
09/09/2025
आज हिमालय दिवस पर, जब हम समाचार पत्रों में चमकदार विज्ञापनों और भव्य सेमिनारों के माध्यम से "बचाव" का ढोंग रचते हैं, ऐसे में हिमालय की चेतावनी जैसे एक मूक संदेश के रूप में गूंज रही है। वह विशाल पर्वत श्रृंखला, जो सदियों से शांति और एकांत का प्रतीक रही है, अब मानवीय हस्तक्षेप से थक चुकी लगती है। बाढ़, भूस्खलन, ग्लेशियर पिघलना—ये सब उसकी चीख हैं, जो कह रही हैं: "मुझे तुम्हारी कृत्रिम प्रयासों की नहीं, बल्कि सच्ची शांति और प्रकृति के साथ सामंजस्य की जरूरत है। मुझे एक माह के गढ़वाल मंडल भ्रमण के दौरान हिमालय की सच्ची मित्र और शुभचिंतक मिली। जिसे आम लोग बहुत कम जानते हैं यह महिला 80 वर्ष से ज्यादा आयु की है। वह आज भी अपने मित्र और अपने ईश्वर हिमालय की रक्षा के लिए देवदार,बाज जैसे दुर्लभ वृक्षों का रोपण करती है। मेरे यात्रा के दौरान अचानक से मुझे उनके दर्शन का सौभाग्य मिला। आप सोच रहे होंगे इस महिला के बारे में इतना कुछ कह रहा हूं ।आखिर में यह महिला कौन है यह महिला नीति घाटी की रैनी गांव की निवासी है। हां वही रेनी गांव जिसमें आपदा का कहर टूटा था डैम परियोजना ध्वस्त हो गई थी । रैनी गांव का नाम सुनते ही आपके मस्तिष्क में अचानक से कुछ गुंजा होगा । रैनी गांव चिपको आंदोलन की जन्मदाता गौरा देवी का गांव है। गौरा देवी इसी रैनी गांव के रहने वाली थी और यह महिला बाली देवी है जो की गौरा देवी की बाल सखा है। उनका कहना है की हिमालय बचेगा तो सब कुछ बचेगा और वह इस आयु में भी गौरा देवी के साथ लिए हुए प्रण को निभा रही है और हम जैसे लोगों को बता रही है कि हिमालय बचाना क्यों जरूरी है।शायद हमें सोचना चाहिए कि असली संरक्षण क्या है। क्या यह केवल शोरगुल भरे आयोजनों से संभव है, या फिर व्यक्तिगत स्तर पर जंगल काटना रोकना, प्रदूषण कम करना और हिमालय के एकांत को सम्मान देना? हिमालय हमें न केवल पानी, हवा और जीवन देता है, बल्कि आध्यात्मिक शांति भी। आइए, आज के इस दिवस पर वादा करें कि हम उसके संदेश को सुनेंगे और सच्चे प्रयास करेंगे—बिना ढोंग के।
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