27/09/2025
Happy Birthday Comrade❣️
डियर कॉमरेड,
तुम्हारा जन्म दिन आ गया है और हर साल की तरह इस बार भी तुम बहुत याद आए। रम के पेग अकेले लगाने की तमन्ना नहीं है लेकिन तुम्हारी ग़ैर मौजूदगी में कोई और चारा भी नहीं है। उम्मीद है बिस्मिल,अशफ़ाक, राजगुरु, सुखदेव, बटुकेश्वर और आज़ाद के साथ कल रात अच्छी पार्टी हुई होगी। तुम से तो यह भी नहीं पूछ सकता कि जन्नत कैसी होती है, तुम तो नास्तिक हो। क्या पता तुम इंद्र की सभा में भी किसी दिन बम फेंक आओ। पिछले साल तुम्हारी जेल डायरी मिली थी, यार गज़ब की किताबें पढ़ते हो, और ये बताओ बिना इंटरनेट के इतनी किताबें मिल कैसे जाती थीं तुम्हें? लाइब्रेरियन को कैसे मना लेते थे? यहाँ तो अब न लाइब्रेरियन है न लाइब्रेरी है। ख़ैर छोड़ो! आज तो कॉमरेड, तुम्हारा जन्म दिन है, कुछ तुम्हारी बात करता हूँ। मुझे लाहौर का हाल चाल मिला, कुछ दोस्त सरहद उस पार बनाए हैं मैंने, तुम्हारा घर लायलपुर बिलकुल महफूज़ है वहाँ और लाहौर यूनिवर्सिटी भी, कभी आना तो साथ में पंजाब घूमेंगे। खेतों में बंदूक़ वाली फ़सल अभी भी बाक़ी है लेकिन गुज़रे दिनों खेतों में कुछ काले कानून उग आए थें, उनको साफ़ किया है। बिस्मिल से कहना की गोरखपुर उनको रोज़ याद करता है, आज़ाद कंपनी गार्डन में अगर कभी टहलने आएँ तो बता देना मैं भी सुबह जल्दी उठ कर सैर पर निकल पडूँगा। ख़ैर! तुम को एक नई बात बताता हूँ, तुम हिंदुस्तान से प्यार करते हो लेकिन अब लोग हिंदुस्तान बोलने में शर्म महसूस कर रहे हैं, कुछ बुरा हो गया है तुम्हारे हिंदुस्तान के साथ लेकिन घबराने की ज़रूरत नहीं है कॉमरेड, हम हैं ना, लड़ रहे हैं, तुम्हारे जज़्बे के साथ। तुम्हारा ड्रीम लैंड हमारा होम लैंड है ।
पिछली बार तुमने पूछा था गांधी के हत्यारों का क्या हुआ?
कॉमरेड, ये सवाल तुम न ही पूछते तो अच्छा था। तुम्हारा तहरीर किया ग़ालिब का शे'र याद आया -
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे
अच्छा एक बात तो बतानी ही रह गई है, मैंने पिछले साल फिलोसॉफी पढ़नी शुरू की है, तुम्हारी तरह किताबों का शौक़ पाल लिया है । कुछ कुछ लिखता भी रहता हूँ, अगर कभी ग़ालिब और मीर से फुरसत मिले तो काफ़ को मौक़ा देना, तुमको अपनी ग़ज़लें सुनाने का बहुत मन है। इस सिलसिले में पिछले हफ़्ते मैंने एक ख़ाब भी देखा है, लाहौर यूनिवर्सिटी में किसी शाम तुम एक जो़रदार भाषण देकर सीढ़ियों से उतर रहे हो और दोस्तों ने तुमको घेर रखा है, तुम मेरे साथ कैम्पस से बाहर आते हो और हम किसी खुफ़िया जगह पे ओल्ड मॉन्क के पेग लेकर बैठे हैं तुम ग़ालिब की ग़ज़ल सुना रहे हो और आज़ाद दाद दे रहे हैं। पंडित शराब की बात पर बिस्मिल हो गए हैं। और फिर तुम मुझसे कहते हो काफ़ कोई ग़ज़ल सुनाओ जानी।
कॉमरेड तुम याद आते हो, बेशुमार याद आते हो ।
तुम्हारा जानी
काफ़