14/07/2025
#माया_छलिया_है******
जब शादी हुई थी तब मेरे बहुत सारे सपने थे। मै सोचा करती थी हर सपने को दिल खोल कर पूरा करूँगी। पति भी कमाऊ मिला था। शहर के मुख्य बाजार मे उनकी खुद की दुकान थी। अच्छी कमाई हो जाती थी। मेरा बचपन बन्दिशो मे गुजरा था। पहले पिता की पाबन्दियां फिर भाईयों की बन्दिशें।
खुल कर जीने का मौका ही नही मिला था। 12 वीं पास करते ही पढाई छुड़वा दी गई। घर की चार दिवारी मे रह कर जवान हुई थी।
सोचा था पति के घर मे कुछ रियायतें मिलेंगी। घूमेंगे फिरेंगे, नई दुनिया देखेंगे। थोड़ा सा खुल कर जिएंगे। मैंने पति से कहा "सुनो जी, दस दिन का हनीमून टूर बनाओ ताकि थोड़ा सा खुल कर जिएं, खुली हवा मे सांस लेकर जिंदगी की नई शुरुवात करें। ” पति ने कहा "अभी इतना पैसा नही है कि हनीमून जैसे फिजूल के टूर पर खर्च किया जाए। अभी एक बहन और भाई की शादी करनी है। उनकी पढाई पर भी खर्चा लग रहा है। इतने दिनों के लिए मै दुकान बन्द नही रख सकता। ग्राहक कहीं और से सामान लेने लगेंगे। "मै उदास होकर बोली " फिर मेरे सपनो का क्या होगा?" पति बोले " थोड़ा सा धीरज रखो मै तुम्हारे हर सपने को पूरा करूंगा। पहले बहन भाई को सेटल कर के उनकी शादियां कर दूं। फिर हमारे पास वक्त ही वक्त होगा।" फुर्सत की आस मे इच्छाओं को टालना करना पड़ा। पति दुकान मे बिजी हो गए और मै गृहस्ती की गाड़ी मे सवार होकर घर को सम्भालने में बिजी हो गई। वक़्त गुजरने लगा।
चाहे दिन सुख के गुजरे या दुख के, वक़्त कम्बख्त रुकता नही। ये चलता ही रहता है। शादी के बाद तो ये चलता नही बल्कि दौड़ता है।
सोचने का भी अवसर नही देता । वर्ष गुजर जाते है पता ही नही चलता कब गुजर गए। इस बीच मै एक बेटी और एक बेटे की माँ बन गई। ननद और देवर दोनों नौकरी लग गए। अच्छा सा रिश्ता देख कर उनकी शादियाँ कर दी। ननद अपने ससुराल चली गई। देवर शादी के बाद दूसरे शहर मे बस गया। पति की जिम्मेदारियां पूरी हो गई मगर फुर्सत अभी भी नही मिली। बच्चे स्कूल जाने लगे थे। उन्हे नहला धुला कर स्कूल भेजना फिर वापस लाना। उनका होमवर्क करवाना। बस इसी मे जिंदगी जैसे खो गई थी। पति को दुकान से फुर्सत मिलना तो जैसे नामुमकिन था।
पैसों की कमी नही थी। बैंक बैलेंस बढ़ता जा रहा था। पति ने गाड़ी खरीद ली थी। एक प्लॉट और एक फ्लैट भी खरीद लिया था।
गाड़ी सिर्फ इतना ही काम आती थी, कि पति उसे लेकर सुबह दुकान चले जाते और शाम को वापस आ जाते। एक बार बच्चों की छुट्टियों के समय मैंने उन्हे फिर याद दिलाया। सुनो जी "अब तो पैसे और फुर्सत दोनों हैं। चलो कहीं घूम आएँ। घर की चार दिवारी मे दम घुटता है। कहीं खुली हवा मे ले चलो ना? " पति गुस्सा हो गए। बोले" इतना सुंदर घर बना कर दे रखा है फिर भी इसमें दम घुटता है ? शर्म करो। दुनिया मे ऐसे भी बहुत लोग है जो फुटपाथ पर सोते हैं। उन्हे एक कमरा भी नसीब नही होता। और तुम्हे इतनी सुख सुविधा दे रखी फिर भी घर रास नही आता? "उस दिन के बाद मैंने घर से बाहर जाने की जिद छोड़ दी।
धीरे धीरे बच्चे बड़े होने लगे। इधर मेरा शरीर भी भारी होता गया। पति का भी बहुत बड़ा पेट निकल आया था। कड़वा सत्य को लाइक और फॉलो करें। मुझे शुगर भी हो गई थी। कमर और घुटनों में दर्द भी रहने लगा था। अब तो घर से बाहर निकलने का दिल ही नही करता था। थोड़ा सा चलते ही मै हांफने लगती थी घर का काम भी नही होता था। इस कारण नौकरानी रखनी पड़ी।
नौकरानी रखने के बाद तो जैसे शरीर खराब ही हो गया था।
तरह तरह की बीमारियां लग गई थी। दवाइयों के भरोसे दिन कटने लगे थे। अब जिंदगी कट नही रही थी बल्कि घसीटी जा रही थी।
पैसा रुतबा सब कुछ था। मगर सुकून नही था। इसी तरह जिंदगी को घसीटते हुए बच्चो की शादी कर दी फिर एक दिन अचानक पति को दिल का दौरा पड़ गया। पैसे को पानी की तरह बहाया तब कहीं जाकर जान बच पाई। दिल के दौर के बाद पति महीनो तक बैड रेस्ट पर रहे। दुकान बेटा सम्भालने लगा था। मृत्यु के करीब जाकर लौट आने के बाद पति को समझ मे आया कि जिंदगी तो एक बुलबुला है। कब फुट कर धोखा दे दे इसकी कोई खबर नही है। जब पति ठीक हो गए तब मेरे पास आए और बोले "सुनिता चलो कहीं घूम आए। आओ कहीं सुकून भरी जगह चलते है। साथ मिलकर बोलेंगे, हंसी ठिठोली करेंगे, मुस्कराएंगे। जाओ तैयारी करो, आज से थोड़ा सा जीने की कोशिश करते है। पैसे कमाने के मोह मे मै जीना ही भूल गया था।
मृत्यु के करीब जाकर लौट आने के बाद मुझे पता चला कि पैसा कमाना जिंदगी नही है खुशियाँ पाने के लिए पैसा खर्च करना जिंदगी है। मैंने अजीब सी नजरों से पति की तरफ देखा। फिर कहा " अब क्या करेंगे जी बाहर जाकर? न शरीर चलने के काबिल रहा न दांत चबाने के काबिल रहे? न आंत पचाने के काबिल रही? इस उम्र मे घर ही सबसे उत्तम जगह है। जहाँ समय पर दवा दारू हो जाती है। " पति ने उदास होकर बोला "मुझे माफ कर दे सुनिता। खाने पीने और पहनने की उम्र मे मै सिर्फ बैंक बैलेंस बढ़ाता रहा। और तुम ख्वाहिशों का गला घोटती रही। अब शायद सबकुछ खत्म हो चुका है जीने के दिन गुजर गए। अब तो जिंदगी को घसीटने के दिन बचे हैं। " पति को उदास देखकर मै बोली "दिल छोटा मत करो जी। हम घूमने चलेंगे। चलो हम किसी तीर्थ यात्रा पर चलते हैं। इतना सुनकर पति खुश हो गए। फिर पूरे दिन जाने की तैयारियां चलती रही।
दूसरे दिन सुबह 7 बजे हमे निकलना था। मै रात भर जाने के बारे मे सोचती रही। मन मे जाने की खुशी और उमंग जरा भी नही थी। क्योंकि मेरा शरीर इतना भारी हो चुका था कि कुछ दूर चलते ही घुटने जवाब देने लगते थे। कमर अकड़ने लगती थी। सांस फूल जाती थी। " सुबह नहा कर मै पूजा मे बैठी थी। अचानक जी घबराने लगा। मैंने पति को आवाज देनी चाही मगर गले से शब्द नही निकले सांस रुक गई थी। अचानक बैठे बैठे ही मेरा शरीर आगे की तरफ झुक गया। फिर मैंने महसूस किया जैसे मै काफी हल्की फुलकी हो गई हूँ।
अब चलने मे जरा भी परेशानी नही हो रही थी। होती भी कैसे? आत्मा मे वजन कहाँ होता है?
मैंने देखा मेरा शरीर प्राण विहीन होकर प्रभु के चरणो मे पड़ा था। काफी देर बाद पति आए और आवाज देने लगे "सुनिता अभी तक पूजा खत्म नही हुई क्या? अरे चलो भई देर हो रही है। बाहर ड्राईवर गाड़ी मे हमारा इंतजार कर रहा है।" मेरी तरफ से कोई प्रतिक्रिया न पाकर वे मेरे पास बैठ गए फिर मेरा कन्धा पकड़ कर हिलाने लगे। मै फिर भी नही उठी तो उन्होंने मेरी नब्ज देखी। फिर झटके से मेरा हाथ छोड़ दिया। फिर घबराते हुए कांपते हाथों से उन्होंने मुझे बैठाने की कोशिश की। मगर मेरा निष्प्राण शरीर उनकी गोद मे लुढ़क गया। वे मेरे माथे पर हाथ फेरते हुए कहने लगे " सुनीता उठो, ऐसी गहरी नींद मे मत जाओ। अभी तो तेरे साथ थोड़ा जीना है मुझे। देखो तुम फुर्सत निकालने के लिए मुझसे लड़ा करती थी न? अब तो मेरे पास फुर्सत ही फुर्सत है। उठा जाओ यार मुझे घबराहट हो रही है।
पति की तेज आवाज सुनकर बेटा और बहु आ गए।
बेटे ने डरते डरते मेरी नब्ज देखी फिर रुलाई रोकते हुए बोला "पापा मम्मी हम सब को छोड़ कर जा चुकी है।"
पति सुन्न पड़ते हुए से बोले " छोड़ कर चली गई?
बिना बताये ही चली गई? " फिर उन्होंने दोनों हाथो से अपने सीने को थाम लिया।
और झटके से उनका चेहरा नीचे गिर कर मेरे सिर पर टिक गया। " ज्यों ही पति की आत्मा शरीर से अलग हुई मै उन्हे नजर आ गई।
वे मुस्कराते हुए बोले " तु क्या समझती है मै तुझे अकेले ही चले जाने दूंगा।"
मै बोली "उधर देखो बच्चे रो रहे है" पति बोले "आओ अब यहाँ से चलें अब संसार के दुख सुख से हमारा नाता खत्म हुआ। माया को इकट्ठी करने के चक्कर मे पूरी जिंदगी लगा दी। ये जानते हुए भी कि माया छलिया है ये किसी की नही होती।
कड़वा सत्य copyrights🙏🙏🙏🙏