03/09/2025
**“धर्म के नाम पर पाखंड: अपराध, आर्थिक शोषण और समय की बर्बादी का बढ़ता जाल”**
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# # ✍️ विस्तृत लेख
धर्म और पूजा का मूल उद्देश्य समाज में शांति, एकता और नैतिकता को मजबूत करना है। लेकिन आजकल पूजा-पाठ और मेलों का रूप बदल चुका है। भक्ति और संस्कार की जगह अब पाखंड, अश्लीलता और आडंबर का बोलबाला है।
# # # 1️⃣ अपराध का अड्डा बनते धार्मिक आयोजन
पिछले कुछ वर्षों से देखा गया है कि पूजा और मेलों में मनोरंजन के नाम पर अश्लील नृत्य, डांस बार और बाहरी कलाकार बुलाए जाते हैं।
लोगों को आकर्षित करने के नाम पर युवाओं में उत्तेजना और गलत इच्छाएँ पैदा की जाती हैं। इसका सीधा असर समाज पर पड़ता है —
* नशे का सेवन बढ़ता है।
* युवाओं की सोच विकृत होती है।
* अपराध की घटनाएँ कई गुना बढ़ जाती हैं।
👉 हाल का उदाहरण: *मधुबनी जिला, हरलखी प्रखंड की कलना पंचायत*।
यहाँ हाल ही में एक महिला पूजा देखकर लौट रही थी। रास्ते में नशे में धुत्त युवकों ने, जो अश्लील डांस देखकर उत्तेजित हुए थे, उसका **रे*प और ह*त्या** कर दी। यह घटना समाज के लिए गहरी चेतावनी है।
ऐसी घटनाएँ दुर्भाग्य से नई नहीं हैं। अक्सर पूजा-पाठ के अवसर पर महिलाओं से छेड़*खानी, रे*प, चोरी, ह*त्या और लू*ट जैसी घटनाएँ होती हैं। लेकिन सामाजिक दबाव और शर्म के कारण अधिकतर केस दर्ज ही नहीं हो पाते।
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# # # 2️⃣ आर्थिक शोषण और वसूली
धार्मिक आस्था के नाम पर समाज में हर दिन नई-नई वसूली की योजनाएँ निकलती हैं।
* गाँव-गाँव में जबरन चंदा वसूली होती है।
* गरीब और मजदूर वर्ग के लोग जो दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रहे होते हैं, उन्हें भी मजबूर होकर पैसा देना पड़ता है।
* करोड़ों रुपये पूजा-पंडाल, सजावट, डीजे और डांस पर खर्च हो जाते हैं, जबकि उसी गाँव में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी बुनियादी सुविधाएँ नदारद रहती हैं।
👉 सवाल उठता है कि अगर यही पैसा स्कूल, अस्पताल और किसानों की मदद में लगाया जाए तो कितनी बड़ी क्रांति आ सकती है?
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# # # 3️⃣ समय की बर्बादी
पूजा-पाठ और मेलों में दिन-रात तेज आवाज, जाम और अव्यवस्था के कारण आम लोगों का कामकाज बाधित होता है।
* बच्चों की पढ़ाई रुक जाती है।
* मजदूर काम पर नहीं जा पाते।
* किसान खेत छोड़कर पूजा में बैठने को मजबूर किए जाते हैं।
* सरकारी कर्मचारी और छोटे दुकानदारों का समय बर्बाद होता है।
👉 उदाहरण: कई जगह रात भर डीजे बजने से अगले दिन बच्चों की कक्षाएँ प्रभावित होती हैं। परीक्षा देने वाले छात्र पढ़ाई नहीं कर पाते। कामगार लोग नींद पूरी न होने से उत्पादन घटा देते हैं।
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# # # 4️⃣ पर्यावरण और समाज पर असर
तेज़ ध्वनि, बिजली की बर्बादी, पटाखों का धुआँ और लाखों रुपये की व्यर्थ खर्च समाज और पर्यावरण दोनों को खोखला कर रहे हैं।
* जलवायु परिवर्तन तेज हो रहा है।
* कहीं बाढ़, कहीं सुखाड़ से किसान बर्बाद हो रहे हैं।
* भविष्य में पानी और भोजन की भारी समस्या खड़ी हो रही है।
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# # ✍️ निष्कर्ष
धर्म का उद्देश्य आत्मा की शांति और समाज में एकता है। लेकिन वर्तमान में यह भक्ति नहीं, बल्कि पाखंड और अपराध का कारण बन रहा है।
हमें मिलकर सोचना होगा —
* क्या धर्म के नाम पर अश्लीलता और अपराध स्वीकार्य है?
* क्या हमारे बच्चों का भविष्य इस अंधविश्वास और आडंबर में बर्बाद होना चाहिए?
* क्या गरीब का पैसा पंडालों में जलना चाहिए या स्कूल-अस्पताल में लगना चाहिए?
यदि समय रहते समाज और प्रशासन ने इस पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाले दिनों में हालात और बिगड़ेंगे।
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