
23/07/2025
#नॉटनल #पढ़ना_ही_ज़िंदगी_है
पहल और ज्ञानरंजन - कर्मेंदु शिशिर ...................................
‘पहल’ के अब तक प्रकाशित 90 अंकों की सम्पूर्ण सामग्री से अगर आप सरसरी तौर पर भी गुज़रें तो समकालीनता के सारे गवाक्ष दिख जाएँगे । जिस विवेक से ‘पहल’ समाज और समय पर पैनी निगाह रखता है, उसे देखकर उसके वैचारिक भूगोल का विस्तृत पाट समझ में आ जाता है । समय, समाज और साहित्य को प्रभावित करने वाला शायद ही कोई मुद्दा उससे ओझल रहा हो । उसकी वैज्ञानिक सोच और यथार्थपरक विश्लेषण से तमाम अन्तर्विरोधों और विडम्बनाओं के परखने तथा एक ऐसी सांस्कृतिक सोच विकसित करने में मदद मिली, जिससे मौजूदा समय में हमारी संवेदना और संस्कार समृद्ध हुए । साहित्य और जीवन मूल्यों के विकास की यह एकता ‘पहल’ की महत्त्वपूर्ण वैचारिक उपलब्धि रही क्योंकि उसने व्यापक सामाजिक सरोकारों से ही साहित्य और संस्कृति के मूल्य विकसित किये ।
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