Sanjiv मल्होत्रा

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एक निर्धन औरत एक साधु के पास गई,"स्वामी जी! कोई ऐसा पवित्र मन्त्र लिख दीजिये जिससे मेरे बच्चों का रात को भूख से रोना बन्...
07/12/2023

एक निर्धन औरत एक साधु के पास गई,"स्वामी जी! कोई ऐसा पवित्र मन्त्र लिख दीजिये जिससे मेरे बच्चों का रात को भूख से रोना बन्द हो जाये...।"

साधु ने कुछ पल एकटक आकाश की ओर देखा फिर अपनी कुटिया में अन्दर गया और एक पीले कपड़े पर एक मन्त्र लिखकर उसे ताबीज की तरह लपेट-बाँधकर उस महिला को दे दिया।
साधु ने कहा, "इस मन्त्र को घर में उस जगह रखना, जहाँ अपनी मेहनत की कमाई का धन रखती हो।" महिला खुश होकर चली गई।

ईश्वर कृपा से उस दिन उसके पति की आमदनी ठीक हुई और बच्चों को भोजन मिल गया। रात शान्ति से कट गई। अगले दिन भोर में ही उन्हें पैसों से भरी एक थैली घर के आंगन में मिली। थैली में धन के अलावा एक पर्चा भी निकला, जिस पर लिखा था, कोई कारोबार कर लें...।

इस बात पर अमल करते हुवे उस औरत के पति ने एक छोटी सी दुकान किराए पर ले ली और काम शुरू किया। धीरे धीरे कारोबार बढ़ा, तो दुकानें भी बढ़ती गईं...। जैसे पैसों की बारिश सी होने लगी...।

पति की कमाई तिजोरी में रखते समय एक दिन उस महिला की नज़र उस मन्त्र लिखे कपड़े पर पड़ी...। "न जाने, साधु महाराज ने ऐसा कौन सा मन्त्र लिखा था कि हमारी सारी तंगी दूर हो गई?" सोचते सोचते उसने वह मन्त्र वाला कपड़ा खोल डाला...।

जिस लिखा था कि..

जब पैसों की तंगी समाप्त हो जाये, तो सारा पैसा तिजोरी में छिपाने की बजाय कुछ पैसे ऐसे घर में डाल देना जहाँ से रात को बच्चों के रोने की आवाज़ें आती हों..!!

28/11/2023

उसकी दुआओं का असर था कि बच जाता था हर बला की गिरफ्त से,
आज माँ साथ नहीं है तो सीढियाँ भी संभल संभल कर चढ़नी पडती है,

Copiedरात को गहरी नींद मे एक सपने देखा जिसमे मै बाज़ार पहुँच गई और एक दूकान देखी जिस पर लिखा था -"यहाँ हर तरह के सपने मिल...
27/11/2023

Copied
रात को गहरी नींद मे एक सपने देखा
जिसमे मै बाज़ार पहुँच गई
और एक दूकान देखी जिस पर लिखा था -
"यहाँ हर तरह के सपने मिलते है "

मेरे पैर वही ठिठक गए ,
मै रुकी और दुकानार से पूंछा -
"भाई साहब !
आप की दुकान मै कौन कौन से सपने मिलते है ?

इस पर दुकानदार बोला-
"सभी तरह के -सुखी रहने के ,
कुछ इच्छा पूरी करने के ,
अमीर बनने के ,
यहाँ तक की किसी को अपना बनाने
के सपने भी मिलते है ,
आप को कौन सा सपना चाहिए ?

मैने कहा -
"मुझे तो खुद को अपना बनाने का
सपना खरीदना है ,
क्या वो है ?

इस पर उसने आश्चर्य से मुझे देखा
और कहा -
"क्या आप खुद की नहीं है ?

मेरी आँखों मे आंसू आ गए मैने कहा -
"नहीं मेरी जिन्दगी के हर हिस्से पर
किसी न किसी का नाम लिखा है ,
कहने को ये मेरी है
पर इसमे मेरा कुछ भी नहीं है ,
मै खुद की होना चाहती हूँ ,
जिन्दगी के ये चंद साल मै
खुद के साथ खुद के लिए जीना चाहती हूँ

इस पर वह बोला -
"नहीं जी ऐसा कोई सपना आज तक नहीं बना
जिसमे कोई नारी खुद के लिए जीने का
सपना देख सके

तभी पीछे से आवाज़ आई -
"जो हकीकत मे संभव है वो
सपने नहीं मिलते "

मैंने मुड़कर देखा शांत भाव लिए हुए
एक सज्जन पुरुष खड़े थे |

मैने उन से मुखातिब होकर कहा -
"क्या ये हकीकत मे संभव है"?
इस पर उन्होंने कहा -
"दुनिया मे कौन सा काम असंभव है ?
इसके लिए तुम्हें सपना नहीं खरीदना है
बल्कि अपने भीतर आत्मविश्वास पैदा करना है ,
सकारात्मक सोच रखनी है ,
यदि सोच सकारात्मक होगी तो
मन मे वैसे ही विचार आयेंगे
तब दिमाग भी उसी दिशा मे काम करेगा "

मैने पुछा -
"क्या उम्र के इस पड़ाव पर मुझमे
आत्मविश्वास पैदा हो सकेगा"?

इस पर वो बोले -"क्यों नहीं ?
देखो आत्मविश्वास के जरिये ही मनुष्य
बिना पंखों के उड़ सकता है ,
तैर सकता है ,अर्थात आत्मविश्वास के
जरिये हम हर काम संभव बना सकते है
यदि तुम मे आत्मविश्वास है तो तुम तन से
भले ही वृद्ध हो जाओ मन से सदा युवा रहोगी ,

और यदि नकारात्मक सोच होगी तो
युवा भी बूढ़े हो जायेंगे "

और तभी मेरी आँख खुल गई
मैने देखा सुबह हो चुकी थी ,
यूँ तो हर रोज़ सुबह होती थी पर आज की
सुबह मेरी जिन्दगी मे खुशियाँ लेकर आई थी ,
भले ही वो सपना था पर वो शख्स मुझ मे
एक नई उम्मीद जगा कर गया था ,

उस ने मुझे मेरे अस्तित्व की पहचान करवा दी थी
मै जान गई हूँ मेरा भी अपना अस्तित्व है ,
मुझे विश्वास है अब मै अपनी पहचान बनाउंगी ...
मैनेआज खुद को पा लिया है ,
अब मुझे साबित करना है कि मेरा अपना
अस्तित्व है मेरी खुद कि पहचान है ,
मुझे किसी के नाम या सहारे कि जरूरत नहीं .......
अरशिता

पुरुष का सर्वश्रेष्ठ रूपदेखना हो तो उसे प्रेम करते हुए देखिये!आकाश की ऊँचाई लेकर भी उसका स्त्री के समक्ष झुकना जाना, और ...
17/11/2023

पुरुष का सर्वश्रेष्ठ रूप
देखना हो तो उसे प्रेम करते हुए देखिये!
आकाश की ऊँचाई लेकर भी उसका स्त्री के समक्ष झुकना जाना, और उसे अपने होने का एहसास कराते रहना, ये पुरुष के प्रेम में ही संभव है!

स्त्री स्वयं को जितनी शिद्दत से पुरूष को सोंपती है, पुरूष उतने ही गहरे प्रेम में उतर कर उसे स्वीकार करता है! प्रेममयी पुरूष क्रमशः स्त्री में बदलने लगता है और उसके भीतर पनपने लगते हैं ममता के कोमल भाव, पुरूष का प्रेमिका के लिए समर्पण उसका सर्वश्रेष्ठ शक्तिशाली रूप है!

इसीलिए कहता हुँ कि स्त्री से कही ज्यादा प्रेम पुरुष करता हैं! मेरा अनुभव ये है कि "प्रेमिका को प्रेम करते हुए पुरुष से अधिक आकर्षक कुछ भी नहीं है, स्वयं सृष्टि भी नहीं" !!

समर्पण का अर्थ है!स्वेच्छा से, अपनी मर्जी से, तुम पर कोई दबाव न था, कोई जोर न था, कोई कह नहीं रहा था, कोई तुम्हे किसी तर...
17/11/2023

समर्पण का अर्थ है!
स्वेच्छा से, अपनी मर्जी से, तुम पर कोई दबाव न था, कोई जोर न था, कोई कह नहीं रहा था, कोई तुम्हे किसी तरह से मजबूर नहीं कर रहा था, तुम्हारा प्रेम था, प्रेम में तुम झुके, तो समर्पण, प्रेम में ही समर्पण हो सकता है।
और जहाँ प्रेम है, अगर समर्पण न हो तो समझ लेना प्रेम नहीं है। आमतौर से लोग यह कोशिश करते हैं कि प्रेम के नाम पर समर्पण करवाते हैं। तुम्हें मुझसे प्रेम है, करो समर्पण! अगर प्रेम है तो समर्पण होगा ही, करवाने की जरूरत नहीं पडेगी। बाप कहता है कि मैं तु म्हारा बाप हूँ तुम बेटे हो, मुझे प्रेम करते हो? तो करो समर्पण। पति कहता है पत्नी से कि सुनो, तुम मुझे प्रेम करती हो? तो करो समर्पण। प्रेम है तो समर्पण हो ही गया, करवाने की कोई जरूरत नहीं है। जो समर्पण करवाना पड़े, वह समर्पण ही नही अधिपत्य है। जो हो जाए सरलता से, जो हो जाए सहजता से! वही समर्पण है।
प्रेम तभी घटता है जब समर्पण घटे, प्रेम और समर्पण एक दूसरे के पूरक है। प्रेम के बिना कैसा समर्पण! और समर्पण न हो तो कैसा प्रेम !!

~ओशो ❤❤❤❤❤

ज़िंदगी कभी कभी कुछ नहीं चाहती है ना किसी का साथ ना किसी का हाथ और ये अक्सर तब होता है जब आपको ये महसूस हो जाता है आपकी ...
17/11/2023

ज़िंदगी कभी कभी कुछ नहीं चाहती है
ना किसी का साथ ना किसी का हाथ
और ये अक्सर तब होता है जब आपको ये महसूस हो जाता है आपकी ज़रूरतों पे जब जब आपने किसी से साथ या हाथ माँगा तो मिले उसके बदले सिर्फ़ बहाने या
यू कह ले की ना तवाज़ो तक ना दी गई आपके अकेलेपन की इसके विपरीत बनाया गया हो आपके दुखों का आपकी तकलीफ़ों का उपहास या कि गई हो रूठ जाने कि इक कोसिस
अक्सर पाया है मैंने जहाँ मैंने दिखायी रिश्तों में तत्परता वही मुझे मिला है एकांकीपन
मैंने सिवाय समय के और कुछ नहीं माँगा और किसी ना किसी कारणवश मुझे ना मिल सका वो समय भी उन किसी का जिनकी सिर्फ़ इक आहट भर में मैंने दिखायी तत्परता उनके साथ रहने की हर हालात में , जिनको मैंने अपनी हर चीज़ो में से ऊपर रखा ताकि सिर्फ़ उनका साथ दे पाऊँ वो मुझे अपने मामूली से हालात का भी हवाला दे देते है
वो क्या है ना “कही सुना था की जब सामने वाले को आपकी तकलीफ़ ना पता हो और वो आपकी तकलीफ़ को अनसुना करे तो आपको दुःख नहीं होता
दुःख तब होता है जब उसको पता हो की आपको उसकी ज़रूरत है आप तकलीफ़ में हो तब वो साथ ना दे पाये तब वो आपको अनसुना कर दे असल तकलीफ़ तब होती है
फिर इक दिन अचानक आप हर चीज़ से मुँह मोड़ लेते है
और फिर
ज़िंदगी कभी कभी कुछ नहीं चाहती है
ना किसी का साथ ना किसी का हाथ

छोटी थी जब,  बहुत ज्यादा बोलती थी माँ हमेशा झिडकती , चुप रहो ! बच्चे ज्यादा नहीं बोलते .थोड़ी बड़ी हुई जब , थोड़ा ज्यादा बो...
17/11/2023

छोटी थी जब, बहुत ज्यादा बोलती थी
माँ हमेशा झिडकती ,
चुप रहो ! बच्चे ज्यादा नहीं बोलते .

थोड़ी बड़ी हुई जब , थोड़ा ज्यादा बोलने पर
माँ फटकार लगाती
चुप रहो ! बड़ी हों रही हों .

जवान हुई जब , थोड़ा भी बोलने पर
माँ जोर से डपटती
चुप रहो , दूसरे के घर जाना है .

ससुराल गई जब , कु़छ भी बोलने पर
सास ने ताने कसे ,
चुप रहो , ये तुम्हारा मायका नहीं .

गृहस्थी संभाला जब , पति की किसी बात पर बोलने पर
उनकी डांट मिली ,
चुप रहो ! तुम जानती ही क्या हों ?

नौकरी पर गई , सही बात बोलने पर
कहा गया
चुप रहो ! अगर काम करना है तो

थोड़ी उम्र ढली जब , अब जब भी बोली तो
बच्चों ने कहा
चुप रहो ! तुम्हें इन बातों से क्या लेना .

बूढ़ी हों गई जब , कुछ भी बोलना चाहा तो
सबने कहा
चुप रहो ! तुम्हें आराम की जरूरत है .

इन चुप्पी की तहों में , आत्मा की गहों में
बहुत कुछ दबा पड़ा है
उन्हें खोलना चाहती हूँ , बहुत कुछ बोलना चाहती हूँ
पर सामने यमराज खड़ा है , कहा उसने
चुप रहो ! तुम्हारा अंत आ गया है
और मैं चुपचाप चुप हो गई
हमेशा के लिए .🌹🌹🌹🌹 🙏🙏

शादीशुदा बेटी मायके क्यों आती है?●~~"बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती है पीहर"~~●~~~~.बेटियाँ.. .पीहर आती है.. .अपनी जड़ों को स...
17/11/2023

शादीशुदा बेटी मायके क्यों आती है?

●~~"बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती है पीहर"~~●
~~~~.बेटियाँ.. .पीहर आती है.. .अपनी जड़ों को सींचने के लिए.. .तलाशने आती हैं भाई की खुशियाँ...वे ढूँढने आती हैं अपना सलोना बचपन...वे रखने आतीं हैं.. .आँगन में स्नेह का दीपक...बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर..
~~~.बेटियाँ...ताबीज बांधने आती हैं दरवाजे पर.. .कि नज़र से बचा रहे घर...वे नहाने आती हैं ममता की निर्झरनी में...देने आती हैं अपने भीतर से थोड़ा-थोड़ा सबको...बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर..
~~~.बेटियाँ.. .जब भी लौटती हैं ससुराल...बहुत सारा वहीं छोड़ जाती हैं...तैरती रह जाती हैं.. .घर भर की नम आँखों में.. .उनकी प्यारी मुस्कान...जब भी आती हैं वे, लुटाने ही आती हैं अपना वैभव.. .बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर......

बहुत "चंचल" बहुत
"खुशनुमा " सी होती है "बेटिया".
"नाज़ुक" सा "दिल" रखती है "मासूम" सी होती है "बेटिया".
"बात" बात पर रोती है
"नादान" सी होती है "बेटिया".
"रेहमत" से "भरपूर"
"खुदा" की "Nemat" है "बेटिया".
"घर" महक उठता है
जब "मुस्कराती" हैं "बेटिया".
"अजीब" सी "तकलीफ" होती है\
जब "दूसरे" घर जाती है "बेटियां".
"घर" लगता है सूना सूना "कितना" रुला के "जाती" है "बेटियां"
"ख़ुशी" की "झलक"
"बाबुल" की "लाड़ली" होती है "बेटियां"
ये "हम" नहीं "कहते"
यह तो "रब " कहता है. . क़े जब मैं बहुत खुश होता हु तो "जनम" लेती है
"प्यारी सी बेटियां"
*******************
Dedicated to all the sisters, mother, Daughters, friends😊😊🌹

एक सम्राट एक गरीब स्त्री के प्रेम में पड़ गया। सम्राट था! स्त्री तो इतनी गरीब थी कि खरीदी जा सकती थी, कोई दिक्कत न थी। उस...
14/11/2023

एक सम्राट एक गरीब स्त्री के प्रेम में पड़ गया। सम्राट था! स्त्री तो इतनी गरीब थी कि खरीदी जा सकती थी, कोई दिक्कत न थी। उसने स्त्री को बुलाया और उसके बाप को बुलाया और कहा : जो तुझे चाहिए ले—ले खजाने से, लेकिन यह लड़की मुझे दे—दे। मैं इसके प्रेम में पड़ गया हूं।कल मैं घोडे पर सवार निकलता था, मैंने इसे कुएं पर पानी भरते देखा बस तब से मैं सो नहीं सका हूं। बाप तो बहुत प्रसन्न हुआ, लेकिन बेटी एकदम उदास हो गयी। उसने कहा, मुझे क्षमा करें! आप कहेंगे तो आपके राजमहल में आ जाऊंगी, लेकिन मेरा किसी से प्रेम है। मैं आपकी पत्नी भी हो जाऊंगी, लेकिन यह प्रेम बाधा रहेगा। मैं आपको प्रेम न कर पाऊंगी। सम्राट विचारशील व्यक्ति था। उसने सोचा कि यह तो कुछ सार न होगा। कैसे प्रेम हो मुझसे इसका? किससे इसका प्रेम है, पता लगवाया गया।

एक साधारण आदमी। सम्राट बड़ा हैरान हुआ कि मुझे छोड्कर उससे इसका प्रेम है! लेकिन प्रेम तो हमेशा बेबूझ होता है। उसने अपने वजीरों को पूछा कि मैं क्या करूं कि यह प्रेम टूट जाए? तुम चकित होओगे, वजीरों ने जो सलाह दी, वह बड़ी अद्भुत थी। तुम मान ही न सकोगे कि यह सलाह कभी दी गयी होगी। क्योंकि यह सलाह... यह कहानी पुरानी है, फ्रायड से कोई हजार साल पुरानी। फ्रायड यह सलाह दे सकता था। मनोविज्ञान यह सलाह दे सकता है अब। और मनोविज्ञान भी सलाह देने में थोड़ा झिझकेगा। सलाह वजीरों ने यह दी कि इन दोनों को नग्न करके एक खंभे से बांध दिया जाए, दोनों को एक—दूसरे से बांध दिया जाए और खंभे से बांध दिया जाए।

सम्राट ने कहा : इससे क्या होगा? यही तो उनकी आकांक्षा है कि एक — दूसरे की बांहों में ......बध जाए।
उन्होंने कहा : आप फिक्र न करें। बस फिर उनको छोड़ा न जाए, बंधे रहने दिया जाए। उनको अलिंगन में बांधकर नग्न एक खंभे से बांध दिया गया।

अब तुम जरा सोचो, जिस स्त्री से तुम्हारा प्रेम है, फिर वह कोई भी क्यों न हो, वह इस जगत की सबसे सुंदरी क्यों न हो; या किसी पुरुष से तुम्हारा प्रेम है, वह मिस्टर युनिवर्स क्यों न हों, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता —— कितनी देर आलिंगन कर सकोगे? पहले तो दोनों बड़े खुश हुए, क्योंकि समाज की बाधाओं के कारण मिल भी नहीं पाते थे। जातियां अलग थीं, धर्म अलग थे, चोरी — छिपे कभी यहां — वहां थोड़ी देर को गुफ्तगू कर लेते थे थोड़ी — बहुत। एक — दूसरे के आलिंगन में नग्न! पहले तो बड़े आनंदित हुए, दौड़कर एक — दूसरे के आलिंगन में बंध गए। लेकिन जब रस्सियों से उन्हें एक खंभे से बांध दिया गया तो कितनी देर सुख सुख रहता है! कुछ ही मिनट बीते होंगे कि वे घबड़ाने लगे कि अब अलग कैसे हों, अब भिन्न कैसे हों, अब छूटें कैसे? मगर वे बंधे ही रहे।

कुछ घंटे बीते और तब और उपद्रव शु रू हो गया। मलमूत्र का विसर्जन भी हो गया। गंदगी फैल गयी। एक — दूसरे के मुंह से बदबू भी आने लगी। एक — दूसरे का पसीना भी। ऐसी घबड़ाहट हो गयी। और चौबीस घंटे बंधै रहना पड़ा। फिर जैसे ही उनको छोड़ा, कहानी कहती है फिर वे ऐसे भागे एक — दूसरे से, फिर दुबारा कभी एक — दूसरे का दर्शन नहीं किया। वह युवक तो वह गांव ही छोड्कर चला गया। यह प्रेम का अंत करने का बड़ा अहत उपाय हुआ, लेकिन बड़ा मनोवैज्ञानिक।

तुम देखते हो, पश्‍चिम में प्रेम उखड़ता जा रहा है, टूटता जा रहा है! कारण? स्त्री और पुरुष के बीच कोई व्यवधान नहीं रहा है, इसलिए प्रेम टूट रहा है। स्त्री और पुरुष इतनी सरलता से उपलब्ध हो गए हैं एक — दूसरे को कि प्रेम बच ही नहीं सकता, प्रेम टूटेगा ही। संयुक्त परिवार नहीं रहा पश्‍चिम में, तो पति और पत्नी दोनों रह गए हैं एक मकान में अकेले। जब मिलना हो मिलें; जो कहना हो कहें; जितनी देर बैठना हो पास बैठें —— कोई रुकावट नहीं, कोई बाधा नहीं। जल्दी ही चुक जाते हैं। जल्दी ही सुख दु:ख हो जाता है।

तुमने देखा, वही संगीत तुम पहली दफा सुनते हो, सुख; दुबारा सुनते हो, उतना सुख नहीं रह जाता। तीसरी बार सुनते हो, सुख और कम हो गया। चौथी बार ऊब पैदा होने लगती है। पांचवीं बार फिर कोई रिकार्ड चढ़ाए तो तुम सोचते हो कि मेरा सिर घूम जाएगा। तुम कहते हो : '' अब बंद करो! अब बहुत हो गया।’’ यही वही संगीत पहली दफा सुख दिया, दूसरी दफा कम, तीसरी दफा और कम। अर्थ शास्‍त्री नियम की बात करते हैं : '' ला आफ डिमिनिशिग रिटर्नश ''। हर बार उसी चीज को दोहराओगे तो सुख की मात्रा कम होती जाती है।

पुराना ढंग प्रेम को बचाने का ढंग था। पति — पत्नी मिल ही नहीं सकते थे। दिन में तो मिल ही नहीं सकते थे। पति — पत्नी भी नहीं मिल सकते, दूसरे की पत्नी से मिलना तो मामला दूर।
पश्‍चिम में तो दूसरे की पत्नी से मिलना भी इतना सरल हो गया है, जितना पहले अपनी पत्नी से भी मिलना सरल नहीं था। दिन भर तो मिल ही नहीं सकते थे। परिवार में बड़े — बूढे थे, बुजुर्ग थे, उनके सामने कैसे मिल सकते थे! रात में भी मिलना बड़ा चोरी — छिपे था। अपनी पत्नी से चोरी — छिपे मिलना! क्योंकि जोर से बोल नहीं सकते थे।

छोटे — छोटे घर, जिनमें पचास लोग सोए हुए हैं। चोरी — छिपे, रात के अं धेरे में। ठीक — ठीक पति अपनी पत्नी के चेहरे को जानता भी नहीं था कि वह कैसा है। अं धेरे में जानेगा भी कैसे? कभी घूंघट उठा कर रो श में ठीक से देखा भी नहीं था। प्रेम अगर लंबा जिंदा रह जाता था तो अश्‍चर्य नहीं, क्योंकि प्रेम को, सुख को क्षीण होने का मौका ही नहीं था। दिन — भर अपने काम — धंधे में रहते दोनों और याद जारी रहती।
अभी हालतें उल्टी हो गयी हैं। चौबीस घंटे एक — दूसरे के सामने बैठे हैं, वही खंभा, बंधे हैं। एक — दूसरे से चिढ़ पैदा होती है। पत्नी चाहती है कि कहीं उठो, कहीं जाओ, कुछ करो, यहीं क्यों बैठे हो?

जीवन के बड़े अद्दभुत नियम हैं! सुख और दु:ख में बहुत फर्क नहीं है। वही उत्तेजना सुख है, वही उत्तेजना दु:ख है। पसंद की तो सुख है, ना पसंद की तो दु:ख है। बस नापसंद — पसंद का फर्क है। दोनों तरंगें हैं। दोनों समय के भीतर घट रही हैं। दोनों समय की झील की तरंगें हैं।

14/11/2023

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