Far and Away

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घमंडी अरबपति ने महिला सफाईकर्मी पर शराब उँड़ेल दी - बस 10 मिनट बाद, उसे भारी कीमत चुकानी पड़ीमुंबई के सबसे आलीशान पाँच स...
01/10/2025

घमंडी अरबपति ने महिला सफाईकर्मी पर शराब उँड़ेल दी - बस 10 मिनट बाद, उसे भारी कीमत चुकानी पड़ी
मुंबई के सबसे आलीशान पाँच सितारा होटल में यह भव्य समारोह बड़े ही उत्साहपूर्ण माहौल में हुआ। ऊपरी मंज़िलें रोशनी से जगमगा रही थीं, खुली खिड़कियों से रात के आसमान में पूरा शहर जगमगा रहा था। सितार और वायलिन की मधुर ध्वनियाँ गूंज रही थीं, क्रिस्टल के गिलासों में शैंपेन की बूँदें बह रही थीं, और शानदार कपड़े पहने मेहमानों ने टोस्ट के लिए अपने गिलास उठाए।

इस समारोह के केंद्र में तीस के दशक के एक युवा अरबपति अर्जुन मल्होत्रा ​​थे। वह अमीर हैं, ताकतवर हैं, अपने अरबों डॉलर के सौदों के लिए मशहूर हैं। लेकिन वह अपने घमंड और दूसरों के प्रति तिरस्कार के लिए भी मशहूर हैं। अर्जुन के लिए, अमीर और गरीब न केवल एक दूरी हैं, बल्कि मानवीय मूल्य निर्धारित करने का एक कारण भी हैं।

हँसी के बीच, एक छोटी सी आकृति चुपचाप अंदर आई। 25 साल की अनन्या, एक साधारण सफाईकर्मी की वर्दी पहने हुए। उसका चेहरा नाज़ुक था, लेकिन थकान का एहसास था, उसकी आँखें दृढ़ थीं। अनन्या ने यह काम अपनी शाम की कॉलेज की ट्यूशन फीस भरने के लिए किया, और साथ ही लखनऊ में अपनी बीमार माँ की मदद के लिए पैसे भी भेजे।

ज़मीन पर गिरे शराब के छींटे सावधानी से पोंछते हुए, उसने गलती से अर्जुन की पैंट का किनारा छू लिया। पानी की कुछ बूँदें उसके चमकदार जूतों पर गिर गईं। पूरा हॉल तुरंत खामोश हो गया, मानो किसी प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रहा हो।

अर्जुन की भौंहें तन गईं, उसके होठों की मुस्कान गायब हो गई। उसने अनन्या को तिरस्कार से देखा और फिर दाँत पीसते हुए कहा:
— "क्या तुम जानती हो कि इन जूतों की कीमत कितनी है? तुम इन्हें ज़िंदगी भर नहीं खरीद सकती!"

लेकिन रुकने से पहले, अर्जुन ने मेज़ पर रखी शैम्पेन की बड़ी बोतल उठाई। दर्जनों लोगों की निगाहों के सामने, उसने उसे ऊपर उठाया, फिर बोतल को उल्टा कर दिया, जिससे ठंडी शराब अनन्या के सिर पर गिर गई।

शैम्पेन हर जगह फैल गई, अनन्या के गहरे काले बाल और सादी वर्दी भीग गई। वह स्थिर खड़ी रही, उसके कंधे हल्के से काँप रहे थे, लेकिन उसकी आँखों से एक भी आँसू नहीं निकला। उसके आस-पास कुछ लोगों की साँसें रुक गईं। कुछ महिला मेहमानों ने अपने मुँह ढक लिए, उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि अभी क्या हुआ है।

अर्जुन ने खाली बोतल एक तरफ फेंक दी और विजयी भाव से सिर उठाया। उसकी नज़र में, यह बस उस नीच व्यक्ति के सामने "दिखावा" करने का एक तरीका था जिसने उसकी चीज़ें गंदी करने की हिम्मत की। माहौल शांत हो गया। अरबपति की ताकत के डर से किसी की भी बोलने की हिम्मत नहीं हुई।

लेकिन सिर्फ़ 10 मिनट बाद, अर्जुन को एहसास हुआ कि उसने अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती कर दी है।

संगीत बंद हुआ, मुख्य अतिथि मंच पर आए। उनकी आवाज़ गूँजी:
— "कृपया आज रात की ख़ास हस्ती पर ध्यान दें - जिसे समाज में उसके नेक योगदान के लिए सम्मानित किया जाएगा। वह हैं... अनन्या शर्मा।"

पूरा हॉल स्तब्ध रह गया। यह वही लड़की थी जिसका अभी अपमान हुआ था।

अनन्या धीरे-धीरे आगे बढ़ी..
पूरी कहानी कमेंट्स में पढ़ें👇👇

17/09/2025
09/09/2025

💔 “आख़िरी सहारा”

गाँव के एक कोने में रहते थे गंगाशरण जी। उम्र सत्तर से ऊपर हो चुकी थी।
सफ़ेद दाढ़ी, काँपते हाथ, और आँखों में वही उम्मीद – “बच्चे अब आएँगे…”

ज़िंदगी भर उन्होंने खून-पसीना बहाकर खेती की,
दो बेटों को शहर भेजा, पढ़ाया, अच्छी नौकरी लगवाई, शादी करवाई।
सोचा था – अब बुढ़ापे में बच्चे उनका सहारा बनेंगे।

लेकिन हक़ीक़त कुछ और निकली।

बड़ा बेटा शहर में मकान मालिक बन गया।
पिताजी से कहता –
“बाबा, यहाँ आपका क्या काम? गाँव में ही रहिए, हमें शहर की दौड़-भाग में समय नहीं मिलता।”

दूसरा बेटा नौकरी करता था, पत्नी हर वक़्त ताने देती –
“आपके पापा आएंगे तो खर्चा बढ़ेगा, जगह भी कम है, हमें तंग मत कीजिए।”
और बेटा चुप रह जाता।

गंगाशरण जी हर महीने उम्मीद से बेटों को चिट्ठी लिखते –
"बेटा, अब तबियत साथ नहीं देती, बस एक बार आ जाओ, तेरी माँ की बहुत याद आती है।"

लेकिन जवाब कभी नहीं आया।

अब वे अकेले उसी बड़े घर में रहते थे, जो कभी बच्चों की हँसी से गूंजता था।
दीवारें सुनसान हो गईं, आँगन में सूना झूला लटकता था।
कभी-कभी पड़ोस की औरतें आकर पूछतीं –
“बाबा, बेटा नहीं आता?”
तो वो मुस्कुराकर कहते –
“आएगा बेटी… जल्दी आएगा।”

रात को चारपाई पर लेटकर पुराने दिन याद करते –
बच्चों की पहली किलकारी, उनकी स्कूल की कॉपी, माँ के हाथ की रोटियाँ…
और आँसू तकिये में समा जाते।

एक दिन बहुत तेज़ बुखार चढ़ा।
पड़ोसियों ने बेटों को फोन लगाया –
“बाबा की हालत बहुत खराब है, जल्दी आ जाओ।”

लेकिन दोनों बेटों ने जवाब दिया –
“हम बिज़ी हैं, ऑफिस से छुट्टी नहीं मिलती।”

गंगाशरण जी ने आख़िरी साँस लेते हुए धीरे से कहा –
"काश… मेरे बच्चे एक बार आ जाते… बस एक बार।"

और उनकी आँखें हमेशा के लिए बंद हो गईं।

जब बेटों को मौत की खबर मिली, वे दोनों आए, लोगों के सामने आंसू बहाए और बोले –
“हम अपने पिताजी के बहुत अच्छे बेटे हैं।”

लेकिन सबकी नज़र पड़ोस के उस छोटे बच्चे पर गई, जो जोर-जोर से रो रहा था –
"बाबा मुझे रोज़ कहानी सुनाते थे, मेरे साथ खेलते थे… वो मेरे सच्चे बाबा थे।"

माँ-बाप हमें बचपन में सहारा देते हैं,
लेकिन हम बड़े होकर उन्हें सहारा देने से क्यों कतराते हैं?
धन-दौलत, नौकरी, बिज़नेस सब दो दिन की चीज़ है…
पर माँ-बाप का साथ अगर छूट गया, तो ज़िंदगी भर पछताना पड़ेगा।

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बेटी की बदलती तस्वीर | Betiyan Storyसरला जी अस्पताल से घर आई तो देखा सीमा उनकी जगह बैठ कर सिलाई कर रही थी।‘‘बेटी क्या सि...
14/07/2025

बेटी की बदलती तस्वीर | Betiyan Story

सरला जी अस्पताल से घर आई तो देखा सीमा उनकी जगह बैठ कर सिलाई कर रही थी।

‘‘बेटी क्या सिल रही है?’’ सरला जी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा।

‘‘वो मम्मी कमला जी आई थीं कह रहीं थीं कि उन्हें शादी में जाना है ये ब्लाउज अर्जेन्ट सिलने हैं। मैंने कहा ठीक है मिल जायेंगे तीन थे मैंने सोचा जब तक आयेंगी एक तो तैयार कर ही देती हूं। आप बैठो मैं आपके लिये पानी लाती हूं।’’

सरला जी पास पड़ी एक खाट पर बैठ गईं। वो सोच रहीं थीं क्या हो गया इस बेटी को जो कभी घर के किसी काम को हाथ नहीं लगाती थी। रोज अपने पापा से पैसे लेकर जाती कभी वापस नहीं करती। पिज्जा, कोल्ड ड्रिंक, पार्टीयां यही उसकी जिन्दगी थी। आज एक एक पैसे के लिये काम कर रही है।

तभी सीमा पानी ले आई – ‘‘मम्मी पाप अब कैसे हैं? डॉक्टर ने कुछ बताया या नहीं।’’

‘‘बेटी डॉक्टर तो बस एक ही बात कह रहे हैं। कि वे कोमा में हैं पता नहीं कब होश आयेगा। भगवान जाने आगे क्या होगा। काश उस दिन उनका एक्सीडेंट न हुआ होता। एक ऐक्सीडेंट ने हमारी सारी खुशिया छीन लीं हैं। इस एक साल में सारे रिश्तेदारो ने मुंह मोड़ लिया। सारे पैसे खत्म हो गये। अब क्या होगा।’’

यह सुनकर सीमा के चेहरे पर एक उदासी सी छा गई। उसकी मम्मी दिन में पापा की देखभाल करती। रात को कपड़े सिलती थी। एक बड़े से घर को बेच कर वो लोग छोटे से किराये के मकान में आगये थे। हर जगह कार से जाने वाली मेरी मम्मी आज बसों में धक्के खा रही है। पापा का सारा बिजनेस उनके पार्टनर ने हड़प लिया उन्हें पता है आज नहीं तो कल वे नहीं रहेंगे। इधर रिश्तेदार इस डर से नहीं आते कि कहीं हमसे पैसा न मांग लें।

कुछ देर सब सोचने के बाद उसने अपने आप को संभाला और मम्मी से बोली – ‘‘मम्मी तुम चिंता मत करो पापा ठीक होकर आयेंगे तो सब ठीक कर देंगे। सब पहले जैसा हो जायेगा और हां एक बात आपको बताना भूल गई यहीं पास ही में मुझे दो बच्चे मिले हैं ट्यूशन के लिये कल से दोपहर को उन्हें पढ़ा दिया करूंगी।’’

यह सुनकर सरला जी के होठों पर फीकी हसी आ गई। बेटी को डॉक्टर बनाने का सपना उसके पापा ने देखा था। आज वही बेटी अपना सपना भूल कर अपनी पढ़ाई छोड़ कर अब ट्यूशन देने की बात कर रही है।

जिन्दगी में कब किसे क्या देखना पड़े ये किसी को पता नहीं होता।

अगले दिन सरला जी अस्पताल पहुंची तो पता लगा रात को उनके पति ने दम तोड़ दिया है। जो एक आखिरी उम्मीद थी वह भी चली गई। फिर शुरू हुआ वही तेरह दिन का मेला रिश्तेदार सगे बन कर आ गये। घर मेहमानों से भर गया, लेकिन सरला जी की आंखें अब सूख चुकी थीं। उन्हें सबसे नफरत थी, क्योंकि उन्हें पता था। तेरह दिन बाद वे नजर भी नहीं आयेंगे।

मां और बेटी दोंनों आंखों ही आंखों में एक दूसरे को देखती, और इस तमाशे के खत्म होने का इंतजार करती।

तेरह दिन बाद सरला जी ने नये सिरे से जिन्दगी जीने का फैसला किया। उस बड़े से शहर को छोड़ कर वो गांव लौट गये। पति की निशानी के रूप में यही एक गांव का मकान था। वहीं कुछ जमीन थी।

सरला जी ने खेती शुरू की। दोंनो मां बेटी ने मेहनत करके अच्छी फसल पैदा की। कुछ दिन बाद जब पैसे आने लगे तो उन्होंने खेत पर मजदूर रख दिये। सरला अब गांव के बच्चों को पढ़ाती थी। कम खर्च में सुकून की जिन्दगी बीत रही थी।

सरला जी को एक तसल्ली और थी। गांव में ही कोई लड़का देख कर कम खर्च में सीमा की शादी हो जायेगी। क्योंकि यहां शहरों की तरह दिखावा नहीं होता।

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