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 #नॉटनल  #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है  #विवेकानन्द_को_समझने_की_कोशिश             विद्रोही वेदान्ती का भारतबोध - कनक तिवारी ........
11/09/2025

#नॉटनल #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है #विवेकानन्द_को_समझने_की_कोशिश

विद्रोही वेदान्ती का भारतबोध - कनक तिवारी ...................................

1. भारत के ऐतिहासिक नवजागरण की उथलपुथल को लेकर राममोहन रॉय से विवेकानंद तक बंगाल ने अद्भुत उत्प्रेरण किया है। महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर, केशवचन्द्र सेन, रामकृष्ण परमहंस, हेनरी लुई विवियन डेरोज़िओ सहित अन्य कई सिद्धान्तवादियों में कुछ ने अंग्रेज़ी भाषा और शिक्षा में कुशल दीक्षित होकर देशज विचारों के नवाचार का उद्घाटन - परिच्छेद लिखा । विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर, महर्षि अरविन्द, कविद्वय माइकेल मधुसूदन दत्त और तरु दत्त, 'वंदेमातरम्' के जनक बंकिमचन्द्र चटर्जी, शिक्षाशास्त्री आशुतोष मुखर्जी, वैज्ञानिकद्वय जगदीशचन्द्र बोस, प्रफुल्लचन्द्र राय, राजनीति के शिखर चित्तरंजन दास, विपिनचंद्र पाल और सुभाषचन्द्र बोस तक यह प्रयोग- परम्परा विकसित होती रही । ऐसा नहीं है कि इन बुद्धिजीवियों ने केवल रूढ़िग्रस्त पुरोहितवाद का विरोध किया। इनके समवेत विचारों में पश्चिमी ज्ञानदर्शन के सूक्ष्म अवयवों का गहन अनुशीलन भी शामिल रहा है । उसमें सहमति के मुकाबले असहमति के स्फुलिंग पहले तो नहीं लेकिन बाद में क्रमशः झरते गए हैं। गुलाम मुल्क में राजनीति की संवैधानिक लोकतंत्रात्मक भाषा की अनुपलब्धता होने के कारण उनके विचारों में अधिकतर पश्चिमी अवधारणाओं का प्रत्यक्ष तथा मुखर निषेध नहीं दिखाई देता ।

पढ़िए नवजागरण का क्लाइमैक्स

विवेकानंद को समझने की कोशिश

 #नॉटनल  #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है                   कथा सान्‍निध्य - हरियश राय ...................................दूधनाथ सिं...
11/09/2025

#नॉटनल #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है

कथा सान्‍निध्य - हरियश राय ...................................

दूधनाथ सिंह ने जब कहानी लिखने की शुरुआत की, उस समय तक नेहरू के सपनों का समाजवादी भारत बिखर चुका था और देश पूंजीवाद के रास्ते पर चल पड़ा था। साठोत्तरी दौर का समग्र कथा-लेखन भारत के पहले प्रधानमन्त्री नेहरू के कथन को कठघरे में खड़ा करता है। उन्‍होंने कहा था -“हमारी कोशिश होनी चाहिए, जिससे हम आम इन्सान, किसानों और कामगारों के लिए आज़ादी के और अवसर ला सकें, हम गरीबी, अज्ञान और बीमारियों से लड़ सकें, हम एक सुखी, लोकतान्त्रिक और प्रगतिशील देश का निर्माण कर सकें, और हम ऐसी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संस्थाओं की स्थापना कर सकें जो हर एक इन्सान के लिए जीवन की पूर्णता और न्याय सुनिश्‍चित कर सकें ।”

पढ़िए कथा.परिदृश्य में गरिमामय उपस्थिति : दूधनाथ सिंह की कहानियाँ

Critical Analysis of Hindi Fiction

 #नॉटनल  #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है  #पत्रिका  #भीष्म_साहनी                      मुक्तनाद अप्रैल - जून ’03.......................
11/09/2025

#नॉटनल #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है #पत्रिका #भीष्म_साहनी

मुक्तनाद अप्रैल - जून ’03...................................

बड़े शौक से सुन रहा था, ज़माना,
ख़ुद ही सो गए दास्ताँ कहते - कहते
हाँ, भीष्म साहनी हमेशा के लिए सो गए हैं। वह क्या थे और उनके विचार क्या थे, यह लोगों ने अपनी - अपनी दृष्टि से देखा और समझा। वह हिंदी के एक अग्राणी साहित्यकार थे, यह तो सभी जानते हैं। लेकिन इसके अलावा और भी बहुत कुछ थे।

पढ़िए राधेश्याम दुबे का आलेख भीष्म साहनी: एक अनोखा व्यक्तित्व

सहमत ट्रस्ट की पत्रिका मुक्तनाद। भीष्म साहनी 8 अगस्त 1915 - 11 जुलाई 2003

 #नॉटनल  #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है  #पत्रिका                     हंस  सितंबर ’25  ...................................अजित राय...
11/09/2025

#नॉटनल #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है #पत्रिका

हंस सितंबर ’25 ...................................

अजित राय से मेरी मुलाकात 1994 में हुई थी. वे मेरे चाचा विद्यानन्द सहाय के साथ गया आए थे. उन्होंने बताया कि वे अनेक वर्षों तक गया / बोध गया में मगध विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करते रहे हैं. कि अब वह दिल्ली बसने की तैयारी कर रहे हैं. मैं अक्सर दिल्ली आता-जाता था, तो वहां भी गाहे-बगाहे उनसे मुलाकात होने लगी. तब तक मेरी फिल्म 'पतंग' बन चुकी थी और उसकी आधार - कथा 'शेषांत', 'हंस' में प्रकाशित हो शोहरत बटोर रही थी. एक दूसरी लंबी कहानी 'मध्यांतर' राजेन्द्र जी को नहीं जंची थी, जिसे पंकज बिष्ट ने ‘आजकल’ में लघु उपन्यास की तरह प्रकाशित किया था और वह खासी चर्चा में थी. एक दिन अजित राय झोला टांगे पहुंचे कि आपका आकाशवाणी में इंटरव्यू करना है. साक्षात्कार के दौरान सामान्य सवालों के बाद अचानक उन्होंने रुख बदला और राजेन्द्र जी पर मेरे कंधे से गोलियां बरसाने के भरपूर प्रयास किए-

पढ़िए संजय सहाय का आलेख एक मित्र का असमय चले जाना

जनचेतना का प्रगतिशील कथा - मासिक

 #नॉटनल  #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है  #उपन्यास                    गीता - यशपाल ...................................ज्यों-ज्यों ब...
10/09/2025

#नॉटनल #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है #उपन्यास

गीता - यशपाल ...................................

ज्यों-ज्यों बम्बई का विस्तार सेठानी के फूलते शरीर की तरह बढ़ने लगा, उसका आँचल (सबर्ब) सिमट-सिमट कर उसके शरीर पर चढ़ता गया। फोरास रोड के इलाके के साथ ही मूला भगत की स्थिति बदलती गई। फोरास रोड का बाजार जमते-जमते मूला भगत की चार चालें (हवेलियाँ) खड़ी हो गईं। भगवान की दया से सब कुछ था, परन्तु उनकी दी सम्पत्ति का वारिस न था। पहले तीन लड़कियाँ ही हुईं, फिर लक्ष्‍मीनारायणजी की दया से ढलती उम्र में एक लड़का हुआ।

‘गीता’ शीर्षक यह उपनयस पहले ‘पार्टी कामरेड’ नाम से प्रकाशित हुआ था। इसके केंद्र में गीता नामक एक कॉम्युनिस्ट युव.....

 #नॉटनल  #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है  #कहानी  #संग्रह                         ..और इब्नबतूता गायब हो गया - उमा शंकर चौधरी ........
10/09/2025

#नॉटनल #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है #कहानी #संग्रह
..और इब्नबतूता गायब हो गया - उमा शंकर चौधरी ...................................

उसका नाम जी. बी. एन. पोट्टम था। लेकिन मैं यहां इस कहानी में उसका नाम सिर्फ पोट्टम ही इस्तेमाल करूंगा। पोट्टम की उम्र लगभग पैंतीस-छत्तीस के करीब थी और जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि उसका रंग काला था। पतला-छरहरा काला दक्षिण भारतीय। वैसे दक्षिण के किसी भी प्रांत के आदमी को बस हम दक्षिण भारतीय ही समझ लेते हैं लेकिन मैं यहां यह बता दे रहा हूं कि वह केरल का था। केरल के किसी छोटे से गांव का। एरणाकुलम से लगभग बीस-पच्चीस किलोमीटर दूर धुर गांव में नारियल के पेड़ों की छांव में उसका एक चमकीला सा घर था। एकदम खूब चटक। पोट्टम के माता-पिता दोनों उसी घर में रहते थे। घर में बहुत शांति रहती थी क्योंकि पोट्टम की बहन की शादी हो चुकी थी। और वह अपने ससुराल में सुख से जीवन बिता रही थी। एरणाकुलम जिला के उस छोटे से गांव में पोटट्म का घर चाहे जितना भी चटक और चमकीला हो लेकिन उस घर की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी।

पढ़िए कहानी पोट्टम, हरे पत्ते और दिल्ली की उमस भरी वह शाम

उमा शंकर चौधरी की कहानियाँ अपने समय की विसंगतियों का काला चिट्ठा हैं। ये कहानियां धुर गांव से लेकर शहर तक का सफ़र तय ...

 #नॉटनल  #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है  #इतिहास                                     रंगभेद के चार सौ साल - गोपाल प्रधान.............
10/09/2025

#नॉटनल #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है #इतिहास

रंगभेद के चार सौ साल - गोपाल प्रधान...................................

* 2011 में मेलविले हाउस से एमी सोनी और जेम्स ट्रेसी की किताब ‘हिलबिली नेशनलिस्ट्स, अर्बन रेस रेबेल्स, ऐंड ब्लैकपावर: कम्यूनिटी आर्गेनाइजिंग इन रैडिकल टाइम्स’ का प्रकाशन हुआ । किताब की प्रस्तावना रोक्साने डनबर-आर्टिज़ ने लिखी है । उनका कहना है कि बाइस साल की उम्र में विश्वविद्यालय में दाखिल होने पर उन्हें आंदोलन में सहभागी होने का मौका मिला । इसके पहले वे नागरिक अधिकार आंदोलन की खबरें टेलीविजन पर देखा करती थीं । साथ ही उन्होंने फांसी के विरोध में धरनों और दमनकारी कानून के विरोध में विद्यार्थियों के विरोध प्रदर्शन पर पुलिस अत्याचार की खबरें भी देखीं । उन साहसी युवाओं से मिलने की तमन्ना थी । बचपन ग्रामीण गरीबी में बीता था । सरकारी स्कूलों में पार्थक्य के खात्मे का पहला साल ही बीता था । उनका स्कूल एकमात्र स्कूल था जहां यह आदेश लागू हुआ था । अश्वेत बच्चों के साथ नस्ली हिंसा की कुछ घटनाएं भी होती थीं । इसके बाद उन्होंने ऐसे परिवार में विवाह किया जो नस्ली भेदभाव के विरोध में था ।
* 2011 में द न्यू प्रेस से डोरोथी राबर्ट्स की किताब ‘फ़टल इनवेन्शन: हाउ साइंस, पोलिटिक्स, ऐंड बिग बिजनेस री-क्रिएट रेस इन द ट्वेन्टी-फ़र्स्ट सेन्चुरी’ का प्रकाशन हुआ ।
* 2011 में यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिनेसोटा प्रेस से जोडी मेलामेड की किताब ‘रिप्रेजेन्ट ऐंड डेस्ट्राय: रैशनलाइजिंग वायलेन्स इन द न्यू रेशियल कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ ।
* 2011 में फ़्री प्रेस से तूरे की किताब ‘हू’ज अफ़्रेड ऑफ़ पोस्ट-ब्लैकनेस?: ह्वाट इट मीन्स टु बी ब्लैक नाउ’ का प्रकाशन माइकेल एरिक डायसन की प्रस्तावना के साथ हुआ ।

रंगभेद पर लिखी गई किताबों पर एक किताब

 #नॉटनल  #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है                       ज्‍वालामुखी के मुहाने - मलखान सिंह ....................................
10/09/2025

#नॉटनल #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है

ज्‍वालामुखी के मुहाने - मलखान सिंह ..................................

यों के पास नहीं है। दलित कवि की दृष्टि तो ईश्वर की मौत को आदम और हौवा के मिथक में ही देख लेती है, जिसका उन्होंने अपनी कविता 'ईश्वर उसी दिन मर गया था' में अकाट्‌य विश्लेषण किया है। यथा-

'वे दोनों सहोदर थे
माँ की कोख से
एक साथ जन्मे
एक साथ बचपन बीता
फर्क इतना कि
आदम ने जब दो टाँगों पर
दौड़ना शुरू किया
तब तक ईश्वर
हवाओं की पीठ पर बैठ

ज्वालामुखी के मुहाने इस संग्रह की सबसे बेजोड़ कविता है। वस्तुत: यह कविता नहीं है अपितु पूरा काव्य शास्त्र है। संस्क...

 #नॉटनल  #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है  #आलोचना                    मौसम बदलने की आहट - अनामिका .....................................
09/09/2025

#नॉटनल #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है #आलोचना

मौसम बदलने की आहट - अनामिका ...................................

इतिहास की तो जाने ही दें, हमारी पूरी मिथकीय परंपरा में बस एक आर्य-स्त्री है, जो बोलती है। वह स्त्री है पार्वती। महादेव चूंकि महादेव हैं, उन्होंने अपनी स्त्री को तर्क की, विमर्श की, जिद की स्वतंत्रता दे रखी है। बेचारे समझते हैं कि इस स्त्री में आग है, इसने अपने पिता, हिमालय से भी स्पष्ट विद्रोह किया था, इसलिए इसे कम-से-कम बोलने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए ही। धरती का राउंड लेने जब दोनों पति-पत्नी निकलते हैं, तो पार्वती दीन-दलितों का भाग्य पलटने की पैरवी लगातार उनसे किए चलती हैं और पैरवी के इस डिस्कोर्स का विश्लेषण करने हम बैठें तो स्त्रीत्व की एक सरल, लेकिन रोचक-सी छवि हमारे सामने उभरती है। यह जो स्त्री दूसरों का दुःख देखकर पिघलती है, उनके केस की पैरवी अपने पति से करती है और जिद से, इसरार से, तर्क से अपनी बात मनवा ही लेती है, यह अपने आपमें एक पूरी संस्था है, एक समूचा प्रेशर ग्रुप। सत्ता चाहे जिसके हाथ में हो, करनेवाला चाहे जो हो, पुरुष ही सही, काम करवाएगी स्त्री और करवा के रहेगी। स्त्रीत्व का यह बिंब, जो मौन स्वीकृति के ऊपर उसकी स्वतंत्र समझ की कुशल, ध्येयनिष्ठ अभिव्यक्ति में सफल होता है, मेरे विचार से किसी पितृसत्तात्मक समाज की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। सत्ता हाथ में न हो तो भाषा के जोर से कायाकल्प कैसे घटित किए जा सकते हैं, इसका अच्छा उदाहरण है पार्वती।

चर्चित कवि-कथाकार-चिंतक अनामिका की पुस्तक

 #नॉटनल  #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है  #नाटक                       चौबोली - स्वयं प्रकाश...................................कानसि...
09/09/2025

#नॉटनल #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है #नाटक

चौबोली - स्वयं प्रकाश...................................

कानसिंह- मान लो तुम तीर चलाना जानती भी हो, तो इसकी परीक्षा कैसे होगी?
फूलकुंवर- कहती जो हूं वहां खड़े हो जाओ नथ पहनकर।
कानसिंह- (सोचकर) जो कहती हो यदि कर दिखाया तो मैं सात जनम के लिए गुलाम बन जाऊंगा। लेकिन अगर चूक गयीं तुम.... तो नाक किसकी कटेगी?
फूलकुंवर- (आगे आकर) जंगल में मोर नाचा, नाचा तो नाचा। अकेला फूल देवता के सिर चढ़ा, मुरझाया और गिर गया। धमनियों में रगत हमेशा इसी रफ्तार से नहीं दौड़ेगा ठाकुर। अकेले की हुनरमन्दी पर नाज करना बच्चों जैसी बात है। मैं अबूझ औरतजात बड़ी बातें नहीं जानती। पर मौत के डर से धूजती रानी की नथ से इक्यावन तीर निकालो के पांच सौ इक्यावन, इसमें हितलाभ क्या है? किसका है?

स्वयं प्रकाश का प्रसिद्ध नाटक

 #नॉटनल  #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है  #    #पत्रिका                   चाणक्य वार्ता 1 - 15 सितंबर ’25.............................
09/09/2025

#नॉटनल #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है # #पत्रिका

चाणक्य वार्ता 1 - 15 सितंबर ’25...................................

दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में ‘100 वर्ष की संघ यात्रा - नए क्षितिज’ विषय पर तीन दिवसीय व्याख्यानमाला में संघ प्रमुख डॉ. मोहन राव भागवत ने एक नहीं अनेक बिंदुओं को छुआ। इनमें जहाँ भारत को विश्व गुरु बनने पर फोकस किया गया वहीं भारत के हिन्दू राष्ट्र पर भी श्री भागवत ने अपना स्पष्ट दृष्टि कोण प्रकट किया । इसी के साथ उन्होंने 75 साल में रिटायर होने पर साफ किया कि मैंने कभी ऐसा नहीं कहा। कुल मिलाकर भारत का उत्थान, समाज में जागृति, राजनीतिक नसीहत इस तीन दिवसीय बैठक के मुख्य बिंदु रहे।

पढ़िए आर. पी. तोमर का आलेख संघ - यात्रा - नए क्षितिज, तीन दिवसीय व्याख्यानमाला में संघ प्रमुख का ऐतेहासिक सम्बोधन

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 #नॉटनल  #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है  #    #पत्रिका                   पक्षधर पक्षधर जनवरी - जून ’25...............................
08/09/2025

#नॉटनल #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है # #पत्रिका पक्षधर

पक्षधर जनवरी - जून ’25...................................

दादा मेरे बिछावन पर बैठे नीचे सड़क के उस पार गली के कोने पर के ‘झटका-हलाल मीट दुकान’ को एकटक देखे जा रहे थे। दुकान मालिक महताब मियाँ और उनके बेटे अपने रोज़ी - रोज़गार में ग़ाफ़िल थे। रात के सवा नौ - साढ़े नौ होने जा रहा था। टेंपो और अन्य गाड़ियाँ धीरे - धीरे कम हो रहीं थीं। दुकानों के शटर भी एक - एक करके गिर रहे थे। किंतु सामने गाली वाले महंगू होटल में तो अभी चहल - पहल शुरू हुई थी। उसके मटन और कबाब प्रसिद्ध थे।

पढ़िए रणेन्द्र की कहानी झूठे नैना बोले साँची बतिया

प्रतिरोध की संस्कृति का रचनात्मक हस्तक्षेप

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