15/11/2025
NDA का “जंगल राज” नैरेटिव चला क्योंकि RJD उसे काट ही नहीं पाई
यह मामला किसी एक वार से नहीं टूटा—यह पूरा घेरा था।
1. NDA का “जंगल राज” फ्रेम—सबसे तेज चोट
तेजस्वी कितनी भी कोशिश करें, RJD को लेकर लोगों के दिमाग में एक पुरानी स्मृति बैठी है—अराजकता, अपराध, डर।
NDA ने उसी याद को फिर से सामने लाया।
हर पोस्टर, हर भाषण, हर बयान में एक लाइन थी—
“अगर इनको मौका दिया तो बिहार फिर पीछे जाएगा।”
यह फ्रेम चुनाव के आखिरी हफ्ते में सबसे ज़्यादा असर कर गया।
कई फ्लोटिंग वोटर सिर्फ इसी डर से NDA की तरफ झुक गए।
2. महिला वोटर—तेजस्वी की सबसे बड़ी चूक
बिहार में अब महिलाएँ सिर्फ साइलेंट वोटर नहीं रहीं।
उनका वोट निर्णायक है और यही समूह NDA के साथ मजबूती से खड़ा रहा।
कारण साफ है—
राशन, उज्ज्वला, DBT, स्कॉलरशिप, स्वास्थ्य लाभ, जीविका समूह…
ये स्कीमें सिर्फ कागज पर नहीं थीं, लोग अपने घर में उनका असर महसूस कर रहे थे।
तेजस्वी ने महिलाओं पर उतना जोर नहीं दिया जितना देना चाहिए था।
रैलियों की भीड़ बड़ी थी, लेकिन महिलाओं का भरोसा नहीं टूटा।
3. RJD का कोर वोट — लगा रहने के बावजूद बूथ तक नहीं पहुँचा
RJD की रैलियाँ भीड़ से भरी थीं, उत्साह था, माहौल था—
लेकिन वोटर को बूथ तक ले जाने वाली मशीनरी कमजोर थी।
यादव-वोट बैंक मजबूत है, पर इस बार turnout उतना हाई नहीं रहा।
गाँवों में जहाँ RJD हमेशा बढ़त लेती थी, वहां वोट प्रतिशत गिरा।
और बिहार चुनाव सिर्फ समर्थन से नहीं जीते जाते—
समर्थन + मतदान = जीत
RJD इसमें दूसरी सीढ़ी पर फिसल गई।
4. महागठबंधन की अंदरूनी लड़ाई
कांग्रेस सीटें मांगती रही।
लेफ्ट अपनी रणनीति अलग चलाता रहा।
RJD टिकट बंटवारे में अपनी गणना में उलझा रहा।
और अंत में, महागठबंधन एक टीम की जगह अलग-अलग स्टैंड पर खेलता दिखा।
वोटर ने महसूस किया—
“ये लोग खुद एक-दूसरे से संतुलन में नहीं हैं, सरकार क्या संभालेंगे?”
नेतृत्व अस्थिर दिखा, जबकि NDA एकजुट और डिसिप्लिन्ड नजर आया