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RNI No : HARBIL/2020/85694

25/11/2025

गीता जयंती पर मोदी जी के आगमन पर सजा कुरुक्षेत्र का रात्री व्यू

गीता स्थली ज्योतिसर (कुरुक्षेत्र) में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा पवित्र शंख पंचजन्य पर आधारित पंचज...
25/11/2025

गीता स्थली ज्योतिसर (कुरुक्षेत्र) में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा पवित्र शंख पंचजन्य पर आधारित पंचजन्य स्मारक का उद्घाटन एवं अनुभव केन्द्र का अवलोकन कर हम सभी को गौरवान्वित किया है।

महाभारत के युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने न्याय और धर्म के साथ खड़े होकर दिव्य पंचजन्य शंख से ही शंखनाद किया था। श्रीमद्भगवद् गीता के 18 श्लोकों से अंकित यह पंचजन्य भारत के सनातन संदेश धर्म और दिव्य ज्ञान की याद दिलाता है।

25/11/2025

PM Narinder Modi Celebrate the Maha Aarti in International Geeta Jyanti mahotsav Kurukshetra

25/11/2025
25/11/2025

प्रधानमंत्री नरिंन्द्र मोदी ने ब्राह्मसरोवर पर की महा आरती

25/11/2025

प्रधानमंत्री मोदी के अयोध्या में राममंदिर का कार्य सम्पूर्ण होने पर रामधवज फहराने के कार्यक्रम Rajnitik Galiyara News 24x7 के साथ

500 साल का इंतजार आखिरकार एक ऐसे पल में बदल गया है, जिसे हर हिंदू अपने जीवन भर याद रखेगा। मंदिर की चोटी पर लहराता यह भगव...
25/11/2025

500 साल का इंतजार आखिरकार एक ऐसे पल में बदल गया है, जिसे हर हिंदू अपने जीवन भर याद रखेगा। मंदिर की चोटी पर लहराता यह भगवा ध्वज सिर्फ कपड़े का टुकड़ा नहीं, बल्कि पूरे हिंदू समाज की आस्था, संघर्ष और गर्व का प्रतीक है। यह ध्वज बताता है कि जब धर्म, संस्कृति और परंपरा को बचाने का सवाल आता है, तो करोड़ों लोगों की भावना एक साथ खड़ी हो जाती है।

ध्वजा का हमेशा आरोहण ही होता है। बिना आरोहण के ध्वज स्वयं चलकर दण्ड पर नहीं पहुंच जाएगा।

◆ वाल्मीकि रामायण में तो स्पष्ट ही यन्त्र के द्वारा इन्द्र के ध्वज के आरोहण का वर्णन है।
उत्थाप्यमानः शक्रस्य यन्त्रध्वज इवोच्छ्रितः ॥
– अयोध्या कांड, 78वां सर्ग, 9वां श्लोक

उत्थाप्यमानः का अर्थ ही ध्वज का आरोहण करना है, उठाकर फहराना है।

इसकी टीका में तो रस्सी के माध्यम से यन्त्र द्वारा बांधकर ध्वजारोहण का वर्णन है। "शक्रस्य यन्त्रबद्धो ध्वजो यन्त्रध्वजः रज्जु युक्तो ध्वज इव"

इसी इन्द्र ध्वज की तरह तो आज आरोहण किया है इतना दिव्य, यन्त्र भी कितना सुंदर था जिससे गरुड़ जी की भांति उड़ता हुआ ध्वज अपने दण्ड पर जाकर विराजमान हो गया। क्या ही रोमहर्षक दृश्य था। इंद्रलोक सा सुरम्य ऐसा पावन दृश्य गत शताब्दियों में भी करोड़ों हिंदुओं को नसीब न हो सका है।

रामायण से लेकर पुराण, संहिता, आगम सभी जगह ध्वजारोहण ही आया है,

◆ अग्निपुराण के 61वें अध्याय का नाम ही "आग्नेये ध्वजारोहणं" अध्याय है। इसमें ध्वजारोहण की पूरी विधि का वर्णन है। इसी विधि से अयोध्या में ध्वजारोहण हुआ है।

किसी ने कहा प्राण प्रतिष्ठा नहीं हुई, कैसे नहीं हुई? कुछ भी मतलब! ध्यान से सुनिए वीडियो में ही स्पष्टतः प्राण प्रतिष्ठा के ही मंत्र गाये जा रहे हैं ध्वजारोहण के समय, जैसे ही ध्वज दण्ड पर टिकता है तुरन्त, "मनोजूति०" मंत्र गुंजायमान हो गया। यह प्राण प्रतिष्ठा का मंत्र है, वहां इतने सैकड़ों विद्वान ब्राह्मण आचार्य पूजा करा रहे हैं उन्हें फेसबुकिये ज्ञान सिखा रहे हैं प्रतिष्ठा का!

सब जगह ध्वजारोहण कहा है मंदिर पर,

◆ पुरुषोत्तम संहिता,
"ध्वजारोहण पूर्वेद्युरंकुरार्पण माचरेत्.."

◆ परमपुरुषसंहिता,
"ध्वजारोहण काले गरुड प्रसाद महिमा थ्वजारोहण कालेतु वैनतेय निवेदितं।।"

◆ क्रिया कैरव चन्द्रिका
"तदन्ते ध्वजारोहण पूर्वकं उत्सवं कारयेत्।"

◆ काश्यपज्ञानकाण्डः
"ध्वजःध्वजपट एषु एकाहं विना तदुत्सवाहानि त्रिगुणीकृत्य ध्वजारोहण कुर्यात् ।"

◆ विश्वामित्र संहिता
"दिने ध्वजारोहणं स्यादष्टाविंशदिनेऽथवा ।"

◆ भृगु संहिता
"न ध्वजारोहणं कुर्यात्त्षहादौतु विशेषतः।"

◆ कामिकागम
"ध्वजारोहण पूर्वं स्यादुत्सवे त्रिगुणे दिने ।।"

आदि आदि

सभी जगह ध्वजारोहण कहा है, पता नहीं किसे फितूर सूझा कि मंदिर पर ध्वजारोहण नहीं होता। यह सब ऋषि क्या व्यर्थ इतने पृष्ठ भर दिए हैं शास्त्रों में ध्वजारोहण पर ? आज कोविदार वृक्ष अंकित ध्वज फहराकर त्रेतायुग साकार हो उठा अयोध्या में, इक्ष्वाकु कुल का ध्वज बहुत दिन बाद फहरा है, उसका आनन्द लो। भगवान् श्रीरामलला की इच्छा से अयोध्या में सब मंगल ही मंगल है।

तमिलनाडु के प्राचीन पंचवर्ण स्वामी मंदिर की दीवार पर साईकिल पर बैठे एक वयक्ति की मूर्ति उकीर्ण है ।। इस तस्वीर ने पूरी द...
21/11/2025

तमिलनाडु के प्राचीन पंचवर्ण स्वामी मंदिर की दीवार पर साईकिल पर बैठे एक वयक्ति की मूर्ति उकीर्ण है ।।
इस तस्वीर ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया है।

ये मूर्ति 2000 साल पुरानी है । लेकिन साईकिल का आविष्कार तो 200 साल पहले यूरोप में हुआ था ।।

एक बात हमेशा दिमाग में घूमती है सारे बड़े बड़े आविष्कार सिर्फ 250 सालो के अंदर ही हुए जब अंग्रेज और फ्रांसीसी पुर्तगाली भारत आये इससे पहले क्यों कोई आविष्कार नही हुआ

अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव (पाँचवाँ दिन) की मुख्य बातें​​🎨 सांस्कृतिक संगम और शिल्प मेला​अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव का...
19/11/2025

अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव (पाँचवाँ दिन) की मुख्य बातें

​🎨 सांस्कृतिक संगम और शिल्प मेला
​अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव का पाँचवाँ दिन ब्रह्मसरोवर के तट पर लोक कलाओं के अद्भुत संगम और सरस एवं शिल्प मेले की रौनक में बीता।
​लोक कलाओं का प्रदर्शन: ब्रह्मसरोवर के घाटों पर जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों के लोक कलाकारों ने अपनी पारंपरिक वेशभूषा में बीन, ढोल, नगाड़ों की ताल पर मनमोहक प्रस्तुतियाँ दीं। राजस्थानी कच्छी घोड़ी नृत्य और बंसुरी वादकों की प्रस्तुतियों ने दर्शकों को खूब आकर्षित किया।
​हस्तशिल्प की अनूठी झलक: सरस और शिल्प मेले में देशभर से आए कारीगरों के पारंपरिक हस्तशिल्प और कलाकृतियों की भव्य प्रदर्शनी और बिक्री जारी रही।
​टेराकोटा कला: दिल्ली के एक कारीगर दयाचंद, जिन्हें 2005 में राष्ट्रपति पुरस्कार मिल चुका है, के टेराकोटा (मिट्टी) से बने फूलदान, सजावटी टुकड़े, सुराही और राजस्थानी मूर्तियों के स्टॉल पर विशेष भीड़ देखी गई।
​अन्य राज्यों की कला: पश्चिम बंगाल से लाए गए धान से बने भगवान की मूर्तियां भी महोत्सव में आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं।
​📜 ज्ञान और आध्यात्म
​यह दिन मुख्य रूप से आने वाले बड़े आयोजनों के लिए मंच तैयार कर रहा है।
​गीता महाआरती: पवित्र ब्रह्मसरोवर के तट पर शाम को भव्य गीता महाआरती का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया और मंत्रोच्चार के बीच दीप जलाए।
​प्रतियोगिताओं की तैयारी: महोत्सव के दौरान होने वाली जिला स्तरीय श्लोकोच्चारण और निबंध लेखन प्रतियोगिताओं की तैयारियों को लेकर बैठकों का दौर जारी रहा, जिनमें छात्रों की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
​🔒 सुरक्षा व्यवस्था
​अंतर्राष्ट्रीय स्तर के इस आयोजन के लिए शहर में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी है:
​ब्रह्मसरोवर और शहर के अन्य महत्वपूर्ण स्थानों पर 10 डीएसपी और लगभग 1200 पुलिसकर्मी तैनात हैं।
​निगरानी के लिए 200 से अधिक सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं।
हालाँकि आज ब्रह्मासरोवर के तट पर भीड़ ज्यादा नहीं थी पर आज का दिन ठीक ठाक बीता


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शिल्प और लोक कला के अद्भुत रंगों ने भरा अंतराष्ट्रीय गीता महोत्सव में अपना रंगदेश की संस्कृति और शिल्प कला का केन्द्र बन...
18/11/2025

शिल्प और लोक कला के अद्भुत रंगों ने भरा अंतराष्ट्रीय गीता महोत्सव में अपना रंग

देश की संस्कृति और शिल्प कला का केन्द्र बना अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव का मंच, शिल्प और सरस मेला बना पर्यटकों की पहली पंसद, प्रशासन द्वारा महोत्सव के दौरान किए गए है पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था के प्रबंध

कुरुक्षेत्र, कर्ण। अंतराष्ट्रीय गीता महोत्सव का मंच देश की संस्कृति और शिल्पकला का मुख्य केन्द्र बन चुका है। इस महोत्सव के मंच पर विभिन्न राज्यों की शिल्पकला और लोक संस्कृति को सहजता से देखा जा सकता है। देश-प्रदेश की इस अदभुत शिल्प और लोक कला के रंगों ने महोत्सव में अपना रंग बिखेरना शुरु कर दिया है। इस अनोखे संगम से ब्रहमसरोवर की फिजा भी महक उठी है। यह महक देश के कोने-कोने तक पहुंच चुकी है और इस महक से रोजाना हजारों लोग ब्रहमसरोवर के तट पर खिंचे चले आ रहे है। अहम पहलू यह है कि अंतर्राष्टï्रीय गीता महोत्सव के दौरान 48 कोस के 182 तीर्थों पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।
अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव-2025 के शिल्प और सरस मेले का चौथा दिन है और रोजाना पर्यटकों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। ब्रह्मसरोवर के घाटों पर उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक कला केन्द्र की तरफ से बेहतरीन कलाकारों द्वारा प्रस्तुतियां दी जा रही है। इन प्रस्तुतियों में किसी घाट पर पंजाबी संस्कृति, कहीं पर हरियाणवी और कहीं पर हिमाचल तो कहीं पर राजस्थान की लोक संस्कृति को देखने का अवसर मिल रहा है। इस लोक संस्कृति का आनंद लेने के साथ-साथ लोग ब्रह्मसरोवर के चारों तरफ एनजेडसीसी और डीआरडीए की तरफ से लगे सरस और शिल्प मेले में अनोखी शिल्पकला को भी खूब निहार रहे है। इस वर्ष लगभग 800 स्टॉल लगाए गए है। इसमें राष्ट्रीय, राज्य अवार्डी शिल्पकार भी शामिल है।
एनजेडसीसी के अधिकारी भूपेंद्र सिंह का कहना है कि एनजेडसीसी की तरफ से पंजाब का लड्डू, हिमाचल का किल्लू-नाटी, जम्मू कश्मीर का राउफ, उत्तराखंड का छपेली नृत्य से पर्यटकों का मनोरंजन कर रहे है। इसके अलावा महोत्सव में पंजाब से बाजीगर, राजस्थान से बहरुपिए और कच्ची घोड़ी के कलाकारों ने लोगों का मनोरंजन करना शुरु कर दिया है। हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, राजस्थान, हिमाचल के साथ-साथ कई अन्य राज्यों की लोक संस्कृति इस अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में देखने को मिल रही है जब इन लोक कलाकारों द्वारा ब्रह्मसरोवर के पावन तट पर अपनी प्रस्तुति दी जाती है तो वहां पर देखने वाले पर्यटक अपने पैरों पर थिरकने को मजबूर हो जाते है। ऐसी अदभुत संगीतमय लोक संस्कृति, इस महोत्सव में आने वाले सभी पर्यटकों के मन का रिझाने का काम कर रही है।
उपायुक्त विश्राम कुमार मीणा ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव का शिल्प और सरस मेला जहां 5 दिसंबर तक चलेगा, वहीं इस महोत्सव के मुख्य कार्यक्रम 24 नवंबर से 1 दिसंबर 2025 तक चलेंगे। इन मुख्य कार्यक्रमों में अंतर्राष्ट्रीय गीता सेमिनार, दीपोत्सव, वैश्विक गीता पाठ, संत सम्मेलन, विभिन्न विभागों की प्रदर्शनियां मुख्य आकर्षण का केन्द्र रहेंगी। अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव-2025 के मुख्य कार्यक्रम ब्रह्मसरोवर पुरुषोत्तमपुरा बाग में होंगे। इस मुख्य मंच पर सुबह और सायं के समय सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति होगी। इस महोत्सव में सांध्यकालीन कार्यक्रम करीब 6 बजे शुरु होंगे। प्रशासन की तरफ से सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किए गए है।

शिल्पकारों की शिल्प कला से सजा ब्रह्मसरोवर का पावन तट
अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव जहां विश्व पटल पर अपनी पहचान बना चुका है, वहीं दूसरी ओर इस महोत्सव में दूसरे राज्यों से आए शिल्पकार अपनी कला का अदभुत प्रदर्शन कर रहे है। अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में आए शिल्पकारों की ऐसी हस्त शिल्पकला जोकि अपने आप में जीवित होने की गाथा को ब्यां कर रही है। ऐसी अद्भुत हाथों की कारागिरी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है और पर्यटक जमकर इसकी खरीदारी कर रहे है।
शिल्पकारों ने बातचीत करते हुए बताया कि वे इस अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में हर वर्ष आते है। इस बार भी वे अपने साथ टेराकोटा मिट्टी से बनी हुई अद्भुत और दिल को मोहने वाली फ्लावर पोर्ट, सुराही, प्रतिमाएं के साथ-साथ घर की सज्जा सजावट का अन्य सामान साथ लेकर आ है। वे इस सामान को टेराकोटा मिट्टी से बनाते है तथा यह मिट्टी मेवात व नूंह से मंगवाई जाती है तथा इस मिट्टी को पहले छाना जाती है उसके बाद उसे चॉक पर घुमा कर अपनी अदभुत हस्तशिल्प कला से नए-नए व सुंदर से सुंदर ऐसी प्रतिमाएं बनाते है जो कि अपने आप में जीवित होने की गाथा खुद बे खुद ब्यां करती है। उन्होंने बताया कि टेराकोटा से बनने वाली इन प्रतिमाओं को चॉक पर बनाने के बाद इनको पकाया जाता है, उसके बाद इसकी फिनिशिंग का कार्य किया जाता है और उसके बाद इसमें रंग बिरंगे रंगों से सजाकर अद्भुत स्वरूप दिया जाता है। पर्यटक इनकी जमकर खरीदारी कर रहे है।
केडीबी के मानद सचिव उपेंद्र सिंघल ने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में 5 दिसंबर 2025 तक लगने वाले इस सरस और शिल्प मेले में शिल्पकारों की हस्त शिल्पकला से ब्रह्मसरोवर के पावन तट सज चुके है और इस रंग बिरंगी हस्तशिल्प कला ने महोत्सव की फिजा का रंग बदलने का काम किया है। जहां एक ओर दूसरे राज्यों से आए कलाकार अपने प्रदेशों की संस्कृति को हर्षोल्लास से दिखाकार पर्यटकों के मन को मोह रहे है वहीं दूसरी ओर हाथों की ऐसी अदभुत शिल्प कला महोत्सव में रंग भरने का काम कर रही है।

सालों से अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में लाखों रुपए के शॉल बेच चुके है पर्यटकों को
अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में पिछले कई सालों में लाखों रुपए के शॉल व कश्मीरी सूट पर्यटकों को बेच चुके है। इस शिल्पकला को कुरुक्षेत्र गीता महोत्सव में आने वाले पर्यटक बहुत अधिक पंसद करते है। इस महोत्सव में गत्त वर्ष लाखों रुपए के शॉल और कश्मीरी सूट की सेल हुई थी। अहम पहलू यह है कि उनकी कश्मीरी शॉल व सूटों के महोत्सव में काफी कद्रदान है, जो हर वर्ष उनसे कश्मीरी शॉल व गर्म सूट खरीद कर लेकर जाते है।
शिल्पकार अख्तर ने महोत्सव-2025 में स्टॉल नंबर 303 और 771 में शॉल और कश्मीरी सूट को स्टॉल लगाया है। उन्होंने कहा कि उच्च गुणवत्ता की पश्मीना शाल को बनाने में काफी समय लग जाता है। इस शाल की कीमत लाखों रुपए में होती है। इस शाल को वैरायटी के हिसाब से 5 या 6 माह में भी तैयार किया जा सकता है। इस स्टॉल पर शिल्पकार ने कश्मीरी शाल, लोई, कम्बल, सूट, फैरन आदि उत्पादों को कुरुक्षेत्र और आस-पास के पर्यटकों के लिए रखा है। इस महोत्सव में सालों से पर्यटकों की कश्मीरी शाल की पेशकस को पूरा करने का प्रयास कर रहे है। यहां महोत्सव में आने के लिए हमेशा उत्साहित रहते है। उन्होंने विशेष बातचीत करते हुए कहा कि पुस्तों से उनका परिवार कश्मीरी शाल बनाने का काम कर रहा है। इस महोत्सव में पश्मीना की कश्मीरी शाल जिसकी कीमत 1 हजार रुपए से लेकर 25 हजार रुपए तक है, लेकर आए है।
उन्होंने कहा कि अगर सही मायने में पश्मीने की शॉल की बात करे तो उच्च गुणवत्ता की कश्मीरी शाल बनाने में सालों का समय लग जाता है। इस शॉल को डोगरा, सिख और मुगल काल में भी पसंद किया गया है। उस समय पसमीना का बडा शाल पहना जाता था और राजा महाराजा इस शाल को बडे ही शौंक के साथ पहनते थे। इस शिल्पकला को बढ़ावा देेने के लिए सरकार की तरफ से भी मदद मिलती है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया के प्रोग्राम को भी आगे बढाने का काम कर रहे है।


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