Ankit Pandey

Ankit Pandey जय श्री राम

22/11/2024
29/08/2023

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29/08/2023

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असंख्य भारतीय क्रांतिकारियों के त्याग एवं बलिदान के प्रतीक 77वें भारतीय स्वतंत्रता दिवस की समस्त देश व प्रदेश वासियों को...
15/08/2023

असंख्य भारतीय क्रांतिकारियों के त्याग एवं बलिदान के प्रतीक 77वें भारतीय स्वतंत्रता दिवस की समस्त देश व प्रदेश वासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं!

खुद को तिल-तिल जलाकर देश में आजादी का सूर्योदय करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों व देश की रक्षा हेतु सर्वस्व अर्पण करने वाले वीर जवानों को नमन करता हूँ।

आज पूरे देश में हम सभी आजादी के 75 वर्षों को अमृत महोत्सव के रूप में मना रहे हैं आइए हम सभी आजादी के अमृतकाल में पुनः मा0 प्रधानमंत्री जी के संकल्प के अनुसार स्वस्थ, सम्पन्न व विकसित आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में अपनी सहभागिता को सुनिश्चित करें।

05/08/2023

सब राह बंद पड़ जाती हैं,
तब एक सहारा होता है,
जब कोइ न संगी साथी हो,
गोविंद हमारा होता है,

जब टूटे हों हम बिखरे हों,
दुनिया के सब जंजालों से,
ऐसे में आकर थाम ले जो,
वो साथी हमारा होता है,

जिसने भी दिल से सौंप दिया,
खुद को गोविद के हाथों में,
फिर माने या न माने वो,
गोविंद का प्यारा होता है।।

एक बार अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा मैंने आज तक संसार में बड़े भ्राता युधिष्ठिर जितना दानवीर कोई दूसरा नहीं देखा। श्रीकृष्ण बोले पार्थ यह तुम्हारा भ्रम है। इस दुनिया में कई दानवीर ऐसे हैं।

जो बिना सोचे-समझे मूल्यवान से मूल्यवान वस्तु का दान देने से नहीं हिचकते। श्रीकृष्ण की इस बात पर अर्जुन ने आपत्ति की भला कोई व्यक्ति स्वयं को नुकसान पहुंचा कर किसी को मूल्यवान से मूल्यवान वस्तु दान में क्यों देने लगा।

इस पर श्रीकृष्ण मुस्करा कर बोले चिंता न करो पार्थ तुम्हारा यह भ्रम कुछ समय बाद दूर हो जाएगा। ऐसा एक व्यक्ति तो मेरी ही नजर में है। जो कीमती से कीमती वस्तु का दान देने के लिए भी तनिक भी संकोच नहीं करता। समय आने पर तुम्हें स्वयं इस बात का पता चल जाएगा और तुम अपनी धारणा बदल दोगे।

काफी दिन बीत गए और अर्जुन इस प्रसंग को भूल गए। बरसात का मौसम आ गया, तब एक दिन श्रीकृष्ण और अर्जुन भिक्षुक का वेश बनाकर युधिष्ठिर के द्वार पर पहुंचे। युधिष्ठिर ने बड़े प्रेम से उनका स्वागत किया। वे भिक्षुक वेश में श्रीकृष्ण और अर्जुन को नहीं पहचान पाए।

कुछ देर बाद भिक्षुकों ने युधिष्ठिर से सूखे चंदन की लकड़ी मांगी। युधिष्ठिर ने उनकी मांग को पूरा करने का प्रयत्न किया किंतु कहीं पर भी चंदन की सूखी लकड़ी नहीं मिली। इस पर युधिष्ठिर ने असमर्थता जताते हुए कहा वर्षाकाल में चंदन की सूखी लकड़ी मिलना असंभव है।

युधिष्ठिर से निराश होकर श्रीकृष्ण और अर्जुन दोनों कर्ण के द्वार पर पहुंचे और वही मांग दोहराई। कर्ण ने उन दोनों का स्नेहपूर्वक स्वागत किया और बोले हे विप्र देव ! आप बैठें मैं कोई न कोई व्यवस्था करता हूँ।

जब कर्ण को भी भरसक प्रयत्न करने पर चंदन की सूखी लकड़ी नहीं मिली। तो उन्होंने बिना एक पल गंवाए अपने महल के कीमती चंदन के दरवाजे उतार कर दे दिए। अर्जुन कर्ण की दानवीरता देखकर दंग रह गए।

निर्णय वक्त का नहींव्यक्ति और वक़्त दोनों का होता है 💪💪उत्तम भैया के साथ    ❤️
05/08/2023

निर्णय वक्त का नहीं
व्यक्ति और वक़्त
दोनों का होता है
💪💪उत्तम भैया के साथ
❤️

01/08/2023

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26/07/2023

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