Kamlesh Kumar Verma

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विश्व खाद्य दिवस (World Food Day) हर वर्ष 16 अक्टूबर को पूरे विश्व में मनाया जाता है। यह दिन खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO –...
16/10/2025

विश्व खाद्य दिवस (World Food Day) हर वर्ष 16 अक्टूबर को पूरे विश्व में मनाया जाता है। यह दिन खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO – Food and Agriculture Organization) की स्थापना की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य दुनिया भर में भुखमरी, कुपोषण और खाद्य असुरक्षा जैसी समस्याओं के प्रति जागरूकता फैलाना है।

🌾 स्थापना का इतिहास

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) की स्थापना 16 अक्टूबर 1945 को की गई थी।

1979 में FAO की 20वीं महासभा में विश्व खाद्य दिवस मनाने का प्रस्ताव पारित किया गया।

इसके बाद से यह दिन 1981 से हर वर्ष 150 से अधिक देशों में मनाया जाने लगा।

🎯 मुख्य उद्देश्य

1. भूख और कुपोषण का उन्मूलन करना।

2. सभी लोगों को सुरक्षित, पौष्टिक और पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराना।

3. कृषि उत्पादन में वृद्धि और किसानों की स्थिति सुधारना।

4. सतत खाद्य प्रणाली (Sustainable Food Systems) को बढ़ावा देना।

5. भोजन की बर्बादी को रोकना और खाद्य संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करना।

🌍 2025 का विषय (Theme 2025)

> “Water is Life, Water is Food – Leave No One Behind”
(“पानी ही जीवन है, पानी ही भोजन है – किसी को पीछे न छोड़ें”)

यह थीम बताती है कि पानी हमारी खाद्य सुरक्षा की नींव है। बिना जल के न तो फसलें उग सकती हैं, न पशुधन और न ही मानव अस्तित्व। अतः जल का संरक्षण और संतुलित उपयोग विश्व की खाद्य सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है।

🧑‍🌾 महत्व

1. यह दिन हमें याद दिलाता है कि विश्व में आज भी करोड़ों लोग भूख से पीड़ित हैं।

2. यह किसानों, मजदूरों और खाद्य उत्पादकों के योगदान को सम्मान देने का अवसर है।

3. यह हमें संतुलित भोजन और खाद्य अपव्यय को रोकने के लिए प्रेरित करता है।

4. इस दिन पर विभिन्न देशों में सेमिनार, प्रदर्शनियाँ, निबंध प्रतियोगिताएँ, पौधारोपण अभियान आदि कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

📊 महत्वपूर्ण तथ्य

FAO का मुख्यालय – रोम, इटली में है।

FAO की स्थापना – 1945 में।

विश्व खाद्य दिवस मनाना प्रारंभ – 1981 से।

मनाने की तिथि – हर वर्ष 16 अक्टूबर।

🌱 निष्कर्ष

विश्व खाद्य दिवस हमें यह सिखाता है कि भोजन केवल जीवनयापन का साधन नहीं, बल्कि मानवता के अस्तित्व की बुनियाद है। यदि हम सब मिलकर भोजन की बर्बादी रोकें, जल और मिट्टी की रक्षा करें, और सतत कृषि को अपनाएँ — तो आने वाली पीढ़ियों को भी सुरक्षित भोजन और स्वस्थ जीवन मिल सकेगा।

्रीराम

विश्व विद्यार्थी दिवस: एक समग्र परिचयविश्व विद्यार्थी दिवस (World Students' Day) प्रतिवर्ष 15 अक्टूबर को मनाया जाने वाला...
15/10/2025

विश्व विद्यार्थी दिवस: एक समग्र परिचय

विश्व विद्यार्थी दिवस (World Students' Day) प्रतिवर्ष 15 अक्टूबर को मनाया जाने वाला एक अंतर्राष्ट्रीय दिवस है। यह दिवस शिक्षा के प्रति समर्पण, छात्रों के अधिकारों, उनकी भूमिका और समाज में उनके योगदान को समर्पित है। इसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) द्वारा की गई थी।

मुख्य तथ्य (Key Facts)

· तिथि (Date): 15 अक्टूबर
· उद्देश्य (Purpose): छात्रों के कल्याण, अधिकारों और शिक्षा की महत्ता को रेखांकित करना।
· स्थापना (Establishment): संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा 2010 में घोषित।
· प्रमुख व्यक्तित्व (Key Figure): डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम (भारत के पूर्व राष्ट्रपति)।

इतिहास और महत्व (History and Significance)

इतिहास:

विश्व विद्यार्थी दिवस की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने 2010 में की थी। इस दिन को चुनने के पीछे का प्रमुख कारण डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का जन्मदिन है, जो 15 अक्टूबर, 1931 को पैदा हुए थे। डॉ. कलाम न केवल भारत के एक महान वैज्ञानिक और 11वें राष्ट्रपति थे, बल्कि एक अनुकरणीय शिक्षक और छात्रों के प्रेरणास्रोत भी थे। उनका पूरा जीवन सीखने, ज्ञान अर्जित करने और युवा पीढ़ी को शिक्षित करने के प्रति समर्पित रहा। उन्हें "जनता के राष्ट्रपति" और "मिसाइल मैन" के रूप में जाना जाता है। UNESCO ने डॉ. कलाम के शिक्षा एवं छात्रों के प्रति अटूट लगाव को देखते हुए उनके जन्मदिन को ही विश्व विद्यार्थी दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया।

महत्व (Significance):

1. छात्रों के अधिकारों को मान्यता: यह दिन दुनिया भर के सभी छात्रों के अधिकारों, जैसे- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अधिकार, सुरक्षित वातावरण में पढ़ने का अधिकार आदि, को मान्यता देता है।
2. शिक्षा की शक्ति: यह शिक्षा की शक्ति और युवाओं के जीवन तथा समाज को बदलने में इसकी भूमिका पर प्रकाश डालता है।
3. सांस्कृतिक आदान-प्रदान: यह दिवस वैश्विक स्तर पर छात्रों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान, सहयोग और आपसी समझ को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करता है।
4. डॉ. कलाम के आदर्शों का प्रसार: यह दिन डॉ. कलाम के आदर्शों - कड़ी मेहनत, नवाचार, ईमानदारी और देशभक्ति - को नई पीढ़ी तक पहुँचाने का काम करता है।
5. शिक्षक-छात्र संबंध: यह शिक्षकों और छात्रों के बीच के रिश्ते को मजबूत करने और शिक्षण के महत्व को रेखांकित करने का दिन है।

उद्देश्य (Objectives)

विश्व विद्यार्थी दिवस के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

· छात्रों के कल्याण और उनके सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में वैश्विक जागरूकता पैदा करना।
· सभी के लिए समान और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की उपलब्धता सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल देना।
· छात्रों को उनके भविष्य के लिए तैयार करने हेतु कौशल विकास (Skill Development) पर जोर देना।
· शैक्षिक संस्थानों में सहिष्णुता, शांति और अहिंसा के माहौल को बढ़ावा देना।
· युवाओं को नेतृत्व की भूमिका निभाने और सामाजिक परिवर्तन में योगदान देने के लिए प्रेरित करना।

कैसे मनाया जाता है? (How is it Celebrated?)

विश्व विद्यार्थी दिवस दुनिया भर के स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन आयोजित की जाने वाली गतिविधियों में शामिल हैं:

· शैक्षिक संगोष्ठियाँ और वेबिनार: शिक्षा, प्रौद्योगिकी और भविष्य की चुनौतियों पर चर्चा।
· सांस्कृतिक कार्यक्रम: नाटक, नृत्य, गायन, कविता पाठ आदि प्रस्तुतियाँ।
· वाद-विवाद और भाषण प्रतियोगिताएँ: डॉ. कलाम के जीवन और शिक्षा पर केंद्रित।
· निबंध और क्विज प्रतियोगिताएँ: छात्रों के ज्ञान और लेखन कौशल को बढ़ावा देना।
· शिक्षा पर कार्यशालाएँ: नए कौशल सिखाने वाली कार्यशालाओं का आयोजन।
· सामाजिक जागरूकता अभियान: स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण आदि जैसे मुद्दों पर काम करना।
· डॉ. कलाम को श्रद्धांजलि: उनके विचारों और उपलब्धियों को याद किया जाता है।

डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम: विद्यार्थियों के प्रेरणास्रोत

इस दिन को डॉ. कलाम के बिना पूरा नहीं किया जा सकता। उनका जीवन हर विद्यार्थी के लिए एक मार्गदर्शक है।

· सादगी और लगन: एक साधारण परिवार से आने के बावजूद, अपनी कड़ी मेहनत और लगन से उन्होंने देश के सर्वोच्च पद तक का सफर तय किया।
· विज्ञान और शिक्षा में योगदान: उन्होंने भारत के अंतरिक्ष और रक्षा कार्यक्रमों में अहम भूमिका निभाई।
· युवाओं से लगाव: राष्ट्रपति बनने के बाद भी उनका सबसे प्रिय कार्य छात्रों और युवाओं के बीच जाकर बातचीत करना और उन्हें प्रेरित करना था।
· प्रेरणादायक उद्धरण: "सपने वो नहीं हैं जो आप नींद में देखें, सपने वो हैं जो आपको सोने नहीं देते।" जैसे उनके कथन आज भी युवाओं को प्रेरित करते हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)

विश्व विद्यार्थी दिवस केवल एक उत्सव नहीं है, बल्कि यह एक प्रतिबद्धता का दिन है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि विद्यार्थी ही किसी भी राष्ट्र की नींव और भविष्य हैं। डॉ. कलाम के आदर्शों को आत्मसात करते हुए, यह दिन हमें एक ऐसी दुनिया बनाने के लिए प्रेरित करता है जहाँ हर बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले और वह अपने सपनों को पंख दे सके। यह शिक्षकों, अभिभावकों और समाज के लिए भी यह प्रतिबिंब का दिन है कि हम अपने बच्चों के लिए एक बेहतर शैक्षिक और सामाजिक वातावरण प्रदान कर पा रहे हैं या नहीं।
्रीराम

भीमराव अंबेडकर जी के जीवन का विस्तृत विवरण प्रस्तुत है:भीमराव रामजी अंबेडकर (14 अप्रैल 1891 – 6 दिसंबर 1956)डॉ. भीमराव अ...
14/10/2025

भीमराव अंबेडकर जी के जीवन का विस्तृत विवरण प्रस्तुत है:

भीमराव रामजी अंबेडकर (14 अप्रैल 1891 – 6 दिसंबर 1956)

डॉ. भीमराव अंबेडकर एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे: भारतीय विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, समाज सुधारक, मानवाधिकार कार्यकर्ता और दलित बौद्ध आंदोलन के प्रणेता। उन्हें भारतीय संविधान के प्रमुख शिल्पी, "भारतीय गणतंत्र का जनक" और "आधुनिक भारत के निर्माता" के रूप में जाना जाता है। उनका सम्पूर्ण जीवन सामाजिक न्याय, समानता और मानव गरिमा के संघर्ष की एक अनूठी गाथा है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा (1891-1913)

· जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि: भीमराव का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू नामक सैन्य छावनी में हुआ था। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था। वे एक महार (दलित) जाति में पैदा हुए थे, जिसे उस समय "अछूत" माना जाता था।
· बचपन में भेदभाव का सामना: उनके बचपन पर जातिगत भेदभाव और छुआछूत का गहरा प्रभाव रहा। स्कूल में उन्हें कक्षा के बाहर बैठकर पढ़ना पड़ता था, शिक्षक उनकी ओर ध्यान नहीं देते थे, और पानी पीने के लिए भी उन्हें चपरासी से मदद लेनी पड़ती थी, क्योंकि उन्हें सवर्णों के हाथ का पानी छूने की अनुमति नहीं थी। उनके नाम के आगे "अंबेडकर" उपनाम एक ब्राह्मण शिक्षक, कृष्णाजी केशव अंबेडकर ने लगाया, जिन्होंने उन्हें स्नेह दिया।
· प्रारंभिक शिक्षा: इन कठिन परिस्थितियों के बावजूद, उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी। 1907 में, उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की, जो एक दुर्लभ उपलब्धति थी। इसके बाद, बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय, जो पिछड़े वर्गों की शिक्षा को प्रोत्साहित करते थे, ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की।

उच्च शिक्षा और विदेश में अध्ययन (1913-1923)

· पहला विदेश प्रवास (1913-1917): महाराजा की छात्रवृत्ति पर, अंबेडकर 1913 में न्यूयॉर्क स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय पहुंचे। यहाँ उन्होंने अर्थशास्त्र में MA (1915) और PhD (1917) की उपाधियाँ प्राप्त कीं। कोलंबिया में, प्रोफेसर जॉन डेवी जैसे विद्वानों से उनके विचारों पर गहरा प्रभाव पड़ा।
· लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स: इसके बाद वे अर्थशास्त्र का अध्ययन करने लंदन चले गए, लेकिन छात्रवृत्ति की अवधि समाप्त होने के कारण उन्हें बीच में ही भारत लौटना पड़ा। भारत लौटकर उन्होंने कुछ समय तक बड़ौदा राज्य में सेवा की, लेकिन जातिगत उत्पीड़न के कारण उन्हें यह नौकरी छोड़नी पड़ी।
· दूसरा विदेश प्रवास (1920-1923): अपनी बचत और एक और छात्रवृत्ति के सहारे, वे 1920 में फिर लंदन गए। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से MSc (1921) और DSc (1923) की डिग्रियाँ हासिल कीं। साथ ही, उन्होंने बार-एट-लॉ की पढ़ाई की और जर्मनी व ऑस्ट्रिया में भी अध्ययन किया। इस प्रकार, वे अपने समय के सर्वाधिक शिक्षित भारतीयों में से एक बन गए।

सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष का प्रारंभ (1924-1947)

· पत्रकारिता और जनजागरण: 1920 के दशक में, उन्होंने "मूकनायक", "बहिष्कृत भारत" और "समता" जैसे पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया, जिनके माध्यम से उन्होंने दलितों के अधिकारों और सामाजिक समानता का मुद्दा उठाया।
· महाड़ सत्याग्रह (1927): यह एक ऐतिहासिक घटना थी। अंबेडकर ने महाराष्ट्र के महाड़ शहर में "चवदार तालाब" को सार्वजनिक रूप से दलितों के लिए खोलने के लिए एक सत्याग्रह का नेतृत्व किया, जहाँ दलितों को पानी लेने से रोका जाता था। इसी आंदोलन के दौरान, उन्होंने "मनुस्मृति" (वह हिंदू ग्रंथ जो जाति व्यवस्था को वैधता प्रदान करता है) की सार्वजनिक रूप से होली जलाई, जो एक प्रतीकात्मक विद्रोह था।
· पूना पैक्ट (1932): ब्रिटिश सरकार ने अलग दलित मतदाताओं की मांग को मानते हुए "कम्युनल अवार्ड" की घोषणा की। गांधी जी ने इसके विरोध में आमरण अनशन शुरू कर दिया, क्योंकि वे इसे हिंदू समाज के विभाजन के रूप में देखते थे। इसके बाद, अंबेडकर और गांधीजी के बीच हुई एक समझौते के तहत पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर हुए। इसके तहत दलितों के लिए अलग निर्वाचन मंडल तो समाप्त कर दिया गया, लेकिन विधानसभाओं में उनके लिए आरक्षित सीटों की संख्या बढ़ा दी गई।
· राजनीतिक दलों की स्थापना: उन्होंने दलितों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए "इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी" (1936) और "शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन" (1942) जैसे राजनीतिक दलों की स्थापना की।
· मुक्त अर्थव्यवस्था के वास्तुकार: 1947 में, उन्हें स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में कानून मंत्री के रूप में शामिल किया गया। 15 अगस्त 1947 को, उन्हें संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।

संविधान निर्माण और उनका योगदान (1947-1950)

· संविधान के प्रमुख शिल्पी: डॉ. अंबेडकर ने भारतीय संविधान के निर्माण में एक निर्णायक भूमिका निभाई। उनकी विद्वता, संवैधानिक ज्ञान और सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता ने संविधान को उसका वर्तमान स्वरूप दिया।
· मूलभूत सिद्धांतों पर जोर: उन्होंने संविधान में न्याय (सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक), स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसे मूलभूत सिद्धांतों को शामिल करवाया।
· मौलिक अधिकार और राज्य के नीति निदेशक तत्व: उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों की गारंटी दी जाए और राज्य को सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र स्थापित करने का निर्देश दिया जाए।
· अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए आरक्षण: उन्होंने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए संविधान में आरक्षण की व्यवस्था को शामिल करवाया।
· महिला अधिकार: उन्होंने हिंदू कोड बिल के माध्यम से महिलाओं को संपत्ति का अधिकार, तलाक का अधिकार और अन्य कानूनी अधिकार दिलाने का प्रयास किया (हालाँकि राजनीतिक विरोध के कारण यह बिल पूर्ण रूप से पारित नहीं हो सका)।
· केंद्रीय और राज्यों के बीच शक्तियों का संतुलन: उन्होंने एक मजबूत केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्यों के अधिकारों के बीच एक संतुलन स्थापित किया।

बौद्ध धर्म अपनाना और अंतिम वर्ष (1950-1956)

· हिंदू धर्म छोड़ने का निर्णय: संविधान तैयार होने के बाद, उनका मानना था कि सामाजिक समानता केवल कानून से नहीं, बल्कि धार्मिक और सामाजिक मुक्ति से ही आ सकती है। हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था से वे गहराई से निराश थे।
· धर्मांतरण: 14 अक्टूबर 1956 को, उन्होंने नागपुर में अपने लाखों समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। उन्होंने बुद्ध के "अप्प दीपो भव" (अपना दीपक स्वयं बनो) के सिद्धांत को अपनाया।
· निधन: 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में उनका निधन हो गया। 1990 में, उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान "भारत रत्न" से सम्मानित किया गया।

विरासत और महत्व

डॉ. भीमराव अंबेडकर न केवल दलितों के, बल्कि सभी वंचित और शोषित लोगों के मसीहा बन गए। उनका जीवन और कार्य आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने एक ऐसे भारत की कल्पना की थी जो सामाजिक और आर्थिक रूप से समतामूलक हो, और उसी दिशा में उन्होंने भारतीय संविधान को अपनी सबसे बड़ी विरासत के रूप में छोड़ा। उन्हें "बाबासाहेब" के नाम से पुकारा जाता है, जो उनके प्रति सम्मान और श्रद्धा का प्रतीक है।

्रीराम

मुंशी प्रेमचंद का विस्तारपूर्वक वर्णन 🌿परिचय:मुंशी प्रेमचंद हिन्दी साहित्य के महानतम कथाकारों में से एक थे। उन्हें “उपन्...
08/10/2025

मुंशी प्रेमचंद का विस्तारपूर्वक वर्णन 🌿

परिचय:
मुंशी प्रेमचंद हिन्दी साहित्य के महानतम कथाकारों में से एक थे। उन्हें “उपन्यास सम्राट” कहा जाता है। वे हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं के लेखक थे और उन्होंने समाज की सच्चाइयों, गरीबों की समस्याओं, किसानों की पीड़ा तथा मानवता के यथार्थ चित्र को अपनी कहानियों और उपन्यासों में बड़ी गहराई से प्रस्तुत किया।

जन्म और प्रारंभिक जीवन

मुंशी प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था।
उनका जन्म 31 जुलाई 1880 को लमही गाँव, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में हुआ था।
उनके पिता आज़मगढ़ जिले में एक डाक कर्मचारी थे जिनका नाम अजायब राय था और माता का नाम आनंदी देवी था। बचपन में ही प्रेमचंद ने अपनी माँ को खो दिया था, जिससे उनका जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहा।

शिक्षा

प्रेमचंद ने प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही प्राप्त की। बाद में उन्होंने वाराणसी से अपनी पढ़ाई जारी रखी और अंग्रेज़ी विषय में स्नातक की डिग्री (B.A.) प्राप्त की। शिक्षा के दौरान ही वे अंग्रेज़ी लेखकों से प्रभावित हुए, विशेष रूप से चार्ल्स डिकेंस से।

जीवन के संघर्ष

प्रेमचंद का जीवन कठिनाइयों से भरा था। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उन्हें बहुत कम उम्र में ही नौकरी करनी पड़ी। उन्होंने एक स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्य किया और बाद में सरकारी स्कूल इंस्पेक्टर भी बने।
उनका साहित्यिक जीवन समाज में व्याप्त गरीबी, अन्याय, शोषण और असमानता के अनुभवों से प्रेरित था।

साहित्यिक जीवन की शुरुआत

प्रेमचंद ने अपने लेखन की शुरुआत उर्दू भाषा से की और प्रारंभ में "नवाब राय" नाम से लिखा करते थे।
उनकी पहली प्रसिद्ध रचना "सोज़-ए-वतन" (1907) थी, जिसे ब्रिटिश सरकार ने देशभक्ति फैलाने के आरोप में जब्त कर लिया। इसके बाद उन्होंने “नवाब राय” नाम छोड़कर “प्रेमचंद” नाम अपनाया।

मुख्य रचनाएँ

(A) उपन्यास

1. गोदान – किसानों के जीवन पर आधारित उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास।

2. गबन – मध्यमवर्गीय जीवन की समस्याओं को दिखाता है।

3. रंगभूमि – समाज और पूंजीपतियों के संघर्ष को दर्शाता है।

4. कर्मभूमि – समाज सुधार और त्याग की भावना पर आधारित।

5. सेवासदन – स्त्री शिक्षा और सामाजिक अन्याय पर आधारित।

6. प्रेमाश्रम – किसानों की दयनीय स्थिति का यथार्थ चित्रण।

(B) कहानियाँ

प्रेमचंद ने लगभग 300 से अधिक कहानियाँ लिखीं।
उनकी प्रसिद्ध कहानियाँ हैं:

पूस की रात

ईदगाह

कफन

नमक का दरोगा

बड़े घर की बेटी

शतरंज के खिलाड़ी

दो बैलों की कथा

लेखन की विशेषताएँ

1. यथार्थवाद – उन्होंने समाज की सच्चाई को बिना सजावट के प्रस्तुत किया।

2. मानवता की भावना – उनके पात्र गरीब जरूर हैं, परंतु ईमानदार और संवेदनशील हैं।

3. भाषा की सरलता – उनकी भाषा सरल, सहज और जनता की भाषा है।

4. सामाजिक चेतना – उनके लेखन में समाज सुधार का गहरा संदेश है।

5. नारी चित्रण – उन्होंने स्त्रियों को आत्मसम्मान और अधिकार दिलाने की वकालत की।

अंतिम जीवन और मृत्यु

आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद प्रेमचंद ने लेखन जारी रखा।
उन्होंने फिल्म जगत में भी काम किया और "मजहूर" (Bombay Talkies) के लिए कहानी लेखन किया।
उनका निधन 8 अक्टूबर 1936 को बनारस (वाराणसी) में हुआ।

व legacy (विरासत)

मुंशी प्रेमचंद केवल एक लेखक नहीं बल्कि एक युग निर्माता थे।
उनकी रचनाएँ आज भी सामाजिक चेतना, समानता और न्याय की प्रेरणा देती हैं।
वे भारतीय ग्रामीण जीवन के सबसे सच्चे चित्रकार माने जाते हैं।
उनकी रचनाएँ आज भी स्कूलों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती हैं।

संक्षेप में

विवरण जानकारी

पूरा नाम धनपत राय श्रीवास्तव
कलम नाम मुंशी प्रेमचंद
जन्म तिथि 31 जुलाई 1880
जन्म स्थान लमही, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
भाषा हिन्दी और उर्दू
मुख्य कृतियाँ गोदान, गबन, सेवासदन, कफन, ईदगाह
मृत्यु तिथि 8 अक्टूबर 1936
उपाधि उपन्यास सम्राट
्रीराम

🔱 श्री गुरु गोविंद सिंह जी का विस्तारपूर्वक वर्णन🌟 परिचयश्री गुरु गोविंद सिंह जी सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु थे।वे क...
07/10/2025

🔱 श्री गुरु गोविंद सिंह जी का विस्तारपूर्वक वर्णन

🌟 परिचय

श्री गुरु गोविंद सिंह जी सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु थे।
वे केवल धार्मिक गुरु ही नहीं, बल्कि एक महान योद्धा, कवि, संत, दार्शनिक और राष्ट्ररक्षक भी थे।
उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की, जिससे सिखों में धर्म, वीरता और आत्मसम्मान की भावना जागृत हुई।
उनका जीवन बलिदान, साहस और धर्मरक्षा का अद्भुत उदाहरण है।

🕉️ जन्म और परिवार

पूरा नाम: गोविंद राय (बाद में गोविंद सिंह)

जन्म तिथि: 22 दिसंबर 1666 ईस्वी

जन्म स्थान: पाटना साहिब, बिहार (अब तख्त श्री हरमंदिर पाटना साहिब)

पिता: श्री गुरु तेग बहादुर जी (नवम सिख गुरु)

माता: माता गुजरी जी

जब वे मात्र 9 वर्ष के थे, तभी उनके पिता गुरु तेग बहादुर जी ने हिंदू धर्म और मानवता की रक्षा के लिए शहादत दी।
इस घटना का गुरु गोविंद सिंह जी के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा, और उन्होंने यह निश्चय किया कि वे अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध धर्म की रक्षा करेंगे।

⚔️ गुरु पद ग्रहण

सन् 1675 ईस्वी में गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान के बाद,
गोविंद राय जी ने मात्र 9 वर्ष की आयु में गुरु पद संभाला।
उन्होंने धर्म की रक्षा, समानता और अन्याय के विरुद्ध संघर्ष का मार्ग अपनाया।

🏹 खालसा पंथ की स्थापना (1699 ई.)

सन् 1699 में बैसाखी के दिन गुरु गोविंद सिंह जी ने आनंदपुर साहिब में एक ऐतिहासिक सभा बुलाई।
उन्होंने वहाँ पाँच लोगों को आगे आने के लिए कहा जो धर्म के लिए अपना सिर देने को तैयार हों।
एक-एक कर पाँच लोग उठे —
👉 भाई दया सिंह
👉 भाई धर्म सिंह
👉 भाई हिम्मत सिंह
👉 भाई मोहकम सिंह
👉 भाई साहिब सिंह

इन पाँचों को गुरु जी ने “पंज प्यारे” कहा और उनसे अमृत तैयार करवा कर खालसा पंथ की स्थापना की।

उन्होंने सभी सिखों को नया आदेश दिया कि —

> “हर सिख अब सिंह कहलाएगा और हर स्त्री कौर कहलाएगी।”

उन्होंने कहा —

> “खालसा मेरा रूप है खास, खालसे में ही मैं निवास।”

⚔️ मुख्य सिद्धांत

1. समानता: किसी भी जाति, वर्ग या पंथ का भेदभाव नहीं।

2. साहस और सेवा: धर्म के लिए निडर होकर खड़ा होना।

3. पाँच ककार:

केश (बाल)

कड़ा (लोहे का कंगन)

कंघा (कंघा)

कच्छा (नैतिकता का प्रतीक वस्त्र)

कृपाण (धर्म रक्षा का प्रतीक शस्त्र)

🏰 युद्ध और वीरता

गुरु गोविंद सिंह जी ने मुग़ल शासकों के अत्याचार के विरुद्ध कई युद्ध लड़े।
उनमें प्रमुख हैं —

1. भंगानी का युद्ध (1688)

2. नादौन का युद्ध (1691)

3. आनंदपुर साहिब का युद्ध (1700–1705)

उन्होंने धर्म और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए असंख्य बलिदान दिए।

💔 परिवार का बलिदान

गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन त्याग और वीरता की मिसाल है —

उनके पिता गुरु तेग बहादुर जी ने धर्म के लिए अपना सिर कटवाया।

उनके दो छोटे पुत्र — साहिबजादे जोरावर सिंह (9 वर्ष) और फतेह सिंह (7 वर्ष) —
सिरहिंद के नवाब द्वारा दीवार में जीवित चिनवा दिए गए।

उनके दो बड़े पुत्र — अजित सिंह और जुज्हार सिंह —
चमकौर के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।

फिर भी गुरु गोविंद सिंह जी ने अदम्य धैर्य और साहस दिखाया और कहा —

> “चार मुये तो क्या हुआ, जीवित कई हजार।”

📜 साहित्यिक योगदान

गुरु गोविंद सिंह जी एक महान कवि और दार्शनिक भी थे।
उन्होंने संस्कृत, ब्रज, हिंदी, फारसी और पंजाबी में ग्रंथ लिखे।
मुख्य रचनाएँ हैं —

जप साहिब

दशम ग्रंथ

अकाल उसतत

चंडी दी वार

उनकी रचनाएँ ईश्वर की महिमा, धर्म की शक्ति और मानवता की शिक्षा देती हैं।

🕊️ अंतिम काल

1708 ईस्वी में गुरु गोविंद सिंह जी नांदेड़ (महाराष्ट्र) पहुँचे।
वहीं उन्हें एक विश्वासघाती द्वारा चोट पहुंचाई गई, और उन्होंने 7 अक्टूबर 1708 ई. को देह त्याग किया।

उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले घोषणा की —

> “अब से कोई जीवित गुरु नहीं होगा।
‘गुरु ग्रंथ साहिब’ ही सिखों का शाश्वत गुरु होगा।”

🌼 गुरु गोविंद सिंह जी का संदेश

1. धर्म और न्याय की रक्षा करना हर इंसान का कर्तव्य है।

2. निडर बनो, पर दयालु रहो।

3. समानता, प्रेम और सेवा से समाज को जोड़ो।

4. ईश्वर एक है – वही सर्वशक्तिमान है।

✨ निष्कर्ष

गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन बलिदान, साहस, धर्म और सत्य की अमर गाथा है।
उन्होंने यह सिद्ध किया कि एक सच्चा गुरु केवल उपदेश नहीं देता,
बल्कि अपने कर्मों से युगों को प्रेरणा देता है।

उनकी वाणी आज भी गूँजती है —

> “जो बोले सो निहाल... सत श्री अकाल!” 🙏
्रीराम

महर्षि वाल्मीकि का विस्तारपूर्वक वर्णन 🌿📜महर्षि वाल्मीकि भारतीय संस्कृति के महानतम ऋषियों में से एक माने जाते हैं। उन्हे...
07/10/2025

महर्षि वाल्मीकि का विस्तारपूर्वक वर्णन 🌿📜

महर्षि वाल्मीकि भारतीय संस्कृति के महानतम ऋषियों में से एक माने जाते हैं। उन्हें आदिकवि (पहले कवि) कहा जाता है क्योंकि उन्होंने संस्कृत साहित्य का प्रथम महाकाव्य — "रामायण" की रचना की थी। उनके द्वारा रचित रामायण को भारतीय संस्कृति, मर्यादा, धर्म और आदर्शों का शाश्वत ग्रंथ माना जाता है।

🕉️ जन्म और प्रारंभिक जीवन

महर्षि वाल्मीकि का जन्म त्रेतायुग में हुआ था। उनके जन्म के बारे में कई कथाएँ प्रचलित हैं।
एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार —
उनका प्रारंभिक नाम रत्नाकर था। वे एक शिकारी या डाकू के रूप में जीवन व्यतीत करते थे। जंगल में राहगीरों को लूटना उनका काम था।

एक दिन उन्होंने महर्षि नारद को लूटने का प्रयास किया।
नारद जी ने उनसे कहा कि,

> “रत्नाकर, तुम यह पाप अपने परिवार के लिए करते हो, क्या वे तुम्हारे पाप में सहभागी होंगे?”

जब रत्नाकर ने यह प्रश्न अपने परिवार से पूछा, तो सभी ने कहा कि वे केवल उनके पुण्य के भागी हैं, पाप के नहीं।
यह सुनकर रत्नाकर को आत्मज्ञान हुआ। उन्होंने पश्चात्ताप किया और नारद जी की शरण ली।

🕉️ तपस्या और “वाल्मीकि” नाम की उत्पत्ति

नारद जी ने रत्नाकर को “राम” नाम का जप करने को कहा।
रत्नाकर इतने पापों में लिप्त थे कि वे “राम” नहीं बोल पाए, इसलिए उन्होंने “मरा-मरा” जपना शुरू किया, जो उल्टा “राम” ही था।
वे वर्षों तक ध्यान में लीन रहे। उनके शरीर के चारों ओर दीमक (वाल्मीकि) ने बांबी बना दी।
जब वे ध्यान से जागे तो वे ‘वाल्मीकि’ — यानी “दीमक की बांबी से उत्पन्न” कहलाए।

📜 रामायण की रचना

वाल्मीकि जी के आश्रम में एक दिन उन्होंने एक क्रौंच पक्षी को देखा, जिसे एक शिकारी ने मार दिया था।
उसकी मादा पक्षी विलाप कर रही थी। इस दृश्य को देखकर उनके हृदय में करुणा उमड़ आई, और उनके मुख से सहज रूप में श्लोक निकला —

> “मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत क्रौंचमिथुनादेकमवधीः काममोहितम्॥”

यह संस्कृत का पहला छंद (श्लोक) माना जाता है।
इसी से काव्य रचना की परंपरा शुरू हुई — इसलिए उन्हें आदिकवि कहा जाता है।

बाद में उन्होंने भगवान श्रीराम के जीवन, संघर्ष और मर्यादा पर आधारित रामायण की रचना की, जिसमें लगभग 24,000 श्लोक हैं।

🌿 वाल्मीकि आश्रम और सीता माता

वाल्मीकि जी का आश्रम तमसा नदी के तट पर था (वर्तमान में उत्तर प्रदेश के चित्रकूट या प्रयागराज के पास माना जाता है)।
जब माता सीता को अयोध्या से वनवास दिया गया, तो वे वाल्मीकि जी के आश्रम में आकर रहीं।
वहीं उनके गर्भ से लव और कुश का जन्म हुआ।
वाल्मीकि जी ने ही लव–कुश को रामायण सुनाना सिखाया।

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🔱 महर्षि वाल्मीकि का योगदान

1. आदिकवि के रूप में संस्कृत साहित्य की नींव रखी।

2. रामायण के माध्यम से भारतीय संस्कृति, धर्म, नीति, मर्यादा और आदर्श जीवन का मार्ग दिखाया।

3. उन्होंने समाज में यह संदेश दिया कि कोई भी व्यक्ति अपने कर्मों से महान बन सकता है — चाहे उसका अतीत कैसा भी क्यों न हो।

4. वाल्मीकि जी का जीवन पाप से तप तक, डाकू से महर्षि तक की प्रेरणादायक यात्रा है।

🌼 महर्षि वाल्मीकि जयंती

हर वर्ष आश्विन मास की पूर्णिमा को महर्षि वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है।
यह दिन साहित्यकारों, कवियों और सत्य की राह पर चलने वालों के लिए विशेष प्रेरणा का स्रोत है।

✨ निष्कर्ष

महर्षि वाल्मीकि भारतीय अध्यात्म, साहित्य और संस्कृति के आधारस्तंभ हैं।
उन्होंने यह सिद्ध किया कि सच्ची निष्ठा, साधना और आत्मचिंतन से कोई भी व्यक्ति ईश्वर का साक्षात्कार कर सकता है।
उनकी रचना रामायण आज भी हर युग में धर्म, कर्तव्य और आदर्श का दीपक जलाए हुए है।
्रीराम

विश्व वास्तु कला दिवस (World Architecture Day) का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत है।विश्व वास्तु कला दिवस: एक समग्र परिचयविश्व व...
06/10/2025

विश्व वास्तु कला दिवस (World Architecture Day) का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत है।

विश्व वास्तु कला दिवस: एक समग्र परिचय

विश्व वास्तु कला दिवस प्रतिवर्ष अक्टूबर माह के पहले सोमवार को दुनिया भर में वास्तुकला (आर्किटेक्चर) के महत्व, उसकी भूमिका और वास्तुकारों के योगदान को celebrate करने और उस पर चर्चा करने के लिए मनाया जाता है। यह दिन न केवल भवनों के डिजाइन तक सीमित है, बल्कि यह हमारे बनाए पर्यावरण, समाज और संस्कृति पर वास्तुकला के गहन प्रभाव को रेखांकित करता है।

इतिहास और उद्देश्य

· स्थापना: इस दिवस की शुरुआत 1985 में अंतर्राष्ट्रीय वास्तुकार संघ (International Union of Architects - UIA) द्वारा की गई थी।
· उद्देश्य:
1. जागरूकता फैलाना: आम जनता के बीच वास्तुकला और उसके सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व के प्रति जागरूकता पैदा करना।
2. वास्तुकारों का सम्मान: दुनिया भर के वास्तुकारों के कार्य और योगदान को सराहना और मान्यता देना।
3. वैश्विक चुनौतियों पर चर्चा: शहरीकरण, गरीबी, पर्यावरण संकट, सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण आदि वैश्विक चुनौतियों के समाधान में वास्तुकला की भूमिका पर विचार-विमर्श करना।
4. भविष्य की योजना: एक बेहतर, टिकाऊ और न्यायसंगत भविष्य के निर्माण में वास्तुकला की शक्ति को रेखांकित करना।

थीम (विषय-वस्तु)

हर साल, UIA एक विशेष थीम तय करता है जो वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों और चिंताओं पर केंद्रित होती है। यह थीम दुनिया भर में होने वाली गतिविधियों, सेमिनारों और प्रदर्शनियों के लिए केंद्रीय विचार प्रदान करती है। हाल के कुछ थीम इस प्रकार हैं:

· 2023: "आर्किटेक्चर फॉर रेजिलिएंट कम्युनिटीज" (मजबूत समुदायों के लिए वास्तुकला)
· 2022: "आर्किटेक्चर फॉर वेल-बीइंग" (कल्याण के लिए वास्तुकला)
· 2021: "क्लीन एनवायरनमेंट फॉर ए हेल्दी वर्ल्ड" (एक स्वस्थ विश्व के लिए स्वच्छ पर्यावरण)
· 2020: "टुवर्ड्स ए बेटर अर्बन फ्यूचर" (एक बेहतर शहरी भविष्य की ओर)

ये थीमें स्पष्ट करती हैं कि वास्तुकला सिर्फ सौंदर्यशास्त्र नहीं, बल्कि मानवीय जरूरतों और वैश्विक कल्याण से गहराई से जुड़ी हुई है।

महत्व और प्रासंगिकता

विश्व वास्तु कला दिवस का महत्व कई स्तरों पर है:

1. सांस्कृतिक पहचान: वास्तुकला किसी भी समाज की सांस्कृतिक पहचान, इतिहास और मूल्यों को दर्शाती है। यह दिन ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण की आवश्यकता को याद दिलाता है।
2. टिकाऊ विकास (Sustainable Development): आज की दुनिया में, हरित भवन (Green Buildings), ऊर्जा दक्षता और पर्यावरण-अनुकूल सामग्रियों का उपयोग वास्तुकला का अभिन्न अंग बन गया है। यह दिन जलवायु परिवर्तन से निपटने में वास्तुकारों की जिम्मेदारी को उजागर करता है।
3. सामाजिक न्याय: वास्तुकला सबके लिए सुलभ और समावेशी हो, इस पर विचार किया जाता है। सार्वजनिक स्थलों का डिजाइन, किफायती आवास और विकलांगजन-अनुकूल इमारतों पर चर्चा को बढ़ावा मिलता है।
4. आर्थिक योगदान: वास्तुकला उद्योग रोजगार पैदा करता है और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
5. कला और विज्ञान का संगम: यह दिन इस बात को celebrate करता है कि वास्तुकला सिर्फ इंजीनियरिंग नहीं है, बल्कि यह कला और विज्ञान का एक अद्भुत संयोजन है जो हमारे रहने के तरीके को आकार देता है।

कैसे मनाया जाता है यह दिवस?

दुनिया भर में यह दिवस विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है:

· सेमिनार और सम्मेलन: विशेषज्ञ वास्तुकार, योजनाकार और विचारक एकत्रित होकर वर्तमान चुनौतियों और भविष्य की दिशा पर चर्चा करते हैं।
· प्रदर्शनियाँ (Exhibitions): प्रसिद्ध इमारतों, नवीन डिजाइनों और छात्रों के प्रोजेक्ट्स की प्रदर्शनियाँ लगाई जाती हैं।
· हेरिटेज वॉक और भवन दौरे: लोगों को ऐतिहासिक और स्थापत्य महत्व की इमारतों का भ्रमण कराया जाता है ताकि वे वास्तुकला की बारीकियों को समझ सकें।
· पुरस्कार समारोह: युवा और प्रतिष्ठित वास्तुकारों को उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए सम्मानित किया जाता है।
· शैक्षणिक गतिविधियाँ: स्कूलों और कॉलेजों में वाद-विवाद, ड्राइंग और मॉडल मेकिंग प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं।
· सोशल मीडिया अभियान: जैसे हैशटैग के माध्यम से लोग अपने पसंदीदा भवनों की तस्वीरें साझा करते हैं और वास्तुकला पर अपने विचार व्यक्त करते हैं।

भारतीय संदर्भ में विश्व वास्तु कला दिवस

भारत में, जहाँ प्राचीन मंदिरों, मुगल स्मारकों, औपनिवेशिक इमारतों और आधुनिक गगनचुंबी इमारतों का अद्भुत मेल है, इस दिवस का विशेष महत्व है। भारतीय वास्तुकला "वास्तु शास्त्र" जैसी प्राचीन परंपराओं से लेकर आधुनिक टिकाऊ डिजाइनों तक अपनी समृद्धि प्रदर्शित करती है। इस दिन, भारत के वास्तुकार:

· पारंपरिक और आधुनिक वास्तुकला के बीच सामंजस्य पर बल देते हैं।
· तेजी से बढ़ते शहरीकरण और आवास की चुनौतियों के समाधान पर चर्चा करते हैं।
· भारत की समृद्ध स्थापत्य विरासत के संरक्षण की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।

निष्कर्ष

विश्व वास्तु कला दिवस केवल वास्तुकारों का दिन नहीं है; यह हम सभी का दिन है। यह हमें हमारे आस-पास के निर्मित वातावरण के प्रति संवेदनशील बनने का अवसर देता है। यह हमें यह सोचने के लिए प्रेरित करता है कि कैसे बेहतर इमारतें और शहर हमारे जीवन की गुणवत्ता में सुधार ला सकते हैं और एक अधिक टिकाऊ दुनिया का निर्माण कर सकते हैं।
्रीराम

मैंने उपलब्ध जानकारी के आधार पर भारत पर विश्व बैंक (World Bank) और उसके संबंधित संगठनों का कर्ज (बाध्यताएँ) बताने की कोश...
05/10/2025

मैंने उपलब्ध जानकारी के आधार पर भारत पर विश्व बैंक (World Bank) और उसके संबंधित संगठनों का कर्ज (बाध्यताएँ) बताने की कोशिश की है। ध्यान दें — “विश्व बैंक का कर्ज” कहने से आमतौर पर IBRD / IDA (World Bank Group की शाखाएँ) द्वारा भारत को दी गई बकाया ऋण राशियाँ समझी जाती हैं, लेकिन भारत की कुल बाह्य (external) ऋण स्थिति और अन्य मल्टीलेट्रल ऋणदाता (जैसे एशियाई विकास बैंक, आदि) भी इसमें शामिल हो सकती हैं।

नीचे विस्तार से जानकारी दी गई है

भारत का “विश्व बैंक” (IBRD / IDA) से बकाया कर्ज

1. IBRD Statement of Loans & Guarantees
— World Bank की “Finances One” वेबसाइट पर उपलब्ध नवीनतम स्नैपशॉट के अनुसार, भारत के लिए IBRD द्वारा वर्तमान ऋण (outstanding loans) की राशि लगभग US$ 30,244 मिलियन है।
— यह आंकड़ा “Loans and Guarantees” के अंतर्गत है, यानी वो राशि जो भारत ने ऋण के रूप में स्वीकार की है और अभी तक चुकाई नहीं है।
— यह राशि केवल IBRD शाखा से है — IDA (जो छूट वाले ऋण और अनुदान देती है) को इसमें अलग से जोड़ना होगा।

2. IBRD + IDA समेकित ऋण (Loans and Credits)
— वर्ल्ड बैंक के डेटा अनुसार, भारत के IBRD और IDA दोनों द्वारा दी गई ऋणों (Loans and credits) का “डेली पार्ट (DOD – Debt Outstanding & Disbursed)” भी सार्वजनिक डेटा के रूप में उपलब्ध है।
— हालांकि, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटा में अधिकांशतः IBRD का हिस्सा ही अधिक स्पष्ट है।

3. “विश्व बैंक” को कुल बकाया – अन्य स्रोतों का अनुमान
— एक “Top 10 biggest debtors” आलेख के अनुसार, 2023 के अंत तक भारत का विश्व बैंक (World Bank) के प्रति बकाया लगभग US$ 39.3 बिलियन था।
— यह अनुमान अधिक पुराना हो सकता है और इसमें IDA + IBRD दोनों या अन्य शाखाएँ शामिल हो सकती हैं।

इस प्रकार, भारत पर विश्व बैंक (IBRD / IDA) का बकाया कर्ज लगभग 30–40 अरब अमेरिकी डॉलर के बीच आकलित किया जा सकता है, जिसमे IBRD का हिस्सा लगभग US$ 30,244 मिलियन जैसा माना जाता है।

भारत की कुल बाह्य ऋण स्थिति और विश्व बैंक का हिस्सा

विश्व बैंक का कर्ज यदि भारत की कुल बाह्य ऋण (External Debt) के संदर्भ में देखा जाए, तो:

मार्च 2025 तक भारत की बाह्य ऋण राशि लगभग US$ 736.3 बिलियन है।

इस तरह, विश्व बैंक का हिस्सा (US$ 30–40 बिलियन) भारत की बाह्य ऋण में एक छोटा हिस्सा है, अर्थात् लगभग 4–6% के आस-पास — हालांकि यह अनुमान कई अन्य कारकों पर निर्भर है जैसे कि ऋण की समय अवधि, ब्याज दरें, और अचूक डेटा स्रोत

अतिरिक्त महत्वपूर्ण बातें एवं स्रोत

भारत के केंद्रीय बजट की “Debt Position” रिपोर्ट अनुसार, 31 मार्च 2025 को केंद्रीय सरकार का बाह्य (external) कर्ज ₹ 5,74,927.51 करोड़ (इतिहासिक विनिमय दरों पर) था।

“External debt stocks (% of GNI)” और “Total debt service (% of GNI)” जैसे संकेतक World Bank Open Data पर उपलब्ध हैं, जो यह बताते हैं कि भारत की बाह्य ऋण स्थिति उसकी आय (GNI) के सापेक्ष कैसी है।

International Debt Statistics (IDS) डेटाबेस भारत की सार्वजनिक और सार्वजनिक रूप से गारंटी वाली बाह्य ऋणों की विस्तृत श्रृंखला उपलब्ध कराती है।

्रीराम

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