03/01/2024
पाप का फल ही दुख नहीं है। पुण्यमिश्रित फल भी विघ्न है। ऐसा कौन सा इनसान है जिसको संसार में विघ्न नहीं है। तो भगवान महापापी होंगे, इसलिए उनको दुख आया होगा। 14 साल वन में गए। यदि पाप का फल ही दुख होता तो राज्यगद्दी की तैयारियां हो रही हैं और तुरिया बज रही हंै, नगाड़े गुनगुना रहे हैं और राज्याभिषेक की जगह पर अब कैकेयी को मंथरा की चाबी चली और रामजी को बोलते हैं वनवास। एक तरफ तो राज्याभिषेक की तैयारी और दूसरी तरफ वनवास। राज्याभिषेक को सुनकर चित्त में हर्ष नहीं होता और वनवास सुनकर चित्त में शोक नहीं होता, दस इन्द्रियों के बीच रमण करने वाला दशरथ कहता है कि राम का राज्य होना चाहिए और गुरु बोलते है कि हां! करो। गुरु जब राम राज्य का हुंकारा भरता है तो दशरथ को खुशी होती है, लेकिन राम राज्य होने के पहले दशरथ कैकेयी की मुलाकात में आ जाता है। दशरथ की तीन रानियां बताई- कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी। सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण। जब सत्वगुण में से, रजो गुण में से हटकर दशरथ (जीव) तमोगुण में जाता है, रजोगुण में, तमोगुण में, फंसता है, तमस मिश्रित रजस में फंसता है, कैकेयी अर्थात कीर्ति में, वासना में फंसता है तो रामराज्य होने के बदले में राम वनवास हो जाता है। राम का राज्य नहीं, राम वनवास! और सब हैं, राम ही जा रहे हैं।