The Hind manch

The Hind manch आओ सीखें और सिखाए भारत को फिर से उन्नत राष्ट्र बनायें।

हमारा मुख्य लक्ष्य भारत को समृद्ध, शक्तिशाली और ज्ञानवान बनाना है, जिससे आने वाली पीढ़ी को अपने देश, उनके पूर्वजों, महापुरुषों और उनकी संस्कृति पर गर्व हो , उन्हें वैदिक धर्म की जानकारी प्रदान करना, उन्हें सही रास्ते पर ले जाना और भारत को फिर से विश्वगुरु बनाना है।
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25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस भारत में मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार, तुलसी का पौधा घर में लगाने से सुख-समृद्धि आती ...
25/12/2024

25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस भारत में मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार, तुलसी का पौधा घर में लगाने से सुख-समृद्धि आती है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। तुलसी के पौधे को पूजनीय माना जाता है और इसे देवी तुलसी का स्वरूप माना जाता है। इस दिन लोग तुलसी के पौधे को सजाते हैं और उसकी पूजा करते हैं। मान्यताओं के अनुसार, तुलसी पूजन करने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। इस उपलक्ष्य में आप सभी को तुलसी पूजन दिवस की बहुत सारी शुभकामनाएं।
#तुलसी #सनातनहमारीपहचान

परिजात वृक्ष...…🌺🌺🌺🌺🌺पांडव की मां कुंती के नाम पर रखा गया, किन्तूर गांव, जिला मुख्यालय बाराबंकी से लगभग 38 किलोमीटर पूर्...
02/11/2024

परिजात वृक्ष...…🌺🌺🌺🌺🌺

पांडव की मां कुंती के नाम पर रखा गया, किन्तूर गांव, जिला मुख्यालय बाराबंकी से लगभग 38 किलोमीटर पूर्वी दिशा में है। इस जगह के आसपास प्राचीन मंदिर और उनके अवशेष हैं। यहां कुंती द्वारा स्थापित मंदिर के पास, एक विशेष पेड़ है जिसे ‘परिजात’ कहा जाता है। इस पेड़ के बारे में कई बातें प्रचलित हैं जिनको जनता की स्वीकृति प्राप्त है। जिनमें से यह है, कि अर्जुन इस पेड़ को स्वर्ग से लाये थे और कुंती इसके फूलों से शिवजी का अभिषेक करती थी। दूसरी बात यह है, कि भगवान कृष्ण अपनी प्यारी रानी सत्यभामा के लिए इस वृक्ष को लाये थे। ऐतिहासिक रूप से, यद्यपि इन बातों को कोई माने या न माने, लेकिन यह सत्य है कि यह वृक्ष एक बहुत प्राचीन पृष्ठभूमि से है। परिजात के बारे में हरिवंश पुराण में निम्नलिखित कहा गया है। परिजात एक प्रकार का कल्पवृक्ष है, कहा जाता है कि यह केवल स्वर्ग में होता है। जो कोई इस पेड़ के नीचे मनोकामना करता है, वह जरूर पूरी होती है। धार्मिक और प्राचीन साहित्य में, हमें कल्पवृक्ष के कई संदर्भ मिलते हैं, लेकिन केवल किन्तुर (बाराबंकी) को छोड़कर इसके अस्तित्व के प्रमाण का विवरण विश्व में कहीं और नहीं मिलता। जिससे किन्तूर के इस अनोखे परिजात वृक्ष का विश्व में विशेष स्थान है। वनस्पति विज्ञान के संदर्भ में, परिजात को ‘ऐडानसोनिया डिजिटाटा’ के नाम से जाना जाता है, तथा इसे एक विशेष श्रेणी में रखा गया है, क्योंकि यह अपने फल या उसके बीज का उत्पादन नहीं करता है, और न ही इसकी शाखा की कलम से एक दूसरा परिजात वृक्ष पुन: उत्पन्न किया जा सकता है। वनस्पतिशास्त्रियों के अनुसार यह एक यूनिसेक्स पुरुष वृक्ष है, और ऐसा कोई पेड़ और कहीं नहीं मिला है।

निचले हिस्से में इस वृक्ष की पत्तियां, हाथ की उंगलियों की तरह पांच युक्तियां वाली हैं, जबकि वृक्ष के ऊपरी हिस्से पर यह सात युक्तियां वाली होती हैंं। इसका फूल बहुत खूबसूरत और सफेद रंग का होता है, और सूखने पर सोने के रंग का हो जाता है। इसके फूल में पांच पंखुड़ी हैं। इस पेड़ पर बेहद कम बार बहुत कम संख्या में फूल खिलता है, लेकिन जब यह होता है, वह ‘गंगा दशहरा’ के बाद ही होता है, इसकी सुगंध दूर-दूर तक फैलती है। इस पेड़ की आयु 1000 से 5000 वर्ष तक की मानी जाती है। इस पेड़ के तने की परिधि लगभग 50 फीट और ऊंचाई लगभग 45 फीट है। एक और लोकप्रिय बात जो प्रचलित है कि, इसकी शाखाएं टूटती या सूखती नहीं, किंतु वह मूल तने में सिकुड़ती है और गायब हो जाती हैं। आसपास के लोग इसे अपना संरक्षक और इसका ऋणी मानते हैं, अतः वे इसकी पत्तियों और फूलों की रक्षा हर कीमत पर करते हैं। स्थानीय लोग इसे बहुत उच्च सम्मान देते हैं, इस के अलावा बड़ी संख्या में पर्यटक इस अद्वितीय वृक्ष को देखने के लिए आते हैं।

बनाकर "दीये मिट्टी" के ज़रा सी "आस" पाली है !मेरी "मेहनत" ख़रीदो लोगों "मेरे घर भी "दीवाली" है.❣ #दिवाली
28/10/2024

बनाकर "दीये मिट्टी" के ज़रा सी "आस" पाली है !
मेरी "मेहनत" ख़रीदो लोगों "मेरे घर भी "दीवाली" है.❣

#दिवाली

03/10/2024
पितृ विसर्जन अमावस्या 2 अक्टूबर 2024....…....नैमिषारण्य के चक्रतीर्थ व आदि गंगा गोमती में स्नान कर श्रद्धालु अपने पितरों...
02/10/2024

पितृ विसर्जन अमावस्या 2 अक्टूबर 2024....…....
नैमिषारण्य के चक्रतीर्थ व आदि गंगा गोमती में स्नान कर श्रद्धालु अपने पितरों की मुक्ति के लिए पिंडदान व तर्पण करते हैं। आज का दिन अपने पितरों के प्रति श्रद्धा भाव व्यक्त करने के लिए होता है। आश्विन मास की अमावस्या को पितृ विसर्जन अमावस्या भी कहा जाता है।

आज मुझे भी सनातन धर्म में मनाया जा रहा पितृपक्ष में पितरों के श्राद्ध तर्पण के लिए नैमिषारण्य आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

नैमिष तीर्थ भूमि का इस दिन विशेष महत्व है, इसे नाभि गया के नाम से भी जाना जाता है। यहां पितरों की तृप्ति के लिए पिंडदान, श्राद्ध व तर्पण करने से विशेष फल प्राप्त होता है।

जिन परिवारों को अपने पितरों की तिथि याद नहीं रहती है या पितरों की तिथि ज्ञात होने पर भी यदि समय पर किसी कारण से श्राद्ध न हो पाए, तो उनका श्राद्ध भी इसी अमावस्या को कर देने से पितर संतुष्ट हो जाते हैं। जिनकी अकाल मृत्यु हो गई हो उनका भी श्राद्ध इसी अमावस्या के दिन किया जा सकता है।

जय सनातन 🙏🙏

05/09/2024

Kathmandu Tourist Places | काठमांडू यात्रा |

मैनेजमेंट मंत्र:10 बातें जो कृष्ण के जीवन को बनाती है महानतम, जीवन प्रबंधन के लिए सबसे श्रेष्ठ सूत्र:–जन्म से लेकर देहत्...
26/08/2024

मैनेजमेंट मंत्र:10 बातें जो कृष्ण के जीवन को बनाती है महानतम, जीवन प्रबंधन के लिए सबसे श्रेष्ठ सूत्र:–

जन्म से लेकर देहत्याग तक भगवान कृष्ण के जीवन की लगभग हर घटना में कोई सूत्र है
युद्ध भूमि पर दिया गया गीता का उपदेश संसार का श्रेष्ठतम ज्ञान माना जाता है
मैंनेजमेंट मास्टर कहें या जगतगुरु, गिरधारी कहें या रणछोड़। भगवान कृष्ण के जितने नाम हैं, उतनी कहानियां। जीवन जीने के तरीके को अगर किसी ने परिभाषित किया है तो वो कृष्ण हैं। कर्म से होकर परमात्मा तक जाने वाले मार्ग को उन्हीं ने बताया है। संसार से वैराग्य को सिरे से नकारा। कर्म का कोई विकल्प नहीं, ये सिद्ध किया। कृष्ण कहते हैं, मैं हर हाल में आता हूं, जब पाप और अत्याचार का अंधकार होता है तब भी, जब प्रेम और भक्ति का उजाला होता है तब भी। दोनों ही परिस्थिति में मेरा आना निश्चित है।

वैसे तो कृष्ण का संपूर्ण जीवन ही एक प्रबंधन की किताब है, जिसे सैंकड़ों-हजारों बार कहा, सुना जा चुका है। कुरुक्षेत्र में दो सेनाओं के बीच खड़े होकर भारी तनाव के समय कृष्ण ने अर्जुन को जो ज्ञान दिया, वो दुनिया का श्रेष्ठतम ज्ञान है। गीता का जन्म युद्ध के मैदान में दो सेनाओं के बीच हुआ। जीवन की श्रेष्ठतम बातें भारी तनाव और दबाव में ही होती हैं। अगर आप दिमाग को शांत और मन को स्थिर रखने की कोशिश करें तो सबसे बुरी परिस्थितियों में भी आप अपने लिए कुछ बहुत बेहतरीन निकाल पाएंगे। ये कृष्ण सिखाते हैं। गीता पढ़ने से पहले अगर इसी बात को समझ लिया जाए तो गीता पढ़ना सफल हुआ।

कृष्ण का जीवन ऐसी ही बातों से भरा पड़ा है, जरूरत है नजरिए की। उनका जीवन आपके लिए मॉयथोलॉजी का एक हिस्सा मात्र भी हो सकता है, और आपका पूरा जीवन बदलकर रख देने वाला ज्ञान भी। आवश्यकता हमारी है, हम उनके जीवन से लेना क्या चाहते हैं। कृष्ण मात्र कथाओं में पढ़ा या सुना जाने वाला पात्र नहीं है, वो चरित्र और व्यवहार में उतारे जाने वाले देवता हैं। कृष्ण से सीखें, कैसे जीवन को श्रेष्ठ बनाया जाए। दस बातें हैं, जो अगर व्यवहार में उतार लीं तो सफलता निश्चित मिलेगी।

1. शुरू से अंत तक, जीवन संघर्ष ही है
कारागृह में जन्मे कृष्ण। पैदा होते ही रात में यमुना पार कर गोकुल ले जाया गया। तीसरे दिन पुतना मारने आ गई। यहां से शुरू हुआ संघर्ष देह त्यागने से पहले द्वारिका डुबोने तक रहा। कृष्ण का जीवन कहता है, आप कोई भी हों, संसार में आए हैं तो संघर्ष हमेशा रहेगा। मानव जीवन में आकर परमात्मा भी सांसारिक चुनौतियों से बच नहीं सकता। कृष्ण ने कभी किसी बात की शिकायत नहीं की। हर परिस्थिति को जिया और जीता। कृष्ण कहते हैं परिस्थितियों से भागो मत, उसके सामने डटकर खड़े हो जाओ। क्योंकि, कर्म करना ही मानव जीवन का पहला कर्तव्य है। हम कर्मों से ही परेशानियों से जीत सकते हैं।

2. स्वस्थ्य शरीर से ही विजय है
कृष्ण का बचपन माखन-मिश्री खाते हुए गुजरा। आज भी भोग लगाते हैं हम। लेकिन ये संकेत कुछ और है। आहार अच्छा हो, शुद्ध हो, बल देने वाला हो। बचपन में शरीर को अच्छा आहार मिलेगा तो ही इंसान युवा होकर वीर बनेगा। शरीर को स्वस्थ्य रखना है तो बचपन से ध्यान देने की जरूरत है। ये पैरेटिंग के दौर से गुजर रहे युवाओं के लिए बड़ा मैसेज है, अपने बच्चों को ऐसा खाना दें, जो उनको बल दे। सिर्फ स्वाद के लिए ही ना खिलाएं। तभी वे बड़े होकर स्वयं को और समाज को सही दिशा में ले जा पाएंगे।

3. पढ़ाई किताबी ना हो, रचनात्मक हो
कृष्ण ने अपनी शिक्षा मध्य प्रदेश के उज्जैन में सांदीपनि ऋषि के आश्रम में रह कर पूरी की थी। कहा जाता है 64 दिन में उन्होंने 64 कलाओं का ज्ञान हासिल कर लिया था। वैदिक ज्ञान के अलावा उन्होंने कलाएं सीखीं। शिक्षा ऐसी ही होनी चाहिए जो हमारे व्यक्तित्व का रचनात्मक विकास करे। संगीत, नृत्य, युद्ध सहित 64 कलाओं कृष्ण के व्यक्तित्व का हिस्सा हैं। बच्चों में कोरा ज्ञान ना भरें। उनकी रचनात्मकता को नए आयाम मिलें, ऐसी शिक्षा व्यवस्था हो।

4. रिश्तों से ही जीवन है, बिना रिश्तों के कुछ नहीं
कृष्ण ने जीवनभर कभी उन लोगों का साथ नहीं छोड़ा, जिनको मन से अपना माना। अर्जुन से वे युवावस्था में मिले, ऐसा महाभारत कहती है, लेकिन अर्जुन से उनका रिश्ता हमेशा मन का रहा। सुदामा हो या उद्धव। कृष्ण ने जिसे अपना मान लिया, उसका साथ जीवन भर दिया। रिश्तों के लिए कृष्ण ने कई लड़ाइयां लड़ीं। और रिश्तों से ही कई लड़ाइयां जीती। उनका सीधा संदेश है सांसारिक इंसान की सबसे बड़ी धरोहर रिश्ते ही हैं। अगर किसी के पास रिश्तों का थाती नहीं है, तो वो इंसान संसार के लिए गैर जरूरी है। इसलिए, अपने रिश्तों को दिल से जीएं, दिमाग से नहीं।

5. नारी का सम्मान समाज के लिए जरूरी
राक्षस नरकासुर का आतंक था। करीब 16,100 महिलाओं को उसने अपने महल में कैद किया था। महिलाओं से बलात्कार में उसे सुख मिलता था। कृष्ण ने उसे मारा। सभी महिलाओं को मुक्त कराया। लेकिन सामाजिक कुरुतियां तब भी थीं। उन महिलाओं को अपनाने वाला कोई नहीं था। खुद उनके घरवालों ने उन्हें दुषित मानकर त्याग दिया। ऐसे में कृष्ण आगे आए। सभी 16,100 महिलाओं को अपनी पत्नी का दर्जा दिया। समाज में उन्हें सम्मान के साथ रहने के लिए स्थान दिलाया। कृष्ण ने हमेशा नारी को शक्ति बताया, उसके सम्मान के लिए तत्पर रहे। पूरी महाभारत नारी के सम्मान के लिए ही लड़ी गई। सो, आप कृष्ण भक्त हैं तो अपने आसपास की महिलाओं का पूरा सम्मान करें। कृष्ण की कृपा पाने का ये सरलतम मार्ग है।

6. आपके मतभेद अगली पीढी के लिए बाधा ना बनें
कम ही लोग जानते हैं कि जिस दुर्योधन के खिलाफ कृष्ण ने आजीवन पांडवों का साथ दिया। उसकी मौत का कारण भी कृष्ण की कूटनीति बनी, वो ही दुर्योधन रिश्ते में कृष्ण का समधी भी था। कृष्ण के पुत्र सांब ने दुर्योधन की बेटी लक्ष्मणा का अपहरण करके उससे विवाह किया था। क्योंकि लक्ष्मणा, सांब से विवाह करना चाहती थी लेकिन दुर्योधन खिलाफ था। सांब को कौरवों ने बंदी भी बनाया था। तब कृष्ण ने दुर्योधन को समझाया था कि हमारे मतभेद अपनी जगह हैं, लेकिन हमारे विचार हमारे बच्चों के भविष्य में बाधा नहीं बनने चाहिए। दो परिवारों के आपसी झगड़े में बच्चों के प्रेम की बलि ना चढ़ाई जाए। कृष्ण ने लक्ष्मणा को पूरे सम्मान के साथ अपने यहां रखा। दुर्योधन से उनका मतभेद हमेशा रहा लेकिन उन्होंने उसका प्रभाव कभी लक्ष्मणा और सांब की गृहस्थी पर नहीं पड़ने दिया।

7. शांति का मार्ग ही विकास का रास्ता है
कृष्ण ने महाभारत युद्ध के पहले शांति से समझौता करने के लिए पांडवों और कौरवों के बीच मध्यस्थता की। हालांकि दोनों ही पक्ष युद्ध लड़ने के लिए आतुर थे लेकिन कृष्ण ने हमेशा चाहा कि कैसे भी युद्ध टल जाए। झगड़ों से कभी समस्याओं का समाधान नहीं होता है। शांति के मार्ग पर चलकर ही हम समाज का रचनात्मक विकास कर सकते हैं। कृष्ण ने समाज की शांति से मन की शांति तक, दुनिया को ये समझाया कि कोई भी परेशानी तब तक मिट नहीं सकती, जब तक वहां शांति ना हो। फिर चाहे वो समाज हो, या हमारा खुद का मन। शांति से ही सुख मिल सकता है, साधनों से नहीं।

8. हमेशा दूरगामी परिणाम सोचें
महाभारत में जुए की घटना के बाद पांडवों को वनवास हो गया। कृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि ये समय भविष्य के लिए तैयारी करने का है। महादेव शिव, देवराज इंद्र और दुर्गा की तपस्या करने को कहा। कृष्ण जानते थे कि दुर्योधन को कितना भी समझाया जाए, वो पांडवों को कभी उनका राज्य नहीं लौटाएगा। तब शक्ति और सामर्थ्य की जरूरत होगी। कर्ण के कुंडल कवच पांडवों की जीत में आड़े आएंगे ये भी वे जानते थे। उन्होंने हर चीज पर बहुत दूरगामी सोच रखी। कोई भी फैसला तात्कालिक आवेश में नहीं लिया। हर चीज के लिए आने वाली पीढ़ियों तक का सोचा। यही सोच समाज का निर्माण करती है।

9. हर परिस्थिति में मन शांत और दिमाग स्थिर रहे
पांडवों के राजसूय यज्ञ में शिशुपाल कृष्ण को अपशब्द कहता रहा। छोटा भाई था लेकिन मर्यादाएं तोड़ दीं। पूरी सभा चकित थी, कुछ क्रोधित भी थे लेकिन कृष्ण शांत थे, मुस्कुरा रहे थे। शांति दूत बनकर गए तो दुर्योधन ने अपमान किया। कृष्ण शांत रहे। अगर हमारा दिमाग स्थिर है, मन शांत है तभी हम कोई सही निर्णय ले पाएंगे। आवेश में हमेशा हादसे होते हैं, ये कृष्ण सिखाते हैं। विपरित परिस्थितियों में भी कभी विचलित नहीं होने का गुण कृष्ण से बेहतर कोई नहीं जानता।

10. लीडर बनें, श्रेय लेने की होड़ से बचें

कृष्ण ने दुनियाभर के राजाओं को जीता था। जहां ऐसे राजाओं का राज था, जो भ्रष्ट थे, जैसे जरासंघ। लेकिन कभी किसी राजा का सिंहासन नहीं छीना। कृष्ण के पूरे जीवन में कभी ऐसा नहीं हुआ कि उन्होंने किसी राजा को मारकर उसका शासन खुद लिया हो। जरासंघ को मारकर उसके बेटे को राजा बनाया, जो चरित्र का अच्छा था। सभी जगह ऐसे लोगों को बैठाया, जो धर्म को जानते थे। कभी किंग नहीं बने, हमेशा किंगमेकर की भूमिका में रहे। महाभारत युद्ध में भी खुद हथियार नहीं उठाया। पूरा युद्ध कूटनीति से लड़ा, पांडवों को सलाह देते रहे लेकिन जीतने का श्रेय भीम और अर्जुन को दिया।

21/07/2024

बाबा नीम करोली आश्रम हनुमान सेतु लखनऊ में शनिवार को सुंदरकांड पाठ के बाद मधुर स्वर में कृष्ण भजन ।

29/06/2024

#जयसनातन #धर्म

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