Bir Pipli

Bir Pipli महाभारत भूमि कुरुक्षेत्र में बीड़ पिपली ग्राम रन्तुक यक्ष स्थली व् सरस्वती नदी के किनारे पर स्थित है।

Chitta Mandir, Bir Pipli, Kurukshetra Bir Pipli
04/02/2025

Chitta Mandir, Bir Pipli, Kurukshetra
Bir Pipli

Chitta Mandir, Bir Pipli, Kurukshetra Bir Pipli
27/11/2024

Chitta Mandir, Bir Pipli, Kurukshetra
Bir Pipli

29/10/2024

गीता अध्याय-3 श्लोक-2 / Gita Chapter-3 Verse-2
प्रसंग-

इस प्रकार अर्जुन के पूछने पर भगवान् उनका निश्चित कर्तव्य भक्तिप्रधान कर्मयोग बतलाने के उद्देश्य से पहले उनके प्रश्न का उत्तर देते हुए यह दिखलाते हैं कि मेरे वचन 'व्यामिश्र' अर्थात् मिले हुए नहीं हैं वरं सर्वथा स्पष्ट और अलग-अलग हैं –

व्यामिश्रेवेण वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव मे ।
तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम् ।।2।।

आप मिले हुए से वचनों से मेरी बुद्धि को मानो मोहित कर रहे हैं। इसलिये उस एक बात को निश्चित करके कहिये जिससे मैं कल्याण को प्राप्त हो जाऊँ ।।2।।

29/10/2024

गीता अध्याय-3 श्लोक-3 / Gita Chapter-3 Verse-3
प्रसंग-

पूर्व श्लोक में भगवान् ने जो यह बात कही है कि सांख्यनिष्ठा ज्ञान योग के साधन से होती है और योगनिष्ठा कर्मयोग के साधन से होती है, उसी बात को सिद्ध करने के लिये अब यह दिखलाते है कि कर्तव्य कर्मो का स्वरूप-त्याग किसी भी निष्ठा का हेतु नहीं है-

लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ ।
ज्ञानयोगेन सांख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम् ।।3।।

श्रीभगवान् बोले-

हे निष्पाप ! इस लोक में दो प्रकार की निष्ठा मेरे द्वारा पहले वर्णन की गयी है। उनमें से सांख्य योगियों की निष्ठा तो ज्ञान योग से और योगियों की निष्ठा कर्मयोग से होती है ।।3।।

29/10/2024

दशाश्वमेध तीर्थ, सालवन, करनाल, कुरुक्षेत्र तीर्थ ❤❤🙏🙏

29/10/2024

ब्रह्म तीर्थ, सावंत ग्राम, करनाल, कुरुक्षेत्र तीर्थ ❤❤🙏🙏

29/10/2024
29/10/2024

24/10/2024

गीता अध्याय-2 श्लोक-64 / Gita Chapter-2 Verse-64

रागद्वेषवियुक्तैस्तु विषयानिन्द्रियैश्चरन् ।
आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति ।।64।।

परंतु अपने अधीन किये हुए अन्त:करणवाला साधक अपने वश में की हुई, राग द्वेष से रहित इन्द्रियों द्वारा विषयों में विचरण करता हुआ अन्त:करण की प्रसन्नता को प्राप्त होता है ।।64।।

24/10/2024

गीता अध्याय-2 श्लोक-65 / Gita Chapter-2 Verse-65
प्रसंग-

इस प्रकार मन और इन्द्रियों को वश में करके अनासक्त भाव से इन्द्रियों द्वारा व्यवहार करने वाले साधक को सुख शान्ति और स्थितप्रज्ञ-अवस्था प्राप्त होने की बात कहकर अब दो श्लोकों द्वारा इससे विपरीत जिसके मन-इन्द्रिय जीते हुए नहीं हैं, ऐसे विषयासक्त मनुष्य में सुख शान्ति का अभाव दिखलाकर विषयों के संग से उसकी बुद्धि के विचलित हो जाने का प्रकार बतलाते हैं-

प्रसादे सर्वदु:खानां हानिरस्योपजायते ।
प्रसन्नचेतसो ह्राशु बुद्धि: पर्यवतिष्ठते ।।65।।

अन्त:करण की प्रसन्नता होने पर इसके सम्पूर्ण दु:खों का अभाव हो जाता है और उस प्रसन्न चित्त वाले कर्मयोगी की बुद्धि शीघ्र ही सब ओर से हटकर एक परमात्मा में ही भलीभाँति स्थिर हो जाती है ।।65।।

24/10/2024

कायशोधन तीर्थ, कसूहन ग्राम, जीन्द, कुरुक्षेत्र तीर्थ ❤❤🙏🙏

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Kurukshetra
136131

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