29/10/2025
स्थानीय रिपोर्ट — हाल के दिनों में माता-पिता और शिक्षा जगत में चिंता की लहर फैल गयी है कि नशे का खतरा युवाओं को तेजी से प्रभावित कर रहा है। विशेषज्ञों, शिक्षकों और अभिभावकों का कहना है कि इस लड़ाई में केवल स्कूल या केवल परिवार अकेले नहीं टिक पाएँगे — समाज के प्रत्येक हिस्से को सक्रिय होना होगा।
अभिभावकों के एक हिस्से ने कहा कि वे अक्सर केवल parent-teacher meetings तक ही सीमित रहते हैं जबकि बच्चों के व्यवहार, दोस्तों और स्कूल-हाज़िरी जैसी छोटी-छोटी जानकारियाँ नियमित रूप से लेना ज़रूरी है। शिक्षकों ने भी माना कि माता-पिता का समय-समय पर स्कूल आकर संवाद करना और बच्चों की दिनचर्या पर नजर रखना बड़ा सकारात्मक असर डालता है।
स्कूलों के काउंसलर और सामाजिक कार्यकर्ता सुझाव देते हैं:
• माता-पिता नियमित रूप से स्कूल/कॉलेज जाकर शिक्षकों से व्यक्तिगत रूप से चर्चा करें।
• स्कूलों में नशा-जागरूकता कार्यक्रम और काउंसलिंग सुविधाएँ बढ़ाई जाएँ।
• अगर किसी छात्र में व्यवहारिक बदलाव दिखे (दोस्तों में अचानक बदलाव, पढ़ाई में गिरावट, हाज़िरी का गिरना), तो तुरंत संवाद और सहायक कदम उठाए जाएँ।
• समाजिक स्तर पर awareness drives और युवा-क्लब सक्रिय किये जाएँ ताकि जोखिम समय रहते पकड़ा जा सके।
एक वरिष्ठ शिक्षक ने कहा, “बच्चों के समर्थन में पैरेंट-टीचर सहयोग अनिवार्य है — जब घर और स्कूल एक साथ खड़े होंगे तभी हम नशे के प्रभाव को कम कर पाएँगे।” दूसरी ओर, एक अभिभावक ने कहा, “हमें शर्म या टालमटोल नहीं करना चाहिए — अगर संदेह है तो स्कूल से खुलकर बात करें।”
विशेषज्ञों का निष्कर्ष स्पष्ट है: नशे के खिलाफ लड़ाई व्यक्तिगत हल नहीं हो सकती — इसके लिए विद्यालय, परिवार, स्वास्थ्य सेवाएँ और स्थानीय सामुदायिक संगठन मिलकर योजना बनाएँ और तीव्र रूप से लागू करें। अभिभावकों से अपील की जा रही है कि वे अपने बच्चों के शैक्षणिक संस्थानों से संवाद बढ़ाएँ और किसी भी अस्वाभाविक संकेत पर तुरंत कदम उठाएँ।