10/07/2025
गुरु पूर्णिमा पर्व का उदेश्य
गुरु के बिना ज्ञान अधूरा है और शिष्य के बिना गुरु भी।
महाभारत , अमर कहानियां रची गईं, जहाँ गुरु और शिष्य ने मिलकर इतिहास बदल दिया। जैसे
द्रोणाचार्य और अर्जुन की कथा-
महाभारत में जब गुरु द्रोणाचार्य ने अपने शिष्यों को धनुष विद्या सिखाई, तब उन्होंने अर्जुन में कुछ अलग ही प्रतिभा देखी।
अर्जुन की लगन ने द्रोणाचार्य को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने अर्जुन को ‘सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर’ बनाने का प्रण लिया।
कहते हैं, एक रात अर्जुन ने अंधेरे में भोजन करते हुए महसूस किया कि अभ्यास में कोई समय नहीं देखना चाहिए।
उसी दिन से अर्जुन ने रात में भी अभ्यास करना शुरू कर दिया।
गुरु द्रोणाचार्य ने अर्जुन को बड़ा योद्धा बनाया,
हम बात करें एकलव्य की तो कथा के अनुसार -
एकलव्य, जिसने गुरु द्रोणाचार्य को अपना गुरु माना, बिना उनसे कोई शिक्षा पाए।
एकलव्य ने मिट्टी की मूर्ति बनाकर खुद को धनुर्विद्या में निपुण कर लिया।
जब द्रोणाचार्य ने गुरु दक्षिणा में उसका अंगूठा मांग लिया।
एकलव्य ने बिना सवाल किए अपना अंगूठा काटकर चढ़ा दिया।
यह त्याग दिखाता है कि सच्चा शिष्य अपनी श्रद्धा से भी गुरु को समर्पित होता है।
वही कर्ण और परशुराम की कथा-
महाभारत का तीसरा अनमोल गुरु-शिष्य संबंध है।
कर्ण जन्म से क्षत्रिय थे लेकिन उन्होंने ब्राह्मण बनकर परशुराम से शस्त्र विद्या सीखी।
परशुराम ने कर्ण को अपना सर्वश्रेष्ठ शिष्य माना,
लेकिन जब उन्हें कर्ण के असली वंश पता चला, तो उन्होंने कर्ण को श्राप दे दिया कि सबसे जरूरी समय पर वह अपनी विद्या भूल जाएगा।
कर्ण ने यह श्राप भी गुरु की आशीर्वाद मानकर स्वीकार किया
यह कहानी सिखाती है कि गुरु के आशीर्वाद से बड़ा कुछ नहीं होता, परंतु छल से मिली शिक्षा कभी पूर्ण फल नहीं देती।
महाभारत से जुड़े ये गुरु-शिष्य के प्रसंग हमें सिखाते हैं ,
अगर गुरु की कृपा और शिष्य की निष्ठा मिल जाए, तो असंभव को संभव बनाया जा सकता है /
गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर आइए हम भी अपने गुरुजनों का सम्मान करें, उनके बताए मार्ग पर चलें और ज्ञान की इस परम्परा को आगे बढ़ाएं।