14/09/2025
योजना उद्यमिता की, प्रचार राजनीति का – मंच पर खो गया रोजगार
भारत की राजनीति में मंच पर गूँजते नारों और वास्तविक ज़मीनी हकीकत के बीच का अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है। सरकारें योजनाएँ लाती हैं, बजट तय होता है, घोषणाएँ होती हैं, लेकिन जब अमल की बात आती है तो मंच पर नेता केवल वोटों की गिनती में उलझे नज़र आते हैं।
मंच बनाम मिशन
प्रदेश की सीएम युवा उद्यमिता विकास योजना इसका ताज़ा उदाहरण है। यह योजना 21 से 40 वर्ष तक के युवाओं को ₹5 लाख तक का ब्याज मुक्त ऋण उपलब्ध कराकर सेवा और उत्पादन क्षेत्र में उद्यमिता को बढ़ावा देने का वादा करती है। लेकिन विडंबना यह है कि स्थानीय स्तर पर न तो विभाग, न ही नेता, उन वास्तविक युवाओं तक पहुँच पा रहे हैं जो उद्यमिता करना चाहते हैं। परिणाम यह हुआ कि कई जगहों पर मंच पर बुलाए गए लोग वे थे जो उद्यमिता की पात्रता ही पूरी नहीं करते।
योजनाएँ और उनकी हकीकत
केंद्र की प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना (PMFME) की स्थिति और भी चिंताजनक है। ₹10,000 करोड़ के बजट में से अब तक केवल ₹3,300 करोड़ ही खर्च हो पाए हैं और लक्ष्य महज़ 26% पर अटका हुआ है। सवाल यह है कि जब संसाधन और योजनाएँ उपलब्ध हैं तो उनकी पहुँच वास्तविक लाभार्थियों तक क्यों नहीं हो रही?
राजनीति की प्राथमिकता
राजनीति का मौजूदा स्वरूप हमें यह बताता है कि –
• नेता मंचों पर योजनाओं की जानकारी देने की बजाय डीबीटी (Direct Benefit Transfer) का गुणगान करना आसान समझते हैं।
• कार्यकर्ता योजनाओं की समझ विकसित करने और युवाओं को जोड़ने की बजाय नेताओं की परिक्रमा और फोटो खिंचवाने को ही राजनीति मान बैठे हैं।
• चुनावी राजनीति का दबाव ऐसा है कि रोजगार और उद्यमिता जैसी बुनियादी ज़रूरतें पीछे छूट जाती हैं।
आगे का रास्ता
अगर राजनीतिक दल वास्तव में युवाओं को आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं तो एक सरल फॉर्मूला अपनाया जा सकता है –
“एक बूथ – दस यूथ – दस उद्यम।”
हर बूथ स्तर पर 10 युवाओं को योजनाओं से जोड़कर उद्यम शुरू करवाया जाए। इससे न केवल योजनाओं का लक्ष्य पूरा होगा बल्कि बेरोजगारी जैसी सबसे बड़ी चुनौती से भी राहत मिलेगी।
असली सवाल
सवाल यही है कि –
क्या युवा केवल डीबीटी के भरोसे आत्मनिर्भर बन सकते हैं, या फिर असली बदलाव उद्यमिता के माध्यम से ही आएगा?
डीबीटी से वोट तो हासिल किए जा सकते हैं, लेकिन भविष्य नहीं बनाया जा सकता। भविष्य तभी बनेगा जब मंच पर वोटों से ज़्यादा उद्यमिता की बातें होंगी।
✍ संपादकीय मंडल, Rural Talk