24/09/2025
नवरात्रि के तीसरे दिन माँ दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा की जाती है।
प्राचीन काल में जब दैत्यों का अत्याचार बढ़ गया, तब महिषासुर नामक असुर ने तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान पाया। उस वरदान के बल पर वह अत्यंत शक्तिशाली हो गया और स्वर्गलोक पर चढ़ाई कर, देवताओं को परास्त कर दिया। देवता भयभीत होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास पहुँचे और अपने दुःख सुनाए।
तब त्रिमूर्ति का क्रोध एक साथ प्रकट हुआ और उस तेज से एक दिव्य नारी का अवतरण हुआ — वही थीं मां दुर्गा। माता का रूप अद्वितीय और तेजस्वी था। भगवान शंकर ने उन्हें त्रिशूल प्रदान किया, विष्णु ने चक्र दिया, इंद्र ने वज्र और घण्टा दिया, सूर्य ने अपना तेज दिया, और हिमालय ने उनका वाहन सिंह प्रदान किया।
मां ने जब महिषासुर से युद्ध के लिए प्रस्थान किया, तब उनके मस्तक पर एक अर्धचंद्र सुशोभित था, जो घंटे (घंट) के आकार का प्रतीत होता था। इसी कारण वे मां चंद्रघंटा कहलाईं।
युद्ध का नगाड़ा बज उठा, देवगण आकाश से पुष्प बरसाने लगे, और मां चंद्रघंटा सिंह पर आरूढ़ होकर रणभूमि में उतरीं। उनकी गर्जना और घंटे की ध्वनि से सम्पूर्ण आकाश गूंज उठा। महिषासुर और उसकी सेनाएँ भयभीत हो गईं।
मां ने दिव्य शस्त्रों से दैत्यों का संहार किया और अंत में महिषासुर का वध कर दिया। देवताओं ने जय-जयकार की और पुनः स्वर्गलोक का सुख-शांति लौटा।
जो साधक नवरात्रि के तृतीय दिन श्रद्धा भाव से मां चंद्रघंटा की पूजा करता है, वह भय, शत्रु और क्लेश से मुक्त होकर साहस और निर्भयता प्राप्त करता है। उनके घंटे की ध्वनि सभी नकारात्मक शक्तियों का नाश कर, भक्त के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का संचार करती है।
ऐसा कहा गया है कि व्रत कथा का पाठ पूजा के बाद अवश्य करना चाहिए, तभी व्रत पूर्ण होता है। मां चंद्रघंटा की कृपा से सभी कष्ट दूर होते हैं और साधक को विजय, शांति और कल्याण की प्राप्ति होती है।
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