Son of Purvanchal

Son of Purvanchal भर,राजभर,भारशिव,नागवंशी,शैववंशी

 #राजभर_क्षत्रिय समाज का इतिहास जो शिलापट पर लिखा गया है।6 जून 1968 का                   हर हर महादेव 🚩 #राजभर_क्षत्रियो...
28/06/2025

#राजभर_क्षत्रिय समाज का इतिहास
जो शिलापट पर लिखा गया है।
6 जून 1968 का
हर हर महादेव 🚩
#राजभर_क्षत्रियों

#महाराजा_सुहेलदेव_राजभर_जी
#राजभर_क्षत्रिय







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राजभर क्षत्रियों ने कांग्रेस, बसपा, सपा और भाजपा की सरकारें बनाईं, परन्तु एक राजनेता नहीं बना पाए जो सदन में राजभर क्षत्...
19/06/2025

राजभर क्षत्रियों ने कांग्रेस, बसपा, सपा और भाजपा की सरकारें बनाईं, परन्तु एक राजनेता नहीं बना पाए जो सदन में राजभर क्षत्रियों की वकालत कर सके और अपने महाराजा को सम्मान दिला सके।

#राजभर_क्षत्रिय याद रखेगा महोदय दोहरी व दोगली राजनीति 😡😡😡😡
पुरा नाम सम्मिलित सम्मान ✊

#महाराजा_सुहेलदेव_राजभर_जी
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सम्मानित  साथियों,नमस्कार  कल  दिनांक 10-06-2025 को जनपद बहराइच की चित्ताड़ा झील के किनारे महाराजा सुहेलदेव राजभर स्मारक...
11/06/2025

सम्मानित साथियों,

नमस्कार

कल दिनांक 10-06-2025 को जनपद बहराइच की चित्ताड़ा झील के किनारे महाराजा सुहेलदेव राजभर स्मारक पर्यटक स्थल पर सुभासपा के अध्यक्ष माननीय ओम् प्रकाश राजभर के साथ प्रदेश के सरकार के मुखिया माननीय योगी आदित्यनाथ जी का महाराजा के विजय दिवस के उपलक्ष में कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम में सुभासपा के अध्यक्ष और प्रदेश के मुखिया द्वारा भर/राजभर ने समाज के इतिहास के साथ महाराजा की जाति को लेकर बहुत ही भद्दा मजाक किया गया।

महाराजा सुहेलदेव राजभर का इतिहास इन्हीं सवर्ण जातियों के लेखकों द्वारा एक हजार वर्षों तक छिपाकर रखा गया था। अब जब महाराजा का प्रामाणिक इतिहास सामने आया है तब ये सवर्ण जातियां उसे विकृत करने का घृणित और कुत्सित प्रयास कर रही हैं। यह घोर आपत्तिजनक और निन्दनीय कृत्य है।

एक नंगी कुल्हाड़ी किसी पेड़ को युं ही नहीं काट सकती। पेड़ को काटने के लिए उसे पेड़ की एक लकड़ी बेंट के रूप में चाहिए। इसी बेंट की मदद से पेड़ को काट गिराया जा सकता है। भाजपा सरकार में भर/राजभर समाज के एक नहीं दो मंत्री ( ओम प्रकाश राजभर और अनिल राजभर) कुल्हाड़ी का बेंट बन चुके हैं और हमारे इतिहास के पेड़ को कटवाने में भरपूर मदद कर रहे हैं। इसका बदला समाज लेने के लिए कमर कस लें और ऐसे नेताओं को सबक सिखाने के लिए एक जुट हो जाये।

साथियों ! नेता बहुत मिल जायेंगे पर एक बार इतिहास बिगड़ा तो उसे सुधारने में हजारों वर्ष लगेंगे। हमारी आने वाली नस्लें इतिहास के अभाव में दिशाहीन हो जायेंगी। आप सभी लोग इन नेता द्वय को उनकी औकात दिखाने के लिए तैयार हो जांय।

सरकार के राजकीय अभिखागार के प्रमाण, सरकार के राजपत्र गजेटियर, भारतीय पुरातत्व के शोध पत्रों, इन्डियन एन्टीक्वयरी के अभिलेखों, विदेशी इतिहासकारों के शोध ग्रंथों आदि की अनदेखी कर उत्तर प्रदेश की सरकार हमारे इतिहास की पीठ पर नहीं, पेट पर प्रहार कर रही है। इसका हमें भरपूर तरीके से प्रतिकार/विरोध करना है।वरना हमें हमारा इतिहास कभी क्षमा नहीं करेगा। जगह जगह इन दोनों मंत्रियों का भरपूर विरोध होना चाहिए।
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भारतीय स्वाभिमान, संस्कृति और शाश्वत सनातन मूल्यों की रक्षा के लिए आजीवन संघर्ष करने वाले महान शासक, 'राष्ट्र रक्षक'  #म...
10/06/2025

भारतीय स्वाभिमान, संस्कृति और शाश्वत सनातन मूल्यों की रक्षा के लिए आजीवन संघर्ष करने वाले महान शासक, 'राष्ट्र रक्षक' #महाराजा_सुहेलदेव_राजभर_जी की विजय दिवस पर कोटि-कोटि नमन। 🙏🚩🚩




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 #शौर्य  #दिवसआज  #गौरवान्वित  करने वाला दिन है हर  #भारतीय के लिए...हम उनकी  #संतान है जो  #बचपन मे  #शेर के  #दाँत गिन...
10/06/2025

#शौर्य #दिवस

आज #गौरवान्वित करने वाला दिन है हर #भारतीय के लिए...हम उनकी #संतान है जो #बचपन मे #शेर के #दाँत गिना करते थे।..

#इतिहास के #पन्ने भरे पड़े हैं भर/भारत राजाओं के नाम से
#झुका के #सर नही मरे हैं... #मरें हैं वो #शान से

कुछ पन्ने इतिहास के मेरे #मुल्क के सीने में शमशीर हो गये! जो #लड़े, जो मरे ,वो #शहीद हो गये
जो #डरे, जो झुके ,वो #वजीर हो गये.🙏

#10जून को #श्रावस्ती भर #सम्राट #सुहेलदेवराजभर जी ने #विदेशी #आक्रांता #गाजी को मारकर #भारत के #संस्कृति, सभ्यता, धर्म की #रक्षा की 🙏

जय हो भर सम्राट, जय हो भारत🙏
उसूलों पे आंच आ जाये तो टकराना जरूरी है! जो जिन्दा हो तो फिर जिन्दा नजर आना जरूरी है!🙏
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🙏🙏🙏

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27/04/2025

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 #छावा फ़िल्म देखने के बाद 🤔🤔सिर्फ इतिहास से सबको अवगत कराने की कोशिश कर रहा हूँ- क्योंकि फिल्म में उतनी क्रूरता नहीं दि...
09/03/2025

#छावा फ़िल्म देखने के बाद 🤔🤔

सिर्फ इतिहास से सबको अवगत कराने की कोशिश कर रहा हूँ- क्योंकि फिल्म में उतनी क्रूरता नहीं दिखाई गई जितनी इन्होंने की और खास सोच वाले ये लोग करते हैं..!!

औरंगजेब ने 'छावा' ~ छत्रपति संभाजी महाराज को कैसे मारा?

फिल्म में क्या नहीं दिखाया गया...👇👇

सबसे पहले, छत्रपति संभाजी महाराज को तक्ता कुलाह (ईरान में अपराधियों को पहनाई जाने वाली टोपी) पहनाई गई।
यह एक जोकर की तरह बहुरंगी पोशाक थी, जिसके सिर पर एक भारी लकड़ी की टोपी थी।

-उनके गले में एक भारी लकड़ी का ब्लॉक रखा गया, जिस पर बहुत बोझ था। उनके हाथ ब्लॉक से बंधे थे। इस ब्लॉक से घंटियाँ भी बाँधी गई थीं।

उनके हाथों और शरीर पर लोहे की भारी जंजीरें बाँधी गई थीं।
फिर, हर पल, महाराज और कलश को प्रताड़ित किया गया।
उनके आस-पास के लोग भी उन्हें पीड़ा पहुँचा रहे थे।
महाराज और कवि कलश पर पत्थर फेंक रहे थे।

उसके बाद, महाराज को एक बौने ऊँट पर बिठाकर घुमाया गया। साथ में ढोल और दूसरे वाद्य भी बजाए गए।
-विभिन्न प्रकार की यातनाएँ और अपमान दिए गए।

जब संभाजी महाराज दरबार में उपस्थित हुए, तो संभाजी महाराज खून से लथपथ थे।

इतना दर्द सहने के बाद भी संभाजी महाराज औरंगजेब के सामने नहीं झुके। उन्होंने औरंगजेब पर दहाड़ लगाई।

उसी रात महाराज की आँखों में लोहे की गर्म छड़ें घुसा दी गईं, जिससे वे अंधे हो गए।

उनके हाथ काट दिए गए, और कवि कलश की जीभ काट दी गई।

इसके बाद, अभिमानी संभाजी महाराज ने भोजन त्याग दिया।

अगले 15-20 दिनों तक, संभाजी महाराज ने अकल्पनीय यातनाएँ सहन कीं।

उनकी खाल उधेड़ दी गई।

फिर, तलवार से संभाजी महाराज का सिर काट दिया गया। सिर अलग होने के बाद, उसमें भूसा भर दिया गया, और उसे भाले पर रखकर शहर भर में घुमाया गया।

फिर, संभाजी महाराज के शरीर को टुकड़ों में काटने का आदेश दिया गया - उनके क्षत-विक्षत शरीर को तुलापुर के पास फेंक दिया गया।

इतिहास में शायद ही कोई ऐसा राजा हुआ हो जिसने पहाड़ की तरह गर्व के साथ मृत्यु को गले लगाया हो।

दिल दहला देने वाली यातनाओं के बावजूद, इस राजा ने मृत्यु को स्वीकार किया लेकिन औरंगजेब के सामने कभी नहीं झुका... उसने मृत्यु और बहुत सारी यातनाएँ चुनीं। हमारा इतिहास ऐसे वीर योद्धाओं के खून से सना हुआ है।

लेकिन याद रखें कि यह सिर्फ एक फिल्म नहीं है। यह हमारे पूर्वजों का जीवन है जिन्होंने #धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया। उन्होंने #धर्मांतरण और आक्रमणकारी पंथों के अधर्म का पालन करने के बजाय मृत्यु को गले लगा लिया। आप और मैं अभी भी जी रहे हैं और एक ऐसे धर्म का पालन कर रहे हैं जो दुनिया का सबसे पुराना धर्म है जो उनके बलिदानों के कारण जीवित है। उन्होंने सत्ता, पैसे या जीवन के अन्य सुखों के लिए धर्मांतरण नहीं किया बल्कि #धर्म के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।

#अपनी विरासत को अपनाएँ और कुछ भौतिक सुखों के लिए न गिरें। हमारे धर्म का पालन करें और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए राष्ट्र की रक्षा करें।

ानी 🔥🔥
जय शिवाजी महाराज 🤴
जय महाराजा सुहेलदेव राजभर 🙏🙏

जय हिन्द 🙏🙏

मध्यनप्रदेश के मूल निवासी राजभरों की गोत्र प्रथा * (लेखक-आचार्य शिवप्रसादसिंह राजभर ‘’राजगुरु’’) (यह लेख राजभर मार्तण्डय...
22/02/2025

मध्यनप्रदेश के मूल निवासी राजभरों की गोत्र प्रथा *
(लेखक-आचार्य शिवप्रसादसिंह राजभर ‘’राजगुरु’’) (यह लेख राजभर मार्तण्डय मासिक के अगस्त्, सितम्ब र, अक्टूाबर 2005 अंक में तथा राजभर शोध लेख संग्रह में छप चुका है । प्राय; यह देखा जा रहा है कि कठिन परिश्रम के साथ खोजबीन कर लेख तैयार किए जाते हैं ,इस उम्र में भी कम्पो,जिंग करने के बाद इन्ट5रनेट में डाले जाते हैं किन्तुे राजभर समाज के बन्धुकओं को ऐतिहासिक लेखों में जो रुचि लेना चाहिए वह नहीं लेते ,जातीय स्वासभिमान रहित होने का यह भी एक लक्षण है । ध्याहन रखें जो कौम अपना जातीय इतिहास नहीं जानती ,उसे सुरक्षित नहीं रख सकती ,वह नया इतिहास बनाने में सक्षम नहीं हो सकती । )
मध्यनप्रदेश के मूल निवासी राजभरों के अलावा राजभर समाज के लोग कहते हैं कि उनका गोत्र भारद्वाज है । देखा-देखी मध्य्प्रदेश के मूल निवासी भी इसका अनुसरण करने लगे हैं, जबकि गोत्र विभिन्नकता उनके यहां पहले से ही विद्यमान है । सीधी-सादी बात है यदि सम्पूेर्ण समाज का गोत्र भारद्वाज है, चाहे वह ऋषि भारद्वाज के नाम पर प्रचलित हो श अवध नरेश महाराज भारद्वाज के नाम से प्रचलित हो तो सभी का सगोत्र विवाह क्योंख ।
शास्त्रों की बात छोड भी दी जाये तो भी वैज्ञानिक दृष्टि से सगोत्र विवाह जायज नहीं है ,चाहे वह किसी भी पीढी में हो । यथार्थ तो यह है कि उच्च होने की लालसा ने हमें भारद्वाज होने का ढिढोंरा तो पिटवा दिया किन्तु कभी इस ओर ध्‍यान नहीं दिया कि राजभरों में सगोत्री विवाह के कारण इस गोत्र का रत्तीे भर महत्व नहीं है । चर्चा करने पर प्राय; लोग कहते हैं कि हम एक दूसरे से दो-चार पीढी की जानकारी ले लेने के बाद ही विवाह करते हैं । यह तर्क आप दूसरों को तसल्ली् देन या अपनी झेंप मिटाने के लिए देते हैं । यह तर्क एकदम बकवास है । आप अपने समय के सम्बंीध में जानकारी नहीं रख पाते फिर दो-चार पीढियों की जानकारी रखने का ढोंग करते हैं । वह इसलिए कि इस तर्क के सामने रखने के अलावा आपके पास कोई चारा नहीं है । मान लिया आपका गोत्र भारद्वाज है तो भी आपका पारिवारिक सम्बोेधन अथवा उपगोत्र कुछ न कुछ तो होना चाहिए ,जिसका पीढी दर पीढी आप उपयोग करते आ रहे हों । वह भी आपके पास नहीं है । इस सबके न होने पर कम से कम तीसरी पीढी में एक ही परिवार के लोगों में विवाह सम्बंीध हो जाने से बच पाना मुश्किल है । (मेरे सामने ऐसे कई उदाहरण आये है कि गोत्र विभिन्नहता न होने से एक ही परिवार के भाई बहनों में विवाह सम्बं ध हो गये ।)
यथार्थ तो यह है कि इस दिशा में राजभर समाज ने सोचने समझने का कभी प्रयास ही नहीं किया,जिसका परिणाम राजभर समाज इस रूप में भोग रहा है कि जीन्सय चेन्ज न होने के कारण इस जाति की प्रवृत्ति एवं प्रकृति जातीय स्वामभिमान से रहित सी हो गई है और अपने ही समाज को विघटित करने में अधिक रुचि लेती है ।
आपको यह जानकर आश्चजर्य होगा कि भारशिवनाग अथवा भर-राजभर जाति से टूटकर बनी तामियां जिला छिंदवाडा मध्यगप्रदेश की पातालकोट की भारिया जनजाति में 51 गोत्र पाए जाते हैं ,और ये भारिया आदिवासी सम-गोत्री विवाह नहीं करते । प्राय; हर जाति में गोत्रों का चलन है । राजभर समाज का समाजशास्त्रीशय अध्यतयन किए जाने की नितान्तृ आवश्यिकता है । मध्यमप्रदेश में मूल निवासी राजभरों में-मुख्यर रूप से जबलपुर, कटनी जिलों के हवेली पचेल, कनौजा क्षेत्र के मूल निवासी राजभरों में पारिवारिक नाम (बैंक) हैं जिनका कि गोत्र के समान उपयोग होता है । यहां भारद्वाज, कश्ययप, चान्द्रा यण, कृष्णाकत्रेय आदि गोत्र तो हैं किन्तुि इनकी आवश्य्कता नहीं है ,क्योंधकि विवाह सम्बंगध में रक्त शुद्धता बनाए रखने के उद़देश्य‍ से पारिवारिक सम्बो‍धनों का उपयोग ही पर्याप्त् है । ये सम्बोंधन पीढी दर पीढी चले आ रहे हैं । हवेली, पचेल एवं कनौजा के राजभरों में चौहान-छैलमुकरा-शैलमुक्ताद, कलार, बढेला-बघेला), खरवरिया, चन्देकल, नेकवार-रैकवार, बिलियागढ, पुण्डां-पाण्डोे, जंगरिया, दुर्जेला, सिठिया, कुलभनियां-कुशभवनियां, महतेला-महत, पलहा-पलिवार, राजपटेल, मुण्ड्वरिया, सरवरिया-सरवैया, रहतिया, सुरहतिया, गुलेटा, खिलैंयां, गरवाल, बम्ह‍नियां आदि भेद पाए जाते हैं । इन्हें यहों बेंक यानी शाखा कहा जाता है। खरवरिया-खरवार-खैरवार राजभर इसी बेंक के राजभर में शादी नहीं कर सकता । पलहा राजभर पलहा राजभर में शादी नहीं कर सकता । कहने का तात्प र्य यह है कि एक ही सम्बो धन बेंक वाले राजभर आपस में विवाह सम्बं ध नहीं कर सकते । आपको दो-चार पीढी की दास्ता न याद रखने की आवश्योकता नहीं है । केवल आपको आपका बेंक मालुम होना चाहिए । यह बेंक स्वािभाविक रूप से परिवार के लोगों को याद रहते हैं । आप यहां किसी राजभर के बच्चेय से पूछेंगे कि उसका बेंक क्या है अथवा वह कौन सा राजभर है तो वह बता देगा कि उसका बेंक क्या है अथवा वह कौन सा राजभर है । उक्तच बेंक कुछ अपभ्रन्शस रूप में हैं । खरवरिया वास्तुव में महाराजा मदन 1158-1190 ईस्वी मिर्जापुर से सम्बं धित हैं । महाराजा मदन राजभरों की उपजाति खरवारया-खैरवार से सम्बंयधित थे चन्दे ल जैजाकभुक्ति के चन्दे1लों से । इसी प्रकार अन्यु बेंको या गोत्रों का सम्बंरध किसी न किसी से जुडा है । राजभर समाज का प्रबुद्धवर्ग चाहता है कि भर या राजभर जाति की उपजातियां जो कि वर्तमान में स्वोतंत्र जातियों के रूप में हैं वे एक हो जायें और आपसी सम्बंसध बनाना प्रारम्भु कर दें । जिनका इतिहास एक है और जो भरत, भर, भारशिव या राजभर के मूल इतिहास के खण्डक हैं ,उन्हेंस एक होना ही चाहिए । यह जो हम अभी सोच रहे हैं , मध्य प्रदेश के हवेली, पचेल कनौजा क्षेत्र में सदियों पहले कार्यान्वित किया जा चुका है । खैरवार, चन्दे ल, पाण्डो , महत, पालिहा ,पटेलिया, खैरवार-खरिया, मण्डिया, पाण्डोय आदि मध्यवप्रदेश में जनजाति की सुची में हैं ,और राज्जएहर अनुसूचित जाति की सुची में । मुझे लगता है कि सदियों पहले राजभरों से बिछुडे स्व,जनों ने कोई महाधिवेशन कर राजभर जाति का महासंघ बनाया होगा । आज हम काफी प्रगतिशील हैं । अभी भी खैरवार ,रजवार ,चन्दे ल, रज्झशर जो हमारे अपने हैं इन्हेंह अपने साथ चलने के लिए आमंत्रित करना चाहिए । हमें केवल इसी उद़देश्यज के लिए एक महाधिवेशन करने की नितान्तज आवश्येकता है है । गोत्रों पर भी विचार आवश्यहक है । (यहां मैं यह भी बता दूं कि मध्यकप्रदेश में राजभर समाज का रघुवंशियों से भी वैवाहिक सम्बंतध होता है , श्री हजारीलाल जी रघुवंशी जो कि मध्य प्रदेश विधान सभा के अध्याक्ष रहे हैं एवं होशंगाबाद जिले से हैं के रघुवंशी समाज में राजभर समाज कई वर्षों से वैवाहिक सम्बंहध बना चुका है जो कि अभी भी जारी है । ) मध्य्प्रदेश में राजभरों के प्रचलित पारिवारिक पहचान या गोत्रसें के विषय में मैंने 51 वर्ष पूर्व पूज्य श्री राजेन्द्र प्रसाद जी राजभर वाराणसी से पत्राचार किया था । वे इसका समाधान नहीं कर पाये थे । हां इतना अवश्यव लिखा था कि बढेला शायद विन्येमै ला का रूप हो । इसी प्रकार कुछ अन्या उपनामों (बेंकों) के बारे में बताया था । मेरे नये शोध के अनुसार- मैंने जब भारशिव नागों के विषय में मध्यपप्रदेश और महाराष्ट्रज के विदर्भ में प्राप्तब वाकाटक नरेशों के द्वारा उत्कीइर्ण ताम्रपत्रों का अध्य यन किया तो मालुम हुआ कि कि मध्यमप्रदेश के मूल निवासी राजभरों के बहुत से बेंक या गोत्र उन गांवों के नाम पर भी प्रारम्भर हुए जिन गांवों का उल्ले ख उन ताम्रपत्रों में है जैसे महत्तधर गांव से महत या महतेला ,शैलपुर ग्राम से शैलमुक्ताय या छैलमुकरा , बम्ह‍नी से बम्ह्निया आदि । यह और भी शोध का विषय है ।
गोत्रों का उद़भव कई प्रकार से होता है । गोत्र किसी ऋषि के नाम पर होता है । प्रवर ऋषियों के नाम पर भी गोत्र चलता है । मुख्यम रूप से गोत्रों के निम्नांरकित प्रकार होते हैं - मूल वंश का गोत्र, वीर्यजन्य गोत्र, उपाधिजन्य गोत्र, स्थायनजन्यं गोत्र, शिष्ये परम्प्रागत गोत्र आदि । गोत्रों के विषय में विस्तुडत चर्चा हेतु मैंने राजभर मार्तण्डो मासिक पत्रिका के माध्योम से भी प्रयास किया । लोगों ने अपने विचार भी रखे किन्तु‍ कोई खास परिणाम सामने नहीं आए । गोत्रों के विषय में विस्तृणत चर्चा हेतु आपके सुझाव आमंत्रित हैं ।





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फिरोज शाह तुगलक की माता नेला राजपूत थी।पीढी दर पीढ़ी रिस्तेदारी रही है।फिरोजशाह तुगलक का पिता रज्जाव की बीबी भी राजपूत नै...
18/02/2025

फिरोज शाह तुगलक की माता नेला राजपूत थी।पीढी दर पीढ़ी रिस्तेदारी रही है।फिरोजशाह तुगलक का पिता रज्जाव की बीबी भी राजपूत नैला भाटी थी।भर भर के डोली दी राजकुमारियों की जब बेचा जमीर तब बने राजा।
श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना आईटी सेल उत्तर प्रदेश @हाइलाइट प्रशांत सेंगर राकेश सिंह रघुवंशी MYogiAdityanath Amit Singh उत्तर प्रदेश ठाकुर Ram Surat Rajbhar Rahul Kumar Rajbhar भारशिव राजनारायण राजभर द ग्रेट भारशिव भर/राजभर क्षत्रिय फाइल Bharshiv Ranjeet Rai Prince Rajbhar RamAshish Rajbhar Basant Singh Abhimanyu Bhardwaj बीजेपी उत्तर प्रदेश Amar Bahadur Singh फेसबुक फॉलोअर्स pm Modi ji Phool Chand Pasi

RajbharBrand2.0  #भारशिव_नागवंशीय_क्षत्रिय  ाजभर साम्राज्य के कुल गौरव  #महाराजा_सुहेलदेव_राजभर के नाम की चोरी करने वालो...
18/02/2025

RajbharBrand2.0 #भारशिव_नागवंशीय_क्षत्रिय ाजभर साम्राज्य के कुल गौरव #महाराजा_सुहेलदेव_राजभर के नाम की चोरी करने वालों, जिसे यह भी नहीं पता है, जन्म दिवस हैं या विजयदिवस, और जो फोटो लगाएं हैं, राजभर विकास संस्था (rvs) द्वारा बनाई गई है , सिर्फ चोरी करने से महापुरुष किसी के नहीं हो जाते, चोर तो चोर रहेगा 🤔
मुग़लपूतो,दाशीपुत्रो

हद है भाई 🤔🤔
दो शब्द इनके लिए भी 🙏

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हमारे पूर्वज बहुत ही बुद्दिमान थे, वे मातृभूमि की रक्षा करते हुए परास्त होने के बाद भी भर  वीरो की याद में टीला बनाने सु...
03/02/2025

हमारे पूर्वज बहुत ही बुद्दिमान थे, वे मातृभूमि की रक्षा करते हुए परास्त होने के बाद भी भर वीरो की याद में टीला बनाने सुरु किये, जिसे हम डीह कहते है और ज्यादातर डीह में उन शहीद भरो से जुडी चीजे डाल कर, जैसे उनकी प्यारी वस्तु या पत्थर के हाथी घोड़े को डाल कर उनका उपासना शुरू किया ताकि आने वाली वन्सजो को याद रहे की वो कौन है ?

||"भर" शुरवीरो की अवशेषों की वतन वापसी के लिए मोदी जी से निवेदन किया गया है।|

वीर "भर" वंश का ही भारत जीसकी निशानी आज भी लंदन में मौजूद है||

अलाउद्दीन महमूद शाह (1242-1246 ई.) जब गद्दी पर बैठा। नासिरुद्दीन महमूद को अवध गजेटियर प्रथम भाग के पृष्ठ 114 पर "Destroyer of the Bhars" कहा गया है । भरों की सेना ने कुहराम मचाया और बहादुरी से डटे रहे। भरतपुर स्टेट (राजस्थान) के भर सैनिक गंभीर नदी के किनारे बयाना नामक गांव के मैदान में बड़ी बहादुरी से नासिरुद्दीन से लड़ें, और हजारों की संख्या में वहां मारे गये। देश के लिए अपने जान की कुर्बानी देने वाले बहादुर भर सैनिकों को उसी गंभीर नदी के किनारे दफना दिया गया। आज भी जमींन के नीचे वहां नर कंकाल बड़ी मात्रा में पाये जाते हैं। सन् 1903 ई. में गंभीर नदी पर पुल बनाने के लिए एक अंग्रेज अधिकारी खुदाई करवा रहा था। उस खुदाई के दौरान सामूहिक रूप से दफन किए गये भर सैनिकों के तीस फिट जमींन के नीचे कतारों में बहुत से नर कंकाल मिले। इन नर कंकालों में से केवल एक सौ नर कंकालों को अंग्रेज अधिकारी ने बम्बई के फोर्ट में स्थित प्रिन्स वेल्स आप म्युजिअम के विभाग "बम्बई नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी" में भेज दिया। परन्तु वहां जांच की अच्छी सुविधा न होने के कारण ये नर कंकाल डा. के. आर.केतकर की देखरेख में "एन्थ्र् पोलोजिकल इन्स्टीट्यूट आफ बम्बई" में भेज दिया गया। यहां भी जांच की अपेक्षित सुविधा न हो सकने के कारण ये नर कंकाल विधिवत पैकिंग कर डा. मोदी ने जांच के लिए "रायल कालेज आफ सर्जन, इंग्लैंड " भेज दिया। इन नर कंकालों की विधिवत जांच डा. ए. बी. कीथ ने किया और अपनी जांच रिपोर्ट में भारतीय पुरातत्व विभाग को बताया कि ये नर कंकाल भारत में निवास करनेवाली महान भर जाति के हैं, जो सन् 1246 ई. में नासिरुद्दीन महमूद के नर संहार के समय मारे गये थे। कुछ खोपड़ियों पर भाले से मारे हुए निशान अवस्था में हैं। आज भी लन्दन के संग्रहालय में सुरक्षित रखें गये हैं। भारत की रक्षा में अपने प्राण गंवाने वाले ऐसे सूर वीरों की अस्थियां आज भी विदेश में पड़ी हैं, पर देश के आजाद होने के बाद भी हम इसे अपने वतन न! ला सके, यह देश का दुर्भाग्य
#फेसबुक
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आप सभी को  बसंत पंचमी और चक्रवर्ती सम्राट राष्ट्रवीर महाराजा  #सुहेलदेव_राजभर जी के जन्मदिवस हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं...
02/02/2025

आप सभी को बसंत पंचमी और चक्रवर्ती सम्राट राष्ट्रवीर महाराजा #सुहेलदेव_राजभर जी के जन्मदिवस हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 💐💐💐🙏🙏🙏

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