05/08/2023
सब राह बंद पड़ जाती हैं,
तब एक सहारा होता है,
जब कोइ न संगी साथी हो,
गोविंद हमारा होता है,
जब टूटे हों हम बिखरे हों,
दुनिया के सब जंजालों से,
ऐसे में आकर थाम ले जो,
वो साथी हमारा होता है,
जिसने भी दिल से सौंप दिया,
खुद को गोविद के हाथों में,
फिर माने या न माने वो,
गोविंद का प्यारा होता है।।
एक बार अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा मैंने आज तक संसार में बड़े भ्राता युधिष्ठिर जितना दानवीर कोई दूसरा नहीं देखा। श्रीकृष्ण बोले पार्थ यह तुम्हारा भ्रम है। इस दुनिया में कई दानवीर ऐसे हैं।
जो बिना सोचे-समझे मूल्यवान से मूल्यवान वस्तु का दान देने से नहीं हिचकते। श्रीकृष्ण की इस बात पर अर्जुन ने आपत्ति की भला कोई व्यक्ति स्वयं को नुकसान पहुंचा कर किसी को मूल्यवान से मूल्यवान वस्तु दान में क्यों देने लगा।
इस पर श्रीकृष्ण मुस्करा कर बोले चिंता न करो पार्थ तुम्हारा यह भ्रम कुछ समय बाद दूर हो जाएगा। ऐसा एक व्यक्ति तो मेरी ही नजर में है। जो कीमती से कीमती वस्तु का दान देने के लिए भी तनिक भी संकोच नहीं करता। समय आने पर तुम्हें स्वयं इस बात का पता चल जाएगा और तुम अपनी धारणा बदल दोगे।
काफी दिन बीत गए और अर्जुन इस प्रसंग को भूल गए। बरसात का मौसम आ गया, तब एक दिन श्रीकृष्ण और अर्जुन भिक्षुक का वेश बनाकर युधिष्ठिर के द्वार पर पहुंचे। युधिष्ठिर ने बड़े प्रेम से उनका स्वागत किया। वे भिक्षुक वेश में श्रीकृष्ण और अर्जुन को नहीं पहचान पाए।
कुछ देर बाद भिक्षुकों ने युधिष्ठिर से सूखे चंदन की लकड़ी मांगी। युधिष्ठिर ने उनकी मांग को पूरा करने का प्रयत्न किया किंतु कहीं पर भी चंदन की सूखी लकड़ी नहीं मिली। इस पर युधिष्ठिर ने असमर्थता जताते हुए कहा वर्षाकाल में चंदन की सूखी लकड़ी मिलना असंभव है।
युधिष्ठिर से निराश होकर श्रीकृष्ण और अर्जुन दोनों कर्ण के द्वार पर पहुंचे और वही मांग दोहराई। कर्ण ने उन दोनों का स्नेहपूर्वक स्वागत किया और बोले हे विप्र देव ! आप बैठें मैं कोई न कोई व्यवस्था करता हूँ।
जब कर्ण को भी भरसक प्रयत्न करने पर चंदन की सूखी लकड़ी नहीं मिली। तो उन्होंने बिना एक पल गंवाए अपने महल के कीमती चंदन के दरवाजे उतार कर दे दिए। अर्जुन कर्ण की दानवीरता देखकर दंग रह गए।