25/06/2025
देशभर में जहां पति-पत्नी के रिश्ते अकसर विवादों और हत्याओं की खबरों में रहते हैं, वहीं कुशीनगर जिले के नेबुआ नौरंगिया क्षेत्र के पकड़ियार गांव से त्याग, प्रेम और बलिदान की एक मिसाल सामने आई है। यहां एक पत्नी ने अपने पति को नई जिंदगी देने के लिए अपनी किडनी दान कर दी।
अनिता देवी ने अपने पति गणेश गुप्ता को उस वक्त अपनी किडनी दी, जब उनकी दोनों किडनियां खराब हो चुकी थीं और हफ्ते में तीन बार डायलिसिस के लिए करीब 30 हजार रुपए का खर्च उठाना असंभव हो गया था। इलाज में पूरा खेत बिक गया। आज हालत यह है कि परिवार में कमाने वाला कोई नहीं, और 60 वर्षीय पिता और 55 वर्षीय मां मजदूरी करके छह लोगों का पेट पाल रहे हैं।
गुजरात में बेकरी का काम करते थे गणेश, बीमारी ने जिंदगी पलट दी
पकड़ियार बाजार के निवासी 37 वर्षीय गणेश गुप्ता गुजरात के जामनगर में बेकर्स की नौकरी करते थे। साल 2009 में उनकी शादी अनिता से हुई। परिवार में 12 साल का बेटा संगम और 7 साल की बेटी रचना है। दो भाई पहले ही अलग हो चुके हैं।
एक साल पहले गणेश को हाई बीपी और अन्य समस्याएं होने लगीं। जांच में सामने आया कि दोनों किडनियां फेल हो चुकी हैं। डॉक्टरों ने तत्काल डायलिसिस की सलाह दी। आठ महीनेतक डायलिसिस चलता रहा, लेकिन खर्च 1.2 लाख रुपए प्रतिमाह तक पहुंच गया।
किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह, लेकिन सामने दो मुश्किलें
डॉक्टरों ने किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह दी, लेकिन परिवार के सामने दो बड़ी समस्याएं थीं- डोनर की तलाश और लाखों का खर्च। पहले मां रमावती देवी ने अपनी किडनी देने की इच्छा जताई, लेकिन जांच में वह अनुपयुक्त निकलीं। इसके बाद पत्नी अनिता सामने आईं, और जब उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव निकली तो परिवार को नई उम्मीद मिली।
मुख्यमंत्री राहत कोष से मिला सहयोग, हुआ सफल ऑपरेशन
लखनऊ के एक निजी अस्पताल में ट्रांसप्लांट की व्यवस्था बनी। मुख्यमंत्री राहत कोष से 6 लाख 50 हजार रुपए की सहायता मिली। ऑपरेशन सफल रहा और अब दोनों - गणेश और अनिता-घर लौट चुके हैं। डॉक्टरों ने दोनों को फिलहाल पूरी तरह आराम की सलाह दी है।
अब मां-बाप उठा रहे पूरा जिम्मा, भविष्य को लेकर चिंता में परिवार
अब परिवार की पूरी जिम्मेदारी 60 साल के पिता और 55 साल की मां के कंधों पर है। दोनों मजदूरी कर जैसे-तैसे घर चला रहे हैं। वहीं बच्चों की पढ़ाई, इलाज के आगे के खर्च और कर्ज की अदायगी को लेकर परिवार चिंतित है। गणेश की मां कहती हैं, "खेत बिक गया, काम नहीं बचा, लेकिन हमारा बेटा बच गया। इससे बड़ी बात क्या होगी?" गांव के लोग भी अनिता के इस फैसले को "धरती पर देवी का रूप" बता रहे हैं।