31/08/2025
गुरुकुल का अर्थ है वह स्थान या क्षेत्र, जहां गुरु का कुल यानी परिवार निवास करता है. प्राचीन काल में शिक्षक को ही गुरु या आचार्य मानते थे और वहां शिक्षा ग्रेह्ण करने वाले विद्यार्थियों को उसका परिवार माना जाता था.
यहां पर धर्मशास्त्र की पढाई से लेकर अस्त्र की शिक्षा भी सिखाई जाती थी. इसमें कोई संदेह नहीं है कि योग साधना और यज्ञ के लिए गुरुकुल को एक अभिन्न अंग माना जाता है. यहां पर हर विद्यार्थी हर प्रकार के कार्य को सीखता है और शिक्षा पूर्ण होने के बाद ही अपना काम रूचि और गुण के आधार पर चुनता था.
उपनिषदों में लिखा गया है कि मातृ देवो भवः ! पितृ देवो भवः ! आचार्य देवो भवः ! अतिथि देवो भवः !
अर्थात माता-पिता, गुरु और अतिथि संसार में ये चार प्रत्यक्ष देव हैं, इनकी सेवा करनी चाहिए.
इनमें भी माता का स्थान पहला, पिता का दूसरा, गुरु का तीसरा और अतिथि का चौथा है.
गुरुकुल में सबको समान सुविधाएं दी जाती थी. मनुस्मृति में मनु महाराज ने कहा है कि हर कोई अपने लड़के लड़की को गुरुकुल में भेजे, किसी को शिक्षा से वंचित न रखें तथा उन्हें घर मे न रखें.
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स्त्री और पुरुषों की समान शिक्षा को लेकर गुरुकुल काफी सक्रीय थे. उदाहरण: उत्तररामचरित में वाल्मीकि के आश्रम में लव-कुश के साथ पढ़ने वाली आत्रेयी नामक स्त्री का उल्लेख है. इससे पता चलता है की सह-शिक्षा भारत में प्राचीन काल से रही है. पुराणों में भी कहोद और सुजाता, रहु और प्रमद्वरा की कथाएँ वर्णित हैं. इनसे ज्ञात होता है कि कन्याएं बालकों के साथ पढ़ती थी और उनका विवाह युवती हो जाने पर होता था.
आगे चलकर लड़के और लड़कियों के गुरुकुल अलग-अलग हो गए थे, जिस प्रकार लड़कों को शिक्षा दी जाती थी उसी प्रकार से लड़कियों को भी शिक्षा दी जाती थी, शास्त्र–अस्त्र की शिक्षा तथा वेदों का ज्ञान दिया जाता था.
गुरु के महत्व को प्रतिपादित करने के लिए कहा गया है कि गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर, गुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम:|
अर्थात- गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है. गुरु ही साक्षात परब्रह्म है. ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं.
गुरुकुल परम्परा की व्यवस्था हमें बताती है कि देश में शिक्षा प्रणाली की व्यवस्था कितनी श्रेष्ठ थी, जिसमें आमिर-गरीब का कोई भेद नहीं था.
शिक्षा पूर्ण हो जाने पर गुरु शिष्य की परीक्षा लेते थे. शिष्य अपने सामर्थ्य अनुसार दीक्षा देते, किंतु गरीब विद्यार्थी उससे मुक्त कर दिए जाते थे और समावर्तन संस्कार संपन्न कर उसे अपने परिवार को भेज दिया जाता था.
प्राचीन भारत में, गुरुकुल के माध्यम से ही शिक्षा प्रदान की जाती थी. इस पद्धति को गुरु-शिष्य परम्परा भी कहते है. इसका उद्देश्य था:
- विवेकाधिकार और आत्म-संयम
- चरित्र में सुधार
- मित्रता या सामाजिक जागरूकता
- मौलिक व्यक्तित्व और बौद्धिक विकास
- पुण्य का प्रसार
- आध्यात्मिक विकास
- ज्ञान और संस्कृति का संरक्षण
गुरुकुल में किस प्रकार छात्रों को विभाजित किया जाता था:
छात्रों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता था:
1. वासु - 24 साल की उम्र तक शिक्षा प्राप्त करने वाले.
2. रुद्र- 36 साल की उम्र तक शिक्षा प्राप्त करने वाले.
3. आदित्य- 48 साल की उम्र तक शिक्षा प्राप्त करने वाले.