राष्ट्रप्रेम

राष्ट्रप्रेम This love leads us towards dedication and service. We are able to contribute to the prosperity of our nation and upliftment of our society.
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जब हमारे दिल में अपने राष्ट्र के प्रति उत्कट प्रेम होता है, तो हम राष्ट्रप्रेमी होते हैं। यह प्रेम हमें समर्पण और सेवा की दिशा में अग्रसर करता है। हम अपने राष्ट्र के समृद्धि और समाज के उत्थान के लिए समर्थ होते हैं।
राष्ट्रप्रेम में आपका स्वागत है। जब हमारे दिल में अपने राष्ट्र के प्रति उत्कट प्रेम होता है, तो हम राष्ट्रप्रेमी होते हैं। यह प्रेम हमें समर्पण और सेवा की दिशा में अग्रसर करता है। हम

अपने राष्ट्र के समृद्धि और समाज के उत्थान के लिए समर्थ होते हैं। इस प्रेम के साथ हम समझते हैं कि हमारा राष्ट्र हमारी पहचान है और हमारी दायित्व समझ के लिए उसके प्रति उत्साहित होते हैं। राष्ट्रप्रेम में आपका स्वागत है।
When we have ardent love for our nation in our heart, we are patriots. With this love we understand that our nation is our identity and we get excited towards it as a sense of our responsibility. Welcome to patriotism.

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28/06/2025

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#राष्ट्रप्रेम

राष्ट्र प्रेम – एक विचार, एक प्रेरणा, एक संकल्प राष्ट्र सबसे पहले– इसी भावना के साथ राष्ट्र प्रेम चैनल भारत की मिट्....

 #राष्ट्रपेम  #राष्ट्रगान  #राष्ट्र  #राष्ट्रभक्ति  #राष्ट्रप्रेम
20/06/2025

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लोकमाता जीजाबाई – संस्कारों से सींचा हुआ स्वराज्य का सपनास्वराज्य केवल एक राजनीतिक आकांक्षा नहीं था, वह एक सांस्कृतिक, न...
17/06/2025

लोकमाता जीजाबाई – संस्कारों से सींचा हुआ स्वराज्य का सपना

स्वराज्य केवल एक राजनीतिक आकांक्षा नहीं था, वह एक सांस्कृतिक, नैतिक और आध्यात्मिक संकल्प था – और इस संकल्प की पहली रचयिता थीं लोकमाता जीजाबाई। उनका जीवन केवल एक रानी या माता का नहीं, बल्कि संस्कारों की धरती पर बोए गए स्वराज्य के बीजों का प्रतीक है।

राजमाता जीजाबाई जी का जन्म एक वीर क्षत्रिय कुल में हुआ, लेकिन उनकी महानता केवल वंश में नहीं, बल्कि उनके विचारों, धैर्य और राष्ट्र के प्रति समर्पण में थी। जब भारत मुगलों के अधीन था, जब आत्मसम्मान और धर्म संकट में थे – तब एक माता ने अपने पुत्र के माध्यम से पूरे देश को जाग्रत करने का संकल्प लिया।

छत्रपति शिवाजी महाराज की वीरता, नीति, शौर्य और धर्मनिष्ठा के पीछे यदि किसी की सबसे गहरी छाया रही है, तो वह माँ जीजाबाई की ही रही। उन्होंने शिवाजी को रामायण और महाभारत के चरित्रों से परिचित कराया, उनमें मर्यादा, धर्म और वीरता के बीज रोपे। शिवाजी महाराज की सोच, "हिंदवी स्वराज्य" की नींव जीजाबाई के ही संस्कारों में थी।

👉 उन्होंने केवल एक पुत्र को नहीं, बल्कि एक युगपुरुष को जन्म दिया।

👉 उन्होंने केवल एक परिवार को नहीं, एक राष्ट्र को दिशा दी।

👉 उन्होंने केवल स्वराज्य का स्वप्न नहीं देखा, बल्कि उसे संस्कारों से सींचा।

आज जब हम भारत को फिर से आत्मगौरव, सांस्कृतिक चेतना और राष्ट्रधर्म के पथ पर आगे बढ़ता देखना चाहते हैं, तब हमें राजमाता जीजाबाई के आदर्शों से सीखना होगा – कैसे एक माँ एक पूरी पीढ़ी को जाग्रत कर सकती है।

उनकी पुण्यतिथि पर राष्ट्रप्रेम की भावना से ओतप्रोत होकर हम उन्हें शत-शत नमन करते हैं।

🌺 स्वराज्य के बीजों को संस्कारों से सींचने वाली माँ को श्रद्धांजलि! 🌺
#लोकमाता_जीजाबाई #राष्ट्रप्रेम

भारत माता को भारत माता क्यों कहा जाता है?"भारत" केवल एक भू-भाग नहीं, यह एक संस्कृति, सभ्यता, और आध्यात्मिक चेतना का नाम ...
17/06/2025

भारत माता को भारत माता क्यों कहा जाता है?
"भारत" केवल एक भू-भाग नहीं, यह एक संस्कृति, सभ्यता, और आध्यात्मिक चेतना का नाम है।
भारत को "माता" कहने की परंपरा प्राचीन वैदिक विचारों, भारतीय भावधारा, और राष्ट्र के प्रति श्रद्धा से उपजी है।

✳️ कारण:
माता जैसा पोषण करती है:
जैसे माँ अपने बच्चों को जन्म देती है, उन्हें पालती है, वैसे ही यह भूमि हमें अन्न, जल, वायु, संस्कृति और अस्तित्व देती है।
➤ "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी"

भारतीय संस्कृति में भूमि को देवता माना गया है:
हमारे शास्त्रों में पृथ्वी को "धरणी", "धरा", "भूमि देवी" कहा गया है – यानी देवी के समान वंदनीय।

स्वतंत्रता संग्राम में भावनात्मक प्रतीक:
जब ब्रिटिश शासन के समय भारत को गुलाम बनाया गया, तब "भारत माता" की कल्पना ने देशवासियों को एक माँ की रक्षा के लिए खड़े होने की भावना दी।
👉 यह भाव बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की रचना "वंदे मातरम्" से जन-जन तक पहुँचा।

📣 भारत माता की पुकार क्या है और क्यों है?
🔔 भारत माता की पुकार क्या है?
भारत माता की पुकार एक आवाहन है –

✨ "वंदे मातरम्!"
✨ "भारत माता की जय!"
✨ "जय हिंद!"

यह पुकार भारत की आत्मा की आवाज है जो अपने सपूतों को जागृत करती है, उन्हें कर्तव्य, सेवा, और बलिदान के मार्ग पर चलने को प्रेरित करती है।

📜 क्यों है यह पुकार?
राष्ट्र के लिए समर्पण की भावना जगाने के लिए:
यह पुकार उस चेतना को जन्म देती है जो व्यक्ति को निजी जीवन से ऊपर उठाकर राष्ट्र की सेवा के लिए तैयार करती है।

एकता का प्रतीक:
विविधताओं से भरे भारत को एक सूत्र में बाँधने वाली आवाज है यह –
➤ हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई – सबके लिए एक समान।

बलिदान और प्रेरणा का मंत्र:
यही पुकार थी जो भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, झाँसी की रानी, और लाखों स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरणा देती रही।

आत्मिक जागरण का आह्वान:
यह केवल नारा नहीं, आत्मा की पुकार है कि –

“जागो! कुछ करो! यह भूमि पुकार रही है!”

✨ निष्कर्ष:
"भारत माता" केवल एक कल्पना नहीं, वह हमारी चेतना की जननी है।
उसकी "पुकार" केवल शब्द नहीं, एक धर्म है – राष्ट्रधर्म।
जिस दिन भारत का प्रत्येक युवा उसकी पुकार को समझेगा, भारत फिर से विश्वगुरु बनेगा।
#देशभक्ति

बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर केवल संविधान निर्माता ही नहीं, बल्कि राष्ट्रप्रेम, सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के महान पु...
16/06/2025

बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर केवल संविधान निर्माता ही नहीं, बल्कि राष्ट्रप्रेम, सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के महान पुरोधा थे। उनके जीवन में कई ऐसे अनसुने प्रसंग हैं जो राष्ट्रप्रेम की गहराई और उनके संकल्प को दर्शाते हैं। नीचे कुछ ऐसे प्रेरणादायक और कम प्रसिद्ध प्रसंग प्रस्तुत हैं जो राष्ट्रप्रेम की भावना को जाग्रत करते हैं:

1. जलियाँवाला बाग हत्याकांड पर बाबा साहब की प्रतिक्रिया
साल – 1919
जब अमृतसर में जलियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ, उस समय बाबा साहब विदेश में पढ़ाई कर रहे थे। लेकिन इस घटना ने उन्हें भीतर से झकझोर दिया। उन्होंने ब्रिटिश शासन की क्रूरता पर तीखा विरोध किया और अपने एक पत्र में लिखा –
“अगर भारत की माटी में न्याय के लिए लड़ने वाले लोग मारे जा सकते हैं, तो हमें कलम और विचार से उनका उत्तर देना ही होगा।”
यह उनके विचारों में ब्रिटिश शासन के विरोध और भारत माता के प्रति प्रेम का स्पष्ट संकेत था।

2. पाकिस्तान के निर्माण का दृढ़ विरोध
साल – 1940 के दशक
जब जिन्ना और मुस्लिम लीग पाकिस्तान की मांग कर रहे थे, बाबा साहब ने "Thoughts on Pakistan" नामक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने तर्क के साथ बताया कि देश का विभाजन भारत के लिए कितनी बड़ी त्रासदी होगी।
उन्होंने लिखा –
“एक राष्ट्र को धर्म के नाम पर बांटना राष्ट्र की आत्मा को बांटने जैसा है।”
उन्होंने खुलकर विभाजन का विरोध किया और यह उनके राष्ट्रप्रेम का परिचायक था।

3. संविधान निर्माण के समय भारत माता की रक्षा की भावना
संविधान सभा की बहसों में बाबा साहब ने बार-बार इस बात पर ज़ोर दिया कि संविधान ऐसा होना चाहिए जो हर वर्ग को जोड़ सके, कोई भी अलग-थलग महसूस न करे।
उन्होंने कहा था –
"मैं इस संविधान को भारत माता के चरणों में समर्पित करता हूँ, ताकि यह देश समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के मार्ग पर अग्रसर हो।”

4. अंग्रेजों की नौकरी का त्याग
बाबा साहब को बड़ौदा राज्य से विदेश में पढ़ने के लिए स्कॉलरशिप मिली थी, जिसके बदले उन्हें राज्य की नौकरी करनी थी।
विदेश से लौटने पर उन्होंने एक उच्च पद प्राप्त किया लेकिन वहां जातिगत भेदभाव के कारण उन्हें अपमान सहना पड़ा।
उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी और जीवनभर संघर्ष का रास्ता चुना।
यह त्याग केवल आत्मसम्मान का नहीं, भारत माता के लिए एक समर्पण भाव था — कि वे अन्याय के साथ नहीं जुड़ेंगे।

5. अंतिम क्षणों में भारत माता के लिए संदेश
बाबा साहब जीवन के अंतिम दिनों में बहुत अस्वस्थ थे, लेकिन तब भी उन्होंने कहा –
“भारत की आत्मा तभी जीवित रह सकती है जब हर भारतीय को सम्मान और समान अवसर मिले।”
उनकी अंतिम इच्छा भी यही थी कि भारत एक ऐसा देश बने जहां कोई छुआछूत न हो, कोई भूखा न हो, और हर बच्चा शिक्षा पा सके।

निष्कर्ष:
बाबा साहब डॉ. अंबेडकर का राष्ट्रप्रेम केवल नारों में नहीं, संविधान, सामाजिक न्याय, समानता और शिक्षा के अधिकार के रूप में साकार हुआ। उन्होंने अपने जीवन के हर क्षण को भारत माता के प्रति समर्पित किया, चाहे वह विदेश में भारत का नाम रोशन करना हो या देश में सामाजिक क्रांति लाना।
#राष्ट्रप्रेम

विश्व पटल पर भारत का अस्तित्वभारत, केवल एक भूभाग नहीं बल्कि एक सभ्यता, संस्कृति और विचार है जो सहस्राब्दियों से विश्व पट...
15/06/2025

विश्व पटल पर भारत का अस्तित्व

भारत, केवल एक भूभाग नहीं बल्कि एक सभ्यता, संस्कृति और विचार है जो सहस्राब्दियों से विश्व पटल पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए है। विश्व इतिहास में भारत का अस्तित्व कभी भी केवल राजनीतिक सीमाओं तक सीमित नहीं रहा; यह एक विचार के रूप में पूरे विश्व को आलोकित करता रहा है।

1. सांस्कृतिक और आध्यात्मिक नेतृत्व
भारत ने योग, ध्यान, वेद, उपनिषद, गीता और बौद्ध दर्शन जैसे अमूल्य ज्ञान को पूरी दुनिया को प्रदान किया। आज योग दिवस को संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता मिलना इस बात का प्रमाण है कि भारत की आध्यात्मिक शक्ति आज भी विश्व का मार्गदर्शन कर रही है।

2. विज्ञान और गणित में योगदान
शून्य की खोज, आयुर्वेद, खगोल विज्ञान, और आर्यभट्ट, भास्कराचार्य जैसे वैज्ञानिकों का ज्ञान आज भी विश्व को चमत्कृत करता है। आधुनिक विज्ञान के कई सिद्धांतों की नींव प्राचीन भारत में ही पाई जाती है।

3. वैश्विक राजनीति और नेतृत्व में योगदान
भारत आज G20 जैसे वैश्विक मंचों पर नेतृत्वकारी भूमिका निभा रहा है। वैश्विक दक्षिण (Global South) के लिए भारत एक सशक्त स्वर बनकर उभरा है जो विकासशील देशों के हितों की रक्षा करता है।

4. आर्थिक शक्ति के रूप में उभार
भारत आज विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और तकनीक, फार्मा, रक्षा, अंतरिक्ष और डिजिटल सेवाओं में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। ISRO की सफलताएँ और डिजिटल इंडिया जैसे अभियानों ने भारत को तकनीकी महाशक्ति बना दिया है।

5. लोकतंत्र और मानव मूल्यों का प्रतीक
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है जो विविधता में एकता का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है। यहां की धार्मिक, भाषायी और सांस्कृतिक विविधता वैश्विक समुदाय के लिए प्रेरणा है।

6. शांति, सहअस्तित्व और वसुधैव कुटुंबकम् का संदेश
भारत का मूल दर्शन वसुधैव कुटुंबकम् यानी “सारा विश्व एक परिवार है” आज की विभाजित और संघर्षरत दुनिया के लिए एक समाधान है। भारत ने कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया, बल्कि सदा शांति और संवाद का मार्ग अपनाया।

निष्कर्ष:
भारत का विश्व पटल पर अस्तित्व केवल एक राष्ट्र के रूप में नहीं, बल्कि एक वैश्विक मार्गदर्शक के रूप में है। आधुनिक भारत विज्ञान और तकनीक में आगे बढ़ते हुए भी अपने सांस्कृतिक मूल्यों, अध्यात्म और मानवता की भावना को लेकर वैश्विक मंच पर मजबूती से खड़ा है।

#राष्ट्रप्रेम

रणधीर सिंह(लेखक, राष्ट्रप्रेम विचारधारा से प्रेरित)"ज्ञान, सहनशीलता और अध्यात्म: एक गहन अंतर्संबंध"ज्ञान, सहनशीलता और अध...
14/06/2025

रणधीर सिंह
(लेखक, राष्ट्रप्रेम विचारधारा से प्रेरित)
"ज्ञान, सहनशीलता और अध्यात्म: एक गहन अंतर्संबंध"

ज्ञान, सहनशीलता और अध्यात्म – ये तीनों शब्द सुनने में भले ही अलग-अलग प्रतीत होते हों, परंतु इनके बीच एक गहरा और अनोखा संबंध है। जब हम इस संबंध को समझते हैं, तो न केवल हमारी सोच में परिपक्वता आती है, बल्कि हमारा जीवन भी अधिक संतुलित, शांतिपूर्ण और उद्देश्यपूर्ण बनता है।

ज्ञान: सहनशीलता की भूमि
ज्ञान केवल सूचनाओं का संग्रह नहीं है, बल्कि जीवन को समझने की एक दृष्टि है। जब कोई व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करता है, तो उसके भीतर चीजों को देखने और समझने की क्षमता विकसित होती है। वह दूसरों के दृष्टिकोण को जानने लगता है, विरोध को नकारने के बजाय समझने की कोशिश करता है।

यही समझ उसे सहनशील बनाती है। एक ज्ञानी व्यक्ति यह जानता है कि सभी के विचार, संस्कार और अनुभव भिन्न होते हैं। इसलिए वह जल्दबाज़ी में निर्णय नहीं करता, अपितु धैर्य और करुणा के साथ प्रतिक्रिया देता है। यही सहनशीलता किसी भी समाज या व्यक्ति की सबसे बड़ी शक्ति होती है।

सहनशीलता: शक्ति की सर्वोच्च अवस्था
वास्तव में, सहनशीलता कोई कमजोरी नहीं, बल्कि आत्मबल की एक ऊँची अवस्था है। यह वही व्यक्ति धारण कर सकता है, जिसने अपने भीतर के द्वंद्वों पर विजय प्राप्त कर ली हो। सहनशील व्यक्ति दूसरों को नीचा दिखाने में नहीं, बल्कि उन्हें उठाने में विश्वास करता है।

इतिहास में गांधीजी, बुद्ध, महावीर जैसे अनेक उदाहरण हैं, जिन्होंने सहनशीलता के माध्यम से समाज में क्रांति लाई। उन्होंने हिंसा या आक्रोश से नहीं, बल्कि आत्मबल और सहनशीलता से दूसरों को बदला। यह दर्शाता है कि जब मनुष्य का अंतःकरण ज्ञानी और शांत होता है, तब वह शक्ति के सर्वोच्च शिखर पर होता है।

ज्ञान और अध्यात्म का संबंध
अक्सर यह समझा जाता है कि अध्यात्म केवल ग्रंथों, पूजा-पाठ या धार्मिक आचरण तक सीमित है, परंतु यह सीमित दृष्टिकोण है। अध्यात्म का वास्तविक तात्पर्य है – “अंतरात्मा से अध्ययन”। जब हम किसी विषय, विचार या बस्तु का चिंतन मन से नहीं, अपितु अंतरात्मा से करते हैं, तब हम अध्यात्म के पथ पर अग्रसर होते हैं।

किसी भी विषय को जब हम गहराई से, निष्कलंक भाव से, स्वार्थ रहित होकर समझने की कोशिश करते हैं, तो वह प्रक्रिया भी अध्यात्म ही है – चाहे वह विज्ञान हो, समाजशास्त्र हो, राजनीति हो या जीवन स्वयं। इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो अध्यात्म कोई बाहरी चीज़ नहीं, बल्कि भीतर की यात्रा है – आत्मबोध की यात्रा।

निष्कर्ष
इस प्रकार, यह पूर्णतः सत्य है कि ज्ञान आपको सहनशील बनाता है, और सहनशीलता हमारी शक्ति की सर्वोच्च स्थिति होती है। साथ ही, जब ज्ञान को हम आत्मिक स्तर पर ग्रहण करते हैं, तो वह अध्यात्म का रूप ले लेता है। अध्यात्म केवल किसी ग्रंथ की व्याख्या नहीं, बल्कि अपने भीतर के सत्य की खोज है।

आज के युग में, जब जीवन भागदौड़ और संघर्ष से भरा है, तब ऐसे विचार ही समाज को संतुलन और दिशा प्रदान कर सकते हैं। इसलिए आवश्यक है कि हम ज्ञान प्राप्त करें, सहनशील बनें, और अपने भीतर के अध्यात्म से जुड़ें – क्योंकि यही सच्चा विकास और आत्मोन्नति है।

*हमारे प्यारे बच्चे: भारत के भाग्य विधाता, उन्हें जिंदगी दीजिए... मोबाइल नहीं*"बचपन वो नहीं जो केवल उम्र के कुछ सालों तक...
13/06/2025

*हमारे प्यारे बच्चे: भारत के भाग्य विधाता, उन्हें जिंदगी दीजिए... मोबाइल नहीं*
"बचपन वो नहीं जो केवल उम्र के कुछ सालों तक सीमित हो, बचपन वो है जो मुस्कान, मासूमियत और जिज्ञासा से भरा हो।"
लेकिन आज जब हम भारत के बच्चों को देखते हैं, तो उनके हाथों में खिलौने नहीं, मोबाइल हैं। आँखों में सपने नहीं, स्क्रीन की चमक है।

*भारत, जो दुनिया की सबसे युवा जनसंख्या वाला देश है, उसके भविष्य निर्माता – हमारे बच्चे – आज डिजिटल कैद में हैं।*
जहाँ एक ओर तकनीक ने जीवन को आसान बनाया है, वहीं दूसरी ओर यह बचपन को निगलती जा रही है।

*मोबाइल की लत – एक अदृश्य जंजीर*
शोध बताते हैं कि मोबाइल की अधिक लत बच्चों में मानसिक थकान, चिड़चिड़ापन, एकाग्रता की कमी, सामाजिक दूरी और शारीरिक अस्वस्थता का कारण बन रही है।
कभी गाँव की मिट्टी में लोटने वाले, गलियों में दौड़ते, पेड़ों पर चढ़ते बच्चे अब कमरे में बैठकर स्क्रीन से चिपके हैं।

*भारत का भविष्य खतरे में है*
भारत का सपना है – विकसित, शिक्षित, चरित्रवान और संस्कारी समाज। लेकिन अगर आज के बच्चे मानसिक और भावनात्मक रूप से कमजोर हो गए, तो कल हम कैसी पीढ़ी पाएंगे?

*बच्चा केवल पढ़ाई से नहीं, अनुभवों से सीखता है।* उसे रिश्तों की गर्मी, प्रकृति की सैर, खेल का मैदान और किताबों की खुशबू चाहिए – न कि वर्चुअल दुनिया का छलावा।

*हम क्या कर सकते हैं?*
*समय दीजिए*: बच्चों को मोबाइल की जगह अपनी उपस्थिति दें। उन्हें सुना जाए, समझा जाए।

*खेल को बढ़ावा दें*: मैदान में खेलते हुए बच्चे मजबूत तन और मन के साथ बड़े होते हैं।

*संस्कारों की शिक्षा दें*: उन्हें भारत की संस्कृति, त्यौहार, कहानियाँ और मूल्यों से जोड़ें।

*तकनीक को संतुलित करें*: शिक्षा के लिए सीमित और नियंत्रित उपयोग करें, लेकिन भावनात्मक रिश्ता कभी डिजिटल न हो।

*एक अपील* – जागिए, बचपन को बचाइए
मोबाइल एक यंत्र है, जीवन नहीं।
*बचपन एक बीज है* – अगर सही पोषण मिला, तो वही भारत को विश्वगुरु बना सकता है।
तो आइए, हम सब मिलकर यह प्रण लें –
हम अपने बच्चों को जिंदगी देंगे, रिश्तों का अहसास देंगे, मोबाइल नहीं।
#राष्ट्रप्रेम
#श्रद्धांजलि #विमानदुर्घटना

अहमदाबाद में आज हुई विमान दुर्घटना से पूरा राष्ट्र स्तब्ध है। इस हृदयविदारक त्रासदी में जिन लोगों ने अपने प्राण गंवाए, उ...
12/06/2025

अहमदाबाद में आज हुई विमान दुर्घटना से पूरा राष्ट्र स्तब्ध है। इस हृदयविदारक त्रासदी में जिन लोगों ने अपने प्राण गंवाए, उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

ईश्वर से प्रार्थना है कि शोकाकुल परिवारों को यह गहन आघात सहने की शक्ति प्रदान करें एवं सभी घायलों को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ हो।

आपातकालीन सेवाएं और प्रशासन राहत कार्यों में दिन-रात जुटे हैं, हम उनके समर्पण और सेवा भावना को नमन करते हैं।

#विमानदुर्घटना #श्रद्धांजलि

🌸 राष्ट्रीय प्रेम दिवस पर राष्ट्र के प्रति प्रेम का संकल्प 🇮🇳आज से शुरू करते हैं एक नई पहल – "राष्ट्रप्रेम" की।आज जहां प...
12/06/2025

🌸 राष्ट्रीय प्रेम दिवस पर राष्ट्र के प्रति प्रेम का संकल्प 🇮🇳
आज से शुरू करते हैं एक नई पहल – "राष्ट्रप्रेम" की।

आज जहां प्रेम को रिश्तों में समर्पण, त्याग और भावनाओं का प्रतीक माना जाता है, वहीं राष्ट्र के लिए प्रेम को कर्म, निष्ठा और सेवा का प्रतीक बनाना ज़रूरी है।

👉 प्रेम केवल व्यक्ति तक सीमित न रहे,
बल्कि भारत माता के प्रति हमारी आस्था,
संस्कृति के प्रति हमारी प्रतिबद्धता,
और समाज के प्रति हमारी ज़िम्मेदारी में प्रकट हो।

💬 आज से “राष्ट्रप्रेम” की बात होगी – विचारों में, कर्म में और संकल्प में।
हर दिन एक नई प्रेरणा, एक नई सोच – जो देश को जोड़े, युवाओं को जगाए, और भारत को सशक्त बनाए।

📌 #राष्ट्रप्रेम कोई संस्था नहीं, यह एक युवा जनसंकल्प है।
एक अभियान, जो हर उस व्यक्ति से जुड़ना चाहता है जो कह सके –
"मुझे अपने भारत से प्रेम है, और मैं इसके लिए कुछ करना चाहता हूँ।"

💥 तो आइए, राष्ट्रीय प्रेम दिवस पर राष्ट्र के लिए प्रेम की शुरुआत करें – राष्ट्रप्रेम के साथ।

🔗 #राष्ट्रप्रेम #राष्ट्रीय_प्रेम_दिवस

प्रिय  मित्रों , भाईयों और बहनों    जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी रक्षाबंधन ...
19/08/2024

प्रिय मित्रों , भाईयों और बहनों
जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी रक्षाबंधन से मैं तुम्हें बांधता हूं, जो तुम्हारी रक्षा करेगा ।
रक्षा बंधन केवल भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह एकता और भाईचारे का प्रतीक भी है। जिस तरह एक छोटे से धागे से बंध कर हम अपने रिश्ते को मजबूत करते हैं, उसी प्रकार यह सूत्र हमें समाज में एकता और आपसी सहयोग का संदेश देता है।

आइए, इस रक्षा बंधन पर हम सभी मिलकर एकता का संकल्प लें और इस बंधन को न सिर्फ अपने परिवार, बल्कि पूरे समाज के साथ साझा करें। एकता में शक्ति है, और यही शक्ति हमें हर चुनौती का सामना करने की हिम्मत देती है।

आप सभी को रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएं! इस पर्व पर बंधे हर सूत्र के साथ हमारे रिश्ते और मजबूत हों, और हम सब एक साथ मिलकर एक बेहतर समाज का निर्माण करें

सभी देशवासियों को  #स्वतंत्रतादिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने व...
15/08/2024

सभी देशवासियों को #स्वतंत्रतादिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर शहीदों एवं क्रांतिवीरों को कोटि कोटि नमन।

जय हिंद! 🇮🇳
जय भारत! 🇮🇳

Address

Khushi Vihar , Kanausi
Lucknow
226011

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