21/02/2025
भगवान विष्णु और भक्त का प्रेम
प्राचीन समय की बात है। एक छोटे से गाँव में धर्मदत्त नाम का एक भक्त भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहता था। वह नित्य नियम से प्रभु की पूजा करता, भजन गाता और निस्वार्थ सेवा करता था। उसकी भक्ति इतनी प्रबल थी कि स्वयं भगवान विष्णु भी उसे आशीर्वाद देने के लिए आतुर रहते थे।
एक दिन भगवान विष्णु ने सोचा, "मुझे अपने इस भक्त की परीक्षा लेनी चाहिए कि उसकी भक्ति सच्ची है या नहीं।"
भगवान ने माया रची और गाँव में भयंकर सूखा पड़ गया। खेत सूख गए, नदियाँ सूख गईं और लोग भूख-प्यास से त्रस्त हो गए। धर्मदत्त के पास भी अन्न का एकमात्र बर्तन बचा था, जिससे वह अपना जीवन चला रहा था।
उसी दिन एक वृद्ध साधु उसके द्वार पर आया और भोजन मांगा। धर्मदत्त ने बिना संकोच अपना संपूर्ण अन्न साधु को दे दिया और मुस्कुराते हुए बोला, "भगवान की कृपा से सब कुछ मिल जाएगा।"
यह देखकर भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए। वह प्रकट हुए और बोले, "वत्स, तुमने अपनी अंतिम संपत्ति भी त्याग दी, फिर भी तुम्हारा विश्वास अडिग रहा। मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूँ, माँगो जो चाहो!"
धर्मदत्त ने हाथ जोड़कर कहा, "प्रभु! मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस इतना आशीर्वाद दीजिए कि मेरी भक्ति सदा अडिग रहे।"
भगवान विष्णु भाव-विभोर हो गए और बोले, "तथास्तु!"
भगवान के आशीर्वाद से गाँव में वर्षा हुई, सुख-समृद्धि लौट आई, और धर्मदत्त की भक्ति युगों तक अमर हो गई।
सीख: सच्ची भक्ति बिना किसी स्वार्थ के होती है। जो भगवान पर अटूट विश्वास रखता है, उसे जीवन में किसी चीज की कमी नहीं होती।