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16/08/2025

झंझारपुर के सांसद रामप्रीत मंडल के दूसरे संसदीय कार्यकाल के 01 वर्ष के कार्यों को आप कैसा आँकते हैं?उनके कार्यों के आधार पर उन्हें 100 में से कितना अंक देंगे? लगातार दूसरी बार सांसद बने रामप्रीत मंडल का अपना कोई जनाधार या लोकप्रियता नहीं है, वे दोनों बार(2019 और 2024) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर ही चुनाव जीते हैं, भले ही वे मोदीजी को 'गाली' देने और आलोचना में व्यस्त रहते हैं।

एनडीए में जदयू के सांसद अपने कुल 06 वर्षों में कोई विशेष गिनाने लायक कार्य नहीं किये हैं और आम जनता तो दूर, उनके कार्यकर्ता भी उनसे नाराज रहते हैं, विरोध करते रहते हैं।

क्या झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र को ऐसे सांसद विकसित बना सकते हैं? अपना विचार साझा करें।

16/08/2025

यश ढुल का शतक...

क्या एनडीए में जदयू के कोटे में जायेगा खजौली सीट? कौन हो सकते हैं उम्मीदवार?बिहार विधानसभा चुनाव 2025 बहुत निकट है और अब...
16/08/2025

क्या एनडीए में जदयू के कोटे में जायेगा खजौली सीट? कौन हो सकते हैं उम्मीदवार?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 बहुत निकट है और अब दोनों प्रमुख गठबंधनों में सीट बंटवारे और सीटों का चयन होना बाकी है। इस बार हो सकता है कि कुछ परम्परागत सीटों में दोनों गठबंधनों में अदला-बदली हो सकता है यानि एनडीए में जिन सीटों पर भाजपा(बीजेपी) लड़ती आई है उसमें से कुछ सीटें जदयू(जेडीयू) को और जनता दल यूनाइटेड की कुछ सीटें भारतीय जनता पार्टी के कोटे में जा सकता है। वैसे जदयू की कोई हैसियत नहीं है, वह भाजपा के आधार वोटों के कारण टिकी हुई है, जीवित है। उसी तरह इंडी गठबंधन(महागठबंधन) में जिन सीटों पर आरजेडी(राजद) लड़ती आई है, उसमें से कुछ सीटें वीआईपी, भाकपा माले, भाकपा, माकपा और कॉंग्रेस को और कॉंग्रेस कोटे की सीटें राष्ट्रीय जनता दल के जिम्मे आ सकता है।

इसी बीच मधुबनी जिला के झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र अंतर्गत खजौली सीट अभी तक एनडीए(भाजपा+) में भाजपा लड़ती आई है और वर्तमान में भी यहाँ से भाजपा के अरुण शंकर प्रसाद विधायक हैं लेकिन पिछले पूरे पाँच वर्षों में वे जनता के बीच से गायब रहे हैं और क्षेत्र में लगभग कोई कार्य नहीं हुआ है जिस कारण भाजपा के कार्यकताओं में भी नाराजगी है। यदि यह सीट जदयू(जेडीयू) के कोटे में जाता है तो जदयू नेताओं को यहाँ से लड़ने का अवसर मिलेगा। हालाँकि खजौली विधानसभा क्षेत्र से कभी भी जदयू चुनाव नहीं लड़ी है, चाहे 2008 के परिसीमन के बाद हुए 2010, 2015 या 2020 का चुनाव हो या उससे पहले आरक्षित रहने पर भी।

खजौली से वर्तमान भाजपा विधायक अरुण शंकर प्रसाद के जनता के बीच से गायब रहने के कारण जनता के बीच आक्रोश को शांत करने के लिए यदि एनडीए कोटे में यह सीट जनता दल यूनाइटेड को दिया जाता है तो यहाँ से जदयू के उम्मीदवार कौन हो सकते हैं?

01. वासुदेव कुशवाहा(जदयू नेता, लदनिया)
02. राजकुमार सिंह(जदयू नेता जयनगर)
03. पवन कुमार सिंह(कुशवाहा)(जदयू नेता, खजौली)
04. कल्पना सिंह(कुशवाहा)(सक्रिय राजनेत्री, जयनगर)
05. प्रो. मनोज कुमार वर्मा(राजनीतिक एक्टिविस्ट, जयनगर)
06. अन्य(नाम कमेंट बॉक्स में लिखें)

गुजरांवाला के एक लाला बलवंत की सात बेटियां... एक कुआं... एक जमीन...!जय किशन कर्णवाल की लेखनी से...गुजरांवाला...सरदार हरि...
15/08/2025

गुजरांवाला के एक लाला बलवंत की सात बेटियां... एक कुआं... एक जमीन...!

जय किशन कर्णवाल की लेखनी से...

गुजरांवाला...
सरदार हरिसिंह की भूमि व पाकिस्तान पंजाब का एक शहर, जहां कभी एक पंजाबी हिंदू खत्री जमींदार लाला जी उर्फ बलवंत खत्री का परिवार एक शानदार कोठी में भरे-पूरे परिवार के साथ अपनी पत्नी प्रभावती, सात बेटियां और एक बेटा सहित रहता था।

एक परिवार...
लाला जी के बेटे बलदेव की उम्र तब 20 साल थी। उससे छोटी लाजवंती (लाजो) 19 साल, राजवती (रज्जो) 17, भगवती (भागो) 16, पार्वती (पारो) 15, गायत्री (गायो) 13 व ईश्वरी (इशो) 11 बरस की थी। सबसे छोटी उर्मिला (उर्मी) 9 बरस की थी। प्रभावती पेट से थीं और जल्द ही फिर से कोठी में किलकारियां गूंजने वाली थी।

एक साल...
1947 में भारत का बंटवारा हो गया था और जिन्ना ने 'डायरेक्ट एक्शन डे' का ऐलान कर दिया था। गुजरांवाला के आसपास के इलाकों से हिंदू-सिखों के कत्लेआम की खबरें आने लगी थी। 'अल्लाह हू अकबर' और 'ला इलाहा इल्लल्लाह' का शोर करती भीड़ यलगार करती - काफिरों की औरतें भारत न जा पाएं। उन्हें हम हड़प लेंगे।

एक उम्मीद...
पर लाला जी गांधीजी से प्रभावित व बेफिक्र थे। उन्हें लगता था ये कुछ मजहबी मदांध हैं, जो दो-चार दिन में शांत हो जाएंगे और गुजरांवाला तो जट, गुज्जरों और राजपूत मुसलमानों का शहर है, जो 'अव्वल अल्लाह नूर उपाया' गाने वाले हैं। बाबा बुल्ले शाह और बाबा फरीद की कविताएं पढ़ते हैं। सूफी मजारों पर जाते है और सब भाई हैं। एक-दूसरे का खून नहीं बहाएंगे।

एक तारीख...
18 सितंबर 1947 को एक सिख डाकिया हांफते हुए हवेली पहुंचा और चिल्लाया - लाला जी इस जगह को छोड़ दो। तुम्हारी बेटियों को उठाने के लिए वे लोग आ रहे हैं। लज्जो को सलीम ले जाएगा। रज्जो को शेख मुहम्मद। भगवती को… लाला बलवंत ने उस डाकिए को जोरदार तमाचा जड़ा। कहा- क्या बकवास कर रहे हो। सलीम, मुख्तार भाई का बेटा है और मुख्तार भाई हमारे परिवार के सदस्य की तरह हैं।

एक चेतावनी...
पर डाकिये का जवाब था - "मुख्तार भाई ही भीड़ लेकर निकले हैं, लाला जी। सारे हिंदू-सिख भारत भाग रहे हैं। 300-400 लोगों का एक जत्था घंटे भर में निकलने वाला है। परिवार के साथ शहर के गुरुद्वारे पहुंचिए।"
यह कहकर सिख डाकिया सरपट भागा। शायद उसे दूसरे घर तक भी खबर पहुंचानी थी।

एक संवाद...
लाला जी पीछे मुड़े तो सात माह की गर्भवती प्रभावती ने सारी बात सुन ली, उसके आंसू बह रहे थे। उसने कहा - लाला जी हमें निकल जाना चाहिए। मैंने बच्चों से गहने, पैसे व कागज बांध लेने को कहा है।

पर लाला जी का मन मानने को तैयार नहीं था। सरदार झूठ बोल रहा है, हम कहीं नहीं जाएंगे। मुख्तार भाई ऐसा नहीं कर सकते। मैं खुद उनसे बात करूंगा।

प्रभावती ने बताया - वे पिछले महीने घर आए थे। कहा कि सलीम को लाजो पसंद है। वे चाहते हैं कि दोनों का निकाह हो जाए। लज्जो ने भी बताया था कि सलीम अपने दोस्तों के साथ उसे छेड़ता है। इसी वजह से उसने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया।

लाला बलवंत - तुमने यह बात पहले क्यों नहीं बताई? मैं मुख्तार भाई से बात करता। प्रभावती - आप भी बहुत भोले हैं। मुख्तार भाई खुद लज्जो का निकाह सलीम से करवाना चाहते हैं। अब उसे जबरन ले जाने के लिए आ रहे हैं।

एक गुरुद्वारा...
गुरुद्वारा हिंदू-सिखों से खचाखच भरा था, जिनमें पुरुषों के हाथों में तलवारें थी। गुजरांवाला पहलवानों के लिए मशहूर था। कई मंदिरों और गुरुद्वारों के अपने अखाड़े थे। हट्टे-कट्टे हिंदू-सिख गुरुद्वारे के द्वार पर सुरक्षा में मुस्तैद थे। कुछ लोग छत से निगरानी कर रहे थे। कुछ लोग कुएं के पास रखे पत्थरों पर तलवारों को धार दे रहे थे।महिलाएं, लड़कियां और बच्चे दहशत में थे। माएं नवजातों और बच्चों को सीने से चिपकाए हुईं थी।

एक भीड़...
अचानक एक भीड़ की आवाज आनी शुरू हुई। यह भीड़ बड़ी मस्जिद की तरफ से आ रही थी। वे नारा लगा रहे थे,
★ पाकिस्तान का मतलब क्या, ला इलाहा इल्लल्लाह
★ हंस के लित्ता पाकिस्तान, खून नाल लेवेंगे हिंदुस्तान
★ कारों, काटना असी दिखावेंगे
★ किसी मंदिर विच घंटी नहीं बजेगी हून
★ हिंदू दी जनानी बिस्तर विच, ते आदमी श्मशान विच

एक निशाना...
प्रभावती एक खिड़की के पास बेटियों के साथ बैठी थी। इकलौता बेटा मुख्य दरवाजे के बाहर मुस्तैद था। अचानक भीड़ की आवाज शांत हो गई। फिर मिनट भर के भीतर ही 'ला इलाहा इल्लल्लाह' का वही शोर शुरू हो गया। हर सेकेंड के साथ शोर बढ़ती जा रही थी। भीड़ में शामिल लोगों के हाथों में तलवार, फरसा, चाकू, चेन और अन्य हथियार थे, उनका निशाना गुरुद्वारा था।

एक प्रतिज्ञा...
गुरुद्वारे का प्रवेश द्वार अंदर से बंद था। कुछ लोग द्वार पर तो कुछ दीवार से सट कर हथियारों के साथ खड़े थे।

अचानक पुजारी और पहलवान सुखदेव शर्मा की आवाज गूंजी - "वे हमारी मां, बहन, पत्नी और बेटियों को लेने आ रहे हैं। उनकी तलवारें हमारी गर्दन काटने के लिए है। वे हमसे समर्पण करने और धर्म बदलने को कहेंगे। मैंने फैसला कर लिया है। झुकुंगा नहीं। अपना धर्म नहीं छोड़ूंगा। न ही उन्हें अपनी स्त्रियों को छूने दूंगा।"

चंद सेकेंड के सन्नाटे के बाद 'जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल, वाहे गुरु जी दा खालसाए वाहे गुरु जी दी फतह' से गुरुद्वारा गूंज उठा। वहां मौजूद हर किसी ने हुंकार भरी - हममें से कोई अपने पुरखों का धर्म नहीं छोड़ेगा।

एक इंतजार...
50-60 लोगों ने गुरुद्वारे में घुसने की कोशिश की। देखते ही देखते ही सिर धड़ से अलग हो गया। गुरुद्वारे में मौजूद लोगों को कोई नुकसान नहीं हुआ था। महिलाएं और बच्चे भी अंदर हॉल में सुरक्षित थे। यह सब देखकर मजहबी भीड़ गुरुद्वारे से थोड़ा पीछे हट गई। करीब 30 मिनट तक गुरुद्वारे से 50 मीटर दूर खड़े होकर मजहबी नारे लगाते रहे।

ऐसा लगा रहा था मानो उन्हें किसी चीज का इंतजार है। जिसका इंतजार था, हजारों का हुजूम आ गया था। गुरुद्वारे के अंदर मुश्किल से 400 हिंदू-सिख। उनमें 50-60 युवा। बाकी बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे।

एक उन्माद...
अंतिम लड़ाई का क्षण आ चुका था। भीड़ ने एक सिख- महिला को आगे खींचा। वह नग्न व अचेत अवस्था में थी। भीड़ में शामिल कुछ लोग उसे नोंच रहे थे। अचानक किसी ने उसका वक्ष तलवार से काट डाला और उसे गुरुद्वारे के भीतर फेंक दिया।

एक सवाल...
गुरुद्वारे में मौजूद गुजरांवाला के हिंदू-सिखों ने इससे पहले इस तरह की बर्बरता के बारे में कभी सुना नहीं था। पहली बार आंखों से देखा। अब हर कोई अपनी स्त्री के बारे में यह सोचकर बैचेन व भय व्याप्त हो गया। यदि उनकी मौत के बात उनकी स्त्री इनके हाथ लग गईं, तो उसका क्या होगा? अब उन्हें केवल मौत ही सहज लग रही थी। उसके अलावा सब कुछ भयावह।

एक कत्लेआम...
भीड़ ने दरवाजे पर चढ़ाई की। कत्लेआम मच गया। हिंदू-सिख बांकुरों की तरह लड़े, पर गिनती के लोग, हजारों के हुजूम के सामने कितनी देर टिकते...

एक मुक्ति...
लाजो - तुस्सी काटो बापूजी, मैं मुसलमानी नहीं बनूंगी। लाला बलवंत रोने लगे। आवाज नहीं निकल पा रही थी। लाजो ने फिर कहा - जल्दी करिए बापूजी। लाला बलवंत फूट-फूटकर रोने लगे। भला कोई बाप अपने ही हाथों अपनी बेटियों की हत्या कैसे करे?

लाजो - यदि आपने नहीं मारा तो वे मेरे वक्ष... बात पूरी होने से पहले ही लाला जी ने लाजो का सिर धड़ से अलग कर दिया। अब राजो की बारी थी। फिर भागो... पारो... गायो... इशो... और आखिरकार उर्मी। लाला जी हर बेटी का माथा चमूते गए और सिर धड़ से अलग करते गए। सबको एक-एक कर मुक्ति दे दी।

लेकिन उस मजहबी भीड़ से मृत महिलाओं का शरीर भी सुरक्षित नहीं था। नरपिशाचों के हाथ बेटियों का शरीर न छू ले, यह सोच सबके शव को लाला जी ने गुरुद्वारे के कुएं में डाल दिया।

एक आदेश...
लाला बलवंत ने प्रभावती से कहा - गुरुद्वारे के पिछले दरवाजे पर तांगा खड़ा है, तुम बलदेव के साथ निकलो। कुछ लोग तुम्हें सुरक्षित स्टेशन तक लेकर जाएंगे। वहां से एक जत्था भारत जाएगा। तुम दोनों निकलो।

प्रभावती - मैं आपके बिना कहीं नहीं जाऊंगी।
लाला जी - तुम्हें अपने पेट में पल रहे बच्चे के लिए जिंदा रहना होगा। तुम जाओ, मैं पीछे से आता हूं। लाला जी ने प्रभावती का माथा चूमा। बलदेव को गले लगाया और कहा जल्दी करो। तांगा प्रभावती और बलदेव को लेकर स्टेशन की तरफ चल दिया।

एक पिता...
फिर लाला जी ने खुद को चाकुओं से गोदा। उसी कुएं में छलांग लगा दी, जिसमें सात बेटियों को काट कर डाला था। आखिर दो बच्चों के पास उनकी मां थी। सात बच्चों के पास उनके पिता का होना तो बनता था।

लाला जी के बेटे बलदेव का पोता है, जिसने भारत के विभाजन में अपने परिवार के 28 सदस्य खोए थे। लाला जी, उनके भाई-बहन और उनके परिवार के कई लोगों की हत्या कर दी गई थी।

लाला जी की पत्नी, बेटे बलदेव और अजन्मे संतान के साथ जान बचाकर भारत आने में कामयाब रही थीं। वे पंजाब के अमृतसर में रहते हैं।

हाल ही में मुझे किसी ने यह लिंक, इस आग्रह के साथ प्रेषित किया, ताकि इसका हिंदी में अनुवाद कर भारत के 130 करोड़ हिंदुओं-सिखों-बौद्धों-जैनों-पारसियों-यहूदियों को बंटवारे की वस्तुस्थिति से अवगत कराऊं।

एक पेंटिंग...
पाकिस्तान में सन् 1947 में हिंदू-सिखों का कत्लेआम हुआ। स्त्रियों के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। उन्हें नग्न कर घुमाया गया। उनके वक्ष काट डाले गए। कइयों ने कुएं में कूद जान दे दी। उसी भयावहता को बयां करते हुए के.सी. आर्यन ने एक पेंटिंग बनाई थी।

अनुरोध...
ऐसी स्थिति भविष्य में भारत में पुनः पैदा न हो। इसलिए हिन्दुओं के मतांतरित भारतीय मुसलमानों को चाहिए वे अरबी संस्कृति/विभाजनकारी पहनावा, मदरसों व तब्लीगी जमातों का परित्याग कर अपने पूर्वजों की भारतीय संस्कृति को अपनावें।

हिंदू पूर्वजों के मतान्तरित भारतीय मुसलमानों को गैर-मुस्लिमों के प्रति ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, कपट, लड़ाई-झगड़ा, लूटमार, हत्या, बलात्कार व जिहाद संबंधित मध्ययुगीन आयतों को नकारने की जरूरत है, ताकि विभिन्न भाषा व धर्म के लोग भ्रातृभाव से मिल-जुल कर राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति करें। क्योंकि राष्ट्र, भाषा और धर्म से बड़ा है।

भारत के मजहब आधारित बँटवारे से नव-निर्मित इस्लामिक राज्य पाकिस्तान में विभाजन विभीषिकाओं की भयावहता को बयां करती एक पेंटिंग।

#विभाजनविभीषिकास्मृतिदिवस
#विभाजन_विभीषिका_स्मृति_दिवस
#विभाजनविभीषिकास्मृतिदिवस14अगस्त
#विभाजन_विभीषिका_स्मृति_दिवस_14_अगस्त

कैसे पिछड़ गये नीतीश कुमार के सबसे योग्य उत्तराधिकारी?:- विवेकानंद सिंह कुशवाहा(राजनीतिक विश्लेषक)राष्ट्रीय लोक मोर्चा क...
14/08/2025

कैसे पिछड़ गये नीतीश कुमार के सबसे योग्य उत्तराधिकारी?

:- विवेकानंद सिंह कुशवाहा(राजनीतिक विश्लेषक)

राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा आज अगर जदयू में होते तो न केवल वह खुद राजनीतिक रूप से अलग स्थिति में होते, बल्कि जदयू के भविष्य को लेकर जो खतरे के बादल मंडराने की बातें होती हैं, वह नहीं हो रही होतीं। नीतीश कुमार बिहार को आगे ले जाने में इतने लीन हो गये कि उन्हें अपनी पार्टी जदयू के सांगठनिक उत्कर्ष का ध्यान ही नहीं रहा। आज उनके बाद जदयू के जो सबसे बड़े चेहरे हैं, सभी जनाधार विहीन हैं। ललन सिंह और संजय झा को नीतीश कुमार के दाएं और बाएं राजनीतिक हाथ कहें तो गलत नहीं होगा। दोनों की अपनी राजनीतिक योग्यता व क्षमता है, लेकिन दोनों में से किसी के पास इतने वोट नहीं हैं कि नीतीश कुमार के बिना जदयू को दो कदम आगे तक ले जा सके।

इसके बावजूद, जदयू पर अभी प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से इन्हीं दोनों का सर्वाधिक नियंत्रण है। इनको लगता है कि जब जीतनराम मांझी जी का जदयू में भाग्य जाग सकता है, तो उनका क्यों नहीं? यही कारण है कि जदयू के मूल वोट आधार(लव-कुश, अतिपिछड़े) वाले वर्ग से जब भी कभी सेकेंड लाइन लीडरशिप को खड़ा करने के प्रयास हुए, उनको इन दोनों ने अपने-अपने स्किल से नीतीश कुमार के ऊपर ही चैलेंज साबित कर देने का प्रयास किया। इनके अलावा पटना में भी दो नेता हैं, जो नीतीश कुमार के बेहद करीब हैं। दोनों का बैकग्राउंड कांग्रेसी है। दोनों लोग बात करने के मामले में/सरकार का पक्ष रखने के मामले में(एडवोकेसी) बहुत ही सीजन्ड हैं। दिक्कत इन दोनों के साथ भी यह है कि इनका कनेक्ट पब्लिक की जगह पार्टी के नेता से है।

इनके अलावा जदयू के राष्ट्रीय महासचिव मनीष कुमार वर्मा खुद को जदयू कार्यकर्ताओं के बीच ले जाने की कोशिश में जरूर जुटे हैं, लेकिन लीडरशिप चार्म अब तक उनमें भी मिसिंग है। चूँकि, उनका अपना कोई राजनीतिक संघर्ष नहीं रहा है, जो कुछ है, वह ब्यूरोक्रेसी का अनुभव है। आरसीपी सिंह को लेकर जदयू वर्करों के जो अनुभव रहे हैं, वह मनीष वर्मा के लिए जदयू में नेता के रूप में स्थापित होने की राह के लिए रोड़े की तरह है। यही कारण है कि कुर्मी समाज के बीच से भी निशांत कुमार को राजनीति में लाने की माँग लगातार हो रही है।

हालांकि, जदयू को बिहार की एक राजनीतिक ताकत बनाये व बचाये रखने की सोच वाले चिंतक वर्ग के लोग यह अच्छे से समझते हैं कि नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री रहते अचानक निशांत कुमार का राजनीति में आगमन राजद और लालू प्रसाद यादव की राजनीति को वैलिडेट(वैधता) करने जैसा कदम होगा। इससे राजद और जदयू के बीच का अंतर समाप्त हो जायेगा। दो बार राजद के साथ सरकार बना कर नीतीश कुमार आधा वैलिडेशन तो उनको दे ही चुके हैं।

इन सभी लोगों के इतर 'उपेंद्र कुशवाहा' की राजनीति में हर वह तत्व मौजूद हैं, जो नीतीश कुमार की राजनीति में हैं। 'लोकलाज', 'सरल स्वाभाव' और 'सादा जीवन' दोनों के व्यक्तित्व को समरस बनाता है। उपेंद्र कुशवाहा को शायद इन्हीं गुणों के वजह से नीतीश कुमार ने तमाम बगावत के बाद अपनाया। चूँकि, दोनों के बीच राजनीतिक रूप से 'लव-हेट' रिलेशनशिप की स्थितियां बनती रही हैं। उन स्थितियों की तह में जायेंगे तो पायेंगे कि नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा में जितनी भी 'हेट रिलेशनशिप' की स्थितियां बनीं, उनके पीछे कोई-न-कोई तीसरा व्यक्ति जिम्मेदार रहा। आखिरी दफा उपेंद्र कुशवाहा के नीतीश कुमार से अलग होने की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। उपेंद्र कुशवाहा की सरलता और स्वाभिमानी स्वभाव उन्हें हर बार वहीं पहुँचा देता है, जहाँ खुद साबित करने की परीक्षा देनी होती है।

14 मार्च 2021 को जब उपेंद्र कुशवाहा जदयू में शामिल हुए तो सिर्फ वह नहीं, बल्कि उन्होंने अपनी पार्टी को भी विलोपित कर दिया। इससे उपेंद्र कुशवाहा के प्रति उन लोगों में नाराजगी पनपी, जिन्होंने उन पर भरोसा करके जदयू/राजद जैसी पार्टी को छोड़ उन्हें चुना था। दरअसल, उपेंद्र कुशवाहा को लगा कि इस कदम से वह नीतीश कुमार और जदयू के वर्कर का इतना विश्वास जरूर जीत पायेंगे कि नीतीश कुमार के बाद जदयू में नंबर दो की उनकी दावेदारी मजबूत हो सके। 2005 के विधानसभा चुनाव के समय उपेंद्र कुशवाहा, नीतीश कुमार के कमांडर-इन-चीफ (नेता प्रतिपक्ष) हुआ करते थे।

भले 2020 विधानसभा चुनाव में 99 सीटों पर चुनाव लड़कर उनकी पार्टी को कोई सीट नहीं मिला और महज 1.8 प्रतिशत वोट मिले, पर उनमें से 24 सीटें ऐसी रहीं, जहां उनके उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे और दर्जन भर सीट पर जदयू की हार की वजह बने। नीतीश कुमार ने भी उनके इस महत्व को समझा और जदयू ज्वाइन करते ही उनको पार्टी के केंद्रीय संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया गया और विधान परिषद की सदस्यता(मनोनीत) दी गयी। हालाँकि, वह पद हाथी के दांत से ज्यादा कुछ भी नहीं था।

उस समय आरसीपी सिंह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री थे। वह उपेंद्र कुशवाहा के जदयू में मिलन समारोह में शामिल नहीं हुए थे। बस साइन किया हुआ अपना लेटर भेज दिया था। उस दिन जदयू दफ्तर में एक अलग सी ताजगी का माहौल था। 2020 में 43 सीटों पर सिमट कर रह गयी जदयू के वर्कर एक अलग ही उत्साह से भरे थे।

ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा का जदयू में आगमन और उस मौके पर जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को संभाल रहे आरसीपी सिंह की अनुपस्थिति, ललन सिंह के लिए एक सियासी मौका बन गया। ललन सिंह की केंद्र में मंत्री बनने की इच्छा आरसीपी सिंह की वजह से अधूरी रह गयी थी। वह आरसीपी सिंह से अपना स्कोर सेटल करना चाहते थे।

आपलोगों को याद हो तो शुरू-शुरू में जब उपेंद्र कुशवाहा जदयू में शामिल हुए तो मॉर्निंग वाक करते हुए ललन सिंह(राजीव रंजन), उपेंद्र कुशवाहा के घर पहुँच जाते थे। मुझे कहने में कोई गुरेज नहीं कि उन्होंने कायदे से उपेंद्र कुशवाहा के कंधे को आरसीपी सिंह के खिलाफ इस्तेमाल किया। सरल हृदय वाले उपेंद्र कुशवाहा को उस समय लगा हो कि जदयू में नंबर-2 के पद के लिहाज से अरसीपी सिंह उनके लिए चुनौती बन सकते हैं, तो ललन सिंह की चिकनी बातों में फिसल गये हो।

उपेंद्र कुशवाहा की जदयू में एंट्री के चार महीने के अंदर 'एक व्यक्ति-एक पद' का हवाला देकर आरसीपी सिंह अध्यक्ष पद से हटा दिये गये और 31 जुलाई, 2021 को ललन सिंह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिये गये। ललन सिंह ने अध्यक्ष बनते ही नारा देना शुरू किया कि समता पार्टी के टाइम के कार्यकर्ताओं को सम्मान देना है और नम्बर एक पार्टी बनाना है। उपेंद्र कुशवाहा के सुर भी यही थे। इस बीच भाजपा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल सरकार पर लॉ एंड ऑर्डर से जुड़े सवाल उठाने लगे। भाजपा-जदयू के कुछ नेताओं के बीच बहसों का दौर शुरू हो गया था। जदयू की ओर से उपेंद्र कुशवाहा बढ़-बढ़ कर संजय जायसवाल से बहस कर ले रहे थे।

भाजपा को लेकर जदयू के भीतर माहौल तल्ख बनाने में ललन सिंह की अपनी भूमिका रही। जदयू के वर्करों को ऐसा एहसास कराया गया, जैसे आरसीपी सिंह ने भाजपा के साथ मिलकर 2020 वाला चिराग कांड किया हो। आरसीपी पर आरोप लगे कि जदयू के लिए फेबरेवल सीट लेने में उन्होंने कोताही बरती।

मौजूदा केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने ऐसा होम्योपैथी उपचार किया कि एक साल के भीतर जदयू में अरसीपी सिंह के खिलाफ माहौल बन गया। पार्टी में नंबर दो गिने जाने वाले आरसीपी सिंह की जगह खीरू महतो को जदयू राज्यसभा उम्मीदवार बना दिया गया। एक कुर्मी की जगह दूसरा भी कुर्मी ही था, तो ललन सिंह के इस दाँव को जदयू के कुर्मी वर्कर खुशी-खुशी हजम कर गये। बाकी जातियों के वर्कर के लिए भी गुस्सा होने जैसा कुछ खास था नहीं। यह नारा दिया गया कि जदयू झारखंड में विस्तार करेगी। अंतत: आरसीपी सिंह को न सिर्फ मंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा, बल्कि पार्टी छोड़नी पड़ी।

इधर उपेंद्र कुशवाहा ने यह बयान दिया कि नीतीश कुमार पीएम मैटेरियल हैं। इस बयान में भी मुंह उपेंद्र कुशवाहा का था, लेकिन ललन सिंह की अपनी पॉलिटिक्स छिपी थी। इन बयानों को जानबूझ कर दिया जाने लगा था, ताकि जदयू के भाजपा से अलग होने और महागठबंधन में शामिल होने को स्मूद दिखाया जाये। साथ ही यह संदेश महागठबंधन को दिया जाये कि नीतीश कुमार इस ओर पीएम बनने के उद्देश्य से आ रहे हैं।

इस तरह ललन सिंह ही वह मुख्य कड़ी बने, जिसने जदयू और राजद का दूसरी बार गठबंधन करवाया। इस फैसले से उपेंद्र कुशवाहा असहमत थे, क्योंकि नीतीश कुमार के सीएम से हटने पर तेजस्वी प्रसाद यादव के लिए अवसर बन रहा था।

जब नीतीश कुमार राजद के साथ सरकार बना रहे थे तो इस दौरान यह चर्चा हुई कि उपेंद्र कुशवाहा भी मंत्री बनाये जा सकते हैं। तभी पटना के होटल में जदयू के अधिकांश कुशवाहा नेताओं की एक बैठक हुई। इस मीटिंग के निर्देशक कोई और थे, जिन्होंने इन नेताओं के कान में भर दिया कि देखो, यह आया और तुमलोगों का हिस्सा खाने की तैयारी शुरू हो गयी। यह जदयू में रहा तो तुमलोगों को कौन पूछेगा? बाहरी बगावत से आसानी से निबटा जा सकता है, लेकिन घर के ही लोग जब आपके खिलाफ साजिश का हिस्सा बनें, तो निबटना ज्यादा मुश्किल हो जाता है।

इस तरह राजद-जदयू की पार्ट-2 की सरकार में उपेंद्र कुशवाहा को मंत्री नहीं बनाया गया। यदि वह मंत्री बन जाते तो नीतीश कुमार के साथ रहते और कनफूंकवा गिरोह को ज्यादा अवसर नहीं मिल पाता। इसके बाद भी उपेंद्र कुशवाहा का फोकस 2024 का लोकसभा चुनाव था। ललन सिंह हर दिन लालू प्रसाद यादव के लिए तरह-तरह के कसीदे गढ़ रहे थे। उन्हें सामाजिक न्याय का योद्धा बता रहे थे, ताकि मुंगेर के यदुवंशियों को अपने वोट बैंक में तब्दील कर सकें। पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह को वह आड़े हाथों ले रहे थे।

इसी बीच नीतीश कुमार बिहार की यात्रा कर रहे थे। उन्हें इन्हीं सज्जनों ने बताया कि ऊपर में तो राजद और जदयू का तो मेल हो गया है, लेकिन नीचे में हमारे वर्कर/समर्थकों में दूरी बनी हुई है। इस बात को समझते हुए एक दिन पत्रकारों से बात के क्रम में नीतीश कुमार ने तेजस्वी की ओर इशारा करते हुए यह बयान दे दिया कि मेरे बाद इसी को न संभालना है सबकुछ। इससे राजद प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह की इस बात को बल मिला, जिसमें वह कहते थे कि खरमास के बाद नीतीश कुमार दिल्ली की राजनीति में जायेंगे और तेजस्वी सीएम बनेंगे।

उपेंद्र कुशवाहा का माथा इसी के बाद ठनका कि भीतर से कोई साजिश चल रही है। वह इसके खिलाफ बयान देने ही लगे थे कि तभी एक नयी खबर मीडिया में प्लांट करवायी गयी कि उपेंद्र कुशवाहा 14 जनवरी 2023 के बाद बिहार सरकार में डिप्टी सीएम बनाये जा सकते हैं। जब इसको लेकर उपेंद्र जी से मीडिया ने पूछा तो ऐसी चर्चा है, आप क्या कहेंगे इस विषय पर और आपको क्या लगता है। उन्होंने कह दिया कि वह मठ खोलकर थोड़ी बैठे हैं या सन्यासी हैं? उन्होंने कहा कि यह चर्चा सुनकर अच्छा ही लग रहा है।

उपेंद्र जी के इस बयान से यह मैसेज गया कि उनकी भी इच्छा है। हो सकता है कि उन्होंने ही मीडिया में यह बयान प्लांट करवाया हो। तभी बिहार की यात्रा कर रहे सीएम नीतीश कुमार से जब मीडिया के लोगों ने सवाल पूछा कि क्या उपेंद्र कुशवाहा को डिप्टी सीएम बनाया जायेगा? तो नीतीश कुमार ने कहा कि पता नहीं यह बात कहां से आ गयी, फालतू बात है यह सब, ऐसा कह कर उन्होंने सवाल को खारिज कर दिया।

नीतीश कुमार के इस लहजे से उपेंद्र कुशवाहा को बुरा लगा। क्योंकि उनको पता था कि मीडिया में उन्होंने यह बात नहीं दी थी। उनको यह जरूर लगा कि भाजपा ने जैसे सम्राट चौधरी को विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष बनाया है, तो हो सकता है कि भाजपा के दांव का काउंटर करने के लिए नीतीश जी ऐसा सोच रहे हैं, लेकिन जदयू की ओर से उपेंद्र कुशवाहा के लिए रवैया सख्त होता गया। नाराज उपेंद्र कुशवाहा समझ चुके थे कि उनकी राजनीतिक हत्या की कोशिश चल रही है। रूटीन मेडिकल चेकअप के लिए वह अचानक दिल्ली एम्स में भर्ती हुए थे, तो बिहार बीजेपी के तीन नेताओं ने उनसे मुलाकात की। तभी स्पष्ट हो गया था कि उपेंद्र कुशवाहा जदयू छोड़ेंगे।

इसके बाद जब वह पटना लौटे तो मन बना चुके थे कि जदयू को छोड़ना पड़ा तो छोड़ देंगे, लेकिन इससे पहले उन्होंने हक-हिस्से की बात की। उपेंद्र कुशवाहा पर जदयू की ओर से चौतरफा हमले शुरू हो गये। इसी क्रम में 20 फरवरी 2023 को नौबत आयी कि उपेंद्र कुशवाहा को फिर जदयू छोड़ना पड़ा।

उपेंद्र कुशवाहा ने बयान दिया कि नीतीश जी पीएम मैटेरियल हैं, लेकिन अब वह पीएम नहीं बन पायेंगे। ललन सिंह अपने मिशन में कामयाब हो चुके थे। नीतीश कुमार को भी लग रहा था कि महागठबंधन के साथ वह पीएम उम्मीदवार बन ही जायेंगे, लेकिन एक साल के अंदर उनको समझ आ गया कि वह गलत ट्रैक पर हैं। दिसंबर, 2023 में सबसे पहले ललन सिंह से अध्यक्ष पद से इस्तीफा लिया गया।

फिर नीतीश कुमार खुद अध्यक्ष बने, दाएं की जगह बाएं हाथ की सक्रियता बढ़ गयी। यानी संजय झा की भूमिका बढ़ गयी। वह भाजपा-जदयू के सुलह के सूत्रधार बने। उपेंद्र कुशवाहा की बात सही सिद्ध हुई, नीतीश कुमार पीएम मैटेरियल होते हुए भी पीएम पद की रेस में न शामिल हो सके। हालाँकि, नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी से उपेंद्र कुशवाहा के लिए ही फिर से मुश्किल स्थिति बन गयी, क्योंकि एक ही प्रकृति के दो नेता हों, तो जूनियर का राजनीतिक महत्त्व स्वत: कम हो जाता है।

उपेंद्र कुशवाहा को एनडीए में रहकर 2024 में एकमात्र लोकसभा सीट मिली, जिस पर घात(राजपूत समाज द्वारा उपेंद्र कुशवाहा की बजाय पवन सिंह को वोट) की वजह से वह हार गये। अगर सामाजिक स्तर पर प्रतिघात(भाजपा-जदयू के राजपूत उम्मीदवारों वाले सीटों पर कुशवाहा समाज द्वारा राजद-कॉंग्रेस को वोट) न हुआ होता तो आज उपेंद्र कुशवाहा राज्यसभा सदस्य भी नहीं बन पाये होते। इसके बावजूद कि उनकी अपनी पार्टी है, लेकिन कल भविष्य में सीएम की कुर्सी तक पहुंचने के लिए जैसे संगठन की जरूरत होती है। वह उपेंद्र कुशवाहा जी के पास नहीं है। वरना बोल-चाल, लोकलाज का ख्याल और मुद्दों की समझ के मामले में नीतीश चाचा के सबसे योग्य उत्तराधिकारी बिहार में उपेंद्र कुशवाहा ही हैं, लेकिन शातिर नेताओं की अढाईया में फंस कर वह इस रेस में फिलहाल बहुत पिछड़ गये हैं।

(नोट:- प्रस्तुत विचार लेखक का निजी सोच और समझ है।)

13/08/2025

प्रशंसनीय एवं उत्कृष्ट कार्यों के लिए जयनगर के 05 हस्तियों को किशोर कौशल सम्मान...

जयनगर(मधुबनी); 14-08-2024...

जयनगर की सुप्रसिद्ध सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था "किशोर कला मन्दिर" द्वारा जयनगर अनुमंडल क्षेत्र की पाँच हस्तियों को अपने-अपने क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्यों के लिए किशोर कौशल सम्मान से सम्मानित करने की घोषणा की गई है। संस्था के सचिव सुमन शर्मा ने इस संबंध में पत्र जारी कर सम्मानित होने वाले व्यक्तियों का नाम, उनका कार्यक्षेत्र, विशिष्टता इत्यादि का उल्लेख करते हुए 78वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आयोजित होने वाले सम्मान समारोह में संस्था के सदस्यों सहित जयनगरवासियों से शामिल का निवेदन किया है।

किशोर कला मन्दिर जयनगर द्वारा पहली बार इस तरह इस सम्मान की घोषणा की गई है और अब आगामी वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों में प्रशंसनीय और उत्कृष्ट कार्य करने वालों को सम्मानित करने का निर्णय लिया गया है। वर्ष 2024 में प्रथम कौशल किशोर सम्मान के लिए जयनगर निवासी अंजनी कुमार सिंह को शिक्षण सेवा के लिए, जयनगर के इन्दर जी को उच्चस्तरीय सुगम संगीत गायन के लिए, जयनगर के ही ईश्वर दयाल प्रसाद को सुमधुर भजन गायन एवं संगीत वादन में विशिष्ट कुशलता के लिए, जयनगर के कमलाबाड़ी ग्राम निवासी मोहन सिंह को उन्नत कृषि एवं बागवानी में अनुकरणीय कार्यों के लिए तथा जयनगर निवासी मुरारी प्रसाद 'अक्लू' को चित्रकला एवं सुन्दर-आकर्षक लिखावट हेतु चयनित कर सम्मानित करने का निर्णय संस्था की कमिटी द्वारा लिया गया है। सभी चयनित लोगों को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर 15 अगस्त 2024 को जीवनदीप अस्पताल जयनगर परिसर में आयोजित समारोह में सम्मानित किया जायेगा। जानकारी के लिए बता दें कि जीवनदीप अस्पताल, बेला(जयनगर) का संचालन किशोर कला मन्दिर संस्था द्वारा ही किया जाता है।

जीवनदीप अस्पताल जयनगर के संचालक-सह-परियोजना निदेशक और साहित्य तथा कला क्षेत्र में मजबूत दखल रखने वाले साहित्यकार-चित्रकार बिमल मस्करा ने किशोर कौशल सम्मान के संबंध में बताया कि यह 2024 में यह सम्मान नियमित रूप से पहली बार दिया जा रहा है और आगामी वर्षों में जयनगर अनुमंडल क्षेत्र निवासियों और यहाँ से जुड़े प्रवासियों की अभिरुचियों के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन हेतु सम्मानित किया जा सकता है। पूर्व में दो-तीन अवसरों पर भी संस्था द्वारा विशिष्ट प्रतिभाओं को सम्मानित किया गया है। उन्होंने जयनगर अनुमंडल वासियों से सम्मान समारोह में शामिल होने की अपील की है। जीवनदीप चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ. मनोहर कुमार जायसवाल और समाजसेवी अरुण जैन ने भी स्वतंत्रता दिवस-सह-सम्मान समारोह में शामिल होने का निवेदन किया है।

बिहार का गौरव...मिथिला की शान...मधुबनी का परिचय...जयनगर की सांस्कृतिक पहचान...बिहार के मधुबनी जिले के जयनगर में भारत-नेप...
13/08/2025

बिहार का गौरव...
मिथिला की शान...
मधुबनी का परिचय...
जयनगर की सांस्कृतिक पहचान...

बिहार के मधुबनी जिले के जयनगर में भारत-नेपाल सीमा से महज तीन किमी की दूरी पर मां दुर्गे की ये भव्य एवं सुंदर मंदिर स्थापित है। मंदिर की ऊंचाई 118 फीट है। पहले यह बिहार में सबसे ऊंचा दुर्गा मंदिर के नाम से यह मंदिर जाना जाता था। शक्तिपीठ से विख्यात मां दुर्गे की यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है।

नेपाल से भी पूजा करने आते हैं भक्त...
शहर से लगा हुआ बस्ती पंचायत स्थित पौराणिक एवं ऐतिहासिक दुर्गा मंदिर का मनमोहक दृश्य, श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। नेपाल समेत सूबे के विभिन्न क्षेत्रों से मां दुर्गे की दर्शन एवं पूजा अर्चना हेतु श्रद्धालु मंदिर प्रांगण में पहुंचते रहे हैं।

प्रतिदिन होती है पूजा-अर्चना एवं आरती...
नवरात्र में शाम में होने वाली महाआरती श्रद्धालुओं के लिए आकर्षक का केंद्र बना है। दूर दराज से श्रद्धालु यहां आकर महाआरती में शामिल होते हैं। बच्चे बूढ़े जवान सभी हाथ जोड़े मां की आराधना में मग्न हुए डूबे रहते हैं। वैसे तो इस मंदिर में प्रतिदिन सुबह शाम विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना एवं आरती की जाती है, लेकिन नवरात्र की महाआरती श्रद्धालुओं के लिए विशेष होता है। सब की मुरादें पूरी करने वाली मां दुर्गे की मंदिर में बारह मास शादी ब्याह, मुंडन, संस्कार एवं धार्मिक अनुष्ठान होते रहते हैं। साल में दो बार मां दुर्गा की भव्य पूजा की जाती है। आसिन एवं चैती दुर्गा पूजा सदियों से होती रही है। मां की पट खुलते ही मंदिर प्रांगण में छागरों की बली दी जाती है। हजारों की संख्या में छागर की बली चढ़ाई जाती है।

शंकराचार्य ने कराई थी प्राण प्रतिष्ठा...
3 जून 2004 को पूज्य पाद्य गोबर्धन पीठाधीश्वर स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती महाराज ने मंदिर के गर्व गृह में मां दुर्गे, मां सरस्वती, मां काली, मां लक्ष्मी, गणेश, मां काली समेत अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाओं का प्राण प्रतिष्ठा वैदिक मंत्रोचारण के साथ विधि विधान के साथ किया था। इससे पूर्व प्राकृतिक खर, मिट्टी, भूसा से कुशल कारिगरों के द्वारा प्रतिमा का निर्माण करायी जाती थी। प्राकृतिक शुद्धिकरण का ख्याल से मंदिर कमेटी ने मंदिर में संगमरमर की प्रतिमा का प्राण प्रतिष्ठा करने का निर्णय लिया। मां दुर्गे के पास अक्सर कबूतर बैठी होती हैं, जिन्हें दर्शन कर श्रद्धालु धन्य हो जाते हैं।

(नोट:- बिना कन्टेंट क्रेडिट दिये स्क्रिप्ट कॉपी कर चोरी करने वाले डिजिटल फ्रॉड और चोरों से सावधान)

13/08/2025
जयनगर के निजी कोचिंग राकेश मैथेमेटिक्स क्लास के राकेश कुमार यादव का एक लड़की के साथ अभद्र व्यवहार और अश्लील वीडियो वायरल...
13/08/2025

जयनगर के निजी कोचिंग राकेश मैथेमेटिक्स क्लास के राकेश कुमार यादव का एक लड़की के साथ अभद्र व्यवहार और अश्लील वीडियो वायरल मामले में तीन दिन बाद दर्ज हुआ एफआईआर, जयनगर थाना कांड संख्या- 276/25 में कई धाराओं में दर्ज केस की जाँच का जिम्मा सब इंस्पेक्टर हीरामणि को। थाना में किये गए शिकायत के आधार पर अश्लील वीडियो में दिख रहे कोचिंग संचालक-सह-शिक्षक राकेश कुमार यादव के अतिरिक्त मकान मालिक कुलदीप सिंह और तीसरे व्यक्ति सोनू चौधरी समेत बिना ब्लर किये वीडियो अपलोड करने वाले सोशल मीडिया यूजर्स के बारे में कार्रवाई करने की माँग की गई है।

विस्तार से पूरा मामला समझने के लिए देखिये-पढ़िये यह एफआईआर कॉपी।

(निजता की सुरक्षा हेतु शिकायतकर्ता और उसके परिजनों का नाम, पता, मोबाईल फोन नंबर इत्यादि धुँधला कर दिया गया है।)

जयनगर के भेलवा चौक के पास निजी कोचिंग संस्थान राकेश मैथेमेटिक्स क्लास चलाने वाले राकेश कुमार यादव का अपनी ही छात्रा के स...
10/08/2025

जयनगर के भेलवा चौक के पास निजी कोचिंग संस्थान राकेश मैथेमेटिक्स क्लास चलाने वाले राकेश कुमार यादव का अपनी ही छात्रा के साथ अश्लील हरकत करते और यौन संबंध बनाते वीडियो वायरल हो रहा है। 01 मिनट और 45 सेकेंड के वायरल वीडियो में कोचिंग संचालक राकेश कुमार अवैध संबंध बनाते हुए दिख रहा है। वीडियो एसबेस्टस वाले रूम का है। वीडियो लड़की ने खुद बनाकर वायरल किया है। हालांकि यह पता नहीं चला है कि ऐसी अशोभनीय हरकत वह कबसे कर रहा था। वीडियो वायरल होने के बाद राकेश कुमार की गिरफ्तारी और जेल भेजने की माँग हो रही है। कोचिंग को बंद कर इसे कड़ी कार्रवाई की माँग करते हुए सोशल मीडिया पर लोग कमेंट कर रहे हैं और उक्त शिक्षक के हरकत की निंदा कर रहे हैं। यह शिक्षक तीन साल पहले अक्टूबर 2022 में भी ऐसी ही घटना के मामले में जेल जा चुका है और कोचिंग में भी तोड़फोड़ हुआ था, उस समय लड़का के साथ अवैध संबंध का आरोप लगा था और अब लड़की के साथ यौन दुराचार करते हुए वीडियो वायरल हो गया है।

इस मामले में अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है और अब इस दुराचारी, यौनाचारी, पापी, दुष्कर्मी शिक्षक के पास किसी भी लड़की को भेजने से पहले अभिभावक सोचेंगे और संकोच करेंगे।

तस्वीर:- वायरल हो रहे अश्लील और आपत्तिजनक वीडियो का स्क्रीनशॉट(लड़की की निजता के लिए पहचान छुपा दिया गया है और नाम, पता इत्यादि गोपनीय रखा गया है।)

10/08/2025

जयनगर के एक निजी कोचिंग संचालक का अभद्र वीडियो वायरल होने की बात कही जा रही है। मामले से जुड़ा अपडेट, प्रमाण इत्यादि साझा कर सकते हैं। मामला क्या है, कब और कहाँ का है? लेटेस्ट अपडेट टेलीग्राम पर साझा कर सकते हैं।

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