धर्म की बातें

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वास्तु शास्त्र की उत्पत्ति:वास्तु शास्त्र की शुरुआत वेदों, विशेषकर अथर्ववेद से मानी जाती है। यह एक प्राचीन भारतीय विज्ञा...
07/06/2025

वास्तु शास्त्र की उत्पत्ति:

वास्तु शास्त्र की शुरुआत वेदों, विशेषकर अथर्ववेद से मानी जाती है। यह एक प्राचीन भारतीय विज्ञान है जो भवन निर्माण और दिशाओं के अनुसार ऊर्जा संतुलन पर आधारित है।

एक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने एक दानव को पराजित कर उसे भूमि पर गिरा दिया। देवताओं ने उसे चारों दिशाओं से दबाकर पकड़ा — इसी से वास्तु पुरुष की उत्पत्ति हुई, जिसके अनुसार दिशाएं तय हुईं।

प्रमुख वास्तु ग्रंथों में विश्वकर्मा शास्त्र, मयमतम्, और समरांगण सूत्रधार शामिल हैं। देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा और लंका बनाने वाले मय दानव वास्तु के महान आचार्य माने जाते हैं।

वास्तु का उद्देश्य था – घर और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और संतुलन लाना।

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ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्म्यै नमः।ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे, विष्णुपत्नीै च धीमहि,तन्नो लक्ष्मीः प्रचो...
04/06/2025

ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।
ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्म्यै नमः।
ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे, विष्णुपत्नीै च धीमहि,
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।

{ श्री महालक्ष्मी को नमस्कार।
हे श्री और समृद्धि की देवी लक्ष्मी, आपको नमस्कार।
हम महालक्ष्मी को जानते हैं, भगवान विष्णु की पत्नी का ध्यान करते हैं,
वो देवी लक्ष्मी हमें प्रेरणा दें। }

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Congratulations RCB 🏏
03/06/2025

Congratulations RCB 🏏

मंगलवार और शनिवार को विशेष रूप से हनुमान जी का ध्यान करें।व्रत या उपवास रखने से भी लाभ होता है।(108 बार जाप करें)"ॐ हं ह...
02/06/2025

मंगलवार और शनिवार को विशेष रूप से हनुमान जी का ध्यान करें।
व्रत या उपवास रखने से भी लाभ होता है।

(108 बार जाप करें)

"ॐ हं हनुमते नमः"
"श्री राम दूताय नमः"

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मां बगलामुखी का विशेष मंत्र  ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जिह्वाम कीलय-कीलय बुद्धिम विन...
31/05/2025

मां बगलामुखी का विशेष मंत्र

ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जिह्वाम कीलय-कीलय बुद्धिम विनाशाय ह्लीं ॐ नम:

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अपरा एकादशी व्रत कथा (Apara Ekadashi Vrat (23.05.2025) Katha)भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा:हे राजन्! मैं त...
22/05/2025

अपरा एकादशी व्रत कथा (Apara Ekadashi Vrat (23.05.2025) Katha)

भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा:

हे राजन्! मैं तुम्हें ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी, जिसे अपरा एकादशी कहा जाता है, की व्रत कथा सुनाता हूँ। यह व्रत अपार पुण्य प्रदान करने वाला है और समस्त पापों का नाश करता है।

पुराणों के अनुसार, इस व्रत को करने से व्यक्ति को गंगा स्नान, काशी में दान, गौदान, तपस्या, यज्ञ और तीर्थ यात्रा जितना पुण्य प्राप्त होता है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए फलदायक है, जिन्होंने अनजाने में पाप किए हों या जो आत्मिक शुद्धि चाहते हों।

🕉️ प्राचीन कथा
प्राचीन काल में महिष्मती नगरी में एक महिष्मान नामक राजा राज्य करता था। वह धर्मात्मा, पराक्रमी और प्रजा का हितकारी था। लेकिन एक युद्ध में राजा की मृत्यु हो गई, और उसकी आत्मा यमलोक पहुंची। वहाँ यमदूतों ने उसे बताया कि उसे अपने पापों के कारण नरक जाना होगा।

परंतु तभी वहाँ एक दिव्य रूपधारी दूत प्रकट हुआ और बोला —

"यह राजा अत्यंत पुण्य आत्मा है। इसने मृत्यु से पूर्व अपरा एकादशी का व्रत विधिपूर्वक किया था। अतः इसे नरक नहीं, स्वर्ग की प्राप्ति होगी।"

यमराज ने भी इसकी पुष्टि की और राजा की आत्मा को स्वर्ग में स्थान मिल गया।

🙏 भगवान श्रीकृष्ण ने कहा:
“हे युधिष्ठिर! जो मनुष्य श्रद्धा और भक्ति से इस व्रत को करता है, वह पापमुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है। इस व्रत का फल हजारों वर्षों की तपस्या से भी अधिक होता है।”

अपरा एकादशी 2025: तिथि व समय
एकादशी तिथि: शुक्रवार, 23 मई 2025

एकादशी तिथि प्रारंभ: 22 मई 2025, रात 12:07 बजे

एकादशी तिथि समाप्त: 23 मई 2025, रात 10:57 बजे

🌅 व्रत पारण (खोलने) का समय
पारण की तिथि: शनिवार, 24 मई 2025

पारण का समय: सुबह 05:30 बजे से 08:12 बजे तक
(स्थानीय सूर्योदय के अनुसार थोड़ा अंतर संभव है)

📌 पारण नियम: द्वादशी तिथि में सूर्योदय के बाद व्रत तोड़ना शुभ होता है। एकादशी के दिन उपवास कर अगले दिन पारण करना चाहिए।

🪔 अपरा एकादशी की पूजा विधि (व्रत विधि)
स्नान और संकल्प:
सूर्योदय से पहले पवित्र स्नान करें और व्रत का संकल्प लें — "मैं आज भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति हेतु अपरा एकादशी व्रत रखता/रखती हूँ।"

पूजा स्थान पर दीप जलाएं और भगवान श्रीहरि विष्णु की प्रतिमा/तस्वीर स्थापित करें।

तुलसी, पीले पुष्प, चंदन, धूप, दीप और फल अर्पित करें।

अपरा एकादशी व्रत कथा का पाठ करें या श्रवण करें।

भजन, कीर्तन और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
मंत्र: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जाप अत्यंत शुभ माना जाता है।

रात्रि में जागरण करें, भगवान विष्णु की महिमा का गुणगान करें।

अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत पारण करें।

✨ अपरा एकादशी का धार्मिक महत्व
अपरा एकादशी, जिसे 'अचला एकादशी' भी कहते हैं, ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी होती है।

यह व्रत पापों का नाश करने वाला और मोक्ष प्रदान करने वाला माना गया है।

श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था कि इस व्रत से व्यक्ति के जीवन में किए गए सभी अनजाने पापों का प्रायश्चित हो जाता है।

इस व्रत से तीर्थ स्नान, दान, व्रत, हवन आदि जितना पुण्य प्राप्त होता है।

यह व्रत व्यापार में सफलता, कर्ज मुक्ति, न्याय में विजय, और जीवन में सुख-शांति देता है।

समुद्र में हुए अपराध, चोरी, व्यभिचार, परनिंदा जैसे पाप भी इसके प्रभाव से दूर हो जाते हैं।

📖 विशेष बात:
जो लोग विधिपूर्वक यह व्रत रखते हैं, उन्हें वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होती है और जीवन के संकटों से छुटकारा मिलता है।

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हरिहर और बुक्का राय दक्षिण भारत के महान योद्धा और विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक थे। ये दोनों भाई मूलतः काकतीय वंश की सेव...
21/05/2025

हरिहर और बुक्का राय दक्षिण भारत के महान योद्धा और विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक थे। ये दोनों भाई मूलतः काकतीय वंश की सेवा में थे, परंतु जब दिल्ली सल्तनत के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने दक्षिण भारत पर आक्रमण किया, तो उन्होंने काकतीय साम्राज्य को नष्ट कर दिया।

युद्ध गाथा और संघर्ष:

1. कैद और धर्मांतरण का प्रयास:

* मुहम्मद बिन तुगलक ने हरिहर और बुक्का को बंदी बना लिया और उन्हें दिल्ली ले जाया गया।
* वहां उनका जबरन इस्लाम में धर्मांतरण कराया गया, लेकिन जल्द ही वे वहां से बच निकले और वापस हिन्दू धर्म में लौट आए।

2. संत विद्यारण्यमुनि का मार्गदर्शन:

* उन्होंने महान संत विद्यारण्य से मार्गदर्शन प्राप्त किया, जिन्होंने उन्हें एक स्वतंत्र हिन्दू राज्य स्थापित करने के लिए प्रेरित किया।

3. विजयनगर साम्राज्य की स्थापना (1336 ई.):

* हरिहर और बुक्का ने संगम वंश की स्थापना की और विजयनगर को राजधानी बनाकर मुस्लिम आक्रांताओं के खिलाफ हिन्दू शक्ति का एक संगठित केंद्र बनाया।
* उनका उद्देश्य था — दक्षिण भारत को इस्लामी आक्रमणों से बचाना, हिन्दू संस्कृति और धर्म की रक्षा करना।

4. रणनीतिक युद्ध:

* उन्होंने होयसालों, चोलों और पांड्यों के बचे हुए क्षेत्रों को संगठित किया।
* उन्होंने बहमनी सल्तनत और अन्य मुस्लिम शक्तियों के साथ कई निर्णायक युद्ध लड़े और विजयनगर को दक्षिण भारत की सबसे शक्तिशाली सत्ता बना दिया।

5. धार्मिक और सांस्कृतिक पुनरुत्थान:

* युद्ध के साथ-साथ उन्होंने मंदिरों का पुनर्निर्माण, शिक्षा का विकास, और सांस्कृतिक पुनर्जागरण भी किया।

सारांश:

हरिहर और बुक्का राय की युद्ध गाथा सिर्फ तलवारों की नहीं, बल्कि धर्म, संस्कृति और अस्मिता की रक्षा की वीर गाथा है। उनके नेतृत्व में दक्षिण भारत ने विदेशी आक्रमणों के खिलाफ संगठित होकर डटकर मुकाबला किया और एक महान साम्राज्य की नींव रखी।

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भगवान की कृपा आप पर सदा बरसे,
धार्मिक दुनियाहरिहर और बुक्का राय दक्षिण भारत के महान योद्धा और विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक थे। ये दोनों भाई मूलतः काकतीय वंश की सेवा में थे, परंतु जब दिल्ली सल्तनत के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने दक्षिण भारत पर आक्रमण किया, तो उन्होंने काकतीय साम्राज्य को नष्ट कर दिया।

युद्ध गाथा और संघर्ष:

1. कैद और धर्मांतरण का प्रयास:

* मुहम्मद बिन तुगलक ने हरिहर और बुक्का को बंदी बना लिया और उन्हें दिल्ली ले जाया गया।
* वहां उनका जबरन इस्लाम में धर्मांतरण कराया गया, लेकिन जल्द ही वे वहां से बच निकले और वापस हिन्दू धर्म में लौट आए।

2. संत विद्यारण्यमुनि का मार्गदर्शन:

* उन्होंने महान संत विद्यारण्य से मार्गदर्शन प्राप्त किया, जिन्होंने उन्हें एक स्वतंत्र हिन्दू राज्य स्थापित करने के लिए प्रेरित किया।

3. विजयनगर साम्राज्य की स्थापना (1336 ई.):

* हरिहर और बुक्का ने संगम वंश की स्थापना की और विजयनगर को राजधानी बनाकर मुस्लिम आक्रांताओं के खिलाफ हिन्दू शक्ति का एक संगठित केंद्र बनाया।
* उनका उद्देश्य था — दक्षिण भारत को इस्लामी आक्रमणों से बचाना, हिन्दू संस्कृति और धर्म की रक्षा करना।

4. रणनीतिक युद्ध:

* उन्होंने होयसालों, चोलों और पांड्यों के बचे हुए क्षेत्रों को संगठित किया।
* उन्होंने बहमनी सल्तनत और अन्य मुस्लिम शक्तियों के साथ कई निर्णायक युद्ध लड़े और विजयनगर को दक्षिण भारत की सबसे शक्तिशाली सत्ता बना दिया।

5. धार्मिक और सांस्कृतिक पुनरुत्थान:

* युद्ध के साथ-साथ उन्होंने मंदिरों का पुनर्निर्माण, शिक्षा का विकास, और सांस्कृतिक पुनर्जागरण भी किया।

सारांश:

हरिहर और बुक्का राय की युद्ध गाथा सिर्फ तलवारों की नहीं, बल्कि धर्म, संस्कृति और अस्मिता की रक्षा की वीर गाथा है। उनके नेतृत्व में दक्षिण भारत ने विदेशी आक्रमणों के खिलाफ संगठित होकर डटकर मुकाबला किया और एक महान साम्राज्य की नींव रखी।

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छत्रपति शिवाजी महाराज — केवल एक योद्धा नहीं, एक विचार थे।वे भारत के पहले ऐसे राजा थे जिन्होंने स्वराज्य का सपना देखा, उस...
20/05/2025

छत्रपति शिवाजी महाराज — केवल एक योद्धा नहीं, एक विचार थे।
वे भारत के पहले ऐसे राजा थे जिन्होंने स्वराज्य का सपना देखा, उसे जिया, और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बन गए।

जय भवानी, जय शिवाजी!

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"जब पूरा राजपुताना दिल्ली सल्तनत की तलवार के नीचे झुका हुआ था…तब एक योद्धा खड़ा हुआ — राणा हम्मीर सिंह।""वर्ष था 1336। द...
16/05/2025

"जब पूरा राजपुताना दिल्ली सल्तनत की तलवार के नीचे झुका हुआ था…
तब एक योद्धा खड़ा हुआ — राणा हम्मीर सिंह।"

"वर्ष था 1336। दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने मेवाड़ पर चढ़ाई की।
पर राणा ने अपनाई युद्ध की नई नीति — छापामार हमला।"

"सिंगोली के मैदान में, रणभेरी बजी और शुरू हुआ वो युद्ध जिसने इतिहास बदल दिया।
राणा हम्मीर सिंह ने दिल्ली की विशाल सेना को घुटनों पर ला दिया।"

"मुहम्मद बिन तुगलक को कैद किया गया, और उसके बदले मेवाड़ को मिली स्वाधीनता, रणथंभौर, अजमेर, और 50 लाख की फिरौती।
यह था एक राजा का जवाब – तलवार से नहीं, शौर्य से!"

"राणा ने न केवल राज्य को फिर से खड़ा किया, बल्कि सिसोदिया वंश की नींव रखी — वही वंश जिसने आगे चलकर महाराणा प्रताप जैसा महायोद्धा दिया।"

"राणा हम्मीर सिंह, केवल योद्धा नहीं, एक विचार थे –
स्वाभिमान, रणनीति और मातृभूमि के लिए अंतिम सांस तक लड़ने की प्रेरणा।"

"जय मेवाड़, जय राणा हम्मीर!"

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आज एक कहानी महान रानी नायकीदेवी जी की....."एक रानी की हुंकार"सन् 1178 ईस्वी, भारत के पश्चिमी छोर पर स्थित गुजरात का अन्ह...
15/05/2025

आज एक कहानी महान रानी नायकीदेवी जी की.....

"एक रानी की हुंकार"

सन् 1178 ईस्वी, भारत के पश्चिमी छोर पर स्थित गुजरात का अन्हिलवाड़ा (वर्तमान में पाटन) समृद्धि और संस्कृति का केंद्र था। वहां की महारानी थीं नायकीदेवी — सौम्यता और शक्ति का अद्वितीय संगम।

उनके पति राजा भीमदेव का देहांत हो चुका था, और उनका पुत्र मुलराज द्वितीय अभी बालक ही था। परंतु राज्य की बागडोर संभालने में रानी ने न कभी अपने सिर पर बोझ महसूस किया, न ही हृदय में भय।

उधर, पश्चिम की सीमाओं पर मँडराने लगा था एक तूफान — मोहम्मद ग़ोरी। वह भारत को रौंदना चाहता था, उसकी अमूल्य संपदा को लूटना और उसकी आत्मा को कुचलना चाहता था।

ग़ोरी ने सुना कि गुजरात में अब कोई पुरुष राजा नहीं, केवल एक स्त्री रानी है और एक शिशु राजकुमार। "अब यह भूमि मेरे क़दमों में होगी," उसने अहंकार से कहा और एक विशाल सेना लेकर गुजरात की ओर बढ़ चला।

किन्तु वह नहीं जानता था कि उसके सामने एक रानी नहीं, साक्षात दुर्गा खड़ी है।

नायकीदेवी ने युद्ध से पीछे हटने के बजाय खुद मोर्चा संभाला। अपने पुत्र को गोद में लेकर, मंत्रियों और सेनापतियों से कहा:

"यह युद्ध न केवल हमारी धरती की रक्षा का है, बल्कि यह एक स्त्री की शक्ति को भी दिखाने का अवसर है।"

उन्होंने अपनी सेना को संगठित किया, घुड़सवारों, धनुर्धारियों और हाथियों के साथ कूच किया और कायधारा के मैदान में ग़ोरी की सेना का सामना किया।

युद्ध भयंकर था। परंतु रानी की रणनीति और उसकी सेना की निष्ठा ने कमाल कर दिखाया। रानी स्वयं अश्वारूढ़ होकर युद्धभूमि में लड़ीं। उनका उत्साह और साहस देख स्वयं सैनिकों का हौसला दोगुना हो गया।

अंततः, ग़ोरी की सेना को पराजय का स्वाद चखना पड़ा। मोहम्मद ग़ोरी घायल होकर मैदान छोड़कर भागा। भारत की भूमि पर एक बार फिर धर्म, सम्मान और नारी-शक्ति की विजय हुई।

सीख इस कहानी से:

परिस्थिति कैसी भी हो, यदि साहस और संकल्प हो तो हर संकट को हराया जा सकता है।

नायकीदेवी ने यह सिद्ध कर दिया कि नेतृत्व और वीरता लिंग से नहीं, मन और कर्म से जन्म लेती है।

जब राष्ट्र और संस्कृति पर संकट आए, तो एक स्त्री भी दुर्गा बनकर रणभूमि में उतर सकती है।

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आजका बिषय : पराक्रमी हिन्दू राजा सुहेलदेवराजा सुहेलदेव की युद्ध गाथा भारतीय इतिहास की वीरता और स्वाभिमान की अद्भुत मिसाल...
14/05/2025

आजका बिषय : पराक्रमी हिन्दू राजा सुहेलदेव

राजा सुहेलदेव की युद्ध गाथा भारतीय इतिहास की वीरता और स्वाभिमान की अद्भुत मिसाल है। राजा सुहेलदेव, 11वीं सदी के एक पराक्रमी हिन्दू राजा थे, जिन्होंने विदेशी आक्रमणकारी ग़ाज़ी मियां (सैयद सालार मसूद) को पराजित किया था। उनका युद्ध विशेष रूप से बहादुरी, संगठन, और मातृभूमि की रक्षा का प्रतीक है।

📜 राजा सुहेलदेव का संक्षिप्त परिचय:

समयकाल: लगभग 1025–1034 ई.

राज्य: श्रावस्ती (वर्तमान उत्तर प्रदेश में बहराइच के निकट)

वंश: पासी राजवंश (कुछ ग्रंथों में उन्हें ठाकुर या क्षत्रिय भी कहा गया है)

विशेषता: भारत के पहले स्वदेशी शासकों में से एक जिन्होंने इस्लामी आक्रांताओं के विरुद्ध निर्णायक युद्ध लड़ा।

⚔️ ग़ाज़ी मियाँ से युद्ध:

पृष्ठभूमि:

सैयद सालार मसूद, महमूद ग़ज़नवी का भतीजा था, जो भारत में इस्लामी विस्तार के उद्देश्य से आया था। उसने उत्तर भारत के कई क्षेत्रों को लूटा और वहां के शासकों को चुनौती दी।

मुख्य युद्ध:

स्थान: चित्तौरा (बहराइच)
साल: 1033 ई.

राजा सुहेलदेव ने उत्तर भारत के विभिन्न हिन्दू राजाओं को एकजुट कर एक संयुक्त मोर्चा बनाया।

कई छोटे-बड़े युद्धों के बाद, चित्तौरा के युद्ध में सुहेलदेव ने ग़ाज़ी मियां की सेना को पूरी तरह पराजित कर दिया और ग़ाज़ी मियां की मृत्यु भी इसी युद्ध में हुई।

🏆 युद्ध का परिणाम और प्रभाव:

इस विजय के बाद भारत में इस्लामी आक्रांताओं के कदम कुछ समय के लिए रुक गए।

यह युद्ध भारतीय एकता और प्रतिरोध की भावना का प्रतीक बना।

हालांकि समय के साथ इतिहास में उनका नाम दब गया, परंतु स्थानीय लोककथाओं, लोकगीतों और परंपराओं में वह सदैव जीवित रहे।

🌟 समकालीन सम्मान:

उत्तर प्रदेश सरकार ने राजा सुहेलदेव की स्मृति में स्मारक और संग्रहालय का निर्माण कराया है।

भारतीय डाक विभाग ने भी उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया।

राजा सुहेलदेव को आज "भारत का रक्षक योद्धा" माना जाता है।

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धर्म की बातें में आजका बिषय हे, Hindu Samrat Narasimhavarman (Pratham)राजा नरसिंह वर्मन प्रथम (Narasimhavarman I), जिन्ह...
13/05/2025

धर्म की बातें में आजका बिषय हे, Hindu Samrat Narasimhavarman (Pratham)

राजा नरसिंह वर्मन प्रथम (Narasimhavarman I), जिन्हें मामल्लन (Mamalla) भी कहा जाता है, दक्षिण भारत के पल्लव वंश के एक महान सम्राट थे। उनका शासनकाल लगभग 630 से 668 ई. तक रहा। वह अपने पराक्रम, युद्ध कौशल और स्थापत्यकला में अभूतपूर्व योगदान के लिए प्रसिद्ध थे।

यहाँ उनके युद्ध गाथा (युद्ध से जुड़ी वीर गाथा) का वर्णन है:

🔱 चालुक्य सम्राट पुलकेशिन द्वितीय पर विजय – सबसे प्रसिद्ध युद्ध
नरसिंह वर्मन प्रथम की सबसे प्रसिद्ध युद्धगाथा है उनका चालुक्य वंश के शक्तिशाली राजा पुलकेशिन द्वितीय के विरुद्ध युद्ध।

पुलकेशिन द्वितीय ने पहले पल्लवों को पराजित किया था, जिससे पल्लव साम्राज्य को भारी नुकसान हुआ था। इसके प्रतिशोध की अगुवाई नरसिंह वर्मन ने की।

नरसिंह वर्मन ने एक सशक्त और रणनीतिक सेना तैयार की और चालुक्यों पर आक्रमण किया।

इस युद्ध का मुख्य स्थल था वातापी (आज का बादामी, कर्नाटक)।

उन्होंने पुलकेशिन द्वितीय को पराजित किया और लगभग 642 ई. में वातापी नगर पर विजय प्राप्त की।

इस विजय के बाद वे ‘वातापीकोंडा’ (वातापी को जीतने वाला) की उपाधि से प्रसिद्ध हुए।

🛡️ रणनीति और सामरिक कौशल
नरसिंह वर्मन एक उत्कृष्ट सेनानायक थे। उन्होंने समुद्री बेड़े (naval fleet) का भी विकास किया, जिससे उन्हें श्रीलंका के साथ भी सामरिक संबंध बनाने और हस्तक्षेप करने में मदद मिली।

उन्होंने श्रीलंका की राजनीति में हस्तक्षेप करते हुए सिंहली राजा मणवम्मा को सत्ता पर पुनः स्थापित किया।

🏛️ कला और स्थापत्य के क्षेत्र में योगदान
उन्होंने युद्ध के साथ-साथ शांति काल में भी महान कार्य किए।

उनके काल में ही मामल्लापुरम (महाबलीपुरम) के प्रसिद्ध रॉक-कट मंदिर और रथों का निर्माण हुआ, जो आज यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं।

✍️ निष्कर्ष
राजा नरसिंह वर्मन प्रथम न केवल एक वीर योद्धा थे, बल्कि एक कलाप्रेमी और दूरदर्शी शासक भी थे। उनकी वातापी विजय भारत के प्राचीन इतिहास की सबसे गौरवपूर्ण घटनाओं में से एक है, जिसने पल्लवों को दक्षिण भारत की प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित किया।

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