
21/11/2024
परीक्षित का जीवन मोह
राजा परीक्षित को भागवत कथा सुनाते हुए शुकदेव को छह दिन बीत गए और सर्प के काटने से मृत्यु होने का एक दिन शेष रह गया, तब भी राजा का शोक और मृत्यु का भय कम नहीं हुआ। तब शुकदेवजी ने राजा को एक कथा सुनाई - 'राजन, एक राजा जंगल में शिकार खेलने गया और रास्ता भटक गया। रात्रि होने पर वह सिर छिपाने के लिए कोई आसरा ढूंढ़ने लगा। थोड़ी दूर चलने पर उसे एक झोपड़ी नजर आई। उसमें एक बीमार बहेलिया रहता था। उसने झोपड़ी में ही एक ओर मल-मूत्र त्यागने का स्थान बना रखा था और अपने खाने के लिए जानवरों का मांस झोपड़ी की छत पर टांग रखा था। वह बहुत छोटी, दुर्गंधयुक्त झोपड़ी थी। उसे देखकर राजा पहले तो ठिठका, पर कोई और आश्रय न देख उसने विवशतावश बहेलिए से झोपड़ी में रातभर ठहरा लेने की प्रार्थना की।
बहेलिया बोला - 'मैं भटके हुए राहगीरों को अकसर ठहराता रहा हूं। लेकिन दूसरे दिन जाते समय वे बहुत झंझट करते हैं। वे इस झोपड़ी को छोड़ना ही नहीं चाहते। मैं अब इस झंझट में नहीं पड़ना चाहता, इसलिए आपको नहीं ठहरा सकता।" राजा ने उसे वचन दिया कि वह ऐसा नहीं करेगा। इसके बाद वह झोपड़ी में ठहर गया। किंतु सुबह उठते-उठते उस झोपड़ी की गंध में राजा ऐसा रच-बस गया कि वहीं रहने की बात सोचने लगा। इस पर उसकी बहेलिए से कलह भी हुई। वह झोपड़ी छोड़ने में भारी कष्ट और शोक का अनुभव करने लगा।"
यह कथा सुनाकर शुकदेव ने परीक्षित से पूछा - 'क्या उस राजा के लि *...अधिक पढ़ें*
*नमस्कार🙏🚩🛕📿,