19/05/2025
♈ भारत वर्ष में 24 अग्नि ( मई ) की महिमा ♈
आदरणीय धर्म प्रेमियों 🙏जय वाल्मीकि 🙏कहते हैं जिस में सच दया सहनशीलता ईमानदारी और पाखंडवाद के विरुद्ध शुद्ध विचार हो वास्तव में वह व्यक्ति ही पूजनीय और सत्कार के योग्य होते हैं ।
ऐसे ही सत्कार के योग्य हैं प्रथम आदि धर्म गुरु परम पूज्य प्रभु रत्नाकर जी महाराज ।
रत्नाकर भाव रत्नों का समुन्दर। जब जब समुन्दर की गहराई में डुबकी लगाई जाएगी तब तब कीमती रत्न हाथ लगते रहेंगे।
इस तरह सच की खोज में जैसे - जैसे व्यक्ति ज्ञान वान और विवेक शील बनता जाएंगा। सच्चाई , हकीकत के नजदीक होता जायेगा । प्रभु रत्नाकर जी महाराज का जीवन भी उस समुन्दर की तरह है जिनके बारे में जितना जानोगे कीमती रत्न हाथ लगते रहेंगे ।
भारत वर्ष की धरती पर जब छूआ छात चरम सीमा पर थी आदि देश ( भारत ) में आदि वासियों को जब नेतिक शिक्षा के अधिकारों से वंचित कर उन पर जबरी " मनु स्मृति " द्वारा मानवीय अधिकारों से दूर कर वर्ण व्यवस्था अनुसार 5वें वर्ण यानी कि सबसे निचले स्तर पर मानकर समाजिक , आर्थिक , राजनीतिक स्तर पर मनोबल गिरा कर जीने को मजबूर किया । जब अछूतों को मंदिरों में प्रवेश तो दूर मंदिरों के नजदीक भी नहीं आने दिया जाता था ऐसे घोर अन्धकार में पूज्य प्रभु रत्नाकर जी महाराज द्वारा अछूतों को सम्मान से जीवन यापन करने के लिए प्रेरित कर सन् 1964 में निराला धर्म , आदि धर्म ( वाल्मीकि धर्म ) प्रदान किया । आपने आदि धर्म ( वाल्मीकि धर्म ) के उत्थान के लिए दिन न देखा रात न देखी । आपने जीवन में सभी सुख सुविधाएं को छोड़कर अपना सारा जीवन राष्ट्र को निस्वार्थ अर्पण कर दिया।
जब आपने धर्म हीन अछूत , शूद्र , जनता को धर्म प्रदान करने के लिए प्राचीन आदि धर्म ( वाल्मीकि धर्म ) में सबको संगठित करने के लिए 24 अग्नि ( मई ) 1964 को " वाल्मीकि धर्म समाज " की स्थापना पंजाब प्रदेश के प्रसिद्ध शहर लुधियाना में की , तब आप जी की आयु 20 वर्ष 1 मास 18 दिन के थे।
सदियों से ब्राह्मणों द्वारा भगवान वाल्मीकि जी ओर रक्ष संस्कृति के खिलाफ कुप्रचार करके अछूतों , शूद्रों को नीचा दिखाने का प्रयास जारी हैं । आर्य लोग सतयुग , त्रेता , द्वापर युग से आज तक असुर संस्कृति को छल - कपट करते हुए असुर संस्कृति को खत्म करने का प्रयास करते आ रहे हैं लेकिन आप ने दिव्य ज्ञान द्वारा मृत हूई सभ्यता को ज्ञान रूपी अमृत पिला कर सुरजीत किया। और प्रभु रत्नाकर जी महाराज द्वारा ----- अछूत , शूद्र , असुर , अनार्य , भील , द्राविड़ , दैत्य , दानव , चंडाल , निशाचर , राक्षस आदि नामों के शुद्ध अर्थ बताकर भारत वर्ष में ही नहीं विदेशों में भी घर घर सुप्रचार किया ।
आप द्वारा रचित अनमोल रचनाएं
पावन वाल्मीकि सार - शब्द
क़ौमी नमस्कार -- जय वाल्मीकि - हर हर वाल्मीकि
मूल मंत्र ---- " आदि वाल्मीकये नमो नम : "
देनिक नित्यनेम
12 मास की आदि वाणी
राम क्या है ? ?
पोल प्रकाश
पाणि ग्रहण विधि
symbol of God ( V ) पावन सत्य चिन्ह
आदि रचनाएं की और शिक्षा - दीक्षा देकर राष्ट्र निर्माण करने के लिए वाल्मीकिन समाज को प्रेरित किया ।
आओ सभी मिलकर प्रभु रत्नाकर जी महाराज द्वारा दी हुई महान देन के 62वे स्थापना दिवस के रूप में भावाआधस की और से डा. अम्बेडकर भवन जालंधर बाईपास चौंक 24 अग्नि अक्षय वार सुबह 10 : 34 सत्संग में पहुंच कर पुण्य के भागी बने । धन्यवाद
जय वाल्मीकि जय रत्नाकर
भारतीय वाल्मीकि आदि धर्म समाज ( रजि )
राक्षस दल
✍️ -------- रिंकू निशाचर फगवाड़ा पंजाब
fans