14/06/2025
रणधीर सिंह
(लेखक, राष्ट्रप्रेम विचारधारा से प्रेरित)
"ज्ञान, सहनशीलता और अध्यात्म: एक गहन अंतर्संबंध"
ज्ञान, सहनशीलता और अध्यात्म – ये तीनों शब्द सुनने में भले ही अलग-अलग प्रतीत होते हों, परंतु इनके बीच एक गहरा और अनोखा संबंध है। जब हम इस संबंध को समझते हैं, तो न केवल हमारी सोच में परिपक्वता आती है, बल्कि हमारा जीवन भी अधिक संतुलित, शांतिपूर्ण और उद्देश्यपूर्ण बनता है।
ज्ञान: सहनशीलता की भूमि
ज्ञान केवल सूचनाओं का संग्रह नहीं है, बल्कि जीवन को समझने की एक दृष्टि है। जब कोई व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करता है, तो उसके भीतर चीजों को देखने और समझने की क्षमता विकसित होती है। वह दूसरों के दृष्टिकोण को जानने लगता है, विरोध को नकारने के बजाय समझने की कोशिश करता है।
यही समझ उसे सहनशील बनाती है। एक ज्ञानी व्यक्ति यह जानता है कि सभी के विचार, संस्कार और अनुभव भिन्न होते हैं। इसलिए वह जल्दबाज़ी में निर्णय नहीं करता, अपितु धैर्य और करुणा के साथ प्रतिक्रिया देता है। यही सहनशीलता किसी भी समाज या व्यक्ति की सबसे बड़ी शक्ति होती है।
सहनशीलता: शक्ति की सर्वोच्च अवस्था
वास्तव में, सहनशीलता कोई कमजोरी नहीं, बल्कि आत्मबल की एक ऊँची अवस्था है। यह वही व्यक्ति धारण कर सकता है, जिसने अपने भीतर के द्वंद्वों पर विजय प्राप्त कर ली हो। सहनशील व्यक्ति दूसरों को नीचा दिखाने में नहीं, बल्कि उन्हें उठाने में विश्वास करता है।
इतिहास में गांधीजी, बुद्ध, महावीर जैसे अनेक उदाहरण हैं, जिन्होंने सहनशीलता के माध्यम से समाज में क्रांति लाई। उन्होंने हिंसा या आक्रोश से नहीं, बल्कि आत्मबल और सहनशीलता से दूसरों को बदला। यह दर्शाता है कि जब मनुष्य का अंतःकरण ज्ञानी और शांत होता है, तब वह शक्ति के सर्वोच्च शिखर पर होता है।
ज्ञान और अध्यात्म का संबंध
अक्सर यह समझा जाता है कि अध्यात्म केवल ग्रंथों, पूजा-पाठ या धार्मिक आचरण तक सीमित है, परंतु यह सीमित दृष्टिकोण है। अध्यात्म का वास्तविक तात्पर्य है – “अंतरात्मा से अध्ययन”। जब हम किसी विषय, विचार या बस्तु का चिंतन मन से नहीं, अपितु अंतरात्मा से करते हैं, तब हम अध्यात्म के पथ पर अग्रसर होते हैं।
किसी भी विषय को जब हम गहराई से, निष्कलंक भाव से, स्वार्थ रहित होकर समझने की कोशिश करते हैं, तो वह प्रक्रिया भी अध्यात्म ही है – चाहे वह विज्ञान हो, समाजशास्त्र हो, राजनीति हो या जीवन स्वयं। इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो अध्यात्म कोई बाहरी चीज़ नहीं, बल्कि भीतर की यात्रा है – आत्मबोध की यात्रा।
निष्कर्ष
इस प्रकार, यह पूर्णतः सत्य है कि ज्ञान आपको सहनशील बनाता है, और सहनशीलता हमारी शक्ति की सर्वोच्च स्थिति होती है। साथ ही, जब ज्ञान को हम आत्मिक स्तर पर ग्रहण करते हैं, तो वह अध्यात्म का रूप ले लेता है। अध्यात्म केवल किसी ग्रंथ की व्याख्या नहीं, बल्कि अपने भीतर के सत्य की खोज है।
आज के युग में, जब जीवन भागदौड़ और संघर्ष से भरा है, तब ऐसे विचार ही समाज को संतुलन और दिशा प्रदान कर सकते हैं। इसलिए आवश्यक है कि हम ज्ञान प्राप्त करें, सहनशील बनें, और अपने भीतर के अध्यात्म से जुड़ें – क्योंकि यही सच्चा विकास और आत्मोन्नति है।