24/11/2023
*तुलसी शालिग्राम विवाह, 24 नवम्बर, 2023*
भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम और माता तुलसी के मिलन का पर्व तुलसी विवाह हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष 24 नवम्बर तुलसी शालिग्राम विवाह कराया जाएगा।
पद्मपुराण के पौराणिक कथानुसार राजा जालंधर की पत्नी वृंदा के श्राप से भगवान विष्णु पत्थर बन गए, जिस कारणवश प्रभु को शालिग्राम भी कहा जाता है और भक्तगण इस रूप में भी उनकी पूजा करते हैं.इसी श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु को अपने शालिग्राम स्वरुप में तुलसी से विवाह करना पड़ा था और उसी समय से कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को तुलसी विवाह का उत्सव मनाया जाता है।
पद्मपुराण के अनुसार कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की नवमी को तुलसी विवाह रचाया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की प्रतिमा बनाकर उनका विवाह तुलसी जी से किया जाता है. विवाह के बाद नवमी, दशमी तथा एकादशी को व्रत रखा जाता है और द्वादशी तिथि को भोजन करने के विषय में लिखा गया है. कई प्राचीन ग्रंथों के अनुसार शुक्ल पक्ष की नवमी को तुलसी की स्थापना की जाती है. कई श्रद्धालु कार्तिक माह की एकादशी को तुलसी विवाह करते हैं और द्वादशी को व्रत अनुष्ठान करते हैं।
देवोत्थान एकादशी के दिन मनाया जाने वाला तुलसी विवाह विशुद्ध मांगलिक और आध्यात्मिक प्रसंग है। दरअसल, तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहते हैं। देवता जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। इसीलिए तुलसी विवाह को देव जागरण के पवित्र मुहूर्त के स्वागत का आयोजन माना जाता है। तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है, तुलसी के माध्यम से भगवान का आहावान। कार्तिक, शुक्ल पक्ष, एकादशी को तुलसी पूजन का उत्सव मनाया जाता है। वैसे तो तुलसी विवाह के लिए कार्तिक, शुक्ल पक्ष, नवमी की तिथि ठीक है, परन्तु कुछ लोग एकादशी से पूर्णिमा तक तुलसी पूजन कर पाँचवें दिन तुलसी विवाह करते हैं। आयोजन बिल्कुल वैसा ही होता है, जैसे हिन्दू रीति-रिवाज से सामान्य वर-वधु का विवाह किया जाता है।
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देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन मनाए जानेवाले इस मांगलिक प्रसंग के सुअवसर पर सनातन धर्मावलम्बी घर की साफ़-सफाई करते हैं और रंगोली सजाते हैं. शाम के समय तुलसी चौरा के पास गन्ने का भव्य मंडप बनाकर उसमें साक्षात् नारायण स्वरुप शालिग्राम की मूर्ति रखते हैं और फिर विधि-विधानपूर्वक उनके विवाह को संपन्न कराते हैं. मंडप, वर पूजा, कन्यादान, हवन और फिर प्रीतिभोज, सब कुछ पारम्परिक रीति-रिवाजों के साथ निभाया जाता है। इस विवाह में शालिग्राम वर और तुलसी कन्या की भूमिका में होती है। यह सारा आयोजन यजमान सपत्नीक मिलकर करते हैं। इस दिन तुलसी के पौधे को यानी लड़की को लाल चुनरी-ओढ़नी ओढ़ाई जाती है। तुलसी विवाह में सोलह श्रृंगार के सभी सामान चढ़ावे के लिए रखे जाते हैं। शालिग्राम को दोनों हाथों में लेकर यजमान लड़के के रूप में यानी भगवान विष्णु के रूप में और यजमान की पत्नी तुलसी के पौधे को दोनों हाथों में लेकर अग्नि के फेरे लेते हैं। विवाह के पश्चात प्रीतिभोज का आयोजन किया जाता है। कार्तिक मास में स्नान करने वाले स्त्रियाँ भी कार्तिक शुक्ल एकादशी को शालिग्राम और तुलसी का विवाह रचाती है। समस्त विधि विधान पूर्वक गाजे बाजे के साथ एक सुन्दर मण्डप के नीचे यह कार्य सम्पन्न होता है विवाह के स्त्रियाँ गीत तथा भजन गाती है।
कार्तिक माह की देवोत्थान एकादशी से ही विवाह आदि से संबंधित सभी मंगल कार्य आरम्भ हो जाते हैं. इसलिए इस एकादशी के दिन तुलसी विवाह रचाना उचित भी है. कई स्थानों पर विष्णु जी की सोने की प्रतिमा बनाकर उनके साथ तुलसी का विवाह रचाने की बात कही गई है. विवाह से पूर्व तीन दिन तक पूजा करने का विधान है. नवमी,दशमी व एकादशी को व्रत एवं पूजन कर अगले दिन तुलसी का पौधा किसी ब्राह्मण को देना शुभ होता है। लेकिन लोग एकादशी से पूर्णिमा तक तुलसी पूजन करके पांचवे दिन तुलसी का विवाह करते हैं। तुलसी विवाह की यही पद्धति बहुत प्रचलित है।
शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दंपत्तियों के संतान नहीं होती,वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें।तुलसी विवाह करने से कन्यादान के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है।
कार्तिक शुक्ल एकादशी पर तुलसी विवाह का विधिवत पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।हिन्दुओं के संस्कार अनुसार तुलसी को देवी रुप में हर घर में पूजा जाता है. इसकी नियमित पूजा से व्यक्ति को पापों से मुक्ति तथा पुण्य फल में वृद्धि मिलती है. यह बहुत पवित्र मानी जाती है और सभी पूजाओं में देवी तथा देवताओं को अर्पित की जाती है. सभी कार्यों में तुलसी का पत्ता अनिवार्य माना गया है. प्रतिदिन तुलसी में जल देना तथा उसकी पूजा करना अनिवार्य माना गया है. तुलसी घर-आँगन के वातावरण को सुखमय तथा स्वास्थ्यवर्धक बनाती है.तुलसी के पौधे को पवित्र और पूजनीय माना गया है। तुलसी की नियमित पूजा से हमें सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
तुलसी विवाह के सुअवसर पर व्रत रखने का बड़ा ही महत्व है. आस्थावान भक्तों के अनुसार इस दिन श्रद्धा-भक्ति और विधि पूर्वक व्रत करने से व्रती के इस जन्म के साथ-साथ पूर्वजन्म के भी सारे पाप मिट जाते हैं और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है।
तुलसी विवाह की विधि
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👉 तुलसी का गमला साफ सुथरा करके गेरू और चूने से रंगकर सजायें।
👉 साड़ी आदि से सुन्दर मंडप बनाकर गन्ने व फूलों से सजाना चाहिए ।
👉 परिवार के सभी सदस्य शाम के समय तुलसी विवाह में शामिल होने के लिए नए कपड़े आदि पहन कर तैयार हो जाये।
👉 तुलसी के साथ शादी के लिए शालिग्राम जी यानि विष्णु जी की काली मूर्ति चाहिए होती है। ये नहीं मिले तो आप अपनी श्रद्धानुसार सोने , पीतल या मिश्रित धातु की मूर्ति ले सकते है या फिर विष्णु जी की तस्वीर भी ले सकते है। यदि कोई व्यवस्था ना हो पाए तो पंडित जी से आग्रह करने पर वे मंदिर से शालिग्राम जी की मूर्ति अपने साथ ला सकते है।
👉 सबसे पहले गणेश जी का पूजन करें , फिर मंत्रो का उच्चारण करते हुए गाजे बाजे के साथ भगवान विष्णु की प्रतिमा को तुलसी जी के निकट लाकर रखे।
👉 भगवान विष्णु का आवाहन इस मन्त्र के साथ करें –
” आगच्छ भगवन देव अर्चयिष्यामि केशव। तुभ्यं दास्यामि तुलसीं सर्वकामप्रदो भव “
( यानि हे भगवान केशव , आइये देव मैं आपकी पूजा करूँगा , आपकी सेवा में तुलसी को समर्पित करूँगा। आप मेरे सभी मनोरथ पूर्ण करना )
फिर इस मंत्र से तुलसी जी का ध्यान करें
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
तुलसा जी व भगवान विष्णु की प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा करके निम्नस्तुति आदि के द्वारा भगवान को निद्रा से जगाये।
उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥
उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥
शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।
उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
👉 विष्णु जी को पीले वस्त्र धारण करवाये ,पीला रंग विष्णु जी का प्रिय है।
👉 कांसे के पात्र में दही, घी, शहद रखकर भगवान् को अर्पित करें।
👉 फिर पुरुष सूक्त हरी ॐ सहस्त्रशीर्षा पुरुष:सहस्राक्ष:सहस्रपात् |
स भूमि सर्वत: स्पृत्वाSत्यतिष्ठद्द्शाङ्गुलम् || आदि 16 मंत्रो से या सामर्थ्य हो तो षोडशोपचार से पूजा करें।
👉 इस मंत्र को बोलकर तुलसी जी का पूजन करें।
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।
👉 तुलसी माता को लाल रंग की ओढ़नी ओढ़ानी चाहिए।
👉 शालीग्राम जी को चावल नहीं चढ़ाये जाते है इसीलिए उन्हें तिल चढ़ाये। दूध व हल्दी का लेप बनाकर शालिग्राम जी व तुलसी जी को चढ़ाये। गन्ने से बनाये गए मंडप की भी दूध हल्दी से पूजा करे।
👉 विवाह के समय निभाये जाने वाली सभी रस्मे करें।
👉 तुलसीजी और शालिग्राम जी के फेरे भी करवाने चाहिए।
👉 साथ ही “ओम तुलस्यै नमः ” मन्त्र का उच्चारण करना चाहिए।
👉 तुलसी माता की शादी के लिए साड़ी , ब्लाउज , मेहंदी , काजल , बिंदी , सिंदूर , चूड़ा आदि सुहाग का सामान तथा बर्तन चढ़ाये।
👉 जो भी भोजन बनाया हो वह एक थाली में दो जनो के लिए रखकर फेरो के समय भोग लगाने के लिए रखना चाहिए ।
👉 कन्यादान का संकल्प करें और भगवान से प्रार्थना करें – हे परमेश्वर ! इस तुलसी को आप विवाह की विधि से ग्रहण कीजिये। यह पार्वती के बीज से प्रकट हुई है , वृन्दावन की भस्म में स्थित रही है।
आपको तुलसी अत्यंत प्रिय है अतः इसे मैं आपकी सेवा में अर्पित करता हूँ। मैंने इसे पुत्री की तरह पाल पोस कर बड़ा किया है। और आपकी तुलसी आपको ही दे रहा हूँ। हे प्रभु इसे स्वीकार करने की कृपा करें।
👉 इसके पश्चात् तुलसी और विष्णु दोनों की पूजा करें और तुलसी माता की कहानी सुने।
👉 कपूर से तुलसी माता की आरती करें।
और नामाष्टक मंत्र का यथा सामर्थ्य जप करें।
वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।
👉 इसके बाद आरती करें
जय जय तुलसी माता,
मैया जय तुलसी माता ।
सब जग की सुख दाता,
सबकी वर माता ॥
॥ जय तुलसी माता...॥
सब योगों से ऊपर,
सब रोगों से ऊपर ।
रज से रक्ष करके,
सबकी भव त्राता ॥
॥ जय तुलसी माता...॥
बटु पुत्री है श्यामा,
सूर बल्ली है ग्राम्या ।
विष्णुप्रिय जो नर तुमको सेवे,
सो नर तर जाता ॥
॥ जय तुलसी माता...॥
हरि के शीश विराजत,
त्रिभुवन से हो वंदित ।
पतित जनों की तारिणी,
तुम हो विख्याता ॥
॥ जय तुलसी माता...॥
लेकर जन्म विजन में,
आई दिव्य भवन में ।
मानव लोक तुम्हीं से,
सुख-संपति पाता ॥
॥ जय तुलसी माता...॥
हरि को तुम अति प्यारी,
श्याम वर्ण सुकुमारी ।
प्रेम अजब है उनका,
तुमसे कैसा नाता ॥
हमारी विपद हरो तुम,
कृपा करो माता ॥
॥ जय तुलसी माता...॥
जय जय तुलसी माता,
मैया जय तुलसी माता ।
सब जग की सुख दाता,
सबकी वर माता ॥
👉 भगवान को लगाए गए भोग का प्रसाद के रूप में वितरण करे।
👉 सुबह हवन करके पूर्णाहुती करें । इसके लिए खीर , घी , शहद और तिल के मिश्रण की 108 आहुति देनी चाहिए। महिलाये तुलसी माता के गीत गाती है। उसी समय व्रत करने वाली के पीहर वाले कपड़े पहनाते है। इसी समय शालीग्राम व तुलसी माता को श्रद्धानुसार भोजन परोसकर भोग लगाना चाहिए , साथ में श्रद्धानुसार दक्षिणा अर्पित की जानी चाहिए।
👉 भगवान से प्रार्थना करें – प्रभु ! आपकी प्रसन्नता के लिए किये गए इस व्रत में कोई कमी रह गई हो तो क्षमा करें। अब आप तुलसी को साथ लेकर बैकुंठ धाम पधारें। आप मेरे द्वारा की गई पूजा से सदा संतुष्ट रहकर मुझे कृतार्थ करें। इस प्रकार तुलसी विवाह का परायण करके भोजन करें। भोजन में आँवला , गन्ना व बैर आदि अवश्य शामिल करें। भोजन के बाद तुलसी के अपने आप गिरे हुए पत्ते खाएँ, यह बहुत शुभ होता है। तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराना विष्णु भगवान की भक्ति का एक रूप है।