
21/07/2025
21 जुलाई 2025 को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। यह त्यागपत्र एक औपचारिक और सम्मानजनक भाषा में लिखा गया है, परंतु इसके पीछे कई असहज प्रश्न भी छिपे हैं, जिनमें से एक सबसे बड़ा प्रश्न राष्ट्रपति की भूमिका और संवैधानिक जवाबदेही को लेकर है।
राष्ट्रपति, जो संविधान के रक्षक माने जाते हैं, क्या वे वास्तव में निष्पक्ष और स्वतंत्र भूमिका निभा पा रहे हैं? धनखड़ जी के पत्र में राष्ट्रपति के लिए "soothing wonderful working relationship" जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया, जो यह संकेत देते हैं कि कार्यपालिका और राष्ट्रपति भवन के बीच एक ऐसी निकटता बन गई थी जो संतुलन की भावना को कमज़ोर करती है। यह लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है क्योंकि राष्ट्रपति को सभी संवैधानिक संस्थाओं के बीच निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए।
यह भी प्रश्न उठता है कि क्या राष्ट्रपति ने धनखड़ जी की स्वास्थ्य स्थिति को देखते हुए उनके कार्यभार को कम करने की कोई पहल की? या वे मात्र एक औपचारिक हस्ताक्षरकर्ता बनकर रह गईं? यदि एक संवैधानिक पदाधिकारी को अस्वस्थता में भी इस्तीफे की नौबत आ जाती है, तो यह दर्शाता है कि राष्ट्रपति कार्यालय संवेदनशीलता की अपेक्षा केवल प्रशासनिक प्रक्रिया का पालन कर रहा है।
भारत के लोकतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक है कि राष्ट्रपति केवल सरकार की सिफारिशों पर हस्ताक्षर करने वाली संस्था न बनें, बल्कि स्वतंत्र सोच और विवेक का परिचय देते हुए सभी पदाधिकारियों के कल्याण और संतुलन की दिशा में सक्रिय भूमिका निभाएं।