत को खोज लिया!! बुड़बक कहीं के। साले लूटेरे।
ये तो हो गया हलेलुइया!!
इससे पहले .. जोल्हेलुइया का भी देख ले।
चेरामन पेरुमल का नाम तो सुने होंगे ? नहीं सुने तो बता देते हैं.. ये कालीकट के राजा हुए.. मोहम्मद के समय। इनके जैसा तब कोई शायद ही अमीर होगा। मोहम्मद के जिंदा रहते ही मने कि सन 629 ई में चेरामन जुमा मस्जिद,कोडुंगलुर में बन जाता है जो मक्का के बाद दूसरा होता है। मोहम्मद की मृत्यु 632 ई में होती है।
कहते है कि व्यापारियों के माध्यम से ही इन्हें मोहम्मद के इस्लाम के बारे में पता चलता है और वो उनसे मिलने मक्का को जाता है। जबकि कालीकट राजाओं के लिए मक्का प्रमुख व्यापारिक केंद्र था व वहाँ शिव मंदिर था जिसे कि अब काबा कहते हैं जिसे तिरपाल से ढंक के रखा जाता है। उस कबलीश्वरम मंदिर का मुख्य पुजारी मोहम्मद का चाचा रहता है जो मरते दम तक भी इस्लाम नहीं कबूलता है। और जब इन्हें मंदिर के संकट की चिंता होती है तो ये राजा पेरुमल के संदेश भिजवाते हैं और हस्तक्षेप करने की बात कहते हैं। राजा पेरुमल वहाँ जाता है और मोहम्मद से मिलता है। उससे इस्लाम के बारे में जानता है, काबा में स्थापित किये गए काले पत्थर के बारे में भी जानता है। अपने साथ ले गए अदरक के अचार भी सभी को चखाता है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि उन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया था। लेकिन हल्ला ये हुआ कि पेरुमल ने इस्माल स्वीकार कर लिया। और कबूतर के माध्यम से ये संदेश कालीकट भी पहुँचा दिया गया। जबकि राजा के दरबार से ऐसी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई इस खबर की।
कालीकट लौटने के दरमियां सलालह में पेरुमल बीमार पड़ जाते हैं और वहीं मर भी जाते हैं।(जैसे सिकन्दर मर जाता है न वापस लौटते हुए,बस वैसे ही) सलालह में उनके मकबरे के ऊपर बढ़िया मस्जिद भी बना है जो इस्लामिक सेंटर भी है और इसे इस तरह बयां किया जाता कि पहला हिन्दू राजा जो इस्लाम में दीक्षित हुआ। इसका नाम कनवर्जन के बाद 'ताजुद्दीन' हो जाता है जिसे खुद मोहम्मद देता है।
632 में मोहम्मद के मरने के बाद 643 ई में उनके वफादार मलिक बिन दीनार कालीकट पहुँचता है। उनके हाथ में राजा पेरुमल के द्वारा हस्तलिखित मलयालम पत्र होता है जिसमें कि वो मोहम्मद को कालीकट में मस्जिद बनाने का परमिशन देता है। लेकिन ये इस्लामिस्ट लोगों का झूठ है। जब राजा पेरुमल सलालह पहुँचता है तो उससे जबरदस्ती पत्र लिखवाया जाता है,फिर उसे मार दिया जाता है। या जब वे ये पत्र लिख देते हैं तो वे ग्लानि से बीमार पड़ जाते हैं फिर उसे मार दिया जाता है।

और भारत में, केरल के कोडुंगलुर में जब पहला मस्जिद बनता है तो उसका काज़ी यही मलिक बिन दीनार होता है।
और कोडुंगलुर ही ज्ञान का केंद्र होता है,कोडुंगलुर यूनिवर्सिटी से ही इतने सारे स्कॉलर निकलकर विश्वभर में फैलते है। अरबी अनुवाद और फिर उसको बेचना।
इसके पीछे-पीछे हलेलुइया सब आये और ये भी सोना लूटने के साथ साथ ज्ञान भी लूट के ले गए। और अब भी देखिये कि इनके अंग्रेजी किताब का विश्वभर में किस कदर तक बिकती है।

फिर भी हम साला भिखारी और इल्लिट्रेट। साभार गँवार ,देहाती,मूर्ख,मोरोन और पता नहीं क्या क्या।

खैर इतना बहुत हो गया।.. 😊
✍🏻गंगा महतो

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