मुराही

मुराही मोहब्बत है ये, गदहा मजूरी नहीं! मुराही है ये!
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दिन हो गये हैं दोपहर में ली गई नींद को। दोपहर की नींद से पहले खाये गये दाल चावल को। दाल चावल के साथ आम के अचार को खाए हु...
07/09/2024

दिन हो गये हैं दोपहर में ली गई नींद को। दोपहर की नींद से पहले खाये गये दाल चावल को। दाल चावल के साथ आम के अचार को खाए हुए। मट्ठे में जीरे का तड़का मार के, अघा के ज़ोर से डकार लिए हुए। घड़ी देखे बिना दोपहर में सोये हुए। दिन हो गये हैं अब।
ये सिर्फ़ संयोग नहीं एक समय सारिणी है, जिसके विरुद्ध जाकर नौकरी और पढ़ाई की जा रही है। बड़े होने का ढोंग है और छोटे ना हो पाने की उदासी। मन का ना कर पाने की पीड़ा और मन का हो जाने का अपराध बोध। अंग्रेज़ी में गिल्ट।
ग़ज़ब चक्रव्यूह में फँस गये हैं। रोज़ लगता है बस कल से सब ठीक हो जाएगा। नहीं भी लगे तो माँ लेते हैं। मान लेना ही आसान पड़ता है। सो जाना ही आसान लगता है। मगर ना करवट का कोण समझ आता है ना कदमों की दिशा। त्रिशंकु हो गये हैं। खिन्न हो गये हैं।
शराब में मज़हब ढूँढ लिया है और एकांत में मक़सद। सुरंग के दोनों तरफ़ अंधेरा है, बस गुप्प अंधेरा और कभी दाल चावल खा लो अकेले में तो आत्मग्लानि अलग से। दोपहर की नींद से शाम को उठने के बाद एक कप चाय, घर के चार लोग और बेतुकी चार बातें, सिवाय इसके कुछ छह नहीं, कुछ माँगा भी नहीं।
दोस्तों से ज़्यादा शनिवार से दोस्ती हो गई है, दुश्मनों से ज़्यादा रविवार से।
दो कतरा ज़िंदगी की बड़ी क़ीमत चुकाई गई है। इसका बदला लेना होगा। ज़िंदा रहना होगा।

10/08/2024

समय घंटियां बजाता है, इशारा करता है और हम कहते हैं वंस मोर। फकिंग फिल्मी वंस मोर। देयर इस नथिंग लाइक वंस मोर। डेजा वू भ तो मिथ्या है। मैं कई कई बार जा चुका हूं टाइम मशीन से सालों पहले। कुछ भी वैसा न फील हुआ जैसे पहले जैसा था। न पहला हवाई जहाज का सफर, न समुंदर की पहली लहर का एहसास, न पहली बारिश की बूंद, न पहली बार महबूब संग जागी सारी रात, न पहली बाइक की राइड, न पहला ज्वाइनिंग लेटर, न पहली समय यात्रा।

कुछ भी दोबारा पहले सा नहीं होता। सुनो तुम आगे देखो और उसको जियो जो वंस मोर नहीं बल्कि फर्स्ट हो। उमर हुई। अब सम्हल जाओ।

पहला सिलेक्शन लो, पहली नीट पियो, पहली बार जानो के टाइम मशीन प्रैक्टेकली भी समय में आगे नहीं ले जा सकती। मान लो के ई इक्वल टू एमसी स्क्वायर सत्य है। जैसे मृत्यु। तुम्हारा मन भाग सकता है प्रकाश की गति से तेज तुम नहीं। अब तो माल्या भी चला गया। कोई गुंजाइश भी न बची के कोई और ऑप्शन मन से तेज दौड़ाएगा। अब सब मिलावटी है।

तुम बचा लेना खुद को। हां तुम। तुम प्रिसियस हो। हमेशा से थे। आइना देखना और बताना हमें, के क्या सच में "जिंदगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें, ये जमी चांद से बेहतर नजर आती है हमें?" क्या अभी भी? Disgusting!

बताना के ये झूठ है, क्योंकि छे गेंद पर छे छक्के एक्साइटिंग हैं, पर 17 गेंद पर शतक कतई एक्साइटिंग नहीं।

इशारे समझो और वंस मोर के फेर से निकलो।
नो मोर वंस मोर। यूनो?

07/08/2024

दिन भर आपने फोन में रील देखने की तलब छुड़ाते छुड़ाते छूटी। अब मेट्रो में अगल बगल बैठे लोगों के फोन में रील देखने की आदत पड़ रही है।

16/07/2024

कहते हैं दुनिया छोड़ते हुए आखिरी 7 सेकंड में सारा जीवन एक रील की तरह आंखों के सामने से गुजरता है। जाते जाते अधूरा, पूरा, खुशी, दुःख, पाप पुण्य, कसक, हसरत, कृत सब नजर के सामने से जाता है।

बताते हैं उसकी आंखों के सामने से गुजरा एक लड़का हाथ में झाड़ू स्वरूपी बल्ला लिए सचिन की तरह काल्पनिक जनता का अभिवादन करता हुआ। सुनील शेट्टी की तरह लेदर जैकेट में दांत में तीली फसाए हुए दुनिया को आग लगाता हुआ, गोविंदा सा "सातों जन्म तुझको पाते गोरी देते नैनन में हम बस जाते!" गाने पर नाचता हुआ। दुनिया के हर जुल्म का बदला मिथुन सा लेता हुआ।

नायक के अनिल कपूर सा एक दिन में दुनिया बदलता हुआ। उसैन बोल्ट को उल्टा चलते हुए हराते हुए आंख मारता हुआ। कहानियां लिखता हुआ। लिखी हर कहानी को सच करता हुआ। प्रेम पत्र सहेजता हुआ। बारहा उसे छूता हुआ। खटिया डाले धान के खेत को बारिश में भरते देखता हुआ।

एक जोड़ी उम्मीद से भरी अद्भुत आंखें देख खो जाता हुआ। सारी कसक सारे इंतजार एक बार गले लगा कर कंपनशेट करता हुआ। हथेली पर बच्चन बनकर रेखा को परमानेंट मार्कर से लिखता हुआ।

आखिरी 7 सेकंड शायद खुद के होते होंगे। जिंदगी की रील ना सही, मौत की रील तो कम से कम दिलकश होनी ही चाहिए।

ेकंड

इंडिया VS पाकिस्तान।
09/06/2024

इंडिया VS पाकिस्तान।

02/06/2024

एक वो संडे जब घर पे वीसीआर किराए पे लाकर शाकी की कैसेट लगती थी और सब देखते थे।

30/04/2024

सब कुछ ठीक करने के लिए कोई रीसेट बटन होना चाहिए न? ये साला क्या है के जो गुजर गया वो लौट कर आता ही नहीं। जिंदगी की भी प्रीमियम मेंबरशिप होनी चाहिए। बिना किसी एडवर्टिसमेंट के। जिंदगी जिसे आप बैगराउंड में जी सकें। कुछ दिनों के लूप में जी सकें। मरने का सबसे खूबसूरत तरीका तुम पर मरने का ही था सो तुम्हे चुना गया। हर रोज।

तस्वीर से टुकुर टुकुर ताकती एक जोड़ी हसीन आंखें। मोहब्बत की कोई भी कृति बुन देने वाले ये खूबसूरत हाथ। दिवाली का इंतजार किसे है जानम? त्योहार तो तुम्हें अरसे बाद देखना है। फिर से। उसी अंदाज में। उसी नजाकत से। उसी मोहब्बत से।

सब कुछ ठीक करने का रीसेट बटन तुम ही तो हो। यू नो! 🍁

दोपहर वाली नींद अब लक्ज़री हो गई है। होली के बाद वाला मौसम जिसकी एक टांग सर्दी और दूरसी टांग गर्मी में होती है, दोपहर की...
06/04/2024

दोपहर वाली नींद अब लक्ज़री हो गई है। होली के बाद वाला मौसम जिसकी एक टांग सर्दी और दूरसी टांग गर्मी में होती है, दोपहर की नींद के लिए सबसे सटीक तापमान रखता है। एक उम्र तक ये समय सिर्फ़ इम्तेहान देने में गुज़रा है उसके बाद कंपनी की क्लोसिंग में। क्लोसिंग हो चुकी है। मगर फिर भी लॉन्ग वीकेंड के नाम पर सिर्फ़ आश्वासन ही मिलता रहा है क्योंकि कपड़े हफ़्ते भर की गंदे है, मटन खाए महीना हो गया है और टूटी हुई कर कुर्सी की मरम्मत करानी है। मई के चारों शनिवार और रविवार की बुकिंग पिछले फ़रवरी में ही हो चुकी है। शराब पीने के नाम पर है शनिवार को सिर्फ़ मेहदी हसन की महज़ दो ग़ज़ल सुनने का टाइम मिलता है।

हमें पता नहीं चल रहा है कि हम अपने माँ बाप जैसे होते जा रहे हैं। हम ज़रूर 90 के दशक में पैदा हुए हैं मगर हमारी बातें हमारी आदतों से मेल नहीं खाती। अब हम उस दौर में पहुँच चुके हैं जहाँ संतुष्ट होने के लिए सकारात्मक होना लगभग नामुमकिन हो गया है। आत्मीयता का एक कोना ढूंढने के चक्कर में हमने पूरे समाज को किनारे कर दिया है। छोटे बच्चे बहुत तेज़ लगने लगे हैं और बूढ़े पर बड़े बोरियत भरे। ये तय करना मुश्किल होता जा रहा है कि अपनी गाड़ी से ऑफिस जाए या मेट्रो को सहूलियत कहें। कुछ ख़रीदने से पहले उसका मोल भाव करें या मोलभाव में हर्ज किया जाने वाला समय बचाए। समय और मूल्य के इस तराजू के बीच झूल रहे हैं हम।

शाम पाँच बजे जिस दोस्त को कॉल करके पूछा करते थे कि क्या 50 रुपये हैं तुम्हारे पास सिगरेट और चाय पीने के लिए आज उसका एक फ़ोन उठाने से पहले 50 सेकंड सोचते हैं कि बात क्या करेंगे। जिस प्रेमिका की लटों में सालों के संवाद छुपाए थे आज उसके बारे में सोचने में लिहाज़ महसूस करते हैं।घाट जाना छोड़ दिया है, लगता है रात में प्रेत सताएंगे। हम ने बेच दिया है ख़ुद को हार के हाथों और जीत की उम्मीद छोड़ कर लड़ रहे हैं जीवन से। ये सारे ख़याल आये हैं दोपहर की नींद में आए क्योंकि दोपहर की नींद लक्ज़री है।

15/01/2024

Relationship Status: एक दूसरे के मोटापे पर खुल के बात हो जाती है।

03/01/2024

टपरी पे पहुँचते ही आपके ब्रांड वाली सिगरेट बिना माँगे दे देने वाला छगनी, जब सालों बाद आपके शहर लौटने पर आपसे कहे "दे रहे हैं भईया और भी लोग खड़े हैं"...ब्रेक अप से ज़्यादा दुखता है।

17/12/2023

लग्गी रखना मगर उसका उपयोग ना करना।

25/10/2023

सब कुछ ठीक करने के लिए कोई रीसेट बटन होना चाहिए न? ये साला क्या है के जो गुजर गया वो लौट कर आता ही नहीं। जिंदगी की भी प्रोमियम मेंबरशिप होनी चाहिए। बिना किसी एडवर्टिसमेंट के। जिंदगी जिसे आप बैगराउंड में जी सकें। कुछ दिनों के लूप में जी सकें। मरने का सबसे आसान तरीका तुम पर मरने का ही था सो चुना गया। हर रोज। तस्वीर से टुकुर टुकुर ताकती एक जोड़ी हसीन आंखें। मोहब्बत की कोई भी कृति बुन देने वाले ये खूबसूरत हाथ। कोफ्ता ऐसे ही इतना टेस्टी थोड़ी होता है?

दिवाली का इंतजार किसे है जानम? त्योहार तो तुम्हें अरसे बाद देखना है। फिर से। उसी अंदाज में। उसी नजाकत से। उसी मोहब्बत से।

सब कुछ ठीक करने का रीसेट बटन तुम ही तो हो। 🍁

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