मज़दूर बिगुल Mazdoor Bigul

मज़दूर बिगुल Mazdoor Bigul मज़दूरों का मासिक अख़बार Workers' monthly newspaper
https://www.mazdoorbigul.net/

‘मज़दूर बिगुल’ का स्वरूप, उद्देश्‍य और जिम्मेदारियां
‘मज़दूर बिगुल’ व्‍यापक मेहनतकश आबादी के बीच क्रान्तिकारी राजनीतिक शिक्षक और प्रचारक का काम करता है। यह मज़दूरों के बीच क्रान्तिकारी वैज्ञानिक विचारधारा का प्रचार करेगा और सच्‍ची सर्वहारा संस्‍कृति का प्रचार करेगा। यह दुनिया की क्रान्तियों के इतिहास और शिक्षाओं से, अपने देश के वर्ग संघर्षों और मज़दूर आन्‍दोलन के इतिहास और सबक से मज़दूर वर्ग को पर

िचित करायेगा तथा तमाम पूंजीवादी अफवाहों-कुप्रचारों का भण्‍डाफोड़ करेगा।

मज़दूर बिगुल’ भारतीय क्रान्ति के स्‍वरूप, रास्‍ते और समस्‍याओं के बारे में क्रान्तिकारी कम्‍युनिस्‍टों के बीच जारी बहसों को नियमित रूप से छापेगा और ‘बिगुल’ देश और दुनिया की राजनीतिक घटनाओं और आर्थिक स्थितियों के सही विश्‍लेषण से मज़दूर वर्ग को शिक्षित करने का काम करेगा।
स्‍वयं ऐसी बहसें लगातार चलायेगा ताकि मज़दूरों की राजनीतिक शिक्षा हो तथा वे सही लाइन की सोच-समझ से लैस होकर क्रान्तिकारी पार्टी के बनने की प्रक्रिया में शामिल हो सकें और व्‍यवहार में सही लाइन के सत्‍यापन का आधार तैयार हो।

‘मज़दूर बिगुल’ मज़दूर वर्ग के बीच राजनीतिक प्रचार और शिक्षा की कार्रवाई चलाते हुए सर्वहारा क्रान्ति के ऐतिहासिक मिशन से उसे परिचित करायेगा, उसे आर्थिक संघर्षों के साथ ही राजनीतिक अधिकारों के लिए भी लड़ना सिखायेग, दुअन्‍नी-चवन्‍नीवादी भूजाछोर ”कम्‍युनिस्‍टों” और पूंजीवादी पार्टियों के दुमछल्‍ले या व्‍यक्तिवादी-अराजकतावादी ट्रेडयूनियनों से आगाह करते हुए उसे हर तरह के अर्थवाद और सुधारवाद से लड़ना सिखायेगा तथा उसे सच्‍ची क्रान्तिकारी चेतना से लैस करेगा। यह सर्वहारा की कतारों से क्रान्तिकारी भरती के काम में सहयोगी बनेगा।
‘मज़दूर बिगुल’ मज़दूर वर्ग के क्रान्तिकारी शिक्षक, प्रचारक और आह्वानकर्ता के अतिरिक्‍त क्रान्तिकारी संगठनकर्ता और आन्‍दोलनकर्ता की भी भूमिका निभायेगा।

बजा बिगुल मेहनतकश जाग,चिंगारी से लगेगी आग।।बिगुल अभियान, शाहबाद डेरी (दिल्ली)14 और 23 अगस्त को शाहबाद डेरी के सेक्टर-26 ...
23/08/2025

बजा बिगुल मेहनतकश जाग,
चिंगारी से लगेगी आग।।

बिगुल अभियान, शाहबाद डेरी (दिल्ली)

14 और 23 अगस्त को शाहबाद डेरी के सेक्टर-26 और ई- ब्लॉक में बिगुल मज़दूर अख़बार का वितरण अभियान चलाया गया।

अभियान चलाते हुए साथी अदिति ने बताया कि सोशल मीडिया से लेकर प्रिंट मीडिया पर सत्ता पक्ष का कब्ज़ा है।
आज तमाम अख़बार,न्यूज़ चैनल सरकार का गुणगान कर रहे हैं। इसलिए आज मज़दूर-मेहनतकश आबादी के दम पर अख़बार से लेकर पत्रिका निकालनी होगी, जो जनता का पक्ष लेने के साथ-साथ मेहनतकशों की मुक्ति की बात करें।

दिल्ली के करावल नगर इलाक़े में क्रान्तिकारी अख़बार 'मज़दूर बिगुल' का प्रचार अभियान चलाया गया।पिछले दिनों दिल्ली की करावल...
22/08/2025

दिल्ली के करावल नगर इलाक़े में क्रान्तिकारी अख़बार 'मज़दूर बिगुल' का प्रचार अभियान चलाया गया।

पिछले दिनों दिल्ली की करावल नगर विधानसभा क्षेत्र की मुकुन्द विहार और श्रीराम कॉलोनी (खजूरी) में बिगुल मज़दूर दस्ता के सदस्यों ने क्रान्तिकारी अख़बार ‘मज़दूर बिगुल’ का प्रचार अभियान चलाया। अभियान के दौरान इन इलाक़ों की विभिन्न गलियों में नारे लगाने के बाद दस्ता के सदस्य करन ने बात रखते हुए बताया कि पूँजीवादी मीडिया द्वारा जनता का असल मुद्दों से ध्यान हटाकर नकली मुद्दों को पेश किया जा रहा है। फ़ासीवादी मोदी सरकार ने देश के मज़दूर वर्ग पर मँहगाई-बेरोज़गारी बढ़ाकर उनकी कमर तोड़ रखी है, शिक्षा का तीव्र गति से निजीकरण करके लोगों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से महरूम किया जा रहा है। देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत भी निरन्तर ख़राब होती जा रही है। कई मज़दूरों ने भी अपने हालात साझा किए। उन्होंने बताया कि काम-धंधे चौपट हो गए हैं। जिन कारखानों में वे काम करते हैं वहाँ तनख़्वाह बहुत कम मिलती है, घर का खर्चा चलाना मुश्किल होता जा रहा है। सरकारी स्कूलों की संख्या की कमी है, और स्कूलों में पढ़ाई की ख़राब होती गुणवत्ता पर भी उन्होंने चिंता जाहिर की।

दस्ता के सदस्य विशाल ने बताया गया कि 'मज़दूर बिगुल' मज़दूरों का क्रान्तिकारी अख़बार है जो जनता के शिक्षा, चिकित्सा, रोज़गार जैसे मूलभूत मुद्दों को छापने का काम करता है, और उन्हें उनके अधिकारों के प्रति सचेत करता है। साथ ही बिगुल मज़दूर वर्ग को एकजुट करके सच्ची सर्वहारा संस्कृति का प्रचार करता है। कई मज़दूरों ने अख़बार की प्रति ली और अगला अंक लेने के लिए अपने सम्पर्क साझा किए।

बिन हवा न पत्ता हिलता है!बिन लड़े न कुछ भी मिलता है!!आज सुबह गुड़गाँव (हरियाणा) के रिको ऑटो इण्डस्ट्रीज़ के कम्पनी गेट क...
22/08/2025

बिन हवा न पत्ता हिलता है!
बिन लड़े न कुछ भी मिलता है!!

आज सुबह गुड़गाँव (हरियाणा) के रिको ऑटो इण्डस्ट्रीज़ के कम्पनी गेट के पास ‘मज़दूर बिगुल’ अख़बार का वितरण अभियान चलाया गया।

बिगुल मज़दूर दस्ता के साथियों ने इस दौरान बात रखते हुए बताया कि मज़दूर वर्ग को अपने क्रान्तिकारी अख़बार की ज़रूरत पहले से कहीं अधिक है। ‘मज़दूर बिगुल’ वह अख़बार है, जो मज़दूर वर्ग और मेहनतकश जनता की आवाज़ को उठाता है। यह सिर्फ़ उनकी रोज़मर्रा की समस्याएँ ही नहीं बताता, बल्कि उनके ऐतिहासिक व सामायिक संघर्षों से परिचित करवाता है, मज़दूरों को एकजुट करता है और आने वाले संघर्षों का रास्ता दिखाता है। बिगुल अख़बार मज़दूरों की हर लड़ाई में खड़ा रहता है। आज मज़दूर वर्ग का अपना क्रान्तिकारी मीडिया ही उसे सही विचारों से लैस करके वर्गीय चेतना पैदा कर सकता है। इसके उलट, पूँजीपतियों का मीडिया कभी भी मज़दूर के पक्ष में नहीं खड़ा होगा। उनका काम मज़दूर की सोच को कुन्द करना, मालिक वर्ग के हितों में राय बनाना और उनके मुनाफ़े को सुरक्षित करना है।

अभियान के दौरान कई मज़दूर साथियों ने अख़बार लिये, अपने अनुभव साझा किये और अपने सम्पर्क नम्बर भी दिये।

बजा बिगुल मेहनतकश जाग!चिंगारी से लगेगी आग!!बिगुल मज़दूर दस्ता के सदस्यों द्वारा शाहबाद डेरी ( दिल्ली ) में चलाया गया 'मज...
22/08/2025

बजा बिगुल मेहनतकश जाग!
चिंगारी से लगेगी आग!!

बिगुल मज़दूर दस्ता के सदस्यों द्वारा शाहबाद डेरी ( दिल्ली ) में चलाया गया 'मज़दूर बिगुल' अख़बार का प्रचार अभियान।

19 अगस्त को एफ ब्लॉक में मज़दूर बिगुल अख़बार का प्रचार अभियान चलाया गया। लोगों के बीच आम मेहनतकश जनता के दम पर चलने वाली स्वतंत्र और जनपक्षधर मीडिया की ज़रूरत पर बात की गयी। इस दौरान लोगों को बताया गया कि आज की पूॅंजीवादी मीडिया में मज़दूरों की ख़बरें नहीं आती हैं। लोग कारखानों में जलकर मर जाते हैं लेकिन उनकी कहीं कोई ख़बर नहीं छपती । अख़बारों में लोगों के मुद्दें नहीं बल्कि विज्ञापनों की भरमार होती है। आज ज़रुरी है कि पूॅंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया का तंत्र खड़ा किया जाये। मज़दूरों-मेहनतकशों के दम पर चलने वाले क्रान्तिकारी अख़बार को आम मेहनतकश जनता के बीच ले जाया जाये। इसके माध्यम देश - दुनिया में चल रहे मज़दूरों के मुद्दों और उनके संघर्षों को बताया जाये।

अभियान के दौरान लोगों ने अख़बार लिया और अपना सम्पर्क नम्बर भी साझा किया।

बजा बिगुल मेहनतकश जाग!चिंगारी से लगेगी आग!!✊बीते 18 अगस्त को गुड़गाँव (हरियाणा) में स्थित मारुति कम्पनी के पास दोपहर की ...
20/08/2025

बजा बिगुल मेहनतकश जाग!
चिंगारी से लगेगी आग!!✊

बीते 18 अगस्त को गुड़गाँव (हरियाणा) में स्थित मारुति कम्पनी के पास दोपहर की शिफ़्ट में बिगुल अख़बार का वितरण अभियान चलाया गया।

मारुति कम्पनी में 90% से अधिक मज़दूर ठेका, कैजुअल, ट्रेनी वर्कर के तौर पर काम करते हैं। कम्पनी इन मज़दूरों से कुछ साल तक काम करवाती है और चाय में पड़ी मक्खी की तरह निकाल कर फेंक देती है, जबकि श्रम क़ानून के अनुसार सभी को सभी मज़दूरों को स्थायी काम पर स्थायी रोज़गार दिया जाना चाहिए।

बिगुल मज़दूर दस्ता के साथियों ने मज़दूरों को सम्बोधित करते हुए कहा कि फ़ासीवादी मोदी सरकार मज़दूरों के सभी श्रम क़ानूनों को ख़त्म करके, उसके बदले चार लेबर कोड लागू करने की तैयारी में हैं। चार लेबर कोड लागू होने के बाद मज़दूरों के बचे-खुचे अधिकार भी समाप्त हो जायेंगे। आज मुख्य धारा की मीडिया से ऐसे ज़रूरी मुद्दे पूरी तरह गायब हो चुके हैं। इसलिए आज मज़दूरों को एक क्रान्तिकारी अख़बार की ज़रूरत है, जो वर्तमान मुद्दों पर समझदारी बनाने के साथ-साथ मज़दूरों की मुक्ति का रास्ता भी दिखाये। बिगुल अख़बार इसी मक़सद से निकाला जा रहा है।

मज़दूरों ने रुककर बात सुनी और अख़बार भी लिये। साथ ही अपने सम्पर्क भी साझा किये।

दिल्ली के मेट्रो विहार इलाक़े में क्रान्तिकारी अख़बार 'मज़दूर बिगुल' का प्रचार अभियान चलाया गया।विगत 15 अगस्त को मेट्रो ...
19/08/2025

दिल्ली के मेट्रो विहार इलाक़े में क्रान्तिकारी अख़बार 'मज़दूर बिगुल' का प्रचार अभियान चलाया गया।

विगत 15 अगस्त को मेट्रो विहार फेस-1 के C ब्लॉक में बिगुल मज़दूर दस्ता के सदस्यों द्वारा क्रान्तिकारी अख़बार 'मज़दूर बिगुल' का प्रचार अभियान चलाया गया। बात रखते हुए साथियों ने बताया कि फ़ासीवादी मोदी सरकार के कार्यकाल में महँगाई-बेरोज़गारी लगातार बढ़ती गयी है। इस कारण जनता के बीच असन्तोष बढ़ता जा रहा है। ऐसे में कॉरपोरेट मीडिया मज़दूरों-मेहनतकशों को जाति-धर्म के नाम पर बाँट रहा है और उनकी ज़िन्दगी से जुड़े असली मुद्दों को छुपाने का काम कर रहा है। इसके बरक्स मज़दूरों को मज़हबी दीवार को गिराकर अपनी वर्गीय एकजुटता बनानी होगी। स्थानीय लोगों ने हमसे अख़बार लिये और विभिन्न राजनीतिक मुद्दों पर बात की। साथ ही उन्होंने यह भी बात की कि फैक्टरी में मालिक किस तरह 12-12 घण्टे काम कराकर मज़दूरों का शोषण कर रहे हैं, आये दिन फैक्ट्रियों में आग लगने की वजह से मज़दूरों की जान चली जाती है, आये दिन कारख़ानों में काम करने के दौरान हाथ कटते रहते हैं, पर ये बातें किसी अख़बार या मीडिया चैनलों में नहीं आती। इसके साथ-साथ अन्य स्थानीय मुद्दों पर भी विस्तार से बात की गयी।

मज़दूरों-मेहनतकशों के दम पर चलने वाले और जनपक्षधर वैकल्पिक मीडिया के रूप में 'मज़दूर बिगुल' अख़बार को और व्यापकता से पहुँचाने की ज़रूरत है। इसके लिए मजदूरों से यह बात की गयी कि वे 'मज़दूर बिगुल' अख़बार का प्रचार अपनी गली, मोहल्लों, फैक्ट्रियों आदि में भी करें।

बिगुल मज़दूर दस्ता के सदस्यों द्वारा करावल नगर (दिल्ली) के मुकुंद विहार इलाक़े में बिगुल अभियान चलाया गया। बीते दिनों करा...
18/08/2025

बिगुल मज़दूर दस्ता के सदस्यों द्वारा करावल नगर (दिल्ली) के मुकुंद विहार इलाक़े में बिगुल अभियान चलाया गया।

बीते दिनों करावल नगर (दिल्ली) के मुकुंद विहार इलाक़े में बिगुल मज़दूर दस्ता के सदस्यों द्वारा मज़दूर बिगुल अख़बार का प्रचार अभियान चलाया गया। बिगुल के साथियो ने जनता को बताया कि मुख्यधारा की मीडिया फासीवादी मोदी सरकार की चाटुकारिता में लगी हुई है और मोदी सरकार के हर जनविरोधी फैसले पर लीपा-पोती करने का कार्य कर रही है। यह मीडिया बेरोज़गारी, महंगाई, परीक्षाओं में होती निरंतर धांधली जैसे ज़रूरी मुद्दों पर चुप्पी साधी रहती है। ऐसे में जनता के बीच वैकल्पिक मीडिया खड़ा करने की ज़रूरत है, जो किसी पूँजीपति, कॉरपोरेट, धन्नासेठ के दम पर नहीं बल्कि मज़दूरों-मेहनतकशों की सामूहिक ताकत के दम पर चले। बिगुल मज़दूर दस्ता जनता के वैकल्पिक मीडिया के लिए कई सालों से प्रयासरत है।

मुकुंद विहार एक निम्न-मध्यवर्गीय इलाका है जहाँ के लोग महंगाई, ख़राब होती स्वास्थ्य व्यवस्था, अशिक्षा से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहें हैं। वे भी मानते हैं कि आज के समय में कोई अख़बार या टीवी चैनल उनकी ज़िन्दगी से जुड़ी समस्याओं के बारे में नहीं बताता है व केवल धार्मिक बहसों में दर्शकों को उलझाए रखने का काम करता है। बिगुल मज़दूर दस्ता के साथियों ने इस फासीवादी दौर में मीडिया की भूमिका के बारे में लोगों को अवगत कराया और साथ ही एक वैकल्पिक, स्वतंत्र मीडिया की अहमियत के बारे में बताया। लोगों ने हम से बिगुल अख़बार की कई प्रतियाँ लीं और हमारी बातों से सहमति जताई। अभियान में ऐसे कई लोग मिले जो हमारे वैकल्पिक मीडिया अभियान को आगे बढ़ाने में योगदान देने के लिए इच्छुक हैं।

🗞🗞🗞🗞🗞🗞🗞🗞*मज़दूर वर्ग की आवाज़ बुलन्द करने वाले अख़बार ‘मज़दूर बिगुल’ का जुलाई 2025 अंक*📱 https://mazdoorbigul.net/archiv...
17/08/2025

🗞🗞🗞🗞🗞🗞🗞🗞
*मज़दूर वर्ग की आवाज़ बुलन्द करने वाले अख़बार ‘मज़दूर बिगुल’ का जुलाई 2025 अंक*
📱 https://mazdoorbigul.net/archives/11050
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मजदूर बिगुल का जुलाई 2025 अंक आपके बीच प्रस्तुत है।
इस अंक के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये हुए हैं व साथ ही अंक की पीडीएफ़ फ़ाइल का लिंक भी। *इस अंक पर आपकी टिप्पणियों का हमें इन्तज़ार रहेगा। मज़दूर वर्ग के अख़बार को और बेहतर बनाने के लिए क्या किया जा सकता है, इस पर अपनी राय हमें ज़रूर भेजें। आप बिगुल के लिए अपने फ़ैक्टरी, ऑफ़िस, कारख़ाने की कार्यस्थिति पर रिपोर्ट भी भेज सकते हैं।* कोई भी टिप्पणी या रिपोर्ट [email protected] पर मेल कर सकते हैं या फिर व्हाट्सऐप के माध्यम से 8828320322 पर प्रेषित कर सकते हैं। वैसे तो अख़बार का हर नया अंक हम नि:शुल्क आप तक पहुँचाते हैं पर हमारा आग्रह है कि आप प्रिण्ट कॉपी की सदस्यता लें। उसके बाद आपको हर नया अंक डाक के माध्यम से भी मिलता रहेगा। अगर आप पहले से सदस्य हैं और आपको डाक से बिगुल मिलने में समस्या आ रही है या आपका पता बदल गया है तो उसकी सुचना भी हमें ज़रूर दें।
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मज़दूर वर्ग को एक दिवसीय हड़तालों के वार्षिक अनुष्ठानों से आगे बढ़ना होगा! - https://mazdoorbigul.net/archives/17671

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मतदाता सूची संशोधन, 2025 : जनता के मताधिकार को चुराने के लिए भाजपा का हथकण्डा और पीछे के दरवाज़े से एनआरसी लागू करने की नयी साज़िश / अजीत - https://mazdoorbigul.net/archives/17658

🔹 *विशेष लेख / रिपोर्ट*
बारिश ने उजागर की “स्मार्ट सिटी” की हक़ीकत – हर बार की तरह मज़दूर और मेहनतकश तबका ही भुगत रहा है! / आशु - https://mazdoorbigul.net/archives/17672

🔹 *आन्दोलन : समीक्षा-समाहार*
रणनीति की कमी की वजह से हैदराबाद में ज़ेप्टो डिलीवरी वर्कर्स की हड़ताल टूटी / आनन्‍द - https://mazdoorbigul.net/archives/17726

देशभर में 9 जुलाई को हुई ‘आम हड़ताल’ से मज़दूरों ने क्या पाया? / भारत - https://mazdoorbigul.net/archives/17733

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भारतीय रेल किराये में “मामूली” बढ़ोत्तरी : जनता से पैसे वसूलने का ग़ैर-मामूली तरीक़ा / वृषाली - https://mazdoorbigul.net/archives/17719

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भाजपा के रामराज्य में बढ़ते दलित-विरोधी अपराध / अदिति - https://mazdoorbigul.net/archives/17730

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1975 का आपातकाल और आज का अघोषित आपातकाल / प्रसेन - https://mazdoorbigul.net/archives/17680

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भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दिल्ली के शाहबाद डेरी इलाके का उच्च माध्यमिक विद्यालय / नौरीन - https://mazdoorbigul.net/archives/17722

🔹 *स्वास्‍थ्‍य*
नक़ली और ख़राब दवाओं के ज़रिये मुनाफ़ा बटोरने के लिए दवा कम्पनियों को मोदी सरकार की छूट और चरमराती सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था / नीशू - https://mazdoorbigul.net/archives/17685

🔹 *स्त्री मज़दूर*
लाभार्थियों के फ़ेशियल रिकॉग्निशन व ई-केवाईसी के ज़रिये जनता की निगरानी और आँगनवाड़ीकर्मियों पर काम का बोझ बढ़ाती मोदी सरकार! / प्रियम्बदा - https://mazdoorbigul.net/archives/17716

🔹 *लेखमाला*
क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षणमाला – 28 : मार्क्सवादी राजनीतिक अर्थशास्त्र के सिद्धान्त – खण्ड-2 : अध्याय – 2 पूँजी के परिपथ – II / अभिनव - https://mazdoorbigul.net/archives/17689

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बिगुल अभियान, शाहबाद डेरी (दिल्ली )12 अगस्त को शाहबाद डेरी के डी ब्लॉक में मज़दूर बिगुल अख़बार का वितरण अभियान चलाया गया।...
14/08/2025

बिगुल अभियान, शाहबाद डेरी (दिल्ली )

12 अगस्त को शाहबाद डेरी के डी ब्लॉक में मज़दूर बिगुल अख़बार का वितरण अभियान चलाया गया। अभियान के दौरान वक्ताओं ने बात रखते हुए बताया कि आज हमें वैकल्पिक मीडिया खड़ा करने की ज़रूरत है। आज तमाम अख़बार जनपक्षधर न होकर सिर्फ़ सत्ता पक्ष की चाटुकारिता में लगे हुए हैं। तमाम बुर्जआ अख़बारों में कहीं भी मेहनतकश आबादी के संघर्ष की ख़बरें नहीं होती हैं। एक तरफ़ चाँद पर पानी ढूँढा जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ़ देश की राजधानी में लोग पीने के पानी के लिये तरस रहे हैं।

इसलिये यह ज़रूरी है कि मज़दूरों-मेहनतकशों के पक्ष को दिखाने के लिये वैकल्पिक मीडिया को खड़ा किया जाये। अभियान के दौरान लोगों ने अख़बार लिया और अपना सम्पर्क नम्बर भी साझा किया।

📮________________📮*नक़ली और ख़राब दवाओं के ज़रिये मुनाफ़ा बटोरने के लिए दवा कम्पनियों को मोदी सरकार की छूट और चरमराती सा...
10/08/2025

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*नक़ली और ख़राब दवाओं के ज़रिये मुनाफ़ा बटोरने के लिए दवा कम्पनियों को मोदी सरकार की छूट और चरमराती सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था*
✍️ नीशू
📱 https://www.mazdoorbigul.net/archives/17685
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जहाँ कहीं भी चिकित्सा विज्ञान के प्रति प्रेम होता है, वहाँ मानवता के प्रति भी प्रेम होता है। यह बात अपने दौर में चिकित्सा विज्ञान के जनक माने जाने वाले हिप्पोक्रेटस ने कहा था। यह कथन रेखांकित करता है कि स्वास्थ्य का सवाल मनुष्य के जीवन में कितना महत्वपूर्ण सवाल है। लेकिन आज की सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की लचर हालत से से कोई भी इन्कार नहीं कर सकता है। देश के PHC, CHC ( प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र) से लेकर, भाजपा सरकार द्वारा खोले गए तथाकथित एम्स की सूची में आने वाले अस्पताल भी डॉक्टरों और स्टाफ की कमी से जूझ रहे हैं, क्‍योंकि भर्तियाँ ही नहीं की जा रही हैं। बेहतर गुणवत्ता की दवाइयाँ, जाँच के उपकरणों का बेहद अभाव है। आँकड़ें बताते हैं कि भारत में 9.6 प्रतिशत प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में डॉक्टर नहीं हैं, 33 प्रतिशत में लैब तकनीशियन नहीं हैं, 24 प्रतिशत में फार्मासिस्ट नहीं हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में 70 प्रतिशत से ज़्यादा विशेषज्ञों के पद खाली हैं। 2021 की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ सरकारी अस्पतालों में सिर्फ़ 80 लाख बेड ही मौजूद हैं, जबकि लगभग 2.5 करोड़ बेड की आवश्यकता है, मतलब लगभग इनमें 70 प्रतिशत की कमी है।

मजबूरी के कारण लोगों को प्राइवेट अस्पतालों की ओर रुख करना पड़ता है। अच्छे प्राइवेट अस्पताल काफ़ी महँगे और आम मेहनतकश आबादी कि पहुँच से दूर हैं। मज़दूर अगर किसी तरह किसी प्रकार के प्राइवेट अस्पतालों तक पहुँच भी जाता है तो भ्रष्ट डॉक्टरों और दवा कम्पनियों की ठगी का शिकार होता है। आज नक़ली दवाओं का बहुत बड़ा व्यापार खड़ा है। दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य नकली व ख़राब गुणवत्ता वाली दवाओं की बिक्री का गढ़ बने हुए हैं। ड्रग कण्ट्रोलर जनरल ऑफ़ इण्डिया ने जाँच में पाया कि देश में बिक रही 50 प्रतिशत दवाइयाँ ख़राब स्तर की बन रही हैं। इस स्थिति की भयावहता का अन्दाज़ा हालिया दिनों में आयी कुछ ख़बरों से लगाया जा सकता है कि चन्द मुट्ठी भर लोगों के मुनाफ़े के लिए किस तरह इन्सानी ज़िन्दगी को मौत के मुँह में धकेला जा रहा है।

28 जून को ‘दि हिन्दू’ में प्रकाशित एक ख़बर के मुताबिक, टीबीआईजे (द ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज़्म) ने खुलासा किया कि दुनिया भर में इस्तेमाल की जाने वाली महत्वपूर्ण कीमोथेरेपी दवाएँ गुणवत्ता परीक्षण में विफल पायी गयी हैं, कैंसर की दवाओं में से लगभग पाँचवी दवा गुणवत्ता परीक्षण में विफल रहीं, जिसके कारण 100 से अधिक देशों में कैंसर रोगियों को निष्‍प्रभावी उपचार और सम्भावित घातक दुष्प्रभावों का ख़तरा बना हुआ है। इन दवाइयों के 17 में से 16 निर्माता भारत स्थित हैं। ये दवाइयाँ जीवनरक्षक दवाओं की श्रेणी में आती हैं, जो स्तन, डिम्बग्रन्थि (ओवरी) और ल्यूकेमिया सहित कई आम कैंसरों के उपचार की रीढ़ हैं। कुछ दवाओं में उनके मुख्य घटक इतने कम थे कि फार्मासिस्टों ने कहा कि उन्हें मरीज़ों को देना कुछ न करने के बराबर होगा। कुछ अन्य दवाओं में, जिनमें बहुत अधिक सक्रिय घटक होते हैं, मरीज़ों को गम्भीर अंग क्षति या यहाँ तक कि मृत्यु का ख़तरा पैदा कर सकते हैं। ये दोनों ही स्थितियाँ भयावह और दिल दहला देने वाली हैं। जहाँ पहली स्थिति में पर्याप्त दवा न मिलने पर मरीज़ों का इलाज नहीं हो पाता और उनकी मौत हो जाती है, वहीं दूसरी स्थिति में दवा का ओवरडोज़ उन्हें मौत के घाट उतार सकता है।

भारतीय केन्द्रीय औषधि मानक नियन्त्रण संगठन (CDSCO) ने पिछले चार महीनों, जनवरी से अप्रैल 2025 तक में कुल 575 दवाओं को मानक गुणवत्ता से कम और नक़ली (स्प्यूरियस) के रूप में पहचान की है। CDSCO ने बताया कि अप्रैल में केन्द्र की 60 और राज्य की 136 दवाओं को मानक गुणवत्ता से कम, नक़ली, मिलावटी या ग़लत ब्राण्ड का पाया गया। इनमें आई ड्रॉप से लेकर पैरासिटामोल टैबलेट तक विभिन्न प्रकार की दवाएँ शामिल हैं। साल 2024 सितम्बर में भी सीडीएससीओ द्वारा जारी, मासिक ड्रग अलर्ट में एण्टासिड पैन डी, कैल्शियम सप्लीमेण्ट शेल्कल, मधुमेह-रोधी दवा ग्लिमेपिराइड, उच्च रक्तचाप की दवा टेल्मिसर्टन और कई अन्य सबसे ज़्यादा बिकने वाली दवाओं को गुणवत्ता परीक्षण में विफल पाया गया था।

क्या है केन्द्रीय औषधि मानक नियन्त्रण संगठन (CDSCO) का काम

CDSCO भारत सरकार की एक प्रमुख संस्था है जो दवाओं, टीकों, सर्जिकल उपकरणों और चिकित्सा उपकरणों की गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभावकारिता की निगरानी करती है। यह संगठन दवा कम्पनियों को लाइसेंस प्रदान करता है, नई दवाओं के परीक्षण और आयात को नियन्त्रित करता है, और दवाओं के निर्माण की गुणवत्ता सुनिश्चित करता है। CDSCO की ज़िम्मेदारी है कि वह सभी दवाओं की नियमित जाँच करे और यदि कोई दवा मानकों के अनुरूप न हो तो उसके ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई करे। लेकिन यहाँ CDSCO की भूमिका पर सवाल तो उठता है कि क्या यह संस्था ढंग से काम कर रही है? और अगर कर रही है तो नक़ली दवाओं का व्यापार क्यों फल-फूल रहा है?

साल 2022 में अफ्रीका के गाम्बिया में 69 मासूमों को, उनके घर वालों ने दवाइयाँ की ख़राब गुणवत्ता के कारण खो दिया। सर्दी-ज़ुकाम की शिकायत के उपरान्त इन बच्चों के अभिभावकों ने वहाँ के बाज़ारों में उपलब्ध भारत में निर्मित कफ़ सिरप दिये थे। नक़ली और ख़राब गुणवत्ता की दवाइयों का धन्धा भारत में कई सालों से निरन्तर चल रहा है। मध्य प्रदेश, केरल, गुजरात, हिमाचल, दिल्ली, महाराष्ट्र में नक़ली दवाइयाँ बनाने वाली कम्पनियाँ बिना रोक-टोक उत्पादन कर रही है। पिछले दिनों जब गुणवत्ता परीक्षण में विफल पायी जाने वाली दवाओं के बैच वापस लेने की बारी आयी तब सीडीएससीओ ने केवल इन दवाओं के कम्पनियों को निर्देशित किया और उन्हें यह बताया कि दवा महानियन्त्रक (DCGI) लगातार दवाओं की गुणवत्ता पर नज़र रखे हुए हैं और ग़लत दवाएँ बनाने वाली कम्पनियों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई कर रहे हैं। मुनाफ़ा केन्द्रित व्यवस्था किस तरह मुट्ठी भर धनपशुओं की सेवा बड़ी आबादी के जान पर खेल करती है यह CDSCO की भूमिका से साफ़ हो जाता है।

पूँजीवादी व्यवस्था में सरकारों की प्रतिबद्धता

ड्रग्स एण्ड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 भारत में घटिया दवाओं से सम्बन्धित अपराधों के लिए सज़ा तय करता है जिसके तहत

– नक़ली और मिलावटी दवाओं पर कम से कम 10 साल की क़ैद है, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।

– मामूली सबस्टैण्‍डर्ड दवाओं पर 1 साल की क़ैद की सज़ा, जो 2 साल तक बढ़ सकती है।

लेकिन मज़दूर विरोधी फ़ासीवादी मोदी सरकार द्वारा इस क़ानून में संशोधन करके ‘जन विश्वास विधेयक‘ 2023 लाकर सज़ा को हल्का कर दिया गया। इस “जन विश्वास” विधेयक में जन की लाशों पर मुट्ठी भर धनपशुओं का जीवन सुरक्षित किया गया है।

जन विश्वास विधेयक के तहत किए गए संशोधन में धारा 27 (डी) के तहत मानक गुणवत्ता (एनएसक्यू) की न होने वाली दवाओं के लिए सज़ा को “संयोजित” करने की अनुमति दी गई है, जिसके तहत निर्माता अपराध के लिए कारावास का सामना करने के बजाय ज़ुर्माना भरकर मुक्त हो सकता है। सरकारें किस तरह पूँजीपतियों की मैनेजिंग कमेटी व सुरक्षा पंक्ति का काम करती हैं स्पष्ट है। फ़ासीवादी मोदी सरकार ने, पूँजीपतियों को ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफ़ा हो सके इसके लिए हर तरह के उपाय किये हैं चाहे वह श्रम कानून में संशोधन के जरिए फ़ैक्ट्री-कारख़ाने में ख़ून चूसने की छूट हो या जन विश्वास जैसे विधेयक लाकर उन्‍हें जघन्‍यतम अपराधों से अपराध मुक्त करना हो। ये सब मज़दूरों-मेहनतकशों की जीविका, सुरक्षा और स्वास्थ्य की क़ीमत पर किया जा रहा है।

हम मज़दूर-मेहनतकशों को यह समझना होगा कि निजी मुनाफ़े पर टिकी पूँजीवादी व्यवस्था में हमारे लिए कुछ भी बेहतर नहीं है। चुनावबाज पार्टियों के लिए हम केवल एक वोट बैंक हैं, और पूँजीपतियों के लिए पैसे छापने की मशीन। लेकिन यह तब तक है जब तक मज़दूर वर्ग संगठित नहीं है, जब भी हमने संगठित होकर अपने हक़ों के लिए संघर्ष किया है तब-तब बहुत-कुछ हासिल भी किया है, चाहे वह कार्यस्थल पर सुरक्षा का सवाल हो, मज़दूरी का हो, उचित मुआवज़े का या स्वास्थ्य का।

समाजवादी क्रान्तियों द्वारा बनाये गये समाजवादी समाज के इतिहास से हम सीख सकते हैं

मेहनतकशों द्वारा स्थापित सोवियत सत्ता ने एक केन्द्रीकृत चिकित्सा प्रणाली को अपनाया जिसका लक्ष्य था छोटी दूरी में इलाज़ करना और लम्बी दूरी में बीमारी से बचाव के साधनों-तरीक़ों पर ज़ोर देना ताकि लोगों के जीवन स्तर को सुधारा जा सके। इस प्रणाली का मक़सद था नागरिकों को उनके रहने और काम करने की जगह पर बुनि‍यादी स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध करवाना। इसके तहत सबसे पहले सहायता स्टेशनों, फिर पॉलीक्लिनिक, फिर जिलों और शहरों में बड़े अस्पतालों का निर्माण किया गया। तमाम सरकारी विभागों, फै़क्ट्रियों, कारख़ानों, खदानों, खेतों आदि में काम करने वाले मज़दूरों, किसानों, कर्मचारियों, नागरिकों को उनकी काम करने और रहने की जगह पर ही स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध करवायी गयीं व लोगों को स्वास्थ्य अधिकारों के प्रति जागरुक किया गया। सोवियत संघ के संविधान में 1936 में लिख दिया गया कि जनता को मुफ़्त स्वास्थ्य सुविधाएँ देना सरकार का कर्तव्य है और केवल लिखा ही नहीं बल्कि इस बात को पूरे देश में लागू किया गया। स्वास्थ्य व्यवस्था से मुनाफ़ा कमाने का पहलू ख़त्म कर दिया गया।सोवियत संघ में बीमारियों के इलाज़ पर नहीं, बल्कि बीमारियों की रोकथाम पर भी उचित ध्यान दिया गया। नतीजतन, वहाँ औसत जीवन-प्रत्‍याशा, औसत जनस्‍वास्‍थ्‍य व जीवन की गुणवत्‍ता में भारी सुधार हुआ।

जिन पूँजीवादी-साम्राज्‍यवादी देशों ने दुनिया भर में लूट के बूते कुछ ख़र्चकर अपने घर में शान्ति रखने के लिए जनता के लिए कुछ कल्‍याणवाद किया और गुणवत्‍ता वाली सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था का निर्माण किया, वहाँ की मृत्युदर में गिरावट आयी और लोंगो की ज़िन्दगी सुरक्षित हुई। लेकिन विशेष तौर पर जिन देशों में मेहनतकशों ने अपना राज स्थापित किया मसलन सोवियत यूनियन और चीन, वहाँ स्वास्थ्य ही नहीं बल्कि शिक्षा, आवास, काम की बेहतर परिस्थितियाँ हर मुद्दे पर प्रगति हासिल की और दुनिया के सामने मिसाल पेश की।



मज़दूर बिगुल, जुलाई 2025
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📮_______________📮*कौन उठाता है करों का बोझ*ज़्यादातर मध्यवर्गीय लोगों के दिमाग में यह भ्रम जड़ जमाये हुए है कि उनके और अम...
09/08/2025

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*कौन उठाता है करों का बोझ*

ज़्यादातर मध्यवर्गीय लोगों के दिमाग में यह भ्रम जड़ जमाये हुए है कि उनके और अमीर लोगों के चुकाये हुए करों की बदौलत ही सरकारों का कामकाज चलता है। प्रायः कल्याणकारी कार्यक्रमों या ग़रीबों को मिलने वाली थोड़ी-बहुत रियायतों पर वे इस अन्दाज़ में गुस्सा होते हैं कि सरकार उनसे कर वसूलकर लुटा रही है।

करों के बोझ के बारे में यह भ्रम सिर्फ़ आम लोगों को ही नहीं है। तमाम विश्वविद्यालयों के अर्थशास्त्र विभागों में भी प्रोफ़ेसरान इस किस्म के अमूर्त आर्थिक मॉडल पेश करते हैं जिनमें यह मानकर चला जाता है कि ग़रीब कोई कर नहीं चुकाते और सिर्फ़ सरकारी दान बटोरते रहते हैं जिसके लिए पैसा अमीरों पर टैक्स लगाकर जुटाया जाता है।

*सच्चाई इसके ठीक विपरीत है। हकीक़त यह है कि आम मेहनतकश आबादी से बटोरे गये करों से पूँजीपतियों को मुनाफ़ा पहुँचाया जाता है और समाज के मुट्ठीभर उपभोक्ता वर्ग को सहूलियतें मुहैया करायी जाती हैं। टैक्स न केवल बुर्जुआ राज्य की आय का मुख्य स्रोत है बल्कि यह आम जनता के शोषण और पूँजीपतियों को मुनाफ़ा पहुँचाने का एक ज़रिया भी है।* सरकार के ख़ज़ाने में पहुँचने वाले करों का तीन-चौथाई से ज़्यादा हिस्सा आम आबादी पर लगे करों से आता है जबकि एक चौथाई से भी कम निजी सम्पत्ति और उद्योगों पर लगे करों से।

भारत में कर राजस्व का भारी हिस्सा अप्रत्यक्ष करों से आता है। केन्द्र सरकार के कर राजस्व का लगभग 70 प्रतिशत से ज़्यादा अप्रत्यक्ष करों से आता है। राज्य सरकारों के कुल कर संग्रह का 95 प्रतिशत से भी ज़्यादा अप्रत्यक्ष करों से मिलता है। इस तरह केन्द्र और राज्य सरकारों, दोनों के करों को मिलाकर देखें तो कुल करों का लगभग 80 प्रतिशत अप्रत्यक्ष कर (बिक्री कर, उत्पाद कर, सीमा शुल्क आदि) हैं जबकि सिर्फ़ 18 प्रतिशत प्रत्यक्ष कर (आयकर, सम्पत्ति कर आदि)।

कुछ लोग तर्क देते हैं कि अमीर या उच्च मध्यवर्ग के लोग ही अप्रत्यक्ष करों का भी ज़्यादा बोझ उठाते हैं क्योंकि वे उपभोक्ता सामग्रियों पर ज़्यादा खर्च करते हैं। यह भी सच नहीं है। लगभग 85 प्रतिशत आम आबादी अपनी रोज़मर्रा की चीज़ों की ख़रीद पर जो टैक्स चुकाती है उसकी कुल मात्रा मुट्ठीभर ऊपरी तबके द्वारा चुकाये करों से कहीं ज़्यादा होती है। इससे भी बढ़कर यह कि आम मेहनतकश लोगों की आय का ख़ासा बड़ा हिस्सा करों के रूप में सरकार और पूँजीपतियों-व्यापारियों के बैंक खातों में वापस लौट जाता है।

उस पर तुर्रा यह है कि सरकार पूँजीपतियों को तमाम तरह के विशेषाधिकार और छूटें देती है। उन पूँजीपतियों को जो तमाम तरह की तिकड़मों, फ़र्ज़ी लेखे-जोखे आदि के ज़रिए अपनी कर-योग्य आय का भारी हिस्सा छुपा लेते हैं। इसके लिए वे मोटी तनख़्वाहों पर वकीलों और टैक्स विशेषज्ञों को रखते हैं। उसके बाद जितना टैक्स उन पर बनता है, उसका भुगतान भी वे प्रायः कई-कई साल तक लटकाये रखते हैं और अकसर उन्हें पूरा या अंशतः माफ़ कराने में भी कामयाब हो जाते हैं।

आम लोगों को शिक्षा, चिकित्सा, आदि के लिए दी जाने वाली सब्सिडियों को लेकर मचाये जाने वाले तमाम शोर-शराबे के बावजूद वास्तविकता यह है कि आज भी भारी पैमाने पर सब्सिडी उद्योगों को दी जाती है। इसके अलावा आम लोगों से उगाहे गये करों से पूँजीपतियों के लाभार्थ अनुसन्धान कार्य होते हैं, उनके प्रतिनिधिमण्डलों के विदेशी दौरे कराये जाते हैं, मुख्यतः उनकी सुविधा के लिए सड़कें और नयी रेलें बिछायी जाती हैं, रेलों में माल ढुलाई पर भारी छूट दी जाती है, आदि। मन्दी की मार से पूँजीपतियों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए सरकार ने उन्हें हज़ारों करोड़ रुपये उठाकर दे दिये। उन्हें जो कर चुकाने पड़ते हैं उसकी वसूली भी वे चीज़ों के दाम बढ़कर आम जनता से कर लेते हैं।

पिछले दो दशकों में उदारीकरण की नीतियों के तहत एक ओर जनता पर करों का बोझ तमाम तिकड़मों से बढ़ाया जाता रहा है, दूसरी ओर मीडिया में आक्रामक और झूठ से भरे प्रचार से ऐसा माहौल बनाया गया है मानो देश की आर्थिक दुरवस्था का कारण शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि आदि में दी जाने वाली सब्सिडी ही हो। लेकिन इसकी कीमत पर हर बजट में देशी-विदेशी पूँजीपतियों को तरह-तरह की रियायतें और छूटें परोसी जा रही हैं। सरकारी विशेषज्ञ और बुर्जुआ कलमघसीट दलील दिये जा रहे हैं कि सरकार का काम सरकार चलाना है, स्कूल, रेल, बस और अस्पताल चलाना नहीं, इसलिए इन सबको निजी पूँजीपतियों के हाथों में सौंप देना चाहिए। दूसरी ओर सरकार दोनों हाथों से आम लोगों से टैक्स वसूलने में लगी हुई है।
इस लेख से - http://www.mazdoorbigul.net/archives/5698

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