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कलियुग में केवल श्रीहरि का नाम ही कल्याण का परम साधन है ! इसको छोड़कर दूसरा कोई उपाय ही नहीं है !!जिसकी जिह्वा के नोक पर ...
11/10/2023

कलियुग में केवल श्रीहरि का नाम ही कल्याण का परम साधन है ! इसको छोड़कर दूसरा कोई उपाय ही नहीं है !!

जिसकी जिह्वा के नोक पर ‘हरि’ नाम के दो अक्षर बसते हैं, उसे गङ्गा, गया, सेतुबन्ध, काशी और पुष्कर की कोई आवश्यकता नहीं, अर्थात् उनकी यात्रा, स्नान आदिका फल भगवन्नाम से ही मिल जाता है। जिसने ‘हरि’ इन दो अक्षरों का उच्चारण कर लिया, उसने ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का अध्ययन कर लिया। जिसने ‘हरि’ ये दो अक्षर उच्चारण किये, उसने दक्षिणा के सहित अश्वमेध आदि यज्ञों के द्वारा यजन कर लिया। ‘हरि’ ये दो अक्षर मृत्यु के पश्चात् परलोक के मार्ग में प्रयाण करने वाले प्राणों के लिये पाथेय (मार्ग के लिये भोजन की सामग्री) हैं, संसाररूप रोगों के लिये सिद्ध औषध हैं और जीवन के दु:ख और क्लेशों के लिये परित्राण हैं।

“न गङ्गा न गया सेतुर्न काशी न च पुष्करम्।
जिह्वाग्रे वर्तते यस्य हरिरित्यक्षरद्वयम् ।।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेद: सामवेदो ह्यथर्वण:।
अधीतास्तेन येनोक्तं हरिरित्यक्षरद्वयम् ।।
अश्वमेधादिभिर्यज्ञैर्नरमेधै: सदक्षिणै:।
यजितं तेन येनोक्तं हरिरित्यक्षरद्वयम् ।।
प्राणप्रयाणपाथेयं संसारव्याधिभेषजम्।
दु:खक्लेशपरित्राणं हरिरित्यक्षरद्वयम् ।।“

25/09/2023
स्वास्तिक का महत्व। सनातन धर्म में स्वस्तिक चिह्न को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। स्वस्तिक का चिह्न चारों दिशाओं से मंग...
23/08/2023

स्वास्तिक का महत्व। सनातन धर्म में स्वस्तिक चिह्न को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। स्वस्तिक का चिह्न चारों दिशाओं से मंगल को आकर्षित करता है। स्वस्तिक के चिन्ह को सौभाग्य का सूचक माना गया है। स्वस्तिक चिन्ह को चंदन, कुमकुम या सिंदूर से बनाने पर ग्रह दोष दूर होतें है। साथ ही धन लाभ का योग बनता है। माना जाता है कि घर में स्वस्तिक का चिन्ह बनाने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। किसी भी बड़े अनुष्ठान या हवन से पहले स्वस्तिक चिह्न निश्चितरूप से बनाया जाता है। यह चिह्न न केवल शुभता का प्रतीक है, बल्कि इसे बनाने से घर में सकारात्मक उर्जा का संचार होता। मान्यताओं के अनुसार, घर के मुख्य द्वार पर स्वस्तिक चिह्न बनाने से व्यक्ति के जीवन में और परिवार सुख-समृद्धि बनी रहती है। इतना ही नहीं, स्वस्तिक चिह्न से सभी मांगलिक कार्य सिद्ध होते हैं। स्वास्तिक का अर्थ: स्वास्तिक शब्द को "सु" एवं "अस्ति" का मिश्रण योग माना जाता है। यहाँ "सु" का अर्थ है- 'शुभ' और "अस्ति" का 'होना'। संस्कृत व्याकरण के अनुसार "सु" एवं "अस्ति" को जब संयुक्त किया जाता है तो जो नया शब्द बनता है- वो है "स्वस्ति" अर्थात "शुभ हो", "कल्याण हो"। स्वास्तिक मंत्र : ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः। स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः। स्वस्ति नो ब्रिहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ "महान कीर्ति वाले इन्द्र हमारा कल्याण करो, विश्व के ज्ञानस्वरूप पूषादेव हमारा कल्याण करो। जिसका हथियार अटूट है ऐसे गरुड़ भगवान हमारा मंगल करो। बृहस्पति हमारा मंगल करो।"

01/08/2023

महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था और दुर्योधन एवं दुःशासन मारे जा चुके थे.

तथा, भीष्म पितामह बाणों की शैय्या पर उसी कुरुक्षेत्र के मैदान में सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे थे...!

तभी उनके कानों में शहद घोलती हुई एक सुपरिचित ध्वनि पड़ी...
प्रणाम पितामह...!!

ये परिचित ध्वनि सुनते ही भीष्म पितामह के सूख चुके होठों पर एक फीकी सी मुस्कान आ गई.

और, उन्होंने धीरे आवाज से कहा : आओ देवकी नंदन कृष्ण..!
स्वागत है तुम्हारा...!!
मैं बहुत समय से तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा था.

इस पर श्री कृष्ण बोले : क्या कहूँ पितामह...?
अब मैं ये भी नहीं पूछ सकता कि आप कैसे हैं ??

इस पर भीष्म पितामह थोड़ी देर चुप रहे..

और, कुछ क्षण बाद श्री कृष्ण से कहा : कुछ पूछूँ केशव ?
वास्तव में तुम काफी अच्छे समय पर आए हो..
संभवतः ये शरीर छोड़ने से पहले मेरे बहुत सारे भ्रम समाप्त हो जाएंगे.

इस पर श्री कृष्ण ने कहा : कहिए न पितामह...!

इस पर भीष्म पितामह ने कहा : एक बात बताओ कृष्ण..
तुम तो ईश्वर हो न ??

इस पर श्री कृष्ण ने उन्हें बीच में ही टोक कर कहा : नहीं पितामह...!
मैं ईश्वर नहीं बल्कि सिर्फ आपका पौत्र हूँ.

श्री कृष्ण की ये बातें सुनकर भीष्म पितामह अपने उस घोर पीड़ा में भी ठहाके लगाकर हँस पड़े.
और कहा : मैं अपने जीवन का खुद मूल्यांकन नहीं कर पाया.
मैं नहीं जानता कि मेरा ये जीवन अच्छा रहा या बुरा ?

परंतु, अब मैं इस धरा को छोड़कर जा रहा हूँ
इसीलिए, मैं तुमसे कुछ पूछना चाह रहा था..
अतः... अब तो मुझे छलना छोड़ दो.

इस पर श्री कृष्ण... भीष्म के निकट आकर उनका हाथ अपने हाथों में लेकर कहा..
पूछें न पितामह... आप क्या पूछना चाहते हैं ??

तब भीष्म ने कहा : एक बात बताओ कन्हैया...
इस युद्ध में जो हुआ वो ठीक था क्या ?

इस पर श्री कृष्ण ने प्रतिप्रश्न किया : किसकी ओर से पितामह ?
पांडवों की ओर से ...
या, कौरवों की ओर से ??

भीष्म ने कहा : कौरवों के कृत्य पर तो चर्चा का कोई अर्थ ही नहीं रहा कन्हैया..
लेकिन, पांडवों की ओर से जो हुआ क्या वो सही था ?
आचार्य द्रोण का वध, दुर्योधन के जंघा के नीचे प्रहार , दुःशासन का छाती का चीरा जाना, जयद्रथ के साथ हुआ छल, निहत्थे कर्ण का वध आदि... उचित था क्या ??

इस पर श्री कृष्ण ने कहा : इसका उत्तर मैं कैसे दे सकता हूँ पितामह..
इसका उत्तर तो उन्हें देना चाहिए जिन्होंने ऐसा किया है.
उत्तर दे दुर्योधन का वध करने वाले भीम और उत्तर दे कर्ण एवं जयद्रथ का वध करने वाले अर्जुन.

इस पर भीष्म ने कहा : अभी भी छलना नहीं छोड़ोगे कृष्ण ?
अरे, विश्व भले कहता रहे कि ये महाभारत भीम और अर्जुन ने जीता है..
लेकिन, मैं जानता हूँ कन्हैया कि... ये तुम्हारी और सिर्फ तुम्हारी विजय है.

इसीलिए, इसका उत्तर तो मैं तुमसे ही पूछूंगा कन्हैया.

भीष्म पितामह के इतना कहते ही श्री कृष्ण थोड़ा गंभीर हो गए..
और कहा : तो सुनिए पितामह..
कुछ बुरा नहीं हुआ.. न ही कुछ अनैतिक हुआ.
वही हुआ जो होना चाहिए था.

इस पर भीष्म ने कहा : यह तुम कह रहे हो केशव ?
मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार कृष्ण कह रहा है ??
ये छल तो किसी भी युग में हमारे सनातन संस्कारों का अंग नहीं रहा ?
फिर, ये उचित कैसे हुआ ???

तब श्री कृष्ण ने कहा : इतिहास से शिक्षा ली जाती है पितामह..
लेकिन, निर्णय वर्तमान की परिस्थितियों के अनुसार लिया जाता है.
हर युग अपने तर्कों और आवश्यकता के अनुसार अपना नायक चुनता है.

भगवान राम में भाग्य में त्रेतायुग आया था जबकि मेरे भाग्य में द्वापर आया.

इसीलिए, हमदोनो का निर्णय एक सा नहीं हो सकता न पितामह...!

इस पर भीष्म ने कहा : मैं कुछ समझ नहीं पाया केशव ?

तब श्री कृष्ण ने उन्हें समझाते हुए कहा : राम और कृष्ण की परिस्थितियों में अंतर है पितामह..

राम त्रेतायुग के नायक थे.

राम के युग में खलनायक भी रावण जैसा शिवभक्त होता था.
तब रावण जैसी नकारात्मक शक्ति के घर में भी विभीषण जैसे संत होते थे.
तब बाली जैसे नकारात्मक लोगों की पत्नियां भी तारा जैसी विदुषी और अंगद जैसे सज्जन पुत्र होते थे.
उस युग में तो खलनायक भी धर्म का ज्ञान रखता था.
इसीलिए, राम ने उनके साथ कहीं छल नहीं किया...!

लेकिन, मेरे युग के भाग्य में कंस, दुर्योधन, दुःशासन, कर्ण, जयद्रथ जैसे घोर पापी आये...
इसीलिए, उनकी समाप्ति के लिए हर छल उचित था पितामह..!

क्योंकि, पाप का अंत आवश्यक है पितामह... चाहे वो जिस भी विधि से हो.

इस पर पितामह ने फिर प्रश्न किया :
तो क्या.. तुम्हारे इन निर्णयों से एक गलत परंपरा का आरंभ नहीं हो जायेगा केशव ?
क्या भविष्य तुम्हारे इन छलों का अनुसरण नहीं करेगा ???
और, यदि करेगा तो क्या वो उचित होगा ???

इस पर श्री कृष्ण कहते हैं : कलयुग में तो और भी ज्यादा नकारात्मकता आ रही है पितामह...!
इसीलिए, कलयुग में तो इतने से भी काम नहीं चलेगा..
अब मनुष्य को कृष्ण से भी अधिक कठोर होना होगा.
क्योंकि, जब क्रूर और अनैतिक शक्तियाँ धर्म के समूल नाश करने हेतु आक्रमण कर रही हो तो उस समय नैतिकता अर्थहीन हो जाती है पितामह.

और, उस समय जरूरी हो जाती है विजय और केवल विजय.

इस पर पितामह ने पूछा : क्या वास्तव में धर्म का नाश हो सकता है केशव ?

इस पर कृष्ण ने कहा : सबकुछ ईश्वर के भरोसे छोड़कर बैठना मूर्खता होती है पितामह.
क्योंकि, ईश्वर खुद से कुछ नहीं करते.. बल्कि, वे सिर्फ राह दिखाते हैं.
आप खुद मुझे भी ईश्वर ही कहते हैं न..
तो, मैने ही इस युद्ध में कुछ किया क्या ??
सबकुछ तो पांडवों को ही करना पड़ा न ???

श्रीकृष्ण के इस जबाब को सुनकर भीष्म संतुष्ट दिखने लगे..
और, धीरे धीरे उनकी आंखें बंद होने लगी.

परन्तु कुरुक्षेत्र की उस अंधेरी और भयावह रात्रि में जीवन का मूलमंत्र मिल चुका था कि...

जब क्रूर और अनैतिक शक्तियाँ धर्म के समूल नाश हेतु चारों तरफ से आक्रमण कर रही हो तो उस समय नैतिकता का पाठ आत्मघाती होता है.

कुरुक्षेत्र के मैदान में पितामह भीष्म और भगवान श्रीकृष्ण के बीच का ये संवाद ही हर उतावले एवं अत्यधिक सुचिता पसंद हिनूओं का जबाब है..

कि, जब सामने से चादर और फादर वाले वामपंथियों के सहयोग से इस देश की सभ्यता-संस्कृति और हिनू सनातन धर्म को निगल जाने को आमादा हों तो...
ऐसे में नैतिकता और सुचिता का पाठ आत्मघाती है.

क्योंकि, आपके पास विजय के अतिरिक्त दूसरा और कोई चॉइस ही नहीं है.

इसीलिए, चाहे वो moneyपुर हो, चाहे काली स्थान, चाहे वजीफा हो या मुफ्त रासन सब कुछ जायज है... या फिर, अन्य पार्टियों को तोड़कर खुद में मिलाना, किसी पसमांदा को पार्टी का उपाध्यक्ष ही बनाना क्यों न हो.
कुछ भी अनुचित अथवा अनैतिक नहीं है.

क्योंकि, हमारा अंतिम लक्ष्य विजय होना चाहिए... चाहे वो जैसे भी हो..!

और, इसका कारण बिल्कुल स्पष्ट है कि ...
जब सामने से अनैतिक और क्रूर शक्तियाँ धर्म के विनाश हेतु चारों तरफ से हर तरह का जुगत लगाकर हमला कर रही हो तो...
ऐसी स्थिति में नैतिकता और सुचिता का पाठ मूर्खतापूर्ण एवं आत्मघाती होता है.

जय श्री कृष्ण...!!
जय महाकाल...!!!

नोट : श्री कृष्ण और भीष्म के संवाद का ये प्रसंग जबाब है उनलोगों को भी जिनका कहना होता है कि मंदिर तो बड़के कोठा के आदेश से बना है.

ये बिल्कुल वैसा ही है कि बेशक प्रत्यक्ष रूप में महाभारत तो जीता था भीम और अर्जुन ने ही...!
लेकिन, भीष्म पितामह ये बात अच्छी तरह जानते थे कि महाभारत की जीत किसी भीम या अर्जुन की जीत नहीं बल्कि ये सिर्फ और सिर्फ श्री कृष्ण की विजय है...
क्योंकि, श्री कृष्ण की अनुपस्थिति में पांडवों का जीत पाना असंभव था.

 #माँ_भवानी_का_मंन्दीर .....शेर देते है पहरा | जवाई राजस्थान के माँ भवानी मंन्दीर की सीढीयो पे आप को तीस तक की संख्या मे...
15/06/2023

#माँ_भवानी_का_मंन्दीर .....शेर देते है पहरा | जवाई राजस्थान के माँ भवानी मंन्दीर की सीढीयो पे आप को तीस तक की संख्या मे शेर दिखाई दे जायेगे जैसे ही पुजारी आता है शेर सीढीयो से हट जाते है|कभी किसी मनुष्य पे हमला नही करते सिर्फ 160 साल पहले ऐक अटैक हुआ था |वाहा तालाबो मे मगर मच्छ रहते है आज तक के ईतीहास मे ऐक भी हमला ईनसानो पे नही हुआ आदमी आता देख पानी मे चले जाते है महिलाये खेतो मे काम करती रहती है शेर पास से गुजर जाता है ऐक दूसरे को सम्मान देते है | सनातन सत्य है |सनातन धर्म के रुप मे प्रमात्मा का प्रसाद है |
जय मां भद्रकाली माता की जय

गंग सकल मुद मंगल मूला | सब सुख करनि हरनि सब सूला”हमारी एडमिन टीम की ओर से श्रीगंगा-दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएं !“नमामि ग...
30/05/2023

गंग सकल मुद मंगल मूला | सब सुख करनि हरनि सब सूला”

हमारी एडमिन टीम की ओर से
श्रीगंगा-दशहरा की
हार्दिक शुभकामनाएं !

“नमामि गंगे तव पादपंकजं सुरासुरैर्वन्दितदिव्यरूपम् ।
भुक्तिं च मुक्तिं च ददासि नित्यं
भावानुसारेण सदा नराणाम् ।।“

(हे मातु गंगे ! आप, मनुष्यों को उनके भावानुसार भुक्ति और मुक्ति प्रदान करती हैं | मैं, देवताओं और राक्षसों से वन्दित आपके दिव्य चरण कमलों को नमस्कार करता हूँ) |

गंगाजी देवनदी हैं, वे मनुष्यमात्र के कल्याण के लिए धरती पर आईं, धरती पर इनका अवतरण ज्येष्ठ शुक्लपक्ष की दशमी को हुआ | अत: यह तिथि उनके नाम पर गंगा दशहरा के नाम से प्रसिद्ध हुई |

(कल्याण-गंगा अंक)

 #हमारी_अटूट_सांस्कृतिक_विरासत66 मीटर ऊंचे ग्रेनाइट से बने इस मंदिर के अविश्वसनीय शिखर को देखिये। शिखर पर रखे पत्थर का व...
20/05/2023

#हमारी_अटूट_सांस्कृतिक_विरासत
66 मीटर ऊंचे ग्रेनाइट से बने इस मंदिर के अविश्वसनीय शिखर को देखिये। शिखर पर रखे पत्थर का वजन 80 टन है ।
अब आप कल्पना कीजिये क्या दुनियाँ भर के आधुनिक वास्तुकारों के लिए यह कर पाना सम्भव है ?
यह प्राचीन भारत के अद्भुत इंजीनियरिंग चमत्कारों में से एक है ।
(बृहदीश्वरा मंदिर, तमिलनाडु)

हम इसलिए ताजमहल के पीछे भागते हैं क्योंकि हमने सिर्फ वामपंथी लेख पढ़ें हैं और खुद के इतिहास से अनभिज्ञ हैं।

 #सनातन_इंजीनियरिंग :-वो कहेंगे सुई भी नही बनती थी भारत मे तो ये कौन बना गया? #गीज़ा और  #पीसा के सामने सेल्फी लेना फैशन...
13/05/2023

#सनातन_इंजीनियरिंग :-
वो कहेंगे सुई भी नही बनती थी भारत मे तो ये कौन बना गया?
#गीज़ा और #पीसा के सामने सेल्फी लेना फैशनेबल लगता है लेकिन अपने ही मंदिरों में जाना तो दूर अधिकांश भारतीय उसके निर्माण के अद्भुत आर्किटेक्चर के बारे में भी नहीं जानते ।
भारतीय स्थापत्य का स्वर्णयुग... क्या फिर से नहीं लिखा जाना चाहिये?????? किस हद की धूर्तता का परिचय दिया है, वामपंथी और कांगी इतिहासकारों ने।

#सुचिन्द्रम_मंदिर #कन्याकुमारी, #तमिलनाडु

9वीं शताब्दी में बने इस मन्दिर में 1 लाख मूर्तियों की नक्काशी की गयी है। इसके पिलर्स म्यूजिकल पिलर्स हैं जो संगीत के अलग-अलग सुरों को उतपन्न करते हैं ।

#है_ना_अद्वितीय_अद्भुत..... #आइये_इसे_प्रसिद्ध_करें🚩🚩

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136118

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