Saroj Sir

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"Success is not final; failure is not fatal: It is the courage to continue that counts." – ..."Opportunities don't happe...
14/05/2024

"Success is not final; failure is not fatal: It is the courage to continue that counts." – ...
"Opportunities don't happen. ...
"Don't watch the clock; do what it does. ...
"The way to get started is to quit talking and begin doing." – ...
"I find that the harder I work, the more luck I seem to have." –

13/11/2023
15/07/2023

*!! मुठ्ठी भर मेंढ़क !!*
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बहुत समय पहले की बात है, किसी गाँव में मोहन नाम का एक किसान रहता था. वह बड़ा मेहनती और ईमानदार था. अपने अच्छे व्यवहार के कारण दूर-दूर तक लोग उसे जानते थे और उसकी प्रशंशा करते थे. पर एक दिन जब देर शाम वह खेतों से काम कर लौट रहा था तभी रास्ते में उसने कुछ लोगों को बाते करते सुना, वे उसी के बारे में बात कर रहे थे.

मोहन अपनी प्रशंशा सुनने के लिए उन्हें बिना बताये धीरे-धीरे उनके पीछे चलने लगा, पर उसने उनकी बात सुनी तो पाया कि वे उसकी बुराई कर रहे थे. कोई कह रहा था कि, “मोहन घमण्डी है.” तो कोई कह रहा था कि, “सब जानते हैं वो अच्छा होने का दिखावा करता है…”

मोहन ने इससे पहले सिर्फ अपनी प्रशंशा सुनी थी. पर इस घटना का उसके दिमाग पर बहुत बुरा असर पड़ा और अब वह जब भी कुछ लोगों को बाते करते देखता तो उसे लगता वे उसकी बुराई कर रहे हैं. यहाँ तक कि अगर कोई उसकी तारीफ़ करता तो भी उसे लगता कि उसका मजाक उड़ाया जा रहा है. धीरे-धीरे सभी ये महसूस करने लगे कि मोहन बदल गया है और उसकी पत्नी भी अपने पति के व्यवहार में आये बदलाव से दु:खी रहने लगी और एक दिन उसने पूछा, “आज-कल आप इतने परेशान क्यों रहते हैं; कृपया मुझे इसका कारण बताइये.”

मोहन ने उदास होते हुए उस दिन की बात बता दी. पत्नी को भी समझ नहीं आया कि क्या किया जाए पर तभी उसे ध्यान आया कि पास के ही एक गाँव में एक सिद्ध महात्मा आये हुए हैं और वो बोली, “स्वामी, मुझे पता चला है कि पड़ोस के गाँव में एक पहुंचे हुए संत आये हैं. चलिये हम उनसे कोई समाधान पूछते हैं.” अगले दिन वे महात्मा जी के शिविर में पहुंचे.

मोहन ने सारी घटना बतायी और बोला, महाराज उस दिन के बाद से सभी मेरी बुराई और झूठी प्रशंशा करते हैं, कृपया मुझे बताइये कि मैं वापस अपनी साख कैसे बना सकता हूँ!” महात्मा मोहन की समस्या समझ चुके थे.

“पुत्र तुम अपनी पत्नी को घर छोड़ आओ और आज रात मेरे शिविर में ठहरो.”, महात्मा कुछ सोचते हुए बोले.

मोहन ने ऐसा ही किया, पर जब रात में सोने का समय हुआ तो अचानक ही मेढ़कों के टर्र-टर्र की आवाज आने लगी. मोहन बोला, “ये क्या महाराज यहाँ इतना कोलाहल क्यों है ?”

“पुत्र, पीछे एक तालाब है, रात के वक़्त उसमें मौजूद मेंढ़क अपना राग अलापने लगते हैं!” “पर ऐसे में तो कोई यहाँ सो नहीं सकता?,” मोहान ने चिंता जताई. “हाँ बेटा, पर तुम ही बताओ हम क्या कर सकते हैं, हो सके तो तुम हमारी मदद करो”, महात्मा जी बोले.

मोहन बोला, “ठीक है महाराज, इतना शोर सुन के लगता है इन मेंढ़कों की संख्या हज़ारों में होगी. मैं कल ही गांव से पचास-साठ मजदूरों को लेकर आता हूँ और इन्हें पकड़ कर दूर नदी में छोड़ आता हूँ.” और अगले दिन मोहन सुबह-सुबह मजदूरों के साथ वहाँ पंहुचा, महात्मा जी भी वहीं खड़े सब कुछ देख रहे थे.

तालाब ज्यादा बड़ा नहीं था, 8-10 मजदूरों ने चारों ओर से जाल डाला और मेंढ़कों को पकड़ने लगे… थोड़ी देर की ही मेहनत में सारे मेंढ़क पकड़ लिए गए.

जब मोहन ने देखा कि कुल मिला कर 50-60 ही मेंढ़क पकड़े गए हैं तब उसने माहत्मा जी से पूछा, “महाराज, कल रात तो इसमें हज़ारों मेंढ़क थे, भला आज वे सब कहाँ चले गए, यहाँ तो बस मुट्ठी भर मेंढ़क ही बचे हैं.”

महात्मा जी गम्भीर होते हुए बोले, “कोई मेंढ़क कहीं नहीं गया, तुमने कल इन्हीं मेंढ़कों की आवाज सुनी थी. ये मुट्ठी भर मेंढ़क ही इतना शोर कर रहे थे कि तुम्हें लगा हज़ारों मेंढ़क टर्र-टर्र कर रहे हों. पुत्र, इसी प्रकार जब तुमने कुछ लोगों को अपनी बुराई करते सुना तो भी तुम यही गलती कर बैठे, तुम्हें लगा कि हर कोई तुम्हारी बुराई करता है. पर सच्चाई ये है कि बुराई करने वाले लोग मुठ्ठी भर मेंढ़क के सामान ही थे. इसलिए अगली बार किसी को अपनी बुराई करते सुनना तो इतना याद रखना कि हो सकता है ये कुछ ही लोग हों जो ऐसा कर रहे हों और इस बात को भी समझना कि भले तुम कितने ही अच्छे क्यों न हो ऐसे कुछ लोग होंगे ही होंगे जो तुम्हारी बुराई करेंगे.”

अब मोहन को अपनी गलती का अहसास हो चुका था, वह पुनः पुराना वाला मोहन बन चुका था.

*शिक्षा:-*
मित्रों, मोहन की तरह हमें भी कुछ लोगों के व्यवहार को हर किसी का व्यवहार नहीं समझ लेना चाहिए और सकारात्मक सोच से अपनी ज़िन्दगी जीनी चाहिए. हम कुछ भी कर लें पर जीवन में कभी ना कभी ऐसी समस्या आ ही जाती है जो रात के अँधेरे में ऐसी लगती है मानो हज़ारों मेंढ़क कान में टर्र-टर्र कर रहे हों. पर जब दिन के उजाले में हम उसका समाधान करने का प्रयास करते हैं तो वही समस्या छोटी लगने लगती है. इसलिए हमें ऐसी परिस्तिथि में घबराने के बजाये उसका उपाय खोजने का प्रयास करना चाहिए और कभी मुट्ठी भर मेंढ़कों से घबराना नहीं चाहिए.

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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