17/07/2025
बहुत लोग कह रहे की सरकारी विद्यालय में पढ़ाओ।प्राइवेट स्कूलों ने लूट मचा रखी है लेकिन प्राइवेट शिक्षक के बारे में भी सोचिए जो न सरकार सोचती है न आम जनता, आज एक बेसिक शिक्षा विभाग की पोस्ट और व्हाट्सएप पे के सन्देश वायरल हो रहा उसपे कुछ कहना चाहता हूं। और मैं चाहता हु कम से कम प्राइवेट शिक्षक तो हमारे इस पोस्ट को शेयर करे।
यह पोस्ट निश्चित रूप से सोचने पर मजबूर करती है, लेकिन केवल आंकड़ों से सच्चाई नहीं बदलती। एक प्राइवेट शिक्षक के रूप में मैं कुछ बेहद जरूरी बातें साझा करना चाहता हूँ, जो कई बार इन चर्चाओं में अनदेखी रह जाती हैं:
1. शिक्षा सिर्फ फीस से नहीं, गुणवत्ता से आँकी जाती है।
सरकारी स्कूलों में फीस नहीं है, सुविधाएं हैं, यह सब सच है — लेकिन फिर भी अधिकांश माता-पिता अपने बच्चों को वहीं पढ़ाना क्यों नहीं चाहते?
इसका जवाब है – शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट, जवाबदेही की कमी और सीखने के प्रति समर्पण का अभाव।
2. सरकारी शिक्षक और उनकी हकीकत:
सरकारी शिक्षक उच्च योग्यता प्राप्त होते हैं, ये बात भी सही है। लेकिन क्या वे विद्यालयों में प्रतिदिन नियमित रूप से बच्चों को पढ़ाते हैं?
सरकारी शिक्षक का वेतन लाखों में है लेकिन ज़्यादातर जगहों पर वे अपनी ड्यूटी को गंभीरता से नहीं लेते। यह एक कड़वा सच है जिसे नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
3. प्राइवेट स्कूल और शिक्षक:
आप जिस 574000 रुपये के खर्च का हवाला दे रहे हैं, उसमें एक शिक्षक, एक संस्थान, एक स्टाफ अपनी न्यायसंगत कमाई कर रहा है।
प्राइवेट स्कूलों में काम करने वाले शिक्षक कम वेतन में भी ज्यादा मेहनत करते हैं, समय पर स्कूल आते हैं, अतिरिक्त कक्षाएं लेते हैं, बच्चों की परफॉर्मेंस पर नज़र रखते हैं और अभिभावकों से लगातार संवाद करते हैं।
4. निजी स्कूल सिर्फ व्यापार नहीं, शिक्षा के केंद्र हैं:
हर निजी स्कूल पैसा कमाने के लिए नहीं बना होता। कई स्कूल ऐसे हैं जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, अनुशासन, संस्कार, व्यक्तित्व विकास पर काम करते हैं।
आज अगर कोई बच्चा अंग्रेज़ी बोलना जानता है, कंप्यूटर चला रहा है, साक्षात्कार पास कर रहा है तो इसका एक बड़ा कारण है— निजी विद्यालयों का प्रशिक्षण।
5. परिवर्तन की ज़िम्मेदारी:
यदि सरकारी स्कूल वास्तव में इतने सक्षम हैं तो सरकार के मंत्री, कर्मचारी, अफसर, शिक्षक अपने बच्चों को वहीं क्यों नहीं पढ़ाते?
क्यों आज भी सरकारी शिक्षक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने को प्राथमिकता देते हैं?
इस प्रश्न पर ईमानदारी से आत्ममंथन की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
हम सरकारी शिक्षा का विरोध नहीं करते, लेकिन हकीकत को नजरअंदाज करना भी सही नहीं है।
जरूरत इस बात की है कि सरकारी शिक्षक अपनी जिम्मेदारी समझें और माता-पिता सरकारी स्कूलों को तब चुनें जब वे वाकई शिक्षण के लिए तैयार हों।
अगर समाज को बेहतर बनाना है, तो सरकारी स्कूलों में सिर्फ मुफ्त की योजनाओं पर नहीं, गुणवत्ता, जवाबदेही और प्रतिबद्धता पर ध्यान देना होगा।
प्राइवेट शिक्षक सिर्फ पैसे नहीं लेते, वे एक बेहतर भविष्य बनाते हैं — कम संसाधनों में भी।
कम से कम जो प्राइवेट शिक्षक है वो इस पोस्ट जो जरूर शेयर करे ये मेरा व्यक्तिगत विचार है आप चाहे तो इसको इग्नोर भी कर सकते है
आपका अपना
शुभ चिंतक