30/11/2024
छिटपुट जीवन
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"शरद में हवा की छुअन ऐसी है जैसे किसी प्रिय बंधु से गले मिलना।"
--देवांशु पद्मनाभ
'छिटपुट जीवन' के शरद की शोभा में उपरोक्त पंक्ति लिखी गई है। लेखक सभी छः ऋतुओं में से शरद को अपना प्रिय ऋतु बता रहे हैं। वैसे सभी ऋतुओं की विविधता को ग्रहण करना, उसे स्वीकारना.... एक सौभाग्य है।
दरअसल ऋतुएं हमारे मस्तिष्क से बातें करतीं हैं। जितनी ऋतुएं उतने विचार, उतने दर्शन। इसलिए भारतीय दर्शन में कहीं ताप तो कहीं शीतल, कहीं बंजर तो कहीं उर्वर.... सभी का अनुभव है, सभी स्वीकार्य हैं। विविधता का स्वीकार्यभाव ही तो हमें बहुदेववादी बनाता है। आप देखिए न! एकेश्वरवाद का प्रभाव उन क्षेत्रों में हैं जहाँ मौसम की एकरूपता है। अरब की धरती पर सिर्फ़ आग बरसती है, इसलिए वहाँ जिस पंथ का प्रादुर्भाव हुआ है उसमें बस आग ही आग है। उस पंथ में दया की शीतलता का कहीं कोई स्थान नहीं।
वापस, पुस्तक पर लौटते हैं। छिटपुट जीवन को किसी एक साहित्यिक विधा की पुस्तक कह पाना तनिक जटिल है। इसमें रोजमर्रा में छोटे-छोटे प्रसंग, वस्तु, पंछी, नदिया, पवन, आकाश, ऋतु, युगल, वृद्ध, यात्रा, सुख-दुःख.....सबकुछ है। आप पढ़ते जाइए आपको लगेगा कि आप लेखक की डायरी पढ़ रहे हैं। किसी दूसरे का पत्र और व्हाट्सएप संदेश को कनखी से देखकर पढ़ने का आनंद लेने वालों! लीजिए, आपके लिए एक खुली डायरी लिखी गई है। पढ़ लीजिए.... इसके हर सोपान पर आनंद ही आनंद है।
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करुणा सागर पण्डा
रायपुर