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यूपी में सियासी अखाड़े के दो बड़े चेहरे हैं - योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव। जगजाहिर है कि यूपी में योगी का चेहरा अब मोदी ...
24/07/2025

यूपी में सियासी अखाड़े के दो बड़े चेहरे हैं - योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव। जगजाहिर है कि यूपी में योगी का चेहरा अब मोदी से कम नहीं। दूसरी ओर समाजवादी पार्टी भी अब मुलायम सिंह के दौर और तौर दोनों से पूरी तरह बाहर निकल कर अखिलेश के हाथ में है।

जहाँ योगी के पास राम मंदिर की बढ़त है, वहीं सपा के पास जातीय समीकरण साधने का ‘सियासी एडवांटेज’। मुख्यमंत्री रहते हुए योगी जी पर किसी तरह के व्यक्तिगत आरोप नहीं लगे। यानी योगी सियासत की काजल कोठारी में रहकर भी बेदाग़ हैं। वहीं अखिलेश भी आलोचना के लिए संवैधानिक पद की गरिमा और औपचारिक शिष्टाचार कभी नहीं भूले और कभी व्यक्तिगत प्रहार नहीं किया। ये शिष्टाचार अक्सर विधानसभा में दिखता रहता है जब दोनों नेता एक दूसरे की आलोचना काफी हल्के-फुल्के मूड में करते दिखते हैं। मुलायम सिंह के जीवित रहते भी योगी अक्सर उनका हालचाल लेने जाया करते थे।

नफ़ा-नुकसान में भी दोनों दलों का पलड़ा बराबर है। भाजपा, सपा को अपराध के मुद्दे पर घेरती है। सपा भी लोकसभा चुनाव में अयोध्या सीट पर भाजपा की करारी हार को भुनाए बिना नहीं छोड़ती। भाजपा, सपा की मुस्लिम समर्थक छवि को हिन्दुओं के बीच ‘माइनस प्वाइंट’ के रूप में पेश करती है, तो सपा, योगी आदित्यनाथ का भाजपा केन्द्रीय नेतृत्व से चल रहे मनमुटाव का फायदा उठाने से नहीं चूकती।

दोनों नेता यूपी की बागडोर संभल चुके हैं। इनके फैसलों के अपने नफा-नुकसान हैं, जिनका उपयोग दोनों एक दूसरे के खिलाफ करेंगे। सबसे बड़ा ‘डिसाइडिंग फैक्टर’ ये होगा कि सपा, इंडिया गठबंधन के साथ चुनाव लड़ती है या उसके बिना। राज्य और देश के चुनाव की रणनीतियां और उसके मुद्दों की प्रकृति बिलकुल अलग होती है। भले ही आम चुनाव में गठबंधन का जबरदस्त फायदा सपा को मिला हो लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश-राहुल का गठबंधन पूरी तरह फ्लॉप ही रहा, ये भी नहीं भूलना चाहिए।

चुनावी शतरंज पर शह और मात के इस खेल में ऊंट अभी और कितने करवट बैठेगा, ये तो आने वाला वक़्त बताएगा लेकिन आप सियासत पर ऐसे तथ्यात्मक विश्लेष्ण पढने के लिए हमारे पेज से जुड़े रहें।
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नेता, जनता को चूना लगाने के लिए जाने जाते हैं लेकिन छत्तीसगढ़ में सूरज पश्चिम से निकल आया। यहाँ के कोंडागांव जिले में काज...
24/07/2025

नेता, जनता को चूना लगाने के लिए जाने जाते हैं लेकिन छत्तीसगढ़ में सूरज पश्चिम से निकल आया। यहाँ के कोंडागांव जिले में काजल जोशी नाम की एक महिला ने खुद के आरएसएस में एक अहम पद पर होने का दावा करते हुए जिले के वरिष्ठ भाजपा नेता संतोष कटारिया को राज्य खनिज निगम का चेयर पर्सन बनाने का झांसा दिया और नेता जी से इस नाम पर कई किश्तों में कुल 41 लाख रूपये ठग लिए। नेता जी ठग लिए गये हैं, इसका अंदाजा उन्हें तब हुआ जब निगम के पदाधिकारियों की सूची निकली और उसमें नेता जी को अपना नाम नहीं मिला। उसके बाद देर न करते हुए नेताजी ने निकटतम थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई है।
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पूर्व उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ सत्ता की शक्ति के इकलौते शिकार नहीं। सियासत किसी की सगी नहीं। समय बड़ा बलवान है। आज जो तुर...
23/07/2025

पूर्व उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ सत्ता की शक्ति के इकलौते शिकार नहीं। सियासत किसी की सगी नहीं। समय बड़ा बलवान है। आज जो तुरूप का इक्का हो, वो कल गुलाम भी हो सकता है। सत्ता की शक्ति के आगे किसी की नहीं चली। ये नैतिक रूप से ग़लत है पर राजनीति में नैतिकता वर्जित है।

बुज़ुर्ग बाप को अगर बेटा घर से निकाले, तो समाज उसे हीन दृष्टि से देखता है क्योंकि समाज में नैतिकता अभी भी जिंदा है। लेकिन भाजपा के संस्थापक सदस्य लालकृष्ण आडवानी का मोदी युग शुरू होते ही ‘साइड-लाइन’ किया जाना ऐसा था जिसकी कल्पना खुद उनके विरोधियों ने कभी सपने में भी नहीं की होगी। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सियासत में नैतिकता को मरे अरसा हो चुका है।

वसुंधरा राजे सिंधिया कभी राजस्थान में भाजपा का सबसे बड़ा चेहरा हुआ करती थीं, आज किसी को नहीं पता कि वो हैं कहाँ। जिस तरह से प्रेस कांफ्रेंस में उन्हें नये मुख्यमंत्री भजनलाल के नाम की पर्ची पकड़ाई गयी थी, उससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि पार्टी में शक्ति का स्रोत कौन है? उसके बाद से वसुंधरा राजे का कद बिलकुल ही काट दिया गया।

यही हाल मेनका गांधी का है। मेनका अटल बिहारी वाजपेयी कैडर की नेता थीं। मोदी युग में मेनका की शक्ति क्षीण होती चली गयी और आज की राजनीति में इनकी सक्रियता ना के बराबर है। वरना कौन सोच सकता था कि एक समय देश के सबसे पावरफुल लीडर की पत्नी का सियासत में ऐसा हाल होने वाला है।

हाल ही में सत्यपाल मालिक की कहानी भी उतार-चढ़ाव वाली रही। राज्यपाल रहते हुए भी, उनको पार्टी लाइन को ना ‘फ़ॉलो’ करना काफी भारी पड़ा। कुल मिला के सियासत का चरित्र उस नागिन सा है, जिसे अपने ही अण्डों को खाने से परहेज़ नहीं होता।
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यूँ ही नहीं कहा जाता कि संसद का एक-एक मिनट क़ीमती होता है। एक रीसर्च के मुताबिक़ संसद सत्र के दौरान प्रतिदिन का ख़र्च लगभग ...
22/07/2025

यूँ ही नहीं कहा जाता कि संसद का एक-एक मिनट क़ीमती होता है। एक रीसर्च के मुताबिक़ संसद सत्र के दौरान प्रतिदिन का ख़र्च लगभग 9 करोड़ रूपये का आता है। इस हिसाब से प्रति मिनट का ख़र्च लगभग ढाई से तीन लाख रूपये के क़रीब बैठता है। विपक्ष सरकार पर जनता के टैक्स के पैसों को अपने विज्ञापन में प्रयोग करने के गंभीर आरोप समय समय पर लगाता रहता है। विपक्ष से कोई ये पूछे कि क्या ये जनता की खून-पसीने की कमाई के पैसे नहीं हैं? इसका हिसाब कौन देगा ?
Bharatiya Janata Party (BJP) Indian National Congress
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कल संसद सत्र के पहले दिन की कार्यवाही में भाग लेने के बाद राज्यसभा के सभापति और उप-राष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने अपने पद से इ...
22/07/2025

कल संसद सत्र के पहले दिन की कार्यवाही में भाग लेने के बाद राज्यसभा के सभापति और उप-राष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने अपने पद से इस्तीफ़ा देकर सबको चौका दिया। अपने इस्तीफे से वो राजनीतिक विश्लेषकों के लिए के लिए अच्छा खासा काम छोड़ गये हैं। अपने त्यागपत्र में आधिकारिक रूप से तो उन्होंने स्वास्थय कारणों का हवाला दिया है पर अन्दर की बात कुछ और है जिसको लेकर अफवाहों का बाज़ार गर्म है।

पहले तो जगदीप धनकड़ ने अपने पूरे कार्यकाल के दौरान बयान देने के अलावा कोई दूसरा उल्लेखनीय काम नहीं किया। अपने बयानों से वो लगातार सरकार पर बोझ बनते जा रहे थे, सो अलग। इसके अलावा उन पर ये भी आरोप लगाए जाते रहे हैं कि उन्होंने अपने पद की गरिमा का भी ख्याल नहीं किया। कई मौकों पर वो प्रधानमंत्री के सामने हाथ जोड़े खड़े दिखाई दिए। बाद में सफाई भी दी कि उनका किसी से भी मिलने का स्वाभाविक शिष्टाचार यही है। खैर इसके अलावा वो राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान समाजवादी पार्टी की सांसद जया बच्चन को डांट कर भी कई दिनों तक सुर्ख़ियों में बने रहे थे। फिर इसी साल अप्रैल में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के सम्बन्ध में भी तल्ख़ टिप्पणी करते हुए कहा था कि सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपतियों को आदेश नहीं दे सकती। ऐसे में एक संवैधानिक पद पर होने के बावजूद वो सरकार के लिए परेशानी का सबब बन रहे थे। इस कारण विपक्ष लगातार आरोप लगा रहा है कि ये इस्तीफ़ा सरकारी दबाव में उनसे लिया गया है।

ये भी हो सकती है वजह

कल मानसून सत्र के पहले दिन प्रश्नकाल के दौरान राज्यसभा में विपक्ष की टोका-टोकी से परेशान होकर जे.पी. नड्डा ने कांग्रेस नेताओं पर टिप्पणी कर कहा था कि “जो मैं बोल रहा हूँ, बस वही रिकॉर्ड में जाएगा, जो आप बोल रहे हैं वो सब नहीं जाएगा।” सही मायनों में देखें तो ये निर्णय कि क्या रिकॉर्ड में जाएगा और क्या नहीं, ये सांसदों के अधिकार क्षेत्र से बाहर होता है। माना जा रहा है कि ये बात धनखड़ साहब को नागवार गुजरी। गौरतलब है कि इसके बाद उन्होंने बीएसी की दो बैठकें भी बुलाई।

कौन होगा उत्तराधिकारी

धनखड़ जी के इस्तीफे के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर कयास लगाए जाने शुरू हो गये हैं। चर्चा ये भी है कि मौके की नज़ाकत का फायदा उठाने के लिए भाजपा किसी कांग्रेसी नाम को उपराष्ट्रपति के रूप में प्रस्तावित कर सकती है। बताने की ज़रुरत नहीं है कि इस समय कौन सा कांग्रेसी भाजपा के सबसे करीब है। ये नाम गुलाम नबी आज़ाद या शशि थरूर का हो, तो हैरान ना होइएगा।
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ये तो होना ही था ! उम्मीद के मुताबिक ही संसद के मानसून सत्र के पहले दिन की शुरुआत काफी हंगामेदार रही। उम्मीद थी कि विपक्...
21/07/2025

ये तो होना ही था !

उम्मीद के मुताबिक ही संसद के मानसून सत्र के पहले दिन की शुरुआत काफी हंगामेदार रही। उम्मीद थी कि विपक्ष ऑपरेशन सिन्दूर को लेकर हंगामा करेगा और वो उम्मीदों पर 16 आने खरा उतरा।

आप जावाब चाहते हैं, अच्छी बात है। पर अगर आप कान बंद कर के बस चिल्लाते रहेंगे तो जवाब आपको सुनाई कैसे देगा? इस तरह से तो नहीं लगता कि विपक्ष की मंशा किसी प्रकार की सार्थक चर्चा की है। अगर विपक्ष को सीजफायर में ट्रंप की मध्यस्थता खल रही है तो बेशक जवाब मांगिये लेकिन जब जवाब दिया जाए तो उसे धीरज के साथ सुनना भी आना चाहिए। पर इतिहास गवाह है कि विपक्ष की कोशिश तो बस हंगामा खडा करने की होती है, इसकी किसको पड़ी है कि सूरत बदले।

फिर ये सवाल लाज़मी हो जाता है कि क्या विपक्ष के लिए सियासत देशहित से भी ऊपर होती है। आपकी इस बारे में क्या राय है ? कमेन्ट में हमें बताएं।
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ED की टाइमिंग पर हमेशा सवाल उठते हैं। ED क्यों अक्सर चुनावी मौसम में ही फुल फॉर्म में आती है। ऊपरवाला जाने।Vishnu Deo Sa...
19/07/2025

ED की टाइमिंग पर हमेशा सवाल उठते हैं। ED क्यों अक्सर चुनावी मौसम में ही फुल फॉर्म में आती है। ऊपरवाला जाने।
Vishnu Deo Sai Bjp Chhattisgarh
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छत्तीसगढ़ की सियासत का फ़िल्मी ड्रामा। पूर्व मुख्यमन्त्री भूपेश बघेल के बेटे को जन्मदिन के दिन रिमांड पर ले गयी पुलिस। 2 ह...
18/07/2025

छत्तीसगढ़ की सियासत का फ़िल्मी ड्रामा। पूर्व मुख्यमन्त्री भूपेश बघेल के बेटे को जन्मदिन के दिन रिमांड पर ले गयी पुलिस। 2 हजार करोड़ रूपये के शराब घोटाले के आरोप में ED ने बघेल के घर 7 घंटे की छापेमारी के बाद उठाया ये कदम।
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ये बात जगजाहिर है कि भाजपा की लगाम अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हाथों में रहती है। भाजपा कोई भी फैसला आर...
17/07/2025

ये बात जगजाहिर है कि भाजपा की लगाम अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हाथों में रहती है। भाजपा कोई भी फैसला आरएसएस की मर्ज़ी के बिना नहीं कर सकती। ये बात भाजपा के अलवा हर कोई मानता है। भाजपा अध्यक्ष कौन होगा ये फैसला भी कमोबेश इसी वजह से अधर में लटका हुआ है। पुख्ता सूत्रों के हवाले से खबर ये है कि भाजपा ने दो नाम आरएसएस को भेजे हैं। ये नाम केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान और भूपेंद्र यादव के हैं, जो कि अमित शाह के करीबी माने जाते हैं। पर आरएसएस इन नामों पर राज़ी नहीं हो रहा। आरएसएस अभी से मोदी का उत्तराधिकारी खोजने के मिशन में जुटना चाहता है, जिसके लिए वो मजबूत नेतृत्व चाहता है।

बात केवल दिल्ली पर ख़त्म नहीं होती, लखनऊ में भी भाजपा अध्यक्ष की कुर्सी खाली है। इसकी वजह योगी आदित्यनाथ और अमित शाह में सहमति का ना बन पाना है। जिस नाम को योगी चाहते हैं उस पर केन्द्रीय नेतृत्व राज़ी नहीं हो रहा और केन्द्रीय नेतृत्व के भेजे गये नाम से योगी नहीं सहमत। केन्द्रीय नेतृत्व उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ से बैर लेने के मूड में बिलकुल नहीं होगा, वो भी तब, जब उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं।
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ना सिर ढकने को छत न पास में रोज़गार क्या करे जनता जब सिस्टम ही बीमारये है विधानसभा में खुद मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की ...
17/07/2025

ना सिर ढकने को छत न पास में रोज़गार

क्या करे जनता जब सिस्टम ही बीमार

ये है विधानसभा में खुद मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की स्वीकारोत्ति। पिछले दो साल से उन्हीं की विधानसभा में नहीं हुआ है एक भी प्रधानमंत्री आवास का आवंटन। हो सकता है कि उस विधानसभा में सभी लोग इतने समृद्ध हों कि किसी को प्रधानमंत्री आवास की ज़रुरत ही ना हो। क्या ऐसा ही है ? आप बताएं ?

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