07/10/2023
#चिंतित_कवि
आ....ऊ....बैसू !
आ...कविता सुनू !
आ थपड़ियो बजाऊ !
आ हे ! मोन राखब,जे
कविता नीक लागय वा
बेजाय, ताहि सों
कोनो टा मतलब नहिं ,
बस थपड़ी बजबाक चाही !
आ मंच से उतरलाक बाद
कविक
प्रशंसा हेबाक चाही ,
सेहो तखन, जखनकि
ओ बगलमे आबिके
बैसि जयताह !
कारण जे एकटा
कुशल श्रोताक
ई महान कर्तव्य थिक !
आ हे फल्लां बाबू !
अहांके विलम्ब से
अयबाक कारणे
जलपान छूटि गेल, तें
भोजन अबस्से क' लेब,
आ हे ! माछ भातक
व्यवस्था भेल छैक,
कारण जे,हमसब
मिथिलाक रहनिहार छी,तें
एहन कार्यक्रम सबमे
माछ आ मखानक व्यवस्था
त होएबाके चाही ;
मुदा, चिंता जुनि करब,
जाइत घड़ी अहांके
जलपानक दू पाकिट
घर ल' जयबाक लेल
भेटि जाओत !
आ हे ! फल्लमो सबके
एतय बजा लिअ'
कनेक हबगब रहतै !
लिअ' तामे चाह पीबू !!
आ हे ! किछु कंठीधारी
सब सेहो आबि रहल छथि,
हुनका सबके ठां पीढ़ी
ओसारे पर एक दिस क' देबैन !
एखन जखनकि हमसब
पठनीयताक संकटक संगे
साहित्यक संक्रमणकालसं
गुजरि रहल छी, तें
हमरा सभकें भीतर
एहेन दायित्व बोध रहब
आवश्यक भ' जाइत अछि !
कारण जे, कोनो कविता
नीक वा बेजाए
नहिं होइत छैक !
नीक वा बेजाए त
श्रोताक श्रवण शक्ति,वा
पाठकक ग्रहण शक्ति
होइत छैक, जे की
अर्थक अनर्थ क' दैत छैक !
जखनकि कविक स्पष्ट
मंतव्य के बूझब,
कुशल श्रोता वा पाठक
हेबाक पहिल शर्त होइत अछि !
कवि चिंतित अछि जे
हुनकर कविताक संगे
कतेको बेर कतेको लोक
बलात्कार करैत रहल अछि ;
तथापि,ओ एहि बातक शिकायत
कोन थाना,कोन कचहरी मे लिखेताह, से
एखनधरि हुनका बुझला मे नहिं
आबि रहल छैन्ह ; कारण जे
चिंतित कविक दुःख सुनबाक लेल
एखनधरि कोनो न्यायालय निर्मित नहिं भेल अछि।